हिन्दी ब्लोगिंग शुरू करना आसान है किन्तु इसमें बने रहना बहुत बड़े दिल गुर्दे का काम है। बहुत सी चोटें, मिलती हैं बेगानों से भी और अपनों से भी। चोटें भी ऐसी कि असहनीय। इन चोटों को सहन करना सभी के वश की बात नहीं होती। लोग टूट जाते हैं।
यह हिन्दी ब्लोग जगत है ही ऐसा कि लोग अपने स्वार्थवश दो अभिन्न लोगों को भिन्न करने का प्रयास करने लगते हैं और सुप्रयास सफल हो या न हो किन्तु कुप्रयास तो सफल ही होता है।
किन्तु कुप्रयास को विफल कर सुप्रयास को ही सफल बनाना क्या हम सबका कर्तव्य नहीं है?
20 comments:
हौंसला अफजाई के लिए शुक्रिया!
जो लोग जरा सी बात पर डर जाए वो जीवन में क्या संघर्ष करेगे? मेरी पोस्ट को अवश्य पढ़े, मैंने इसी बारे में लिखा है।
हाथी चले बाजार... वाली उक्ति ऐसे ही नहीं बनी।
आखिर किसी की परवाह क्यों करें...
अवधिया जी, मैं आपसे सहमत हूँ लेकिन सभी को यह सोचना चाहिए कि वे किसके लिए लिखते हैं... अपनी मित्र-मंडली के लिए या खुद के लिए या व्यापक हित में.
यह तो सब जानते ही हैं कि हर क्षेत्र के ब्लौगर अपने क्षेत्रीय ब्लौगर भाइयों को जाने-अनजाने बढ़ावा देते रहते हैं जबकि सिर्फ अच्छे लेखन की ही कद्र की जानी चाहिए.
नेक कार्यों में सदा अवरोध आते हैं, इनसे दिग्भ्रमित नहीं होना चाहिए।
अच्छे लेख की कद्र की जानी चाहिये।
यह सभी का मत है। पर कौन सा लेख
किस वजह से गलत है यह कोई नही स्पष्ट करता वह इसलिये कि परिणाम कुछ वर्तमान मे घटित घटना की तरह होता है। अवधियाजी का प्रश्न एकदम सही है?
अवधिया जी,
मैं जानता हूं आपसे बड़े दिल गुर्दे वाला इस ब्लॉगवुड में कोई नहीं...ये बात मैं पूरी गंभीरता से कह रहा हूं...लेकिन आपके होते हुए आपकी नाक के नीचे कुछ ब्लॉगर भाइयों में गलतफहमी कैसे हो गई...कृपया आप भी इस गलतफहमी को दूर करने के लिए धूप में पकाए अपने बालों का इस्तेमाल कीजिए...
जय हिंद...
जब भी मन विचलित हो, खुद से पूछे, ब्लॉग किसके लिए लिखते हो?
अपने खुद के लिए?
फिर क्या फर्क पड़ता है, कोई पढ़े न पढ़े, टिप्पणी दे न दे. कोई कुछ भी सोचे मेरी बला से.
हम तो यही सोच कर लिख रहे है. पाँच साल हो गए.
इसका एकमात्र हल है रचनात्मक लेखन और उस पर खुलकर चर्चा .. अन्यथा ऐसी स्थितियाँ आती ही रहेंगी ।
इसमें बने रहना बहुत बड़े दिल गुर्दे का काम है।
सत्य वचन ...!!
Sharad bhaia ne sahi kaha.. aisi ghatnaon ke liye yahi kahoonga ki- 'log toot jate hain ek ghar banane me, tum taras nahin khate bastiyaan jalane me..'
बिना विचलित हुए अपना काम करते चलें.
ऐसी हर बात, प्रयास, चेष्टा को नजर अंदाज करें जो विद्वेषपूर्ण हो या जो आपको विचलित करती हो.
सामान्य दिल और गुर्दे वाले ही टिक सकते हैं , लम्बे समय तक ।
बड़े होने पर ही प्रोब्लम आती है।
वैसे प्रोब्लम क्या है , ये तो पता ही नहीं चला।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 11.04.10 की चर्चा मंच (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
पता नहीं लोग कैसे हर बात को दिल से लगा बैठते हैं....मेरे विचार से ऎसी स्थिति से उन्ही लोगों को गुजरना पडता है, जो इस आभासी संसार में भी संबंधों की खोज करने लगते हैं......
जी हा जो डर गया सो मर गया...मेरी पोस्ट भी इसी पर है..
दिल और गुदा दोनो बड़ा होना चाहिए।
वही टिक सकता है। लाख टके की बात
भीम पुत्र घटोत्कच
गुदा=====गूर्दा पढें।
इसमें बने रहना बहुत बड़े दिल गुर्दे का काम है।
सत्य वचन ...!!
sahi he
bahut khub
http://kavyawani.blogspot.com/
shekhar kumawat
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