Wednesday, September 16, 2009

वन्दे ईश्वररम् क्यों? वन्दे मातरम् क्यों नहीं?

टिप्पणियों का सहारा लेकर प्रचार किया जा रहा है वन्दे ईश्वरम् का। क्या करें जमाना प्रचार और विज्ञापन का है। अब चाहे टीव्ही हो या नेट, जबरन के प्रचार और विज्ञापन को हमें झेलना ही पड़ता है। पर मैं पूछता हूँ कि आखिर वन्दे ईश्वररम् क्यों? वन्दे मातरम् क्यों नहीं?

किसी की भी वन्दना करने के लिए, चाहे वह ईश्वर ही क्यों न हो, सबसे पहले वन्दना करने वाले का अस्तित्व का होना आवश्यक है। यदि अस्तित्व ही नहीं है तो वन्दना कौन करेगा? अब अस्तित्व तो हमें माता ही प्रदान करती है ना? यदि मान भी लिया जाए कि हमारा अस्तित्व ईश्वर के कारण है तो यह भी मानना पड़ेगा कि हमें अस्तित्व प्रदान करने के लिए ईश्वर प्रत्यक्ष तो आता नहीं, माता के रूप में ही वह आकर हमें अस्तित्व प्रदान करता है। तो फिर वन्दे ईश्वररम् क्यों? वन्दे मातरम् क्यों नहीं?

जब हम वन्दे मातरम् कहते हैं तो स्वयमेव ही ईश्वर की वन्दना हो जाती है।

और जब हम वन्दे मातरम् कहते हैं तो अपने आप ही तीन-तीन माताओं की वन्दना हो जाती है। पहली माता 'हमें जन्म देने वाली माता'। यह जन्म देने वाली माता हमारे लिए पूजनीय है। यह माता हमें जीते जी तो अपने गोद में खिलाती है किन्तु मरणोपरान्त यह हमें अपने गोद में नहीं रख सकती। उस समय हमारी दूसरी माता, 'धरती माता', 'हमारी जननी जन्मभूमि माता', आती है हमें अपने गोद में लेने के लिए। वह भी हमारे लिए पूजनीय है और वन्दे मातरम् कहते ही उस माता की भी वन्दना हो जाती है। एक और माता है हमारी, वह है मातृभाषा माता। यदि यह माता न हो तो हम अपनी वन्दना को कभी भी अभिव्यक्त न कर सकें। न वन्दे ईश्वरम् कह सकें और न ही वन्दे मातरम्। तो वन्दे मातरम् कहने से मातृभाषा माता की भी अपने आप ही वन्दना हो जाती है। हमने ईश्वर को कभी देखा ही नहीं है तो क्यों कहें हम वन्दे ईश्वरम्? हम तो वन्दे मातरम् ही कहेंगे क्योंकि हमारे लिए तो माता ही ईश्वर है।

माता की वन्दना के साथ ही साथ हम एक और अत्यावश्यक वन्दना करेंगे, गुरु की वन्दना। यदि गुरु ने हमें ज्ञान नहीं दिया होता तो हम कैसे जान पाते कि ईश्वर है। इसीलिए कहा गया हैः

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूँ पाय।

बलिहारी गुरु आपकी गोविन्द दियो बताय॥


हमारे लिए तो जैसे माता ईश्वर है वैसे ही गुरु भी ईश्वर है। हम तो यही मानते हैं किः

गुरूर्बह्मा गुरूर्विष्णु गुरूर्देवो महेश्वरः।

गुरूर्साक्षात परमब्रह्म तस्मै श्री गुरुवै नमः॥


जिसे भी ईश्वर वन्दना करना है वो करता रहे। हम तो माता और गुरु की ही वन्दना करेंगे क्योंकि हमने उन्हें देखा ही नहीं बल्कि उनका सानिध्य भी पाया है। और वास्तविकता तो यह है कि ईश्वर अपनी वन्दना से प्रसन्न नहीं होता बल्कि प्रसन्न होता है माता और गुरु की वन्दना से।

15 comments:

संजय बेंगाणी said...

जब हम वन्दे मातरम् कहते हैं तो स्वयमेव ही ईश्वर की वन्दना हो जाती है।

बस हो गई बात पूरी....और कुछ कहने की जरूरत ही नहीं.

राज भाटिय़ा said...

इस दुनिया मै हमे लाने वाला कोन है, मां या भगवान ? ओर जो हमे दुनिया मै लाया हमारे लिये तो वो ही हमारा भगवान होगा..... इस लिये वन्दे मातरम्, मां केसी भी हो, भगवान मां से बडा नही हो सकता,
धन्यवाद आप ने इस बात को बहुत गहन ढंग से समझाया

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत कन्फ्यूजन है।
पहली वंदना तो गणेश जी की,
दूसरी इष्ट की
तीसरी इष्ट के सहायकों की
चौथे सज्जनों की .... नहीं
उन से पहले दुष्टों की।

Unknown said...

द्विवेदी जी,

अन्य वन्दनाओं में भले ही बहुत कनफ्यूज़न हो पर, जैसा कि आपने कहा, सबसे पहले दुष्ट की वन्दना में तो कहीं भी कन्फ्यूज़न नहीं होनी चाहिए।

इसीलिए तो तुलसीदास जी ने भी तो रामचरितमानस में इनकी वन्दना की है। :)

Varun Kumar Jaiswal said...

वन्दे मातरम् ||
बाकि कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है |

आखिर ' लसूढो ' को कुछ समझाने की ज़रूरत ही क्या है |

:) :( :P :$ :$ :D :D ;)

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

अवधिया जी, आप तो उस अस्वच्छ मौहल्ले के हर एक गली कूचे से वाकिफ दिखाई पडते हैं:)

ये बात आपने बिल्कुल सही कही कि आखिर जब लोग वन्दे ईश्वरम कह सकते हैं तो फिर उन्हे वन्दे मातरम बोलने में क्या बुराई दिखती है?
लेकिन भला अब मूर्खों को कौन समझाए!

Unknown said...

वत्स जी, हनुमान जी लंका से वाकिफ़ नहीं थे फिर भी उन्होंने लंका को जला कर रख दिया था।

आखिर हम भी तो हनुमान जी के ही भक्त हैं।

दर्पण साह said...

vandeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee.....

matarammmmmm !!!

vande mataram !!

thousand times and over !!

दर्पण साह said...

vandeeeeeeeeeeeeeee.....

matarammmmmmm !!

vande mataram !!

thousand times and over !!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

awadhiya ji....... saadar namaskar........ waise sanjay ji theek kahte hain........ जब हम वन्दे मातरम् कहते हैं तो स्वयमेव ही ईश्वर की वन्दना हो जाती है।.........

हम तो माता और गुरु की ही वन्दना करेंगे क्योंकि हमने उन्हें देखा ही नहीं बल्कि उनका सानिध्य भी पाया है। और वास्तविकता तो यह है कि ईश्वर अपनी वन्दना से प्रसन्न नहीं होता बल्कि प्रसन्न होता है माता और गुरु की वन्दना से........

par main is baat se poori tarah sahmat hoon...... maata aur guru se badhkar koi nahin....... hamare liye to wahi ishwar hai ..jisne hamein is duniya mein laaya.... aur gyan diya....... jisse ki hum sochne samajhne ke kaabil huye......

aapke lekh se main poori tarah sahmat hoon........

Vande Matram.......

(Mujhe poora Vande Matram.... aaj bhi yaad hai....... main skool mein morning assembly mein gaaya karta tha..... qki meri hi sanskrit poore skool mein sabse achchi thi...... aur marks bhi.....)

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

awadhiya ji....... saadar namaskar........ waise sanjay ji theek kahte hain........ जब हम वन्दे मातरम् कहते हैं तो स्वयमेव ही ईश्वर की वन्दना हो जाती है।.........

हम तो माता और गुरु की ही वन्दना करेंगे क्योंकि हमने उन्हें देखा ही नहीं बल्कि उनका सानिध्य भी पाया है। और वास्तविकता तो यह है कि ईश्वर अपनी वन्दना से प्रसन्न नहीं होता बल्कि प्रसन्न होता है माता और गुरु की वन्दना से........

par main is baat se poori tarah sahmat hoon...... maata aur guru se badhkar koi nahin....... hamare liye to wahi ishwar hai ..jisne hamein is duniya mein laaya.... aur gyan diya....... jisse ki hum sochne samajhne ke kaabil huye......

aapke lekh se main poori tarah sahmat hoon........

Vande Matram.......

(Mujhe poora Vande Matram.... aaj bhi yaad hai....... main skool mein morning assembly mein gaaya karta tha..... qki meri hi sanskrit poore skool mein sabse achchi thi...... aur marks bhi.....)

Unknown said...

वन्दे मातरम् !
वन्दे मातरम् !
वन्दे मातरम् !
वन्दे मातरम् !
वन्दे मातरम् !

Unknown said...

गुरुदेव, थोड़ा रुक-रुक मारिये ना…। आप तो एक के बाद एक धोबीपछाड़ देकर पटके जा रहे हैं… :)

Mishra Pankaj said...

सही है आप्ने सही मुद्दा उठाया है

Anil Pusadkar said...

जै बजरंग बली की।अवधिया जी हम तो हनुमान जी के भक़्त है इस्लिये एक बार फ़िर पवनपुत्र हनुमान की जै,