Monday, April 26, 2010

हिन्दी और हिन्दी ब्लोगिंग ... इक समुन्दर ने आवाज दी मुझको पानी पिला दीजिये

हिन्दी भाषा भी तो एक समुन्दर ही है; एक ऐसा महासागर जिसने अपनी गहराइयों में अनेक रत्नों को छिपा कर रखा हुआ है। इन रत्नों की प्राप्ति के लिये हिन्दी ब्लोगिंग इसके मंथन का कार्य कर रहा है।

पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि समुद्र मंथन से निकलने वाली वस्तुएँ रत्न होती हैं। जब देवताओं और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था तो चौदह रत्न प्राप्त हुए थे जिनके नाम हैं – (1) हलाहल (विष), (2) कामधेनु, (3) उच्चैःश्रवा घोड़ा, (4) ऐरावत हाथी, (5) कौस्तुभ मणि, (6) कल्पवृक्ष (कल्पद्रुम), (7) रम्भा, (8) लक्ष्मी, (9) वारुणी (मदिरा), (10) चन्द्रमा, (11) पारिजात वृक्ष, (12) शंख, (13) धन्वन्तरि वैद्य और (14) अमृत।

इससे स्पष्ट होता है कि जब भी किसी समुद्र का मंथन होता है तो सबसे पहले हलाहल अर्थात् विष ही निकलता है। आज हिन्दी ब्लोगिंग की स्थिति देख कर मुझे लगता है कि हिन्दी रूपी सागर के मंथन से पहला रत्न निकल चुका है। इस प्रथम रत्न, हलाहल अर्थात् विष, के कारण एक अस्थाई व्याकुलता व्याप्त हो गई है और हिन्दी रूपी समुद्र पानी पीने के लिये तरस रहा है, किसी शायर ने सही कहा हैः

"इक समुन्दर ने आवाज दी मुझको पानी पिला दीजिये"

किन्तु यह स्थिति अस्थाई ही है, शीघ्र ही ज्ञान, विद्या, जागृति, आलोक रूपी रत्न भी निकलेंगे और अन्त में अमृत की भी प्राप्ति होगी।

16 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत अच्छी ...सधी हुई और सार्थक पोस्ट....

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

इन रत्नों की प्राप्ति के लिये हिन्दी ब्लोगिंग इसके मंथन का कार्य कर रहा है।

बहुत ही बढिया चिंतन गुरुदेव
इतने अच्छे विचार प्रतिदिन कैसे उमड़ते घुमड़ते है?
मै तो चकित हुँ

शुभकामनाएं

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

उम्मीद रखनी ही चाहिये.

Birendra said...

अवधिया जी को प्रणाम. हिंदी ब्लागिंग के बारे में आपके विचार और चिंता हमेशा हिंदी ब्लागिंग को मार्गदर्शन देते हैं. कितने ब्लॉगर हैं जो हिंदी ब्लागिंग को लेकर इतने चिंतित रहते हैं? आपके अपने लेखों से इसी प्रकार भविष्य में भी मार्गदर्शन करते रहिये. आपको साधुवाद और बधाई.

अनुनाद सिंह said...

बहुत सही दृष्टांत दिया है आपने। अन्त में अमृत अवश्य मिलेगा!

नरेश सोनी said...

अमृत निकलने का इंतजार रहेगा।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

मुझे तो लगता है कि क्रम संख्या ४ तक का सफ़र पूरा हो गया, मगर क्रम संख्या ५ का निकलना ही संदेहास्पद है !

Unknown said...

बहुत सुन्दर सन्देश............

- अलबेला खत्री

अजय कुमार झा said...

मैं तो कहता हूं अवधिया जी कि कुछ निकले या न निकले मंथन होना चाहिए , चाहे वो दैत्य और देवताओं के बीच हो या फ़िर इंसान और आदमी के बीच ॥

शिवम् मिश्रा said...

मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार ! आज के परिवेश में हम सब को ही इस की बहुत जरूरत है !

Udan Tashtari said...

अमृत के इन्तजार में ही मथे जा रहे हैं. बढ़िया पोस्ट!

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

शीघ्र ही ज्ञान, विद्या, जागृति, आलोक रूपी रत्न भी निकलेंगे और अन्त में अमृत की भी प्राप्ति होगी।

काश ऎसा ही हो! हम भी इसी आस में उम्मीद का दामन थामे बैठे हैं.....

RAJ SINH said...

चलिए बाकीयों का भी इंतज़ार है . अवधिया होने के बावजूद अवध नहीं आये वर्ना न जाने कितने ऐरावत दिख जाते :) .

अजित गुप्ता का कोना said...

nice

Anonymous said...

आदरणीय अवधिया जी बहुत दिनों बाद आपकी यह पोस्ट पढ़ रहा हूँ - मेरी जानकारी के अनुसार चौदह रत्नों में एक "धनुष" भी था. "धनुष" था या नहीं मैं जानना चाहूँगा - धन्यवाद्

Unknown said...

@ राकेश कौशिक

प्रिय राकेश जी,

मेरे पोस्ट में रुचि लेने के लिए आपका धन्यवाद!

सुखसागर तथा अन्य पौराणिक ग्रंथों में तो समुद्र मन्थन से प्राप्त चौदह रत्नों में "धनुष" के होने का वर्णन नहीं मिलता। इस पोस्ट में मैंने जो चौदह रत्नों के नाम दिए हैं वे सुखसागर अर्थात् भागवत्पुराण से लिए गए हैं।