Wednesday, October 20, 2010

स्वप्न वासवदत्ता - अंक 2-3 (संस्कृत नाटक का संपादित सरल हिन्दी रूपान्तर)

पिछला अंक - स्वप्न वासवदत्ता - अंक 1 (संस्कृत नाटक का संपादित सरल हिन्दी रूपान्तर)

(चेटी का प्रवेश)

चेटीः कंजरिके! कंजरिके! राजकुमारी पद्मावती कहाँ हैं? क्या? वे लताकुंज के समीप कन्दुक-क्रीड़ा कर रही हैं। अच्छा तो मैं स्वामिपुत्री के समीप जाती हूँ। (लताकुंज की ओर देखकर) कुमारी तो स्वयं कन्दुक-क्रीड़ा करते हुआ आ रही हैं। अहा! क्रीड़ा के श्रम से उत्पन्न क्लांति ने उनके मुख की सुन्दरता को और भी बढ़ा दिया है। अच्छा तो उनके पास चलती हूँ।

(चेटी का प्रस्थान)

(वासवदत्ता के साथ गेंद खेलती हुई पद्मावती का प्रवेश)

वासवदत्ताः प्रिये! यह रही तुम्हारी कन्दुक।

पद्मावतीः आर्ये! अब बस, अब और क्रीड़ा नहीं।

वासवदत्ताः क्रीड़ा से क्लान्त तुम्हारे रक्तवर्ण हुए हाथ तो किसी अन्य के-से प्रतीत हो रहे हैं राजकुमारी।

चेटीः (समीप आकर) स्वामिकन्ये! खेलें, खेलें! कुमारी जीवन के इस रमणीय काल का सदुपयोग करें।

पद्मावतीः (वासवदत्ता से) आर्ये! आप मेरा उपहास तो नहीं कर रही हैं?

वासवदत्ताः कदापि नहीं प्रिये! आज क्रीड़ा के श्रम ने तुम्हें विशेष सुन्दर बना दिया है, मुझे तुम्हारा मुख अत्यन्त सुन्दर लग रहा है।

पद्मावतीः रहने दें! मेरा उपहास न करें।

वासवदत्ताः अच्छा तो मैं चुप हो जाती हूँ महासेन की भावी वधू।

पद्मावतीः यह महासेन कौन है?

वासवदत्ताः उज्जयिनी के महाराज प्रद्योत के पास असीम सेना है, इसीलिए उन्हें महासेन के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है।

चेटीः हमारी राजकुमारी उस राजा के पुत्र से सम्बन्ध नहीं चाहतीं।

वासवदत्ताः फिर किससे चाहती हैं?

चेटीः वत्सराज उदयन से। स्वामिपुत्री उनके गुणों से मुग्ध हो गई हैं।

वासवदत्ताः (स्वगत्) तो यह आर्यपुत्र की पतिरूप में कामना करती है। (प्रकट) सो किसलिए?

चेटीः क्योंकि वे अत्यन्त कोमल हृदय हैं।

वासवदत्ताः (स्वगत्) इस बात से तो मैं अच्छी प्रकार से भिज्ञ हूँ। मैं भी कभी पद्मावती की तरह उन्मत्त हो उठी थी।

चेटीः राजकुमारी! और यदि वे कुरूप हुए तो?

वासवदत्ताः नहीं, नहीं, वे अत्यन्त दर्शनीय हैं।

पद्मावतीः आर्ये! यह आपको कैसे पता है?

वासवदत्ताः (स्वगत्) आर्यपुत्र के पक्षपात के कारण मुझसे सदाचार की सीमा का उल्लंघन हो गया। अब क्या उपाय करूँ? अच्छा उपाय सूझा। (प्रकट) उज्जयिनी के नागरिक ऐसा ही कहते हैं प्रिये।

पद्मावतीः हाँ, उज्जयिनी के लोगों के लिए उनका दर्शन दुर्लभ नहीं है, इसीलिए उनकी सुन्दरता उन्हें अभिराम लगती है।

(धात्री का प्रवेश)

धात्रीः कुमारी की जय हो! कुमारी! तुम्हारे विवाह का निश्चय हो गया।

वासवदत्ताः किसके साथ आर्ये?

धात्रीः वत्सराज उदयन के साथ!

वासवदत्ताः वत्सराज कुशल से तो हैं?

धात्रीः हाँ, वे कुशलतापूर्वक यहाँ पधारे हैं और उन्होंने राजकुमारी से विवाह करना स्वीकार कर लिया है।

वासवदत्ताः यह तो बहुत अहित हुआ।

धात्रीः इसमें अहित क्या हुआ?

वासवदत्ताः कुछ नहीं, केवल इतना ही कि इतने शोकग्रस्त होने के पश्चात् वे अब उदासीन हो गए।

धात्रीः आर्ये! धीर पुरुष दुःख से दीर्घकाल तक संतप्त नहीं रहते, शीघ्र ही प्रकृतिस्थ हो जाते हैं।

वासवदत्ताः क्या उन्होंने स्वयं विवाह का प्रस्ताव किया?

धात्रीः नहीं, यहाँ वे किसी अन्य प्रयोजन से आए थे। हमारे महाराज ने उनके रूप, वय, गुण, आभिजात्य आदि से प्रभावित होकर स्वयं ही विवाह का प्रस्ताव किया।

वासवदत्ताः (स्वगत्) मैं मिथ्या ही आर्यपुत्र का दोष निकाल रही थे, वे सर्वथा निर्दोष हैं।

(दूसरी चेटी का प्रवेश)

दूसरी चेटीः शीघ्रता करें! आज ही विवाह का शुभ लग्न है। हमारी स्वामिनी की इच्छा है कि आज ही विवाह सम्पन्न हो जाना चाहिए।

वासवदत्ताः (स्वगत्) जितनी ये शीघ्रता कर रहे हैं उतना ही मेरा हृदय अन्धकारमय होता चला जा रहा है।

धात्रीः कुमारी! चलें! प्रस्थान करें।

(सभी का प्रस्थान)
(अंक 2 समाप्त)
स्वप्न वासवदत्ता - अंक 3 (संस्कृत नाटक का संपादित सरल हिन्दी रूपान्तर)
(वासवदत्ता का प्रवेश)

वासवदत्ताः (स्वगत्) आनन्द से अभिभूत अन्तःपुर एवं विवाह मण्डप से निकलकर प्रमदवन में आने का अब अवसर प्राप्त हुआ। अब मैं भाग्यजनित दुःख को विस्मृत करने का प्रयास कर पाउँगी। आह! कैसा असीम दुःख है! आर्यपुत्र भी अब मेरे न रहे। विवाह में बहुत श्रम किया है, तनिक बैठ जाऊँ। (बैठकर) धन्य है चक्रवाकी जो चक्रवाक से विलग होकर प्राण त्याग देती है। मैं अभागन तो आर्यपुत्र के दर्शनों का लोभ से अपने प्राण भी नहीं त्याग सकती।

(फूलों की टोकरी के साथ चेटी का प्रवेश)

चेटीः चन्द्र के समान भद्रवसन धारण करने वाली चिन्तिति हृदय की स्वामिनी आर्या अवन्तिका कहाँ हैं? (वासवदत्ता की ओर देखकर) ओह, वे तो प्रियंगु लता के समीप शिलापट्ट पर विराजमान है। (वासवदत्ता के समीप जाकर) आर्ये! मैं कब से आपको खोज रही हूँ।

वासवदत्ताः किसलिए?

चेटीः हमारी भट्टिनी रानी का कथन है कि आप उच्चकुलीन होने के साथ ही साथ स्नेहशील तथा कुशल भी हैं, अतः विवाह की माला आप के हाथों से गूँथा जाना चाहिए।

वासवदत्ताः किसके लिए है यह माला?

चेटीः भद्रदारिका राजकुमारी के लिए।

वासवदत्ताः (स्वगत्) हा निष्ठुर देव! मुझे यह भी करना पड़ रहा है।

चेटीः आर्ये! शीघ्रता करें। जामाता अभी मणिभूमि में स्नान कर रहे हैं। उनके आगमन के पूर्व माला गूँथ दें।

वासवदत्ताः भद्रे! क्या तूने जामाता को देखा है?

चेटीः हाँ आर्ये! इससे पूर्व मैंने इतना सुन्दर पुरुष कभी नहीं देखा। वे तो धनुष-बाण रहित कामदेव-से प्रतीत होते हैं।

वासवदत्ताः अच्छा, अब उनकी सुन्दरता का वर्णन बन्द कर।

चेटीः क्यों आर्ये?

वासवदत्ताः क्योंकि परपुरुष की प्रशंसा सुनना उचित नहीं है।

चेटीः अच्छा आर्ये! अब आप शीघ्र माला गूँथ दें।

वासवदत्ताः (टोकरी को उलटकर एक फूल को इंगित करके) यह कौन सा पुष्प है?

चेटीः सदा सुहागन! (अविधवाकरण)

वासवदत्ताः (स्वगत्) इस पुष्प को तो मैं बहुत अधिक गूँथूँगी, अपने लिए भी और पद्मावती के लिए भी। (प्रकट, दूसरे फूल को दिखाकर) और इस पुष्प का क्या नाम है?

चेटीः सौत सालिनी। (सपत्नीमर्दन)

वासवदत्ताः इसे मैं नहीं गूँथूँगी।

चेटीः किसलिए आर्ये?

वासवदत्ताः राजा की प्रथम पत्नी की मृत्यु हो चुकी है अतः इस पुष्प का माला में प्रयोजन नहीं है।

(दूसरी चेटी का प्रवेश)

दूसरी चेटीः शीघ्रता करें आर्ये! शीघ्रता करें। जामाता को सुहागिन स्त्रियाँ विवाह-मण्डप में लेकर जा रही हैं।

वासवदत्ताः (माला गूँथना का कार्य पूर्ण करके) यह ले।

(माला लेकर दोनों चेटी का प्रस्थान)

वासवदत्ताः चेटियाँ चली गईं। कैसी अभागन हूँ मैं! आर्यपुत्र भी अन्य के हो गए। शैय्या पर चलकर अपने दुःख को विस्मृत करने का प्रयास करूँ। सम्भवतः निद्रादेवी की कृपा हो जाए।

(प्रस्थान)
(अंक 3 समाप्त)

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