पूजा-अर्चना के समय आखिर देवी देवताओं को भी एक फूल को पानी में डुबा कर फूल के उस पानी को देवी देवता की प्रतिमा पर छिड़कते हुए "स्नानं ध्यानं समर्पायामि" कहते हुए कौवा स्नान ही तो कराया जाता है। यह बात अलग है कि देवी-देवताओं के इस स्नान को कौवा स्नान न कह कर मन्त्र स्नान कह दिया जाता है। पर आप ही सोचिये क्या नाम बदल देने से काम भी बदल जाता है?
तो हम कह रहे थे कि मनुष्य के लिये भी यह कौवा स्नान ही सर्वोत्तम स्नान है। बस उँगली को पानी में डुबाकर निकालिये और उँगली में लगे पानी को "स्नानं ध्यानं समर्पयामि" कहते हुए अपने शरीर पर छिड़क लीजिये। बस हो गया नहाना।
कौवा स्नान के फायदेः
- शरीर की गर्मी न निकल पाने की व्याकुलता में आप ठंडई और लस्सी जैसे पौष्टिक चीजों का सेवन अधिक करते हैं जिससे आपको पर्याप्त स्वास्थ्य-लाभ होता है।
- शरीर पर मैल की परत जम जाने के कारण आप अधिक मोटे-ताजे याने कि हृष्ट-पुष्ट नजर आते हैं।
- इत्र-सेंट आदि का अधिक से अधिक इस्तेमाल करने लगते हैं (भाई आखिर शरीर के दुर्गन्ध को तो किसी न किसी प्रकार से छिपाना भी तो जरूरी है ना!) और नवाब की संज्ञा पाते हैं।
- मन्दिर आदि पवित्र किन्तु गैरजरूरी स्थानों में जाने की जहमत से बचे रहते हैं।
"यार, मैंने सुना है कि कई लोग महीनों तक बिना नहाये रह जाते हैं।"
"पता नहीं यार लोग कैसे महीनों तक बिना नहाये रह जाते हैं, यहाँ तो अठारह-बीस दिनों में ही खुजली छूटने लग जाती है।"
11 comments:
इस पवित्र स्नान के बारे में जानकारी नहीं थी, आपने जो फायदे किनाए है कि अब अपनाए बिना कैसे रहें? :)
किनाए=गिनाएं
बचपन की याद दिला दी जब हम गुसलखाने से जल्दी निकल आते तो दादी की आवाज़ आती थी "मरी काग स्नान करती है ठीक से नहाया कर ", फिर एक दिन गंगा किनारे काग स्नान देखने का सुभाग्य भी प्राप्त हुआ.
अच्छी पोस्ट मज़ा आया
ठीक कहा अवधिया जी,
कौवा स्नान करेंगे तो उसके जैसे ही ब्लैक ब्यूटी हो जाएंगे...
फिर शान में संगिनियां गाएंगी...काला शा, काला शा ए मेरा सरदार, गोरेयां नू दफ़ा करो...
जय हिंद...
जिस प्रकार दानों में अन्नदान को महादान कहा गया है ठीक उसी प्रकार से स्नानों में कौआ स्नान भी महास्नान की श्रेणी में आता है :-)
अपन तो होली टू होली का सिद्धांत मानने वालो मे से है वो भी मजबूरी मे
इसे कौन सा स्नान कहेंगे !!
बहुत अच्छी और जानकारीपूर्ण पोस्ट...
स्नानों में स्नान कौवा स्नान
कितना पानी बचेगा पर्यावरण पुरस्कार मिलना चाहिए
एक रोचक कहानी है स्नान के बारे में - पहले लोग रोज नहीं नहाते थे . एक बार अकाल पड़ा तो लोग शिवजी के पास पहुँचे . शिवजी ने आदेश दिया आज से रोज नहाओ और एक बार खाना खाओ .
खाना तो लोग बाद में एक से ज्यादा बार खाने लगे लेकिन नहाना नित्य नियम में शामिल हो गया
अरे अवधिया जी आप ने तो हमारी पोल पट्टी ही खोल दी, वेसे हम तो पानी का फ़ोवारा खोल कर आराम से बेठ जाते है एक तरफ़, फ़िर गीला तोलिया ले कर बाहर आ जाते है, किसी को शक भी नही होता की स्नान घर मै क्या हुआ, दो चार साल मे बारिस मै भीग गये तो स्नान भी हो ही जाता है
स्नान! वह क्या होता है : ) ।
क्या बात हैं, एक बार पुनः आपकी प्रसंशा करने का मन कर रहा हैं, इसी कड़ी में मैंने आपकी इस विशिष्ट प्रकार के स्नान को आप के नाम के साथ उन तक मेल के द्वारा पहुंचा दिया हैं जो ऐसा स्नान करने के आदी हो चुकेहैं.
:) :)
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