Wednesday, December 9, 2009

उनके पेट में दर्द हो जायेगा अगर सोचेंगे नहीं तो ... आखिर दार्शनिक, वैज्ञानिक या गणितज्ञ जो हैं ये

सब्जी खरीदने तो जाते ही हैं आप। यदि कभी सब्जीवाले ने आपको एक रुपया भी कम वापस किया तो आप तत्काल पूछते हैं कि एक रुपया कम क्यों है? सब्जीवाला भी कह देता है कि माफ कीजिये साहब, हिसाब में गलती हो गई थी।

इसका मतलब यह है कि हिसाब आप भी करते हैं और हिसाब सब्जी वाला भी करता है। याने कि हर किसी को कभी न कभी हिसाब करना ही पड़ता है, भले ही वह गणित के मामले में धुरन्धर रहा हो या गणित से बहुत ज्यादा घबराने वाला।

हाँ, तो कैसे करते हैं आप हिसाब? एक से लेकर नौ और शून्य अर्थात् दस अंकों की सहायता से ही ना? पर कभी सोचा है कि आखिर ये अंक दस ही क्यों होते हैं?

अब आप कहेंगे कि अंक दस होते हैं तो होते हैं। हमारा काम तो अच्छे से चल जाता है इन दस अंको से। हम हर प्रकार का हिसाब-किताब तो कर ही लेते हैं इनकी सहायता से। तो फिर क्यों अपना सर खपायें यह सोच कर कि यदि दस से कम या अधिक अंक होते तो क्या होता?

पर ये जो दार्शनिक, वैज्ञानिक और गणितज्ञ जो होते हैं ना, ये बड़े विचित्र प्राणी होते हैं! ये अगर सोचना छोड़ दें तो इनके पेट में दर्द हो जाये। उत्सुकता नाम का कीड़ा कुलबुलाते रहता है इनके दिमाग के भीतर।

बस भिड़ जाते हैं ये यही सोचने में कि यदि दस के स्थान पर आठ ही अंक होते तो क्या होता? आठ और नौ नाम वाले अंक यदि हमारे पास नहीं होते तो हम सभी प्रकार की गणना कर कर पाते या नहीं? और जान कर ही छोड़े कि सिर्फ आठ अंकों से भी सभी प्रकार के गणित को हल किया जा सकता है। बस बन गई एक नई अंक प्रणाली। याने कि Decimal Numeral System तो हमारे पास था ही अब Octave Numeral System भी मिल गया हमें।

पर वो कहते हैं ना कि "खाली दिमाग शैतान का घर"। फिर सोचने लगे कि आठ की जगह छः ही अंक होते तो क्या होता? माथापच्ची करके फिर पता लगा लिया कि उससे भी हमारा काम रुकने वाला नहीं था मतलब तब भी हम सभी प्रकार की गणना कर ही लेते।

पर इनको संतुष्टि कहाँ होती है? दो-दो अंक कम करते ही चले गये और आखिर में पहुँच गये सिर्फ दो अंकों तक। याने कि फिर माथाफोड़ी करने लग गये कि यदि हमारे पास अंकों के नाम पर सिर्फ 0 और 1 ही होता तो क्या हम गणित के सब प्रकार के सवाल हल कर सकते या नहीं। तो एक बार फिर खपाई उन्होंने अपनी खोपड़ी! और जान लिया कि सिर्फ दो अंकों से भी सब प्रकार की गणना की जा सकती है। और बन गया Binary Numeral System। केवल इतना ही नहीं, एक प्रकार के अंक प्रणाली की संख्या को दूसरे प्रकार की अंक प्रणाली में परिवर्तित करने का तरीका भी निकाल लिया। याने कि जान लिया कि दशमलव अंक प्रणाली Decimal Numeral System मे जिसे 45 लिखेंगे उसी को द्विआधारी अंक प्रणाली Binary Numeral System में 101101 लिखेंगे।

वैसे तो इस Binary Numeral System का विकास हमारे देश के प्रसिद्ध दार्शनिक और गणितज्ञ "पिंगल" ने ईसा पूर्व 200 में ही कर लिया था किन्तु वो संस्कृत वाले थे ना, इसलिये उनकी बात पूरे संसार तक नहीं पहुँच सकी। पूरे संसार तक बात तभी पहुँची जब श्रीमान महोदय Gottfried Leibniz ने सत्रहवी शताब्दी में अपने हिसाब से Binary Numeral System का विकास किया।

तो Binary Numeral System तो हमें बहुत पहले ही मिल गया था किन्तु सैकड़ों साल तक यह ठंडे बस्ते में पड़ी रही क्योंकि दशमलव प्रणाली की अपेक्षा कठिन होने के कारण आम लोगों में इसकी कोई उपयोगिता नहीं थी।

आइये अब देखते हैं कि, सोचने की इस सनक के परिणाम से प्राप्त, Binary Numeral System कैसे महत्वपूर्ण बन गया। क्योंकि बाद में जब विद्युत के विषय में अध्ययन हुआ तो पता चला कि विद्युत की केवल दो ही अवस्थाएँ होती हैं। या तो विद्युत प्रवाहित हो रही है या फिर विद्युत प्रवाहित नहीं हो रही है। तीसरी कोई अवस्था हो ही नहीं सकती।

तो विद्युत में केवल दो अवस्थाएँ होने और Binary Numeral System में केवल दो अंक होने की समानता ने जोरदार काम कर दिखाया और मिल गया हमें Computer Science।

तो बन्धुओं! कब किस सोच से क्या कमाल हो जायेगा कहा नहीं जा सकता। अब देखिये ना पेड़ से फल के नीचे गिरने पर भला कोई सोचता है क्या कि फल आखिर नीचे ही क्यों गिरा? ऊपर क्यों नहीं चला गया? ऐसा सोचना बचपना नहीं है तो क्या है? पर न्यूटन साहब को फल का नीचे गिरना ही अजीब लगा था। चिन्तन करना शुरू कर दिया इसी बात पर और उनके इस चिन्तन के नतीजे ने हमें गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त दे दिया।

चलते-चलते

भारत की कुल आबादी 100 करोड़

रिटायर्ड लोगों की संख्या 9 करोड़ (ये कोई काम नहीं करते)

राज्य शासन में नौकरी करने वालों की संख्या 30 करोड़ (ये भी कोई काम नहीं करते)

केन्द्र शासन में नौकरी करने वालों की संख्या 17 करोड़ (ये भी कोई काम नहीं करते)

विदेशों में नौकरी करने वालों की संख्या 1 करोड़ (ये भारत के लिये काम नहीं करते)

बेरोजगारों की संख्या 15 करोड़ (याने कि काम करने का सवाल ही नहीं पैदा होता)

स्कूल में पढ़ने वालों की संख्या 25 करोड़ (याने कि काम करने का सवाल ही नहीं पैदा होता)

पाँच साल के कम उम्र वाले बच्चों की संख्या 1 करोड़ (याने कि काम करने का सवाल ही नहीं पैदा होता)

आँकड़ों के अनुसार किसी भी समय अस्पताल में भर्ती लोगों की संख्या 1.2 करोड़ (याने कि काम करने का सवाल ही नहीं पैदा होता)

आँकड़ों के अनुसार किसी भी समय जेल में सजा भुगत रहे लोगों की संख्या 79,99,998 (जो कि मजबूरी में सिर्फ नहीं के बराबर काम करते हैं याने कि माना जा सकता है कि ये भी कोई काम नहीं करते)

अब बचे आप और मैं! तो आप भी तो हमेशा अपना पोस्ट, टिप्पणियाँ लिखने और मेल चेक करने में ही व्यस्त रहते हैं। अब भला बताइये मैं अकेले इस देश को कैसे संभालू? :-)

15 comments:

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

Binary Numeral System का विकास हमारे देश के प्रसिद्ध दार्शनिक और गणितज्ञ "पिंगल" ने ईसा पूर्व 200 में ही कर लिया था | --? सही जानकारी दी, हमें तो पता ही नहीं था |

संजय बेंगाणी said...

फिर कहते हैं खाली दिमाग शैतान का घर :)

Mohammed Umar Kairanvi said...

सम्‍भव है आगे चलकर पता चले कि 0 के बिना भी हमारा काम चल सकता है, परन्‍तु आपके बिना ब्लागिंग का नहीं चलने वाला, चलते-चलते एक अलग पोस्‍ट बननी चाहिए थी, पर हम जानते हैं आपके पास देने को इतना है कि आप 3 in one भी दें तो कमी नहीं पडेगी,

हम आपको लम्‍बी उम्र की दुआओं के अलावा चटका देसकते है सो चटका न.2

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

वाह..!
आँकड़े तो चकाचक है!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

हा-हा-हा.. चलते-चलते आपने बड़े काम की बात बताई, अवधिया साहब ! एक विचारणीय मुद्दा !

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

वाह! बहुत अच्छा लगा यह लेख......

Chandan Kumar Jha said...

संख्याओ का अद्भुत मेल । चलते चलते ने बहुत हँसाया ।

दिनेशराय द्विवेदी said...

अब जिम्मेदारी आप पर ही आप पड़ी है तो जैसे अब तक संभाल रहे हैं संभालते रहिए। आप मना कर देंगे तब सोचेंगे।

विजय गौड़ said...

इतनी जटिल बात और इतनी सहजता से कह दी, कमाल है जी। आगे जारी रहिए ना इसी अंदाज में कम्प्यूटर भाषा को और स्पष्ट करने के लिए। इंतजार रहेगा।

डॉ टी एस दराल said...

वाह जी वाह, आज तो बड़ी साइंटिफिक पोस्ट लिखी है।
अच्छा लगा पढ़कर।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

आपको इस पोस्ट को तो साइंस ब्लाग पर पोस्ट करना चाहिए था़ । बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख है़ ।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

हम भी रिटायर्ड हैं जी... हम ब्लागरी जो करते है....काम ही तो है:)

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

वाह अवधिया जी- इस देश मे हम दो लोग ही काम-काम कर रहे हैं एक आप पोस्ट लिख रहे है और मै टिप्पणी कर रहा हुँ, दोनो ही व्यस्त हैं, हा हा हा,

शरद कोकास said...

इसीलिये कहते हैं हमारे देश मे कि भगवान है ...क्योंकि इतना बड़ा देश आपके हमारे भरोसे तो चल नही रहा है ।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

आप ही के भरोसे टिका है ये देश।

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शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।