माना कि हिन्दी ब्लोगिंग अभी भी अपने शैशव काल में हैं लेकिन यह भी सही है कि इसे शुरू हुए एक अच्छा खासा-समय भी बीत चुका है और इस अन्तराल में हजारों की संख्या में हिन्दी पोस्ट आ चुके हैं। पर इन पोस्टों में कितने पोस्ट ऐसे हैं जिनमें हिन्दी ब्लोगिंग से अनजान लोग, नेट में कुछ खोजते-खोजते, आते हैं? क्या कोई पोस्ट कालजयी बन पाया है?
ऐसा लगता है कि जिस प्रकार से लोकतन्त्र "जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन है", उसी प्रकार से हिन्दी ब्लोगिंग "ब्लोगरों द्वारा, ब्लोगरों के लिए, ब्लोगरों की ब्लोगिंग है"। जैसे लोकतन्त्र में कोई राष्ट्र के हित के लिये नहीं सोचता वैसे ही हिन्दी ब्लोगिंग में कोई हिन्दी के हित के लिये नहीं सोचता। लोकतन्त्र नेतागिरी कर के पैसे पीटने के लिये है और हिन्दी ब्लोगिंग अधिक से अधिक संख्या मे टिप्पणी बटोरकर आत्म-तुष्टि के लिये है।
हमारे पोस्ट की अधिकतम उम्र उतनी ही होती है जब तक वह लोकप्रिय संकलकों में दिखाई देता है याने कि मात्र चौबीस घंटे की!
जरा हृदय पर हाथ रख कर सोचें कि हम क्या दे रहे हैं हिन्दीभाषी लोगों को? क्या स्तर है हमारे लेखन का? क्या हमारे लेखन से हिन्दी "सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय" वाली भाषा बन कर नेट में एकछत्र राज्य करने लायक बन पायेगी?
मैं उपरोक्त बातों को कई बार कह चुका हूँ (और भविष्य में भी कहता ही रहूँगा), कभी व्यंगात्मक लहजे में तो कभी रो-धो कर। मैं जानता हूँ कि मेरे इन पोस्ट को पढ़कर प्रायः लोग यह सोचते हैं कि यह तो दूसरों को नीचा दिखाने के लिये और स्वयं को हिन्दी का बहुत बड़ा हितचिन्तक बताने के लिये ऐसा लिखता रहता है। किन्तु मैं बार-बार इस मुद्दे को सिर्फ इसलिये उछालते रहता हूँ कि कोई तो मेरे व्यंग से तिलमिला कर या मेरे रुदन पर तरस खाकर यह सोचने लगे कि बुढ्ढे की बात कुछ तो सही है और ऐसा सोचकर ही आत्म-तुष्टि की भावना को त्याग कर हिन्दी के हित के लिए कुछ करने की ठान ले।
मेरे विषय में यदि कोई गलत राय बना भी लेता है तो क्या फर्क पड़ना है मुझे उससे?
पर मुझे पढ़ कर यदि कोई हिन्दी के हित के लिये जूझने के लिये तत्पर हो जाता है तो मुझे अवश्य ही बहुत फर्क पड़ेगा, सफलता प्राप्त करके भला किसे फर्क नहीं पड़ता?
18 comments:
अवधिया जी बिल्कुल सही कह रहे हैं आप और आपकी चिंता भी जायज है,मगर ब्लागिंग के नाम पर चाहे ब्लागरों के लिये ही क्यों न हो,आत्मसंतुष्टी के लिये ही क्यों न हो कुछ तो लिखा जा रहा है।ये शुरूआत है हो सकता है धीरे-धीरे सुधार आ जाये।उम्मीद तो कर ही सकते हैं।
जय हो गुरुदेव
आपके हुक्म की तामिल होगी।
धन्यवाद
आपकी चिन्त्ता और बात दोनों ही जायज़ है ..कम से कम ये प्रयास तो किया ही जा सकता है कि टाइपिंग में गल्ती ना हो...
सर, आपने बिलकुल ठीक कहा. आपकी चिंता जायज है. हिंदी का भला नहीं हो रहा है. आपने एक अच्छा विषय उठाया. इसके लिए आपको साधुवाद और बधाई.
इस विषय पर बार-बार ध्यान आकृष्ट कराने के लिये साधुवाद। किन्तु इससे अच्छा होता कि आप सरल रूप में बताते कि ब्लागरों को क्या-क्या और करना चाहिये जिससे हिन्दी का मार्ग निष्कंटक होता रहे।
अनुनाद सिंह जी,
मेरी बात पर आपने ध्यान दिया इसके लिये धन्यवाद! हमारे ब्लोगर इतने भोले भी नहीं हैं कि उन्हें उँगली पकड़ कर चलाया जाये। कम से कम इतनी समझ तो सभी में है कि विषय आधारित लेखन करने से और जानकारीपूर्ण सामग्री देने से न केवल हिन्दी बल्कि सभी का भला होगा। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी कुछ विशेष रुचियाँ होती हैं और उनसे सम्बन्धित विषय या विषयों में उसे विशिष्टता प्राप्त हो जाती है। कितना अच्छा हो यदि लोग अपनी विशिष्ट जानकारी को अपनी पोस्ट की सामग्री बनायें। जैसे फोटोग्रॉफी में विशेष जानकारी रखने वाला उसी विषय में लिखे, ग्राफिक्स में महारथ रखने वाला ग्राफिक्स की जानकारी दे।
मेरा यह भी आशय है नहीं है कि लोग अपने साहित्य सृजन को व्यक्त ही न करें, अपनी कृतियों को भी प्रदर्शित करना आवश्यक है किन्तु विशिष्ट जानकारी देने के लिये विषय आधारित अलग ब्लोग बनाये जा सकते हैं।
सराहनीय पोस्ट, शुभकामनाएं.
रामराम.
अपन काम (यानी सेक्स नहीं. कार्य सम्बन्धी) की चीज खोजते रशीयन ब्लॉग तक चले जाते है. तात्पर्य यह है कि काम आने वाला लिखो, हिन्दीतर लोग आएंगे.
हमें आपकी असंतुष्टि समझ नहीं आ रही है। हम साहित्य क्षेत्र के लिए लिखते हैं तो विभिन्न विधाओं का लेखन करते हैं और कोशिश यह रहती है कि वो सार्थक हो। अशुद्धियों पर भी हमारी पैनी दृष्टि रहती है। जब लोग विधा विशेष में नहीं लिखते हैं तो उसको भी आगाह करते हैं। और आप बताएं कि क्या करें?
डॉ. श्रीमती अजित गुप्ता जी,
आप मेरी बात को व्यक्तिगत तौर पर न लें। यदि आप अंग्रेजी ब्लोगिंग और हिन्दी ब्लोगिंग के स्तर की तुलना करके देखेंगी तो स्वयं ही मेरी असंतुष्टि का कारण समझ लेंगी। अधिक नहीं सिर्फ अंग्रेजी विकीपेडिया के किसी एक लेख को पढ़ लें और हिन्दी विकीपेडिया के किसी एक लेख को, अन्तर स्पष्ट दिख जायेगा। अच्छा स्तर बनाने के लिये शोध और परिश्रम करना पड़ता है जो कि कोई करना ही नहीं चाहता।
आलेख के माध्यम से सोच और चिंता जायज है लेकिन यह क्या अवधिया जी ....
"मेरे विषय में यदि कोई गलत राय बना भी लेता है तो क्या फर्क पड़ना है मुझे उससे?"
कई लोग लोग सही मायनों में हम सब को कुछ न कुछ ज्ञान दे रहे हैं लेकिन ज्यादा लोग अपना और हम सब का समय ही जाया कर रहे है.उम्मीद पर दुनिया कायम है.
अच्छा चेताया आपनें.धन्यवाद.
मैं भी आपके साथ चिंतित हो गया.
मै अवधिया जी के कमेन्ट से एकदम सहमत हूँ ! अध्ययन बहुत ज़रूरी है ... जब कच्चा माल ही न होगा तो प्रोडक्शन क्या ख़ाक होगा ...
एक सूक्ति जो मुझे अक्सर याद आ जाता है
"महत्व पूर्ण ये नहीं कि हमें विरासत में क्या मिला"
"महत्वपूर्ण या है कि हम विरासत में क्या दे रहे हैं"
अवधिया जी मेरी नजर मै हिंदी का स्तर आज बहुत अच्छा है , आप अग्रेजी को मारो गोली, हम हमेशा तुलना ही क्यो करे?
अवधिया जी,
मैं कभी भी व्यक्तिगत नहीं लेती हूँ लेकिन यह बताएं कि विकिपीडिया के लेखक कौन हैं? क्या ब्लागर ही विकिपीडिया लिख रहे हैं? आप तो यह स्पष्ट करें कि हमें कैसा और किस विषय पर लिखना चाहिए। एक बात और साहित्य और भाषा दोनों में बहुत अन्तर है। जो लोग भाषा वैज्ञानिक हैं वे हिन्दी के लिए कार्य कर रहे हैं। साहित्यकार तो केवल लिखता है। यहाँ ब्लागिंग में ना तो पूर्णतया भाषा वैज्ञानिक हैं और ना ही साहित्यकार। यहाँ तो हर आम आदमी भी है। विषय विशेष के लिए लिखने वाले ब्लागर नहीं होते। अंग्रेजी और हिन्दी की तुलना से हम कुछ हासिल नहीं कर सकते। इस विषय पर अलग से बहस की जा सकती है। आप तो केवल एक बिन्दु हमें बताए फिर उस पर सार्थक बहस हो।
चलिये एक पाडकास्ट किये लेते हैं इस मुद्दे पर
अवधिय जी, आपकी चिन्ता वाजिब है...इस विषय में हम भी कुछ आप जैसे ही विचार रखते हैं!
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