Saturday, October 24, 2009

लगती थीं जो उर्वशी-मेनका ... बन गईं वो ही रणचण्डिका ...

शादी की थी हमने क्योंकि
लगती थी वो उर्वशी-मेनका,
पर पाया कुछ काल बाद ही
बन गईं वो ही रणचण्डिका।

फूलों से कोमल लगती थी
वो सुशील, सलज्ज, किशोरी,
क्यों बन गई कठोर वज्र सी
मेरे सपनों की वो गोरी।

सोचा था घर को सुखमय करने
गीता और रामायण पढ़ेगी,
पता नहीं था घर में मेरे
वो बाला महाभारत करेगी।

पर उसके हर काम के पीछे
मैं ही केन्द्रित रहता हूँ,
इसीलिए तो भक्त हूँ उसका
नखरे उसके सहता हूँ।

उससे ही तो घर है मेरा
उससे ही है घर की लाली,
मैं ही तो सब कुछ हूँ उसका
वो है मेरी घरवाली।

चलते-चलते

वो स्साला जी.के. अवधिया दारू पीना नहीं छोड़ रहा है

भाई जहाँ पत्नी साथ निभाती है वहीं मित्र भी साथ निभाता है। हमारा भी एक मित्र हमारा साथ आज तक निभा रहा है। आज वो भिलाई में हैं और हम रायपुर में। पर कभी हम दोनों एक साथ भिलाई में रहते थे। रोज एक साथ बार जाते थे और मौज मनाते थे। फिर हमारा ट्रांसफर हो गया और हमको भिलाई छोड़ना पड़ा और वो आज तक भिलाई में हैं।

हमारे भिलाई छोड़ देने के बाद भी दोस्ती निभाने के लिए वो रोज बार जाते रहे। बार वाले जानते थे कि वे दो पैग एक साथ मंगाते थे एक अपने लिए और एक मेरे लिए। फिर एक बार अपने पैग से तो दूसरी बार मेरे पैग से घूँट लगाते थे।

कुछ साल पहले एक दिन वेटर ने मामूल के अनुसार जब उनके लिए दो पैग लगाया तो उन्होंने कहा, "एक पैग वापस ले जाओ।"

आश्चर्य से वेटर ने पूछा, "क्यों साहब?"

मित्र ने बताया, "यार मैंने आज से दारू पीना छोड़ दिया है पर मेरे बार बार कहने के बाद भी वो स्साला जी.के. अवधिया दारू पीना नहीं छोड़ रहा है।"

और दोस्ती निभाने के लिए आज भी वो बार जाकर हमारा पैग पीते हैं।

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"संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण का अगला पोस्टः

राम का वनवास - अयोध्याकाण्ड (5)

15 comments:

Dr. Shreesh K. Pathak said...

आज अवधिया जी बहुत ही मुखर हो गए...बाप रे बाप....इलाहाबाद नहीं जा पाए ना....:)

kishore ghildiyal said...

kya baat hain janaab aaj to ghar ki kahani hi kah daali aapne vaise sach kahe to lagta sabhi ka haal likha hain aapne

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अवधिया जी, मेरी पूरी की पूरी सहानुभूति आपके साथ है ! निभाते रहिये ! आल डा बेस्ट !!!

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

आज तो मेरे को कई गिलास लेके बैठना पड़ेगा,
क्योंकि मैने भी छोड़ दी है-दारु, आपके आशीर्वाद से दोस्ती तो निभानी पड़ेगी, एकदम झकास फ़ार्मुला देने के लिए आभार

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

पर उसके हर काम के पीछे
मैं ही केन्द्रित रहता हूँ,
इसीलिए तो भक्त हूँ उसका
नखरे उसके सहता हूँ।

सारे गलत काम खुद करो और दोष भाभी जी पर मड दो, वाह बही अवधिया जी,मान गए !

M VERMA said...

पीनी तो मैने भी छोड दी है (ये अलग बात है कि कभी शुरू ही नहीं की) पर मुझे पिलाने वाले पिला देते है.

==
एक कौतूहल क्या आपकी यह कविता आपकी पत्नी (I mean my Bhabhiji) भी पढेंगी क्या?

Unknown said...

@ M VERMA

"एक कौतूहल क्या आपकी यह कविता आपकी पत्नी (I mean my Bhabhiji) भी पढेंगी क्या?"

जरूर पढ़ेंगी भई!

हमारी कौन सी ऐसी बात है जो कि उनसे छुपी हो? फिर ये कविता ही कैसे छुप जायेगी?

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

hahahahaha...achcha laga bahut...

राज भाटिय़ा said...

जब बीबी इतनी बलवान ओर गुण कारी मिलेगी को कोन पीनी छोडेगा....लेकिन सिर्फ़ एक पेग? अबधिया जी आप से पुरी हमदर्दी है... आज आप के नाम से पुरी बोतल चलेगी.

स्वप्न मञ्जूषा said...

पूछते हैं सब लोग काहे रणचण्डिका बन जाते हैं
अरे पत्नी चंडिका न बने तो पति RUN कर जाते हैं
भौजी से हमरी तो आपको बहुत ही प्रीती है भैया
सीधा-सीधा नहीं कह के अन्योक्ति में बताते हैं ??

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

आज जान पाए कि आपका एक रूप ये भी है :)

Udan Tashtari said...

क्या दोस्त मिला है भाई...गजब मित्रता निभा रहा है. नमन भेजियेगा मेरा उनको.

शिवम् मिश्रा said...

दोस्ती की है तो निभानी तो पड़ेगी ही !!

Gyan Dutt Pandey said...

अच्छा, यह आचमन के पूर्व की कविता है या बाद की?! :)

MD. SHAMIM said...

sir ji, aap apne us dost ka naam bhi likh dete.