तो परिस्थिति यह थी कि सारे ब्लोगर्स विकट स्थिति में फँसे थे। चारों ओर रेत का विशाल सागर लहरा रहा था। अब बताइये कि ब्लोगर्स के लिये पहली सबसे बड़ी और समस्या क्या थी? वह थी उस विकट स्थिति याने कि रेगिस्तान से हर हाल में जल्दी से जल्दी बाहर निकलना। आखिर खाने पीने का जो भी सामान बचा लिया गया था वह कितने समय तक चलने वाला था?
बिना किसी प्रकार की सहायता के वे बाहर निकल नहीं सकते थे और सहायता देने के लिये वहाँ पर कोई भी नहीं था। तो कैसे मिलती सहायता? चूँकि वह रेगिस्तान एयर रूट के बीच में आता था इसलिये वहाँ पर से किसी न किसी प्लेन के गुजरने की पूरी पूरी सम्भावना थी। अब मान लीजिये कि कोई प्लेन उनके ऊपर से गुजरती भी तो वे उस प्लेन के भीतर के लोगों को अपने वहाँ फँसे होने के विषय में कोई संकेते कैसे दे पाते? संकेत देने का एक ही तरीका था सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करके प्लेन के लोगों का ध्यान आकर्षित करना। ध्वनि संकेत कुछ भी काम नहीं आने वाला था। वे लोग कितना भी जोर लगा कर चिल्लाते या बंदूक पिस्तोल दाग कर आवाज करते, उनकी आवाज ऊपर आकाश में उड़ते हुए प्लेन तक पहुँचने वाली नहीं थी। यदि आवाज किसी प्रकार से वहाँ तक पहुँच भी जाती तो प्लेन के इंजिन के आवाज में दब जाने वाली थी। तो संकेते देने का एकमात्र तरीका था सनलाकइट को रिफ्लेक्ट करना जो कि सिर्फ दर्पन की सहायता से ही किया जा सकता था। और दर्पन केवल महिला ब्लोगर के मेकअप बॉक्स में ही मौजूद था।
दर्पन के द्वारा सूर्य के प्रकाश को सभी दिशाओं में परावर्तित करके भी संकेत भेजने का प्रयास किया जा सकता था ताकि यदि आसपास को गाँव, बस्ती या नगर जैसी रिहायशी स्थान हो तो वहाँ के लोगों को संदेश मिल जाये कि कोई रेगिस्तान में फँसा है।
तो बन्धुओं! आधे घंटे के भीतर ही उन ब्लोगर्स के ऊपर से एक प्लेन गुजरी तो उन्होंने दर्पन से सूर्य के प्रकाश को परावर्तित कर के उस प्लेन तक अपना संकेत भेजा। उनका संकेत मिलते ही प्लेन के स्टाफ ने समीप के उन सभी स्थानों में सूचना भेज दी और तत्काल सहायता भेज कर सभी ब्लोगर्स को रेगिस्तान से निकाल लिया गया।
तो किया ना कमाल महिला ब्लोगर ने अपना मेकअप बॉक्स बचा कर!
कुछ लोग कह सकते हैं कि प्रकाश संकेत तो टार्च से भी भेजा जा सकता था पर दिन में सूर्य के प्रकाश की वजह से टार्च का प्रकाश तो काम करने से रहा और रात में भी यह कहा नहीं जा सकता कि टार्च का प्रकाश काम कर पाता भी कि नहीं क्योंकि वह था तो टार्च ही, कोई शक्तिशाली सर्चलाइट थोड़े ही था।
कल के मेरे पोस्ट "किस ब्लोगर ने किया कमाल?" के सवाल के जवाब तो बहुत लोगों ने दिया टिप्पणी करके, जिसके लिये मैं सभी टिप्पणीकारों का आभारी हूँ, किन्तु लगता है कि सवाल को किसी ने भी गम्भीरता से नहीं लिया। हाँ अन्तर सोहिल जी ने कुछ सही दिशा में सोचते हुए टिप्पणी की थी किः
अन्तर सोहिल said...सच है कि "खुद के मरे बिना स्वर्ग नहीं दिखता"। क्योंकि घटना काल्पनिक थी और कोई भी ब्लोगर खुद नहीं फँसा था इसलिये किसी ने गम्भीरतापूर्वक सवाल का जवाब भी नहीं सोचा।
कोई न कोई तो उन्हें ढूंढने जरूर आयेगा और संभव है कि हेलीकाप्टर से आये तो रात में तो टार्च से अच्छा साईन कुछ नही हो सकता और दिन के लिये जिसके पास माचिस है वो कुछ जला कर धुआं भी कर सकता है।
आखिर में एक बात और। वह यह कि पोस्ट तो हमने किया और दुनिया भर की तारीफ बटोर लिया ललित शर्मा जी ने क्योंकि उन्होंने बंदूक, पिस्तोल, चाकू आदि बचा लिये थे। इसी को कहते हैं "धक्का खाय पुजारी और मजा करे गिरधारी!" :-)
बधाई हो ललित जी!!!
चलते-चलते
एक दिन हम बहुत खुश थे तो खुशी खुशी में खुद ही खाना बनाने में भिड़ गये। श्रीमती जी भी खुश हो गईं कि चलो एक दिन के लिये ही सही खाना पकाने से छुट्टी तो मिली। हम किचन में थे और वे ड्राइंगरूम में बैठकर अपनी एक सहेली से गप शप करने में व्यस्त हो गईं।
कुछ ही देर में हमने किचन से ही चिल्लाकर पूछा, "अरे, नमक कहाँ रखा है?"
श्रीमती जी की ड्राइंगरूम से आवाज आई, "आपको तो कुछ मिलता ही नहीं। वो जो गरममसाला का डिब्बा है ना, जिस पर हल्दी लिखा हुआ कागज चिपका है, उसी में तो है नमक।"
18 comments:
वाह ,भई अवधिया साहब, यह ब्लोगर मीट भी अच्छी रही !!:)
वाह ... सही दिशा मैं सोचा है ... हमारा दिमाग तो इधर उधर ही घूमता रहा ....
अवधिया जी,
आज तो आपने मेरे साथ बड़ी नाइंसाफ़ी कर दी...मेकअप बॉक्स निकलवाया हमने...और क्रेडिट भी नहीं मिला...अरे
वो तो हम आंखें सेंकने में लगे रहे वरना दर्पण का तो हमें भी पता था...लेकिन जिन्हें दिल की लगी हो, उन्हें मौत की परवाह ही कहां होती है...दर्पण दिखा देते तो सब फिर जुदा नहीं हो जाते...मोहब्बत के परवाने तो शमा के पास जाने के लिए पहले से ही सिर पर कफ़न बांधे रखते हैं...मेरे जज़्बात को समझिए और मेरा ड्यू क्रेडिट
मुझे लौटाइए...
जय हिंद...
इसिलिये तो अपन खाना बनाने के लफ़्ड़े मे नही फ़ंसते।
अवधिया जी, ये दे कौन कांड हवे जेखर रचना आप मन करे हव ? अनि्ल भाई बर रांधे ला लागही। चुरे पके खाथे, हा हा हा, दु झिन पहाटिया घला लागही,जय हो
आपने यह अपना जवाब थोपा है, मेरे एक कमेंटस की लाइन थी ''खेर अपना जवाब तो महिला ब्लागर मेकप अप बाक्स में छुपा हुआ है''
दूसरी बात शेविंग किट में भी शीशा होता है, और मेरी जानकारी के अनुसार महिलाओं के शीशे से बडा होता है कयूँकि वह तो एक बार में एक चीज होंट या आँख देखती हैं हमें तो माशाअल्लाह पूरा चेहरा देखना होता है,
सिगनल धूवें से अच्छा दिया जा सकता है काँच से केवल बाल्कोनी में बठी मैना को आकर्षित कर सकते हैं, हैलिकाप्टर फट से गुजर जाएगा, हम वहाँ होते तो धुवाँ से सिगनल देना पसंद करते, इतने बडे हादसे में पहली ज़रूरत होती है फर्स्ट एड , बॉक्स इस लिए लाक किया था माशाअल््लाह सारे ब्लागर समझदार होते हैं सिगनल तो वह कई तरीके से देलेते, खास तौर से महिला ब्लागर्स तो सिगनल के इतने तरीके जानती हैं शीशे की भी आवश्यकता नहीं पडती, कसम से
क्यों महिला ब्लागरों को बदनाम कर रहे हो भाई ,
हमने तो ३५ साल की उम्र गुजार दी ,६ राज्यों के भी चक्कर लगा लिए मगर मेकप्बाक्स आज तक नहीं देखा ,न घर के किसी कोने में न इतने बड़े पर्स में
वैसे नमक के डिब्बे का जवाब नहीं
खाना बड़ा स्वादिष्ट बना होगा :)
alka sarwat said...
अलका जी, मेरी नीयत किसी महिला ब्लोगर को बदनाम करने की न तो कभी रही है और न कभी रहेगी। यदि भूलवश मुझसे किसी महिला ब्लोगर की बदनामी हो गई हो तो उसके लिये मैं क्षमाप्रार्थी हूँ।
यह प्रश्न एक समय हमारे व्यवहार विज्ञान के में हमसे किया गया था सो उसी को मैं कुछ और रोचक बनाने के लिये थोड़ा फेर बदल कर रख दिया। उस समय उस प्रश्न में भी मेकअप बॉक्स का ही उल्लेख था जिसका अर्थ हमने यही लगाया था कोई मेकअप के सामान रखने की किट हो सकती है।
अपने सहजात से सहमत, आज वह व्यस्त है शायद अवध जाने की तैयारी में है, इस पोस्ट को ब्लागवाणी हाटलिस्ट में सम्मिलित कराने के लिए 3 चटके जरूरी थे, इस लिए पोस्ट के 4 घंटे बाद सहमति और चटका3 लेके हम आये , नालायकों को कितना समझा लो, नालायक ही रहेंगे, भीक तक माँगली और क्या अवधिया की जान लेंगे यह नालायक, एक हम हैं आपके लायक-फायक पाठक् 4 चटके जेब में रखते हैं कभी कहकर देखना कसम अवध की तुरन्त मिलेंगे
अवधिया चाचा
जो कभी अवध ना गया
jo bhi ho,
mazaa aaya
achha laga..........
namak ka dibba to kamaal hai !
बहुत बढीया जी
तभी तो आपने शेविंग किट को बदल कर रेजर ब्लेड कर दिया था। अब समझ में आया
"नमक मिल गया हो तो खाना बना लीजिये वरना एक फटकार और सुनाई देगी" :)
प्रणाम
गंभीर पोस्ट थी तो आप को लिखना चाहिए था की यह गंभीर पोस्ट है .फिर काहे सब नमक को गर्म मसाले की डिब्बे में तलाशते जी :) रसोईघर भी जादू का पिटारा होता है कुछ कही भी ,कैसे भी किसी भी डिब्बे में रहे खाना तो आपको स्वादिष्ट ही मिलता है न ...
भइया , पहेली तो मजेदार रही।
लेकिन डब्बे में तो बूरा थी। आपने सब्जी में डाल दी?
अवधिया जी, सच कहें, अपना दिमाग तो वहाँ तक नहीं पहुँच पाया था.......
वैसे खाने में नमक कुछ ज्यादा हो गया लगता है :)
दिलचस्प
अरे भैय, वो हल्दी लिखा नमक का डिब्बा कहां रखा है? :)
शर्मा जी ठीके कह रहे हैं. मसला गंभीर था फिर भी खाने में नमक ज्यादा हो गया.
साथ ही उमर कैरानावी भी बहुत कुछ युक्ति की बात कह गए.
अवधिया जी, प्रस्तुति दिलचस्प रही.
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