समय कहाँ है उन्हीं घिसी पिटी पुरानी बातों को पढ़ने की? कुछ नया है क्या इस रामकथा में? कभी पढ़ी नहीं तो क्या, कहानी तो सुनी है, टी.व्ही. में रामानन्द सागर ने दिखाया था तो देखी भी थी। पढ़ लेंगे भई, वाल्मीकि को भी जब समय मिलेगा तो।
परसों जब अपना नया ब्लॉग "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" शुरू किया तो सोचा भी नहीं था कि इतनी सारी टिप्पणियाँ मिलेंगी। हम तो बड़े खुश हुए थे। अब पता चला कि ये तो हिन्दी ब्लोगिंग का रवैया है कि नये का, चाहे वह कोई नया ब्लोगर हो या चाहे पुराने ब्लोगर का कोई नया ब्लोग हो, स्वागत करना ही है। भले ही दूसरे दिन उधर झाँकने भी न जाओ।
पहले दिन की ढेर सारी टिप्पणियाँ पढ़कर हम उत्साहित हुए और अपने नये ब्लोग के पाठको की प्रगति जानने के लिए स्टेटकाउंटर में उसका एक नया प्रोजेक्ट बना दिया। काश हमने ये नहीं किया होता! न करते तो हमें पता भी नहीं चलता कि उस ब्लोग के दूसरे पोस्ट पर मात्र 20 हिट्स ही हुए हैं। और उनमें से दसेक तो हमारे ही हैं। याने कि मात्र दस लोगों ने देखा उस पोस्ट को। ये भी हो सकता है कि एक दो लोगों ने भूल से दो बार भी देख लिया हो और हिट्स की संख्या बढ़ गई हो। तो इसका मतलब ये हुआ कि दस लोगों ने नहीं बल्कि चार पाँच लोगों ने ही उस पोस्ट को देखा (जी हाँ, देखा; पढ़ा कि नहीं ये तो वे ही बता पायेंगे)।
अब सोच रहे हैं कि सात काण्डों में चौबीस हजार श्लोक वाले वाल्मीकि रामायण को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करने के लिए अपना घंटों समय बर्बाद करें या इस ब्लोग को बंद कर दें? सीधी सी बात है भाई कि जब लोगों के पास एक ब्लोग पोस्ट को पढ़ने के लिए दो-तीन या अधिक से अधिक पाँच मिनट का समय नहीं है तो हम क्यों उस पोस्ट को लिखने के लिए अपना घंटों का समय खराब करें। उसकी जगह उतने ही समय में आठ दस निंदाचारी, छीछालेदर वाले पोस्ट क्यों न लिख कर अधिक से अधिक पाठक बटोरें?
खैर, फिलहाल तो यही निर्णय लिया है कि चार-पाँच पोस्ट और कर के देखेंगे "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" में और यदि फिर भी स्थिति यही रही तो बंद कर देंगे उसे। उसके लिए हमारे पास इस ब्लोगर के अलावा और भी प्लेटफॉर्म है। हम उसे अपने खुद के होस्टिंग में वर्डप्रेस में प्रकाशित करेंगे या फिर "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" का pdf फाइल बना कर उसे पुस्तक के रूप में बेचने का प्रयास करेंगे।
मैं ब्लॉगवाणी का बहुत आभारी हूँ जिन्होंने इस "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" को बहुत जल्दी रजिस्टर कर लिया था। मैंने तो सोचा था कि कम से कम चौबीस घंटे तो लगेंगे ही इसे एग्रीगेटर में आने के लिए किन्तु चौबीस मिनट भी नहीं लगे। मैं श्री दिनेशराय द्विवेदी जी को भी हार्दिक धन्यवाद दूँगा जिन्होंने हर पोस्ट में मेरा उत्साहवर्धन किया।
6 comments:
sahi kah rahe hain aap..........
अवधिया जी आप जैसा वरिष्ठ ब्लोगर इतने जल्दी धीरज खोयेगा तो हम जैसे नए ब्लोगेर्स का क्या होगा ....आप लिखते रहिये जिन्हें प्यास होगी वो आयेंगे जरूर, हाँ प्यास शायद नहीं जगाई जा सकती....मेरा अनुरोध है यह ब्लॉग जारी रखिये....
अवधिया जी,
दो रुपये का एक संतरा देना...फिर उसी दो रुपये का मुझसे आप केला ले लेना...मेरा मतलब कमेंट...
वैसे आप नाहक घुले जा रहे हैं... देखो अपने श्रीश जी एक ही बात को दो-दो बार कह कर आपका हौसला बढ़ा रहे हैं...
जय हिंद...
जो भी निर्णय लें, यह आपना निर्णय होगा. मगर उससे पहले एक विचार करें कि यह पोस्ट हुई रामायण कितने काल तक नेट पर रहने वाली है? और तब तक कितने लोग इसे पढ़ेंगे या छापेंगे या साँझा करेंगे....
जै रामजी की...
aap adheer mat hoiye..
अजी कुछ चुटकुले,कहानियों,कविताओं पर ब्लाग बनाते तो कुछ बात भी बनती.....भला ऎसी चीजें पढने के लिए कौन अपना टाईम खोटी करे ।
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