यदि कोई दीवार है तो कभी ना कभी उसमें दरार भी पड़ेगी ही। किन्तु कई बार सोचता हूँ कि आखिर ये दीवारें बनती क्यों हैं? मुझे तो यही लगता है कि भाई-भाई, मित्र-मित्र, आदि अपनों के बीच जब दरार पैदा हो जाती है अर्थात् प्रेमभाव का अभाव हो जाता है तो ये दीवारें खड़ी हो जाती हैं। अब दरारों के कारण उत्पन्न दीवारों में अन्त-पन्त दरारें नहीं पड़ेंगी तो और क्या होगा?
5 comments:
दीवारों में अन्त-पन्त दरारें नहीं पड़ेंगी तो और क्या होगा?
sach kaha hai
क्या बात कह दी जी!!!
बढ़िया बात कह दी है..सोचने लायक..
दरारें दीवार बनवाती है और दीवारें तो दरार की आदी हैं ही
सही बात्! आपसी प्रेम और विश्वास का अभाव ही दरारे पैदा करता है.......
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