यदि आप शादीशुदा हैं तो आपको अवश्य ही पता होगा कि पत्नी नाम की प्राणी विलक्षण प्रतिभा से युक्त होती है। पत्नी के पास पति की एक एक बात का लेखा-जोखा रहता है। पत्नी अपने पति की एक-एक बात, एक-एक आदत को अच्छी तरह से जानती है। किस दिन आपकी सेलरी मिलती है, कब ओव्हरटाइम का पेमेन्ट होता है, कब आपको बोनस मिलता है जैसी बातें तो आपकी पत्नी अच्छी प्रकार से जानती ही हैं पर उन्हें इनके अलावा इसका भी ज्ञान रहता है कि आप कब पीकर आये हैं, कब झूठ बोल रहे हैं आदि-आदि इत्यादि। पति अपने बारे में जितना नहीं जानता उससे अधिक पत्नी जानती है उसके विषय में। मजाल है कि पति की कोई बात पत्नी से छुप जाये! कहने का लब्बोलुआब है कि बहुत विचित्र जीव होती है ये पत्नी नाम की प्राणी।
आपके रग-रग से परिचित होने के लिए आपकी पत्नी को बहुत अधिक समय की आवश्यकता नहीं होती, शादी होने के चंद दिनों के भीतर ही वह आपके बारे में सब कुछ जान लेती है। इस बात की एक आपबीती उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूँ।
शादी के पहले ऑफिस जाते समय हमारी माता जी हमारा टिफिन तैयार करती थीं। हमारी खुराक से अधिक खाना रहता था उसमें। मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि प्रायः प्रत्येक ऑफिस में एक न एक सहकर्मी जरूर ऐसा होता है जो कभी भी अपना टिफिन नहीं लाता पर खायेगा जरूर दूसरों की टिफिन से। हमारे टिफिन का अतिरिक्त खाना हमारे एक ऐसे ही सहयोगी के काम आता था। शादी होने के बाद कुछ दिनों तक तो माता जी ही टिफिन तैयार करती रहीं फिर धीरे से इस कार्यभार को हमारी श्रीमती जी ने अपने हाथों में ले लिया। लंच समय में जब हमने टिफिन खोला तो देखा छः पराठों की जगह चार ही पराठे और चाँवल भी रोज की अपेक्षा आधा। इधर हमारे टिफिनविहीन मित्र भी तत्काल आ धमके। खाना खाने की हमारी गति बहुत धीमी है। हम जब तक एक पराठा खतम करते, मित्र ने बाकी तीनों पराठे उदरस्थ कर लिये। चाँवल का भी अधिकतम हिस्सा उनके ही उदर में समा गया। हम तो रह गये भूखे।
ऑफिस से आने पर श्रीमती जी से जब कहा कि खाना कम क्यों रखा था तो जवाब मिला, "कम? कम कहाँ था? क्या मैं नहीं जानती कि आप कितना खाते हैं? मैंने तो अपने हिसाब से कुछ अधिक ही खाना रखा था। लगता है कि आपका खाना दूसरे लोग खा जाते हैं।"
हमने कहा, "हाँ भइ, अब कोई एकाध रोटी खा ले तो क्या फर्क पड़ता है? मना करते अच्छा भी तो नहीं लगता।"
वे बोलीं, "क्यों अच्छा नहीं लगता? क्या आपके मित्रों को तनखा नहीं मिलती? वो अपना खाना खुद क्यों नहीं लाते? अब से आपका इस प्रकार से रोज रोज दूसरों को खाना खिलाना बिल्कुल नहीं चलेगा।"
बताइए अब हम क्या कहते? इधर ऑफिस में हमारे मित्र को तो आदत लगी हुई थी रोज हमारे साथ खाने की, उन्हें क्या पता कि अब हमें भूखे मरना पड़ता है। अन्ततः दो-तीन दिन बाद कह ही दिया, "यार, तुम अपना खाना लाया करो नहीं तो नजदीक के भोजनालय में चला जाया करो।"
इस प्रकार से श्रीमती जी ने हमसे वह कहलवा लिया जो कि शादी के पहले हम कभी भी नहीं कह सकते थे।
शुरू-शुरू में तो हम त्रस्त रहते थे उनके हमारे बारे में सबकुछ जानने की वजह से। हम वे समझते थे कि पति के लिये पत्नी "साँप के मुँह में छुछूंदर" ही होती है जिसे न तो निगलते बनता है और न ही उगलते। पर बाद में धीरे-धीरे इस बात की समझ भी हमें आ ही गई कि पत्नियाँ जहाँ एक तरफ पतियों को अपनी मुट्ठी में रखने का भरपूर प्रयास करती हैं वहीं दूसरी तरफ पति पर आये किसी भी विपत्ति को दूर करने के लिये जी जान तक लगा देती हैं।
जीवन में पति-पत्नी के बीच बहुत सारे तकरार, नोक-झोंक चलते हैं किन्तु यह भी सत्य है कि वे दोनों ही एक-दूसरे के पूरक भी हैं। एक के बिना दूसरे का जीवन अधूरा है। पत्नी पति की प्रेरणा होती है। अनेक उदाहरण मिल जायेंगे इसके और सबसे बड़ा उदाहरण तो तुलसीदास जी का है। यदि रत्नावली ने यह न कहा होता किः
"लाज न आवत आपको, दौरे आयहु साथ।
धिक् धिक् ऐसे प्रेम को, कहा कहौं मैं नाथ॥
अस्थिचर्ममय देह यह, ता पर ऐसी प्रीति।
तिसु आधो रघुबीरपद, तो न होति भवभीति॥"
तो आज हम रामचरितमानस से ही वंचित रहते।
श्री गोपाल प्रसाद व्यास जी ने सही ही लिखा हैः
यदि ईश्वर में विश्वास न हो,
उससे कुछ फल की आस न हो,
तो अरे नास्तिको! घर बैठे,
साकार ब्रह्म को पहचानो!
पत्नी को परमेश्वर मानो!
तो साहब, हँसी-ठिठोली, हास-परिहास, घात-प्रतिघात, ब्याज-स्तुति, ब्याज-निंदा तो चलते ही रहते हैं। ये सब न हों तो जीवन में रस ही क्या रह जाता है?
एक बात तो माननी ही पड़ेगी, पत्नी चाहे पति को गुलाम बनाये या चाहे पति की गुलामी करे, होती वह सच्चा साथी है। जीवन के सारे सुख-दुःख में साथ निभाने वाली वही होती है!
'अवधिया' या संसार में, मतलब के सब यार।
पत्नी ही बस साथ दे, बाकी रिश्ते बेकार॥
चलते-चलते
पति, "तुम मेरे रिश्तेदारों की बनिस्बत अपने रिश्तेदारों को ज्यादा प्यार करती हो।"
पत्नी, "गलत! मैं अपनी सास से अधिक तुम्हारी सास को प्यार करती हूँ।"
आपके रग-रग से परिचित होने के लिए आपकी पत्नी को बहुत अधिक समय की आवश्यकता नहीं होती, शादी होने के चंद दिनों के भीतर ही वह आपके बारे में सब कुछ जान लेती है। इस बात की एक आपबीती उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूँ।
शादी के पहले ऑफिस जाते समय हमारी माता जी हमारा टिफिन तैयार करती थीं। हमारी खुराक से अधिक खाना रहता था उसमें। मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि प्रायः प्रत्येक ऑफिस में एक न एक सहकर्मी जरूर ऐसा होता है जो कभी भी अपना टिफिन नहीं लाता पर खायेगा जरूर दूसरों की टिफिन से। हमारे टिफिन का अतिरिक्त खाना हमारे एक ऐसे ही सहयोगी के काम आता था। शादी होने के बाद कुछ दिनों तक तो माता जी ही टिफिन तैयार करती रहीं फिर धीरे से इस कार्यभार को हमारी श्रीमती जी ने अपने हाथों में ले लिया। लंच समय में जब हमने टिफिन खोला तो देखा छः पराठों की जगह चार ही पराठे और चाँवल भी रोज की अपेक्षा आधा। इधर हमारे टिफिनविहीन मित्र भी तत्काल आ धमके। खाना खाने की हमारी गति बहुत धीमी है। हम जब तक एक पराठा खतम करते, मित्र ने बाकी तीनों पराठे उदरस्थ कर लिये। चाँवल का भी अधिकतम हिस्सा उनके ही उदर में समा गया। हम तो रह गये भूखे।
ऑफिस से आने पर श्रीमती जी से जब कहा कि खाना कम क्यों रखा था तो जवाब मिला, "कम? कम कहाँ था? क्या मैं नहीं जानती कि आप कितना खाते हैं? मैंने तो अपने हिसाब से कुछ अधिक ही खाना रखा था। लगता है कि आपका खाना दूसरे लोग खा जाते हैं।"
हमने कहा, "हाँ भइ, अब कोई एकाध रोटी खा ले तो क्या फर्क पड़ता है? मना करते अच्छा भी तो नहीं लगता।"
वे बोलीं, "क्यों अच्छा नहीं लगता? क्या आपके मित्रों को तनखा नहीं मिलती? वो अपना खाना खुद क्यों नहीं लाते? अब से आपका इस प्रकार से रोज रोज दूसरों को खाना खिलाना बिल्कुल नहीं चलेगा।"
बताइए अब हम क्या कहते? इधर ऑफिस में हमारे मित्र को तो आदत लगी हुई थी रोज हमारे साथ खाने की, उन्हें क्या पता कि अब हमें भूखे मरना पड़ता है। अन्ततः दो-तीन दिन बाद कह ही दिया, "यार, तुम अपना खाना लाया करो नहीं तो नजदीक के भोजनालय में चला जाया करो।"
इस प्रकार से श्रीमती जी ने हमसे वह कहलवा लिया जो कि शादी के पहले हम कभी भी नहीं कह सकते थे।
शुरू-शुरू में तो हम त्रस्त रहते थे उनके हमारे बारे में सबकुछ जानने की वजह से। हम वे समझते थे कि पति के लिये पत्नी "साँप के मुँह में छुछूंदर" ही होती है जिसे न तो निगलते बनता है और न ही उगलते। पर बाद में धीरे-धीरे इस बात की समझ भी हमें आ ही गई कि पत्नियाँ जहाँ एक तरफ पतियों को अपनी मुट्ठी में रखने का भरपूर प्रयास करती हैं वहीं दूसरी तरफ पति पर आये किसी भी विपत्ति को दूर करने के लिये जी जान तक लगा देती हैं।
जीवन में पति-पत्नी के बीच बहुत सारे तकरार, नोक-झोंक चलते हैं किन्तु यह भी सत्य है कि वे दोनों ही एक-दूसरे के पूरक भी हैं। एक के बिना दूसरे का जीवन अधूरा है। पत्नी पति की प्रेरणा होती है। अनेक उदाहरण मिल जायेंगे इसके और सबसे बड़ा उदाहरण तो तुलसीदास जी का है। यदि रत्नावली ने यह न कहा होता किः
"लाज न आवत आपको, दौरे आयहु साथ।
धिक् धिक् ऐसे प्रेम को, कहा कहौं मैं नाथ॥
अस्थिचर्ममय देह यह, ता पर ऐसी प्रीति।
तिसु आधो रघुबीरपद, तो न होति भवभीति॥"
तो आज हम रामचरितमानस से ही वंचित रहते।
श्री गोपाल प्रसाद व्यास जी ने सही ही लिखा हैः
यदि ईश्वर में विश्वास न हो,
उससे कुछ फल की आस न हो,
तो अरे नास्तिको! घर बैठे,
साकार ब्रह्म को पहचानो!
पत्नी को परमेश्वर मानो!
तो साहब, हँसी-ठिठोली, हास-परिहास, घात-प्रतिघात, ब्याज-स्तुति, ब्याज-निंदा तो चलते ही रहते हैं। ये सब न हों तो जीवन में रस ही क्या रह जाता है?
एक बात तो माननी ही पड़ेगी, पत्नी चाहे पति को गुलाम बनाये या चाहे पति की गुलामी करे, होती वह सच्चा साथी है। जीवन के सारे सुख-दुःख में साथ निभाने वाली वही होती है!
'अवधिया' या संसार में, मतलब के सब यार।
पत्नी ही बस साथ दे, बाकी रिश्ते बेकार॥
चलते-चलते
पति, "तुम मेरे रिश्तेदारों की बनिस्बत अपने रिश्तेदारों को ज्यादा प्यार करती हो।"
पत्नी, "गलत! मैं अपनी सास से अधिक तुम्हारी सास को प्यार करती हूँ।"
8 comments:
वाह अवधिया जी, वाह... पत्नी ही सबकुछ है...
यदि कोई बात छिपती नहीं तो बता कर ही श्रेय ले लिया जाये।
'अवधिया' या संसार में, मतलब के सब यार।
पत्नी ही बस साथ दे, बाकी रिश्ते बेकार॥
जीवन के जीवन्त अनुभवों से ओतप्रोत...
उत्तम प्रस्तुति.
हार की जीत.
पत्नी जो करती है वो पति और अपने परिवार के भले के लिए ही करती है शराब सिगरेट जैसी बुरइयो के लिए टोके नहीं तो ऐसे पति भी है जो सब बेच पी जाये या अपनी पूरा वेतन यारी दोस्ती और दूसरो पर अपनी दिलदारी दिखाने में लुटा दे |
आशा थी कि आप कुछ उपाय बतायेंगें पत्नी से कुछ बातें छुपाने का:)
सही कहा पत्नी सब जानती है।
बढिया पोस्ट
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एक कहावत है कि पति कच्चा माल के समान होता है जिसे पत्नी आकर संस्कारित करती है। उसे अपनी मर्जी के अनुसार ढालती है।
मजा आ गया
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