- पादे सो पुन्न करे, सूँघे सो धर्मात्मा।
हाँसे सो नरक परे, छिन भर के वासना॥
- ठुसका पाद महा बस्साय।
- आइये हुजूर,खाइये खुजूर,बैठिये तखत पर,और पादिये बखत पर।
यह तो आप जानते ही हैं कि पेट के भीतर बनने वाली वायु अर्थात् गैस को अधोवायु कहा जाता है। पेट के भीतर वायु बनना स्वाभाविक क्रिया है और चूँकि यह वायु नीचे के तरफ याने कि गुदा से निकलती है इसलिए इसे अधोवायु कहा जाता है।
यदि यह अधोवायु शब्द करते हुए छूट जाए तो जहाँ अन्य लोगों को अनायास ही हँसी आ जाती है वहीं इसे छोड़ने वाला बड़ा अटपटा से अनुभव करने लगता है। इसीलिए विष्णुपुराण में गृहस्थ सम्बन्धी सदाचार का वर्णन करते हुए बताया गया है कि शब्द करते हुए अधोवायु नहीं छोड़ना चाहिए।
अधोवायु का पेट के बाहर निकल जाना निहायत ही जरूरी है। इसे पेट के भीतर रोक रखने से आदमी के पेटदर्द, सिरदर्द, कब्ज, एसिडिटी, जी मिचलाना, बेचैनी जैसी व्याधियों से ग्रसित हो जाने की अत्यधिक सम्भावना रहती है। आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार तो लंबे समय तक अधोवायु को पेट के भीतर रोके रहे जाना अनेको यौन रोगों के उत्पन्न हो जाने का कारण भी बन जाता है।
अधोवायु को पेट से बाहर निकालने के लिए दोनों समय भोजन के पश्चात् काली हरड़ चूसना बहुत ही गुणकारी होता है।
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आपको "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" भी अवश्य ही पसंद आयेगा।
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6 comments:
निकले तो मुश्किल ना निकले तो भी मुश्किल...अधो वायु अधर में लटका देती है...बहुत जानकारी पूर्ण लेख...
नीरज
अजी हम इस से बहुत परेशान है, ओर हम से ज्यादा हमारे बच्चे, लेकिन क्या करे.....
बढ़िया जानकारी है . ... अधोवायु की निकासी बहुत जरुरी है अन्यथा रोगों का शिकार हो जाना पड़ सकता है .
ये अधो वायु ऐसी चीज है जो ना रोके बनती है और सबों के सामने ना छोड़े बनती है |
क्या करे जी कण्ट्रोल नहीं होता !!
हरी सलाद का उपयोग करे...स्वतः ही खत्म हो जायेगी....
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