Monday, January 17, 2011

अगस्त्य संहिता में विद्युत बैटरी का सूत्र (Formula for Electric battery in Agastya Samhita)

अगस्त्य संहिता में एक सूत्र हैः

संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌।
छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥


अर्थात् एक मिट्टी का बर्तन लें, उसमें अच्छी प्रकार से साफ किया गया ताम्रपत्र और शिखिग्रीवा (मोर के गर्दन जैसा पदार्थ अर्थात् कॉपरसल्फेट) डालें। फिर उस बर्तन को लकड़ी के गीले बुरादे से भर दें। उसके बाद लकड़ी के गीले बुरादे के ऊपर पारा से आच्छादित दस्त लोष्ट (mercury-amalgamated zinc sheet) रखे। इस प्रकार दोनों के संयोग से अर्थात् तारों के द्वारा जोड़ने पर मित्रावरुणशक्ति की उत्पत्ति होगी।

यहाँ पर उल्लेखनीय है कि यह प्रयोग करके भी देखा गया है जिसके परिणामस्वरूप 1.138 वोल्ट तथा 23 mA धारा वाली विद्युत उत्पन्न हुई। स्वदेशी विज्ञान संशोधन संस्था (नागपुर) के द्वारा उसके चौथे वार्षिक सभा में ७ अगस्त, १९९० को इस प्रयोग का प्रदर्शन भी विद्वानों तथा सर्वसाधारण के समक्ष किया गया।

अगस्त्य संहिता में आगे लिखा हैः

अनेन जलभंगोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु।
एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥


अर्थात सौ कुम्भों (अर्थात् उपरोक्त प्रकार से बने तथा श्रृंखला में जोड़े ग! सौ सेलों) की शक्ति का पानी में प्रयोग करने पर पानी अपना रूप बदल कर प्राण वायु (ऑक्सीजन) और उदान वायु (हाइड्रोजन) में परिवर्तित हो जाएगा।

फिर लिखा गया हैः

वायुबन्धकवस्त्रेण निबद्धो यानमस्तके उदान स्वलघुत्वे बिभर्त्याकाशयानकम्‌।

अर्थात् उदान वायु (हाइड्रोजन) को बन्धक वस्त्र (air tight cloth) द्वारा निबद्ध किया जाए तो वह विमान विद्या (aerodynamics) के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।

स्पष्ट है कि यह आज के विद्युत बैटरी का सूत्र (Formula for Electric battery) ही है। साथ ही यह प्राचीन भारत में विमान विद्या होने की भी पुष्टि करता है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे प्राचीन ग्रन्थों में बहुत सारे वैज्ञानिक प्रयोगों के वर्णन हैं, आवश्यकता है तो उन पर शोध करने की। किन्तु विडम्बना यह है कि हमारी शिक्षा ने हमारे प्राचीन ग्रन्थों पर हमारे विश्वास को ही समाप्त कर दिया है।

13 comments:

Rahul Singh said...

इन ज्ञान सूत्रों का निरंतर और सामान्‍य प्रयोग में न आ पाना या रह पाना, बड़ी कमी साबित हुई.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

गजब की जानकारी।

आभार।

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ज्‍योतिष:पैरों के नीचे से खिसकी जमीन।
सांपों को दूध पिलाना पुण्‍य का काम है ?
डा0 अरविंद मिश्र: एक व्‍यक्ति, एक आंदोलन।

सुज्ञ said...

विडम्बना है, या तो यह ज्ञान यूँ ही पोथों में बंद रहा, इसको जनसामान्य क्रियात्मक करने वाले विद्वान न रहे। हमारे पाश्चात्य विज्ञान मोह ने घरेलू विज्ञान के प्रति वितृष्णा भर दी।

Unknown said...

@ सुज्ञ

यह तो लॉर्ड मेकॉले द्वारा बनाई गई तथा अंग्रेजों द्वारा हम पर थोपी गई उस अंग्रेजी शिक्षा का परिणाम है जिसने हमारे देश की संस्कृत शिक्षा का न केवल समूल नाश कर दिया बल्कि हमें हमारी अपनी संस्कृति और सभ्यता से विमुख भी कर दिया। बावजूद इसके हमारे देश में आज भी वही शिक्षा नीति जारी है।

सुज्ञ said...

सही कहा, गोपाल जी।

Akshitaa (Pakhi) said...

अच्छी जानकारी मिली....



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'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

गुलामी ने सत्यानाश कर दिया. मुगल, फिर अंग्रेज और आज भी गुलाम ही हैं... इस मानसिक गुलामी से कब उबरेंगे..

Unknown said...

गजब की जानकारी..!

P.N. Subramanian said...

महत्वपूर्ण जानकारी. मुझे हमारे पिताश्री ने बताया था की जर्मन लोग द्वीतीय विश्व युद्ध के पूर्व ताड़ पत्रों में लिखे ऐसे ग्रंथों को खरीद ले जाते थे.

Unknown said...

@ P.N. Subramanian

मेरी दादी माँ ने मुझे बताया था कि जर्मन लोगों ने वेद पढ़ कर विमान बनाया। आप कह रहे हैं कि आपके पिताश्री ने बताया था की जर्मन लोग द्वीतीय विश्व युद्ध के पूर्व ताड़ पत्रों में लिखे ऐसे ग्रंथों को खरीद ले जाते थे। इसका साफ अर्थ यही हुआ कि उस जमाने में लोगों में यह धारणा आम थी कि जर्मन के लोगों ने हमारे संस्कृत साहित्य का भरपूर लाभ उठाया। यह बात कहाँ तक सही है यह शोध का विषय है।

राज भाटिय़ा said...

हमारे वेद पुराण विग्यान से भरे पडे हे जी, लेकिन हम उन्हे नही मानते, बस अग्रेजी ओर उन की बातो को ही मानते हेम भारत मे विग्याण अपनी चर्म सीमा पार कर चुका हे, रामायण ओर महा भारत मे क्या हे यह तीर, आकाशबाणी, अगनि बाण, यह सब विग्याण ही तो हे सभी राकेट ही थे, वायू मार्ग से आना जाना, हनुमान जी का उडना यह सब विमान ही थे जिसे आज हम हंसी मे ऊडा देते हे, बहुत सुंदर जानकारी दी अप ने धन्यवाद

प्रवीण पाण्डेय said...

अद्भुत और गूढ़।

Meenu Khare said...

बहुत सुन्दर जानकारी..!