ललित शर्मा जी से फोन पर मेरी बात हुई तो उन्होंने शंका जाहिर की कि कहीं "अवधिया चाचा" मेरा छद्मनाम तो नहीं है? यह भी पता चला कि बहुत से लोग ऐसा ही समझते हैं। इस पोस्ट के माध्यम से मैं स्पष्ट कर देना उचित समझता हूँ कि मेरा इस "अवधिया चाचा" से दूर-दूर का भी कोई सम्बन्ध नहीं है। अभी मेरे इतने बुरे दिन नहीं आये हैं कि मुझे कोई छद्मनाम रखना पड़े और मेरा विश्वास है कि कभी मेरे बुरे दिन आयेंगे भी नहीं। मैं तो किसी भी बात को खुल्लमखुल्ला कहने में ही विश्वास रखता हूँ, नाम बदल कर परोक्ष रूप से कुछ कहना मेरी आदत नहीं है। अतः बन्धुओं! यदि आपको भी इस प्रकार की भ्रान्ति है तो आशा करता हूँ कि इस पोस्ट को पढ़ने के अपनी इस भ्रान्ति को दिल से निकाल देंगे।
यह तो हुआ स्पष्टीकरण।
अब आते हैं उस बात पर जिसे मैं आज अपने पोस्ट में बताना चाहता था। आप हिन्दी के अनेक ऐसे शब्दों को जानते होंगे जिसके अन्त में 'ज' या 'जा' आता है, जैसे कि पंकज, नीरज, गिरिजा, तनुजा इत्यादि।
तो क्या है यह 'ज'? वास्तव में 'ज' एक प्रत्यय है। जब किसी शब्द के अन्त में एक या एक से अधिक अक्षरों को जोड़कर एक नया शब्द बना दिया जाता है तो अन्त में जोड़े गये अक्षरों को प्रत्यय कहते हैं। जैसे कि "प्राचीन" शब्द के अन्त में 'तम' लगा दें तो नया शब्द "प्राचीनतम" बन जाता है।
तो अन्त में लगने वाले ज प्रत्यय का अर्थ क्या होता है?
'ज' प्रत्यय संस्कृत के "जायते" शब्द से बना है और इसका अर्थ होता है जन्म लेना। जिसने 'पंक' अर्थात 'कीचड़' से जन्म लिया वह 'पंकज' याने कि 'कमल'। जिसने 'गिरि' अर्थात् 'पर्वत' से जन्म लिया वह 'गिरिजा' याने कि 'पार्वती'।
'ज' प्रत्यय वाले शब्दों में "द्विज" एक विशिष्ट शब्द है। 'द्वि' अर्थात दो बार तथा "द्विज" याने कि "जिसने दो बार जन्म लिया"। द्विज ब्राह्मण को कहते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों का पहला जन्म माता के गर्भ से होता है और दूसरा जन्म उपनयन संस्कार होने पर होता है। द्विज पक्षियों को भी कहते हैं क्योंकि पक्षी का एक बार जन्म अण्डे के रूप में होता है और दूसरी बार पक्षी के रूप में।
अब जब आपने प्रत्यय को जान लिया है तो उपसर्ग को भी जान लें। उपसर्ग प्रत्यय का ठीक उलटा होता है। जब किसी शब्द के आरम्भ में एक या एक से अधिक अक्षरों को जोड़कर एक नया शब्द बना दिया जाता है तो आरम्भ में जोड़े गये अक्षरों को उपसर्ग कहते हैं। जैसे कि "प्रभात" के पहले 'सु' जोड़ दिया तो नया शब्द बन गया "सुप्रभात"।
चलते-चलते
इमरजेंसी के दिनों में ऑफिस के अटैन्डेन्स रजिस्टर में देर से ऑफिस आने का कारण बताने के लिये एक कॉलम और बनाया गया था। जो भी देर से आता वह देर होने का कारण भी लिखता था जैसे कि रास्ते में सायकल पंचर हो गई, ट्रैफिक जाम में फँस गया आदि। शुरू-शुरू में तो हर आदमी अपने-अपने देर से आने का कारण लिखता था पर कुछ महीने बीत जाने पर कुछ ऐसा रवैया बन गया कि सबसे पहले देर से आने वाला कोई कारण लिख देता था और उसके बाद वाले सिर्फ उसके नीचे यथा (डिटो) का निशान (-do-) बना दिया करते थे।
एक दिन सबसे पहले देर से आने वाले ने ऑफिस में देर से आने का कारण लिखा "मेरी पत्नी ने जुड़वें बच्चों को जन्म दिया" और उसके बाद आने वाले सारे लोगों ने आदत के अनुसार उसके नीचे यथा (डिटो) का निशान (-do-) बना दिया।
28 comments:
इसमें कोई शक नहीं था कि आप चाचा नहीं है. क्योंकि कौन कैसा लिख सकता है इतना तो अनुमान लगाया ही जा सकता है. आप वैसा नहीं लिख सकते. मगर आपके नाम का दूरपयोग जरूर हुआ है.
ज प्रत्यय की जानकारी रूचिकर रही.
अन्य टिप्पणीकार नीचे केवल -do- लिखकर टिप्पणी कर सकते है :)
हमारे प्राचीनतम ग्रंथो में जो राक्षसों की कहानिया मिलती है उसमे यह बात बहुतायात में देखने को मिलती है कि उस समय राक्षस अपने कृत्यों को अंजाम देने और लोगो को धोखा देने के लिए क्षद्म भेष धारण करते थे................... मसलन आप किसी जंगल के रास्ते से जा रहे है तो आपको धोखा देने के लिए वह राक्षस आपके किसी पहचान वाले का भेष धारण कर लेता और जब मौक़ा मिलता पानी औकात दिखा ही देता, यही आज भी होता है ! इसलिए आप घबराइये नही अवधिया साहब, क्षद्म अवधिया की पहचान अलग से हो जाती है !
अपने देश के महान लोगो की भेड़ चाल वाला किस्सा पसंद आया !
यह स्पष्टीकरण देने की हालांकि जरूरत नहीं थी, फ़िर भी आपने स्थिति स्पष्ट कर दी है तो अच्छा ही है… वैसे भी जो लोग नियमित नेट, ब्लॉग आदि पढ़ते हैं, वे उस कथित "अवधिया चाचा" की टिप्पणी की भाषा देखकर ही समझ जायेंगे कि वह कोई अनपढ़ किस्म का घटिया सोच वाला व्यक्ति है… इसलिये आप चिन्तित न हों… ऐसे "बेनामी हिजड़ों" की फ़ौज भरी पड़ी है नेट पर…। जो लोग समझदार हैं वे असली-नकली में फ़र्क करना जानते हैं… :)
अवधिया जी,
रामायण क्यों रुकी हुयी है ? दो दिनों से हम हर घंटे आकर देख रहे है ! लत लगाने के बाद इंतजार काहे करा रहे है ?
चलो एक शंका समाधान हुआ
पर दूसरी शंका ने जन्म ले लिया. क्या सबके घर जुडवा बच्चे पैदा हुए थे?
@ Ashish Shrivastava
क्षमा चाहता हूँ, गीताप्रेस गोरखपुर वाली वाल्मीकि रामायण की भाग दो वाली कहीं प्रति दीवाली सफाई के समय कहीं खो गई है इसलिये व्यावधान आ गया है। शीघ्र नई प्रति खरीद कर लाउँगा और रामायण को आगे बढ़ाउँगा।
बहुत ज्ञानवर्धक जानकारी प्रदान कि आपने.....
और चलते-चलते के तो क्या कहने..... मज़ा आ गया....
गोरखपुर जा रहा हूँ.... गीता प्रेस से वाल्मीकि रामायण कि प्रति लेता आऊंगा आपके लिए........
अवधिया जी-जिहां राम रमायन-तिहां कुकुर कटायन
जब ले रमायन चालु होय हे तभे ले अईसन होवत हे, देख त गा "मारीच" कहां हवय, ओखर सोर खोर लेय बर लागही त पता चल जाही, सिया रामचंद्र के जय, भेज तो तनि बजरंग बली ला।
आपका लेखन ही यहाँ आपकी पहचान है। कोई अन्य आपके नाम से भी लिखना शुरू कर दे तो भी समझ आ जाएगा कि वह आप नहीं हैं।
वाह, इतने सारे जुड़वा बच्चे!
घुघूती बासूती
-do-
अवधिया जी, हम तो इस "अवधिया चाचा" के पीछे छुपे लम्पट की वास्तविकता से भलीभान्ती परिचित हैं...ओर शायद आप भी जानते ही होंगें...
बाकी आज इस पोस्ट के जरिए आपने बहुत ही बढिया जानकारी प्रदान की...
धन्यवाद्!
हम तो पहले से ही जानते हैं जी हंस और कव्वे में क्या फर्क है।
प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में बता कर हिन्दी की सातवीं कक्षा की याद दिला दी है आपने आभार
चलते-चलते के लिये ऊपर वाली टिप्पणियों के नीचे
-----do-----
प्रणाम स्वीकार करें
ARE SIR JI YE TO SABKO PATA HEE HAI KI WO AAP (CHACHA) HO HEE NAHI SAKTE .....
aap ke isii blog par kisi post mae padhaa thaa aap ko kisi nae chacha keh kar sambodhit kiya haen aur uskae baad hi is avadhiyaa chacha kae naam sae kaemnt shuru huae haen . shaayad pehla kment kisi mgyan ki post par tha jo unhoney delete kiya tha phir us kament ko dubara bhi dalaa gayaa aur wo phit delte hua
hindi bloging mae yae sab bahut aam haen , aap ka regular paathak aap ko janataa haen
so worry not
उपसर्ग प्रत्यय से सम्बन्धित अच्छी जानकारी मिली ।
आपने स्पष्ट किया। ध्यान रखेंगे।
भगवान न करे आपके ऐसे दिन आयें, वेसे दिन तो आ भी नहीं सकते, वह तो महान हस्तियों के हिस्से में आते हैं, जिन्हें आक्रोश नहीं आता, संयम से काम लेते हैं, कई घण्टे से संयम से काम लेकर हमने इस पोस्ट को वहाँ पहुँचाया जहाँ यह हमारे रूत्बे की बनी,
खेर जायदाद से बेदखल करने का धन्यवाद आपके इस फेसले की विरूद्ध में कोई अपील नहीं करूँगा,
अवधिया चाचा
जो कभी अवध ना गया
रचना से सहमत
--do--
--do--
अवधिया जी आप की बात से सहमत है, लेकिन हम पहले से जानते है, इस बात को.
धन्यवाद
do
rachna se sehmat jo kehti hen:आपके इसी ब्लाग पर किसी पोस्ट में पढा था आको किसीने चाचा कहकर सम्बोधित क्या है और उसके बाद ही इस अवधिया चाचा का नाम से कमेंटस शुरू हुए हैं, शायद पहला कमेंटस किसी मुर्खज्ञान की पोस्ट पर (jo kisi rachna se संबन्धित थी awadhiya said) पर था जो उन्होंने डिलिट किया था फिर उस कमेंटस को दोबारा भी डाला गया और वह भी डिलिट (phir तीसरी बार भी डाला गया वह भी डिलिट..awadhiya said)
हिन्दी ब्लागिंग में यह सब बहुत आम है, आपका रेगुलर पाठक आपको जानता है (arthaat भ्रांतियाँ कहाँ तक दूर करोगे,,मूर्ख हम एक ढूंडते हैं हजार मिलते हैं awadhiya said)
-do-
सोच रहा हूं अपना नाम अवधिया बाबू रख लूं...
जय हिंद...
--do-- :)
-do -
लेकिन हिन्दी ब्लॉगिंग पर टिप्पणी और उससे सहम्ति को निकालने के बाद। वह 'थुकायल'भी आ टपका है तो उसको भी -do- से निकाल दें।
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अमाँ इतनी कतर पेंच से अच्छा था कि -do- के बजाय ठीक से टिपिया ही देते !
इमर्जेंसी वाली बहुत बढ़िया रही।
--do--
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