रावण का नाम सुनते ही हमें लगने लगता है कि उसमें मात्र अवगुण ही अवगुण थे। किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। जिस प्रकार से किसी सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार से सभी के गुण और अवगुण दोनों ही होते हैं। संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जिसमें गुण ही गुण हों या अवगुण ही अवगुण हों। आपको जान कर शायद आश्चर्य हो कि रावण में अवगुणों से कहीं अधिक गुण थे। रावण वेद तथा समस्त पुराणों का ज्ञाता महापण्डित था। वह अपने काल के अदम्य शक्तिशाली दुर्घर्ष वीरों में अग्रणी था। सीता का हरण कर लेने के बाद भी रावण ने उनसे विवाह के लिये स्वीकृति हेतु उन्हें एक वर्ष का समय सोचने के लिये दिया था। इससे सिद्ध होता है कि रावण सदाचरण वाला तथा नारी को सम्मान देने वाला था।
रावण भगवान शिव का अनन्य भक्त था। रावण की भक्ति तथा स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उसे चन्द्रहास नामक खड्ग भी दिया था।
दस सिर होने के कारण लंका के राजा रावण को दशानन के नाम से भी जाना जाता है। रावण में अवगुण अवश्य थे किन्तु उनके पास अपने अवगुणों से अधिक संख्या में गुण भी थे।
हिन्दुओं के आराध्य देव श्री राम के चरित्र को उज्ज्वल बनाने में सर्वाधिक सहयोग रावण का रहा है। श्री राम का रावण पर विजय को अधर्म पर धर्म का विजय की संज्ञा दी जाती है किन्तु यदि अधर्म ही ना रहे तो धर्म की विजय किस पर होगी?
रावण का उल्लेख पद्मपुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्मपुराण, रामायण, महाभारत, आनन्द रामायण, दशावतारचरित आदि ग्रंथों में आता है। रावण के आविर्भाव के विषय में विभिन्न ग्रंथों में विभिन्न प्रकार के उल्लेख मिलते हैं।
- पद्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण में उल्लेख है कि हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु दूसरे जन्म में रावण औरकुम्भकर्ण के रूप में पैदा हुए।
- वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि के पुत्र विश्वश्रवा का पुत्र था। विश्वश्रवा की पहली पत्नीवरवर्णिनी ने जब कुबेर को जन्म दिया तो उनकी दूसरी पत्नी कैकसी को सौतिया डाह हो गया और उसने कुबेला मेंगर्भ धारण किया। यही कारण था कि उसके गर्भ से रावण तथा कुम्भकर्ण जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षसउत्पन्न हुये।
- तुलसीदास जी रचित रामचरितमानस में बताया गया है कि रावण का जन्म शाप के कारण हुआ था। तुलसीदासजी नारद के द्वारा श्री विष्णु को शाप एवं प्रतापभानु की कथाओं को रावण के जन्म कारण बताते हैं।
महाज्ञानी एवं अनेक गुणो का स्वामी होने के बावजूद भी रावण अत्यन्त अभिमानी था। सत्ता के मद में उच्छृंखल होकर वह देवताओं, ऋषियों, यक्षों और गन्धर्वों पर नाना प्रकार के अत्याचार करता था। इसीलिये श्री राम ने उसका वध करके उसके अत्याचार का अन्त किया।
15 comments:
जय लंकेश।:)
गुरुदेव हमने पिछले वर्ष दशहरे पर एक समाचार पत्र के लिये जब एक आलेख तैयार किया था तब नेट मे उपलब्ध आपके ही किसी लेख से जानकारी एकत्र किये थे. इन लेखो के लिये बहुत बहुत धन्यवाद.
अच्छी पोस्ट लिखी है।आभार।
रावण में अवगुणों से कहीं अधिक गुण थे।'
रावण के बारे में अच्छी जानकारी
बहुत सुंदर लिखा आप ने , रावण मै सच गुण ज्यादा थे, आप के लेख से सहमत है.
धन्यवाद इस सुंदर जानकारी के लिये
सच है!अगर रावण न होता तो आज राम का भी कोई वजूद नहीं होता...रावण है,तो ही राम है।
लेकिन कितनी विचित्र बात है कि उसका एक ही दोष उसके समस्त गुणों पर भारी पड गया.....
एनर्जी का दुरूपयोग करने से विकार उत्त्पन्न होते हैं।
रावण के साथ भी यही हुआ।
जय शंकर की।
एक तो शासक, ऊपर से अभिमानी और हिंसक, रावण का विनाश तो निश्चित था.
बहुत अच्छी जानकारी...प्रणाम ..सभी के लिए उपयोगी है!
रावण महापंडित लेकिन मीडिया मैनेजमेंट कमजोर था . इसिलिये तो खलनायक क तमगा आज भी लगा है
dhnyavaad !
अच्छी जानकारी...
मणिनालांकृत सर्प: किमसौ ना भयंकर:।
नारी का सम्मान नहीं उसका बलात्कार करने वाला चरम भोगवादी संस्कृति का पोषक राक्षस था रावण। सीता के समय की स्थिति अलग थी जो वह बँच गईं। वाल्मीकि रामायण में उसकी कुकर्म गाथा बिखरी पड़ी है।
उसके सदाचरण जानने हों तो उत्तर काण्ड का अध्ययन ही पर्याप्त होगा।
एक अच्छी पोस्ट लिखी है।
रावण एक महा पण्डित था. कला का ज्ञाता था. उसके राज में लंका सोने की थी.
रावण बलात्कारी होता तो सीता को जबरदस्ती अपनाता, उसने ऐसा नहीं किया था. शेष उसके अपराध तो सभी जानते है.
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