Friday, January 8, 2010

टिप्पणी करना है याने कि करना है भले ही उस टिप्पणी से पोस्ट की गम्भीरता ही खत्म हो जाये

पता नहीं और किसी और को लगता है या नहीं, पर मुझे तो बहुत अजीब सा लगता जब मैं किसी गम्भीर विषय वाले पोस्ट पर हँसी मजाक वाली टिप्पणी देखता हूँ। बहुत बार मुझे कई पोस्टों में कुछ ऐसी ही टिप्पणियाँ दिखाई पड़ती हैं जो कि किसी गम्भीर विषय को, जो कि एक स्वस्थ चर्चा के उद्देश्य से लिखी गई हो, महज हास्य बना कर रख देती हैं। मेरे इस कथन को पढ़कर अब आप मुझसे लिंक्स माँगेंगे मुझसे। पर मैं कोई भी लिंक नहीं देने वाला हूँ क्योंकि मैं समझता हूँ कि जो कुछ मुझे दिखाई देता है वह आप लोगों को भी दिखाई देता होगा या फिर मैं ही मूर्ख हूँ।

आज मैं कुछ और पोस्ट लिखना चाहता था किन्तु कुछ देर पहले कुछ ऐसी ही टिप्पणियाँ मुझे दिखाई पड़ीं तो मैंने अपने मन में जो विचार उठा उसे यहाँ पर एक माइक्रोपोस्ट के रूप में आपके समक्ष रख दिया। मेरा किंचित मात्र भी यह अभिप्राय नहीं है कि आप लोगों को भी वैसा ही लगे जैसा कि मुझे लगता है। आपको यदि ऐसी टिप्पणियाँ अच्छी लगती हैं तो बहुत ही अच्छी बात है।

29 comments:

निर्झर'नीर said...

kahin tak aapki baat vicharniiy hai

लोकेश Lokesh said...

हम पंछी एक डाल के

स्वप्न मञ्जूषा said...

अवधिया भईया,
क्षमा भईया, हरगिज भी पुरुषों की बात नहीं है यहाँ,
साड़ी का बहिष्कार एक ज्वलंत समस्या है...इसी पर विमर्श के लिए यह पोस्ट लिखी है मैंने....
आपने इस समस्या की गहनता को मान दिया..बहुत अच्छा लगा...और बाकि बात ....बस थोड़ी सी नोक-झोंक थी.....करवद्ध आग्रह है भूल जाइए...
छोटी बहन
'अदा'

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

कथा अनंत बरनी न जाई:)

अविनाश वाचस्पति said...

टिप्‍पणियों के लालची इस ब्‍लॉगिंग जगत में स्‍वस्‍थ हास्‍य के लिए ऐसा होना स्‍वाभाविक है।

संगीता पुरी said...

मैने तो कल कहीं टिप्‍पणी नहीं की है .. वैसे मरी ऐसी टिप्‍पणी मिली हो तो मुझे र्इमेल पर अवश्‍य बताएं .. मैं अपने को सुधारने की कोशिश करूंगी !!

Unknown said...

संगीता जी, आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद! मैंने यह पोस्ट किसी व्यक्तिविशेष को ध्यान में रख कर नहीं बल्कि सामान्य तौर पर लिखा है। आप कृपया इसे अन्यथा ना लें।

निर्मला कपिला said...

बस धन्यवाद कहीं मेरी टिप्पणी भी न छाप दें

Mohammed Umar Kairanvi said...

आज बहुत दिनों बाद आपने खींच ही लिया, मूर्ख तो मैं किसको कहूं एक नहीं हजार हैं, हां बस आप और अलबेला ही मुझे समझदार दिखाई‍ दिए, लिंक तो आपको देना ही चाहिए हमारे जैसे यही देखने आते हैं कि किसको कलम से छूकर अमर कर दिया गया है,वैसे मैंने देखा है आप केवल मेरा ही लिंक नहीं देते क्‍या कहते हो?

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अवधिया साहब, मैं तो आज इस डर के मारे टिपण्णी ही नहीं कर रहा :)

36solutions said...

टिप्पणिया लेना और देना भी अब टी आर पी पाने का जरिया हो गया है गुरुदेव.
टिप्पणियो के प्रति प्रतिबद्धता व बौद्धिकता बान्दी हो गई है.

Anonymous said...

अच्छा लगा ये जान कर कि कोई और भी जो सार्थक बहस के बीच मे हां हां ही ही को गलत मानता हैं । मैने तो काफी पहले ये मुद्दा चिट्ठा चर्चा पर उठाया था और तब यही कहा गया था कि मुझे हसना नहीं आता और ब्लॉग लेखन मे लोग ब्लॉग हसने हसाने के लिये ही लिखते हैं । बहुत सी बातो को , मुद्दों को यहाँ गैर जरुरी समझा जाता हैं और बहस करने वालो के खिलाफ मोर्चा बंधा जाता हैं और कहा जाता हैं कि उन्हे हास्य कि समझ नहीं हैं ।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

हम बडे बेमन से डरते डरते ये टिप्पणी दे रहे हैं..ये सोच कर के कहीं आपका इशारा हमारी ओर ही तो नहीं है :)

उम्दा सोच said...

यदि मैंने कही किसी की भावना को चोट पहुचाई है तो मै तहे दिल से माफ़ी चाहता हूँ !

Unknown said...

@ उम्दा सोच

मैंने यह पोस्ट किसी व्यक्तिविशेष को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि सामान्य तौर पर लिखा है क्योंकि अक्सर कई पोस्टों में निरर्थक और पोस्ट की गम्भीरता को ही खत्म कर देने वाली टिप्पणियाँ देखा करता हूँ। कृपया अन्यथा न लें।

अविनाश वाचस्पति said...

कब तक तैलीय और गरिष्‍ठ वस्‍तुएं ही खाते रहेंगे कभी तो सादा भोजन भी खाना चाहिए। रोटी सब्‍जी दाल चाहे महंगे ही हों। पर स्‍वास्‍थ्‍य का ध्‍यान रखना भी तो आवश्‍यक है। आपका क्‍या ख्‍याल है ? क्‍या सादा भोजन से जन जन से नहीं जुड़ा जा सकता है।

उम्दा सोच said...

अवधिया जी आप का तहे दिल से आभार व्यक्त करता हूँ !
दरअसल कहते है चोर की दाढ़ी में तिनका , मै आज ही साडी वाले पोस्ट पर हलकी टिप्पणी कर आया था तो आप का पोस्ट पढ़ कर खुद को भी कुसूरवार में शुमार कर रहा हूँ , मैंने इस नज़रिए से नहीं सोचा था वाकई मै शर्मिंदा हूँ और माफ़ी चाहता हूँ !

Unknown said...

@ अविनाश वाचस्पति,

"कब तक तैलीय और गरिष्‍ठ वस्‍तुएं ही खाते रहेंगे कभी तो सादा भोजन भी खाना चाहिए। रोटी सब्‍जी दाल चाहे महंगे ही हों। पर स्‍वास्‍थ्‍य का ध्‍यान रखना भी तो आवश्‍यक है। आपका क्‍या ख्‍याल है?"

क्षमा करेंगे अविनाश जी! मुझे तो आपकी यह टिप्पणी भी विषय से हटकर लग रही है क्योंकि मेरी यह पोस्ट किसी प्रकार के भोजन से सम्बन्धित ही नहीं है। मैं बात कर रहा हूँ पोस्टों और उनकी टिप्पणियों की। किसी गम्भीर विषय वाले पोस्ट में हँसी-मजाक और नोंक-झोंक वाली टिप्पणी, कम से कम मेरे विचार से तो, बिल्कुल ही शोभा नहीं देती। मुझे तो वह वैसे ही लगता है जैसे कि किसी शोक सभा में जोक सुनाना।

M VERMA said...

चिंता जायज है. गम्भीर चिंतन तलाशती पोस्टों पर हल्की टिप्पणियाँ उचित नही है

डॉ टी एस दराल said...

आपकी बात से सहमत हूँ , अवधिया जी।

मुझे भी गंभीर विषय को मज़ाक में उड़ाना अच्छा नहीं लगता।

हंसने के लिए तो बहुत से लेख मिल जायेंगे।

डॉ महेश सिन्हा said...

सच्ची बात

Anonymous said...

http://mypoeticresponse.blogspot.com/2009/03/blog-post_30.html
samay nikal kar yae link avashya daekhae

Unknown said...

अविनाश भाई से पूरी तरह सह्मत गम्भीरता के साथ
क्योकि मै तो वैसे भी एक गम्भीर इडियट हू

अविनाश वाचस्पति said...

@ माननीय जी. के. अवधिया जी

और समस्‍त टिप्‍पणीकार बंधुओं।

पोस्‍टों का भोजन तो टिप्‍पणियां ही हैं। क्‍या इससे भी इंकार किया जा सकता है। अगर यह माना जाये तो यह भी स्‍वीकारा जाये कि भोजन के अंत में मिठाई खाने का दस्‍तूर है। भोजन के साथ में अचार, पापड़ इत्‍यादि खाया जाता है। जिससे दाल, रोटी में स्‍वाद न मिल रहा हो तो स्‍वाद प्राप्‍त हो और पोस्‍टों को टिप्‍पणियां ही स्‍वादिष्‍ट बनाती हैं। टिप्‍पणियों से ही पोस्‍टों की उपयोगिता अनुपयोगिता का भान होता है।
वैसे आजकल देखा गया है कि शोक सभा में जोक सुने सुनाये जाते हैं। आपमें से अधिक को स्‍मरण होगा कि कवि काका हाथरसी ने अपनी अंत्‍येष्टि में किसी के भी रोने की मनाही की थी और सब हंसते हंसाते उन्‍हें जलाने गये थे। काका जी का ऐसा ही आदेश था।
तो तनाव की नाव में न हों मित्रो सवार
गंभीर होते हुए भी हास्‍य से करते रहें प्‍यार

मनोज कुमार said...

आपसे सहमत। आपको आभार।

श्यामल सुमन said...

सहमत हूँ आपकी बातों से।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Unknown said...

@ अविनाश वाचस्पति

आदरणीय अविनाश जी, कहते हैं ना कि "मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना"! सो यहाँ पर भी मेरा आपसे मतभेद है, मैं टिप्पणियों को पोस्टों का भोजन नहीं मानता बल्कि ट्रैफिक याने कि पाठकों को पोस्टों का भोजन मानता हूँ। जीवन में गम्भीरता और हास्य दोनों का ही महत्व है किन्तु मेरे विचार से गम्भीरता में जबरन हास्य में घुसेड़ देना गम्भीरता का अपमान है।

आजकल शोक सभा में जोक सुनाने के सिवाय और भी बहुत कुछ हो रहा है किन्तु जो भी हो रहा है वह कितना उचित हो रहा है यह तो अलग अलग लोगों के विवेक पर निर्भर करता है। भले ही आप आजकल शोक सभा में जोक सुनाने को सही मानते हों किन्तु मेरी तुच्छ बुद्धि इसे किसी भी प्रकार से उचित नहीं मान सकती।

मेरा यह भी मानना है कि ब्लोग का उद्देश्य केवल हँसी मजाक और नोक झोंक करना तथा टिप्पणियाँ प्राप्त करना ही नहीं बल्कि ज्ञान के प्रचार प्रसार भी होता है, गम्भीर मुद्दों के विषय में सार्थक चर्चा करना भी होता है, विभिन्न जानकारी के आदान प्रदान करना भी होता है, इसके अलावा और भी कई प्रकार के कार्य करना होता है। मेरे कहने का तात्पर्य है कि ब्लोग के बहुत सारे उद्देश्य होते हैं।

मैं यह भी समझता हूँ कि किसी की गम्भीर बात को हँसी में उड़ा देना उस व्यक्ति की खिल्ली उड़ाना और उसे नीचा दिखाना है।

अविनाश वाचस्पति said...

माननीय अवधिया जी
खिल्‍ली उड़ाना अभिप्राय कभी रहा ही नहीं मेरा
तनाव की किल्‍ली को गुडबॉय कहना ध्‍येय मेरा।

गंभीरता कहने से नहीं आती और उड़ाने से नहीं जाती। मन में गहरे तक बस जाती है। अंतर्मन में मथ जाती है।
आपको और आपकी या किसी की भी पोस्‍ट, चाहे कैसी भी हो, को अपमानित करने की तो सोच भी नहीं सकता, करना तो बहुत दूर की बात है। गंभीर बात हर हालात में दूर तक जायेगी ही। कोई भी टिप्‍पणी उसकी रूकावट बन नहीं पायेगी।

Unknown said...

अविनाश जी,

पता नहीं क्यों एक भ्रान्ति सी हो रही है कि शायद मैंने यह पोस्ट किसी एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों को ध्यान में रख कर लिखी है जबकि मैं बार बार कह रहा हूँ कि मैंने यह पोस्ट किसी व्यक्तिविशेष को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि सामान्य तौर पर लिखा है क्योंकि अक्सर कई पोस्टों में निरर्थक और पोस्ट की गम्भीरता को ही खत्म कर देने वाली टिप्पणियाँ देखा करता हूँ।

यहाँ पर मेरे किसी पोस्ट में आपकी किसी टिप्पणी की भी बात नहीं है। मैं जानता हूँ कि आप मेरा तो क्या किसी की भी खिल्ली नहीं उड़ा सकते। आप अपने मन में बिल्कुल यह न लावें कि मैं व्यक्तिगत रूप से आपको कुछ कह रहा हूँ। मैंने जो कुछ भी कहा है वह अपने सभी पाठकों से ही कहा है क्योंकि जब तक विचारों का मंथन नहीं होगा, ज्ञानरूपी मक्खन कैसे प्राप्त होगा?