Saturday, November 14, 2009

खाना पसंद न आये तो क्राकरी-चम्मच मत पटकना

बात बहुत पुरानी है। एक बार बनवारी लाल जी को किसी काम से इंग्लैंड जाना पड़ा। काम जरूरी था अतः वहाँ पहुँचते ही बिना कुछ खाये पिये काम में लग गये। काम खत्म होते होते पूरा दिन बीत गया। सही सही काम हो जाने के बाद ध्यान आया कि काम के चक्कर में खाना भी नहीं खाया है। भूख बहुत जम के लगी थी इसलिये सीधे होटल के डायनिंग हाल में गये। वेटर ने मीनू ला कर रख दिया। बनवारी लाल जी बेचारे अंग्रेजी पढ़ना जानते नहीं थे पर बताना भी नहीं चाहते कि उनको अंग्रेजी पढ़नी नहीं आती इसलिये एक ट्रिक से काम लिया। मीनू के कुछ आयटमों में पेंसिल से निशान लगा दिया और इशारे से बता दिया कि निशान वाले आयटम्स ले आओ।

इत्तिफ़ाक की बात है कि जिन सात-आठ खाने के आयटम्स में उन्होंने निशान लगाया था वे सारे के सारे सूप थे।

वेटर ने सभी सूप लाकर टेबल पर रख दिया। बनवारी लाल जी को आश्चर्य हुआ कि सभी चीजें पानी जैसी क्यों हैं। खैर यह सोच लिया कि ये अंग्रेज लोग भारत जैसा लज़्ज़तदार खाना क्या जानेंगे, ऐसा ही खाना खाते होंगे। एक सूप को एक चम्मच चखा और अजब सा मुँह बना कर छोड़ दिया। अब सूप स्वादिष्ट तो होता नहीं है और वे, दिन भर के भूखे, बेचारे बिना स्वाद वाला खाना खा ही नहीं सकते थे। एक एक कर के सभी सूपों को चखा और आखिर में गुस्से से चम्मच को क्राकरी पर जोर से पटक कर अपने कमरे में आकर भूखे ही सो गये। कमरे में आने पर दरवाजे पर भी गुस्सा उतारा था और उसे भड़ाक से बंद किया था। जोर से दरवाजा बंद करने से उनके कमरे का नंबर प्लेट पलट कर उलटा हो गया और कमरे का नंबर 6 की जगह 9 हो गया।

इधर 9 नंबर कमरे में जो सज्जन ठहरे थे उन्हें पिछले तीन चार दिनों से मोशन नहीं हो रहा था। होटल के डॉक्टर हर प्रकार की दवा दे चुके थे और किसी दवा ने काम नहीं किया था। अब डॉक्टर उन्हें एनीमा देना चाहते थे किन्तु वो सज्जन इसके लिये तैयार न थे। डॉक्टर ने होटल के मैनेजर से जाकर वाकया बताया और कहा कि यदि एनीमा नहीं दिया गया तो वो सज्जन मर भी सकते हैं और होटल की बहुत बदनामी हो सकती है। मैनेजर ने कहा अपने साथ चार हट्टे-कट्टे वेटरों को ले जाइये और जबरदस्ती उन्हें को एनीमा दे दीजिये। डॉक्टर ने कहा कि मेरी ड्यूटी का शिफ्ट खत्म हो गया है और मैं जा रहा हूँ। दूसरे शिफ्ट के डॉक्टर आ चुके हैं उनसे यह काम करवा लीजिये।

दूसरा डॉक्टर चार वेटर्स को लेकर बनवारी लाल जी के कमरे में आये क्योंकि उनके कमरे का नंबर 9 हो चुका था। वेटर्स ने बनवारी लाल जी के हाथ पैरों को कस के पकड़ लिया, मुँह में कपड़ा ठूँस दिया ताकि वे चिल्ला न सकें और डॉक्टर ने एनीमा दे दिया। अपना काम करके वे चलते बने। बनवारी लाल जी बेचारे क्या कर सकते थे? आह-ऊह करते रात बिताया उन्होंने और सबेरे के फ्लाइट से वापस भारत आ गये।

उनके इस यात्रा के बाद बीस-बाइस साल बीत गये। एक दिन उनका भांजा उनके पास आया और बोला कि उसे इंग्लैंड जाना है वहाँ के बारे में उसे सब कुछ समझा दे ताकि उसे किसी प्रकार की तकलीफ न हो।

बनवारी लाल जी ने कहा, "और सब तो ठीक है भांजे, बस इतना ध्यान रखना कि यदि खाना पसंद न आये तो क्राकरी-चम्मच मत पटकना। क्राकरी-चम्मच पटकने पर अंग्रेज रात को भयंकर सजा देते हैं।"

8 comments:

Mohammed Umar Kairanvi said...

pehle chatke ke sath hazir hoon,,, angrez ki saza nibha loonga,,,awadhiya ki nahin...

शिवम् मिश्रा said...

बहुत मजेदार किस्सा सुनाया आज आपने ! आभार !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

हा-हा-हा, बेचारा बनवारी लाल !

अन्तर सोहिल said...

हा-हा-हा
मजा आ गया, धन्यवाद

प्रणाम स्वीकार करें

M VERMA said...

बेहतरीन
मज़ा आ गया ----------

राज भाटिय़ा said...

बेचारे बनबारी लाल जी, इसी लिये हम ने अग्रेजॊ के साथ साथ ओर भी बहुत सी भाषाये सीख ली है जी

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बुरे फँसे बनवारी लाल ....

रंजू भाटिया said...

एक तो भूखा फिर ..मजेदार किस्सा है