जितने भी पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों ने हमारी रचनाओं को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया था उन्हें हम बता देना चाहते हैं कि हमें भी अब उनकी कोई परवाह नहीं है। अब हम उन्हें अपनी कोई भी रचना छापने के लिये नहीं भेजने वाले। बड़े आये थे कहने वाले कि हमारी रचनाएँ कूड़ा-कर्कट हैं, उनका कोई स्तर नहीं है। अब धरे रहो अपनी पत्र-पत्रिकाओं को। नहीं छपना अब हमें तुम्हारी पत्र-पत्रिकाओं में। अब हम हिन्दी ब्लोगर बन गये हैं। किसी में दम है तो रोक ले हमें अपने ब्लोग में छपने से।
क्या कहा? तुम्हारे ब्लोग को पढ़ेगा कौन? अरे तुम लोगों ने क्या सिर्फ हमारी रचनाओं को ही रद्दी की टोकरी में फेंका है? तुमने तो हमारे कई मित्रों की रचनाओं का भी तो यही हाल किया है। तो तुम्हें जान लेना चाहिये कि वे सब भी ब्लोगर बन गये हैं। अब हम सब एक-दूसरे के ब्लोग को पढ़ते हैं और टिपियाते भी हैं। हम तो अभी और भी बहुत से लोगों को ब्लोगर बनाने में जुटे हुए हैं, वो सब भी पढ़ेंगे हमारी रचनाओं को।
येल्लो! अब कहने लग गये कि हमारी पत्र-पत्रिकाओं को तो आम लोग पढ़ते हैं तुम्हारे ब्लोग को नहीं। तो जान लो कि तुम ऐसा कह कर हमें जरा भी हतोत्साहित नहीं कर सकते। भाड़ में जायें आम लोग, न तो वे पहले हमें पढ़ते थे और न अब पढ़ते हैं। दरअसल उनके पास इतनी अकल ही कहाँ है कि हम जो लिख रहे हैं उसे समझ पायें। हमारे लिखे को तो सिर्फ हमारे ब्लोगर मित्र ही समझ सकते हैं और वे ही हमें पढ़ने के काबिल हैं। आखिर हम सब हिन्दी ब्लोगर हैं भाई!
35 comments:
ब्लागर-ब्लागार भाई-भाई।
ब्लाग जगत की जय हो
happy blogging
अवधिया जी, ये भी पूछिए उनसे कि क्या तुम्हारा अखबार और तुम्हारी पत्रिकाएं पूरे देश में पहुंचती हैं. मेरा ब्लॉग तो देश में क्या विदेशों में भी पहुंचता है. और पूरी दुनिया के लोग इसे पढ़ते हैं.
आप ब्लॉग लिखते रहिये , एक दिन पत्र पत्रिकाओं वाले हारकर खुद ही छापना शुरू कर देंगे ।
बिल्कुल सुहीं कहा गुरूदेव आपने, अब तो इस ब्लागिंग के सहारे पत्र-पत्रिका वाले अपना फीचर आदि बनाते हैं और बिना अनुमति पोस्टों को छाप भी देते हैं. अब उनकी मोनोपली नहीं चलने वाली.
जय हो ब्लॉगिंग.
अवधिया जी, ये भी पूछिए उनसे कि क्या तुम्हारा अखबार और तुम्हारी पत्रिकाएं पूरे देश में पहुंचती हैं. मेरा ब्लॉग तो देश में क्या विदेशों में भी पहुंचता है. और पूरी दुनिया के लोग इसे पढ़ते हैं
बिल्कुल ठीक लिखा है. पत्र पत्रिकाओं के सम्पादक डरकर अब ओछी हरकतों पर उतर आये हैं.
nice..........................
अवधिया जी,
एक बार और रचना भेज कर देखते हैं। यदि पूछेगा कि अस्वीकृत होने के बाद फिर क्यूं भेजी तो कहेंगे कि सोचा था इतने दिनों बाद शायद तुम्हारी बुद्धि परिष्कृत हो चुकी होगी। :)
हिन्दी ब्लागिंग ज़िंदाबाद !!!!
जय हो ।हिन्दी ब्लागिंग ,,,,,,,
पत्रिकाओं और ब्ळोग के बीच प्रतिद्वन्दिता जैसी कोई बात तो है नहीं न ही कोई तुलना है । दोनो का अपनी अपनी जगह महत्व है ।
ha ha ha ...
mast... comment....
theek hai bhagwan.....ekdum theek
जब भी किसी ब्लांगर की कोई रचना पत्र पत्रिका मै छपती है तो सब उसे बधाई देते है, ओर वो ब्लांगर भी बहुत खुश होता है, अरे खुश बाद मै होना पहले उस समाचार प्त्र ओर पत्रिका से यह तो पूछो भाई यह रचना क्या तुम्हारे बाप की थी जो मुझे बताये बगेर छाप दी? अभी हम खुद ढील दे रहे है बाद मै हम सब पछतायेगे
हम ब्लॉगर तो ठीक हैं भई, टिपियाते भी हैं,लिकिन नहीं छापने का भड़ास दुसरे ब्लॉगर पर ओछे कमेन्ट से क्यों निकालते हैं?
अभी एक आम पाठक की बुद्धि इतनी परिष्कृ्त नहीं हो पाई है कि हिन्दी ब्लागर के लिखे को समझ सके । इसे तो सिर्फ एक ब्लागर ही समझ सकता है :-)
आपने बहुत ही शानदार लिखा है। संपादकों को अक्ल दे मौला। वे कम से कम यह तो समझे ही कि सारे लोग कूड़ा नहीं लिखते हैं। गधे के बच्चे केवल सुझाव देने का काम ही करते हैं और महिलाओं को ही लेखिका मानते हैं। बधाई आपको।
nice . I like it .
जय हो हिन्दी ब्लॉगर की.
जिस तरह बजते हैं बरतन
उसी तरह बजते हैं ब्लॉगर
आखिर बजने से आती आवाज
आवाज ही तो है आज संवाद।
wah kya baat kahi hai..Jai hindi bloging.
बहुत ही शानदार...
blog se sabhar lene ki pratha shuru ho chuki hai. yani aap VIJAYPATH par hain.
ब्लॉगिंग क्या पढ़े-लिखे पशुओं का समूह हो गया है?
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_07.html
खूब खरी खरी
पानी पी पी कर
:)
बिल्कुल सही कहा।
अच्छा जवाब दिया आपने,हम लोग प्रिंट मिडिया से नहीं न्यू मीडिया के हैं,बहुत खूब
विकास पाण्डेय
www.विचारो का दर्पण.blogspot.com
हम सब हिन्दी ब्लोगर हैं भाई!
और कुछ बचा ही नहीं कहने के लिए :-)
Waah! :) ..blogger ko blogger hi samjh skata hai.
sahi hai..
bilkul sach kaha....
व्यंग्य भी कितने गंभीर होते हैं ना
प्रणाम स्वीकार करें
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