खैर खून खाँसी खुसी बैर प्रीत मदपान।
रहिमन दाबे न दबे जानत सकल जहान॥
ऐब और गुण भी ऐसी ही चीजें हैं जो छिपाए नहीं छिपतीं। हम श्री राहुल सिंह जी से मिलने के लिए छत्तीसगढ़ राज्य के संस्कृति विभाग में गए तो वहाँ छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के दस वर्ष पूर्ण होने पर एक थीम सांग बनने की चर्चा जोरों पर चल रही थी। इधर चर्चा चल ही रही थी और उधर उसी विभाग में कार्यरत श्री राकेश तिवारी एक कागज पर कुछ लिखने में व्यस्त थे। यह जानकर हम दंग रह गए कि महज पाँच-सात मिनट के भीतर ही उन्होंने छत्तीसगढ़ी में एक थीम सांग की रचना कर डाली जो इस प्रकार हैः
दस साल के छत्तीसगढ़ ह, देस मँ नाम कमावत हे।
बिकास के झण्डा ल, गाँव-गाँव फहरावत हे॥
दस साल के.....
बमलेसरी महमाई संवरी दन्तेसरी के माया हे़।
कोरबा भेलई बईलाडीला संग देवभोग के छाया हे॥
हरियर छत्तीसगढ़ धान कटोरा चाँदी के दोना कहावत हे
दस साल के.....
गावय ददरिया महानदी शिवनाथ बजावय मोहरी।
इन्द्रावती चिला फरा अरपा झड़कय देहरवरी॥
खिल खिल खिल खिल छत्तीसगढ़ी भाखा ह मुसकावत हे
दस साल के.....
सरगुजिया बस्तरिहा खुस हे चहकत जसपुरिया रायगढ़िया।
दुगिया रायपुरिया हाँसय संग संग नंदगइया बेलासपुरिया॥
नोनी-बाबू लइका-सियान बुढ़ुवा घलो मेछरावत हे
दस साल के.....
श्री राकेश तिमारी जी की उपरोक्त रचना को पढ़कर हमें आश्चर्ययुक्त प्रसन्नता हुई। उनके विषय में और जानकारी पाने के
लिए हम उत्सुक हो गए तो हमें पता चला कि वे एक लोक संगीतज्ञ हैं तथा उन्होंने अनेक लोकधुनों का निर्माण किया है। रायपुर के नगरघड़ी के निर्माण के सन्दर्भ में उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में दर्ज है। उन्होंने लेड़गा ममा, जय महामाया, बंधना आदि छत्तीसगढ़ी फिल्मों में अभिनय किया है। लगभग 20 टेलीफिल्मों सहित 5 फीचर फिल्मों में गीत लेखन का कार्य किया है तथा चर्चित नाटक "राजा भोकलवा", जिसका पूरे देश में अब तक 73 बार मंचन हो चुका है, का लेखन तथा निर्देशन भी किया है।ऐसे प्रतिभाशाली श्री राकेश तिवारी जी से हमने अपना ब्लोग बनाने का अनुरोध किया तो उन्होंने हमारा अनुरोध मान लिया और शीघ्र ही वे हमारे बीच होंगे।
14 comments:
वाह वाह ..क्या वर्णन है १० साल के छत्तीस गढ़ का
सच ! प्रतिभा छुपाये नहीं छुपती.........
धन्य हो !
सहमत हूँ प्रतिभाएं एक दिन सामने जरुर आती हैं और अधिक समय तक छुपी नहीं रह सकती हैं ..... बहुत सटीक पोस्ट ...
आप दोनों ही बधाई के पात्र हैं..
लाल की आभा गुदड़ी से बाहर आयेगी ही.
bahut badiya prastuti
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (11/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
अच्छा लगा राकेश जी से मिलकर
आप से सहमत हे जी, ओर राकेश जी से मिलना बहुत अच्छा लगा, आप का धन्यवाद
सच में, चिपाये नहीं छिपती ये सब।
राकेश जी का परिचय व रचना बहुत अच्छे लगे। सही है प्रतिभा छिपाये नही छिपती। धन्यवाद।
बहुत आभार राकेश जी से मिलवाने का.
राकेश जी से परिचय अच्छा लगा
राकेश तिवारी जी के बारे में पत्र-पत्रिकाअवों में पढ़ने को मिलता रहा है, इस प्रस्तुति में उनके बारे में और अधिक विस्तार से जानने को मिला, आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
बढि़या प्रस्तुति. हमलोग शायद उन्हें घर का जोगी मान लेते हैं और आप जैसा जब कोई इस तरह ध्यान दिलाता है तो उनकी प्रतिभा रेखांकित होती है. वैसे उनका नाटक 'राजा फोकलवा' एक महान रचना है, जिसका वास्तविक मूल्यांकन शायद अभी तक नहीं हुआ है.
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