Wednesday, February 10, 2010

ब्लोगिंग के गुर सीख लिये हम .. प्रयास एक वर्णिक छंद रचने का

एक विचार आया कि क्या मैं एक वर्णिक छंद की रचना कर सकता हूँ? वह भी ब्लोगिंग के ऊपर? आपको पता ही है कि मैं कोई कवि नहीं हूँ। वैसे लेखक, साहित्यकार या पत्रकार भी नहीं हूँ। फिर भी प्रयोग के रूप में एक वर्णिक छंद रचने के प्रयास में जुट गया। सोचा कि गुरु|लघु|लघु मात्राओं याने कि भगण का प्रयोग करते हुए लिखा जाये। गण तो याद है ना आपको? अरे वही जो स्कूल में पढ़ा था "यमाताराजभानसलगा" वाला। चलिये अब तो याद आ ही गया होगा।

तो बनी ये पंक्तियाँ

ब्लोगिंग के गुर सीख लिये हम पोस्ट लिखो कुछ जो हिट होइ जाये।
पाठक आय न आय वहाँ पर ब्लोगर धावत धावत आये॥
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अब यहाँ आकर अटक गया मैं क्योंकि कवि तो हूँ ही नहीं। इसलिये सोचा कि क्यों न आप सभी की सहायता ली जाये। अब आगे पूरा करने के लिये बाकी पंक्तियाँ आपको सुझाना है। पंक्तियों में भगण का ही प्रयोग करना है याने कि शब्दों का चयन ऐसा हो कि क्रम से गुरु|लघु|लघु मात्राएँ ही आयें।

उदाहरण के लिये रसखान का यह छंद पढ़ लीजियेः

धूरि भरे अति शोभित श्याम जु तैसि बनी सिर सुंदर चोटी।
खेलत खात फिरै अँगना पग पैजनिया कटि पीरि कछौटी॥
वा छवि को रसखान बिलोकत वारत काम कलानिधि कोटी।
काग के भाग बड़े सजनी हरि हाथ से ले गयो माखन रोटी॥

तो बस फिर देर क्या है? शुरू हो जाइये अगली पंक्ति बनाने के लिये।

और हाँ, आपकी इस सहायता के लिये अग्रिम धन्यवाद!

12 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...
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परमजीत सिहँ बाली said...

कविता मनकी तरंग है भाई व्याकरण मे उलझत हो काहे।
जैसे भी चाहो कहो निजि बतिया आनंद आवै ऐसा लो गाये।
सुख दुख मन ये खेल रहौ है शब्दो का भ्रम जाल फैलाये।
परमजीत चलत हौ निजि पथ पथ जिस ओर चहे लेई जाये।

Anil Pusadkar said...

अपने तो बस के बाहर की बात है अवधिया जी।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

दिल हमारा बगिया-बगिया होवत जात है
जब बिना पोस्ट पड़े ही वो टिपियावत जाये !:)

संजय बेंगाणी said...

हमारे बस का नहीं

डॉ टी एस दराल said...

अपने तो सर के ऊपर से उतर गई।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

इस मामले में अपने तो हाथ खडे हैं जी :)

dhurvirodhi said...
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Gyan Darpan said...

अभी कुछ कवि ब्लोगर आते ही होंगे ! हमारे तो ये कविता बनाने वाली बात दिमाग के ऊपर से ही निकल जाती है |

रविकांत पाण्डेय said...
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रविकांत पाण्डेय said...

अवधिया जी क्षमा करें, पहली टिप्पणी में टाइपिंग मिस्टेक था। संशोधित टिप्पणी ये रही-

सात भगण अ और दो गुरू यानि तेइस वर्णों का यह मत्तगयंद नामक सवैया है। आपकी दूसरी पंक्ति तो ठीक है पर पहली में आपने 25 वर्ण ले लिये हैं, कृपया देखें। रही बात पंक्तियों की तो दो मेरी तरफ़ से भी ले लें-


देखत राह थकी अंखियां कितने दिन रोवत नीर बहाये
ब्लाग की नाव सुनो सजनी अब को बिनु पाठक पार लगाये

Unknown said...

बहुत बहुत धन्यवाद रविकांत जी! आपने बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ जोड़ी हैं।

मूलतः मैं कवि नही हूँ और आज तक कभी छंद रचा ही नहीं इसलिये मुझसे गलती होना स्वाभाविक है। इस पोस्ट को लिखने का मेरा उद्देश्य मात्र छंदबद्ध रचना के विषय में स्मरण कराना ही था। मुझे खुशी है कि आपने मेरे इस प्रयास में बहुत अच्छा सहयोग किया।