Monday, February 8, 2010

कर गईं मस्त मुझे फागुन की हवा ... व्हीडियों देख कर समझ सकते हैं कि कैसे?

वैसे तो हमारे ब्लोग जगत में तरह-तरह की हवाएँ बहती हैं। जब टिप्पणी हवा बहती है तो सभी टिप्पणीमय हो जाते हैं और कभी कभी विवाद की हवा बहती है तो वह उग्र रूप धारण करके आँधी भी बन जाती है। पर आज ललित जी ने ब्लोगजगत में "फागुनी बयार" बहाई है। अब फागुनी हवा बहे तो मजाल है किसी की कि मदमस्त न हो? सो हम भी मस्ती में आ गये और अनायास ही होठों पर आ गये सन् 1978 में प्रदर्शित वासु चटर्जी की फिल्म दिल्लगी के गीत के ये बोल - "कर गईं मस्त मुझे फागुन की हवा"।



आज की आपाधापी में तो फाग सिर्फ होली के समय सिर्फ एक दो दिन ही गाये जाते हैं किन्तु पहले के दिनों में वसन्त पंचमी के दिन से ही फाग गाने की शुरुवात हो जाती थी जो कि रंग पंचमी तक चलती थी। याद आ गये वो दिन जब हम झांझ, मंजीरों, नगाड़ों आदि के ताल धमाल के साथ फाग गाया करते थे:
आज श्याम संग सब सखियन मिलि ब्रज में होली खेलै ना
हाँ प्यारे ललना ब्रज में होली खेलै ना

इत ते निकसी नवल राधिका उत ते कुँअर कन्हाई ना
हाँ प्यारे ललना उत ते कृष्ण कन्हाई ना
हिल मिल फाग परस्पर खेलैं शोभा बरनि ना जाई ना
आज श्याम संग सब सखियन मिलि ब्रज में होली खेलै ना

बाजत झांझ मृदंग ढोल डफ मंजीरा शहनाई ना
हाँ प्यारे ललना मंजीरा शहनाई ना
उड़त गुलाल लाल भये बादर केसर कीच मचाई नाआज श्याम संग सब सखियन मिलि ब्रज में होली खेलै ना
हमारे यहाँ गाये जाने वाले अधिकतर फाग 'चन्द्रसखी' के द्वारा रचे गये हैं जो कि कृष्ण भक्ति के भाव से ओत प्रोत हैं। एक उदाहरण देखियेः
जाने दे जमुना पानी मोहन जाने दे जमुना पानी
मोऽहन जाने दे जमुना पानी

रोज के रोज भरौं जमुना जल
नित उठ साँझ-बिहानी
मोऽहन जाने दे जमुना पानी

चुनि-चुनि कंकर सैल चलावत
गगरी करत निसानी
मोऽहन जाने दे जमुना पानी

केहि कारन तुम रोकत टोकत
सोई मरम हम जानी
मोऽहन जाने दे जमुना पानी

हम तो मोहन तुम्हरी मोहनिया
नाहक झगरा ठानी
मोऽहन जाने दे जमुना पानी

ले चल मोहन कुंज गलिन में
हम राजा तुम रानी
मोऽहन जाने दे जमुना पानी

चन्द्रसखी भजु बालकृष्ण छवि
हरि के चरन चित लानी
मोऽहन जाने दे जमुना पानी
ऐसे और भी फाग का संग्रह है हमारे पास जिन्हें हम होली तक के अपनी प्रविष्टियों में प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।

9 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत मनमोहिनी रचना....


बधाई....

Arvind Mishra said...

वाह ,क्या कहने मनोरम मनमोहनी रचना

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बढ़िया फागुनी फुहार, अवधिया साहब !

निर्मला कपिला said...

वाह बहुत सुन्दर धन्यवाद और बधाई

Himanshu Pandey said...

मनमोहिनी रचना । आभार ।

संजय बेंगाणी said...

बीते समय की याद हो आई. गाँव में फाग गाए जाते थे....दूर दूर तक सुनाई देते थे....

डॉ टी एस दराल said...

वाह जी , मस्ती आ गई। बधाई।

Unknown said...

maza aa gaya saheb !

Unknown said...

निहाल कर दिया जी.............

शुक्रिया !