Friday, April 16, 2010

दीवारों में दरारें या दरारों के कारण दीवारें

यदि कोई दीवार है तो कभी ना कभी उसमें दरार भी पड़ेगी ही। किन्तु कई बार सोचता हूँ कि आखिर ये दीवारें बनती क्यों हैं? मुझे तो यही लगता है कि भाई-भाई, मित्र-मित्र, आदि अपनों के बीच जब दरार पैदा हो जाती है अर्थात् प्रेमभाव का अभाव हो जाता है तो ये दीवारें खड़ी हो जाती हैं। अब दरारों के कारण उत्पन्न दीवारों में अन्त-पन्त दरारें नहीं पड़ेंगी तो और क्या होगा?

5 comments:

संजय भास्‍कर said...

दीवारों में अन्त-पन्त दरारें नहीं पड़ेंगी तो और क्या होगा?
sach kaha hai

संजय बेंगाणी said...

क्या बात कह दी जी!!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बढ़िया बात कह दी है..सोचने लायक..

M VERMA said...

दरारें दीवार बनवाती है और दीवारें तो दरार की आदी हैं ही

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

सही बात्! आपसी प्रेम और विश्वास का अभाव ही दरारे पैदा करता है.......