अब नापसन्द है तो नापसन्द है। कोई हमें नापसन्द का चटका लगाने से रोक सकता है क्या? हम तो लगायेंगे जी नापसन्द का चटका।
कल के हमारे पोस्ट "ट्रिक्स टिप्पणियाँ बढ़ाने के" में अदा बहन ने अपनी टिप्पणी में यह लिखते हुए कि "आज कल एक नया ट्रेंड चला है पोस्ट को नीचे लाने का...बिना बात के लोग नापसंद का चटका जो लगा रहे हैं" हमसे नापसन्द के बारे में लिखने के लिये अनुरोध किया था। हमें भी लगा कि इस पर कुछ लिखा जाये। और कुछ हो या न हो कुछ नापसन्द के चटके ही मिल जायेंगे हमें।
बिना बात के कोई बात नहीं होती। प्रत्येक कार्य के लिये कुछ ना कुछ कारण होना जरूरी होता है। नापसन्द करने के लिये भी कारण होते हैं। नापसन्द का चटका लगाने के पीछे पोस्ट का नापसन्द होना कारण नहीं होता बल्कि पोस्ट लिखने वाले का नापसन्द होना होता है। पोस्ट लिखने वाले को नापसन्द करने के भी अनेक कारण होते हैं मसलनः
- हम इतना अच्छा लिखते हैं पर ब्लोगवाणी के हॉटलिस्ट में कभी आ ही नहीं पाता। और इस स्साले को देखो रोज ही इसका पोस्ट चढ़ जाता है हॉटलिस्ट में। नापसन्द का चटका लगा कर खींच दो इसकी टाँगे।
- अरे इस स्साले ने तो बड़ी छीछालेदर की थी हमारी, आज देखते हैं इसका पोस्ट कैसे ऊपर चढ़ पाता है?
- ये तो फलाँ क्षेत्र का ब्लोगर है जहाँ से बहुत सारे ब्लोगर हिट हो रहे हैं, क्यों ना इसके पोस्ट को नापसन्द का चटका लगाया जाये?
- ये आदमी तो हमें फूटी आँखों नहीं सुहाता।
- अरे इसने तो उसके बारे में पोस्ट लिखा है जो हमें फूटी आँखों नहीं सुहाता। लगा दो स्साले को नापसन्द का चटका।
- ये तो विधर्मी है और हमारे धर्म के विरुद्ध लिखता है।
दोस्तों, नापसन्द बटन बनाने का उद्देश्य पोस्ट के विषयवस्तु के लिये था किन्तु इसका प्रयोग पोस्ट लिखने वाले के लिये हो रहा है। कई बार आपने ब्लोगवाणी में ऐसे पोस्ट भी देखे होंगे जिसका व्ह्यू 0 होता है किन्तु पसन्द दिखाता है -1, याने कि पोस्ट को बिना पढ़े और उसकी विषयवस्तु को बिना जाने ही नापसन्द का चटका लगा दिया जाता है।
धन्य है ऐसे लोग! ऐसे ही लोगों के लिये गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा हैः
पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं। जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं॥
29 comments:
अवधिया जी, कल ही मैंने एक पोस्ट पर टिपण्णी करते वक्त लिखा था कि कुछ लेखकगण ऐसे भी है जिनकी पोस्ट जब तक ब्लोग्वानी पर आती है उससे पहले ही उस लेख को एक या दो लोग पसंद कर लेते है (यानि जैसा आपने कहाँ लेख पढ़ने वाले शुन्य और पसंद करने वाले १-२ लोग). बहुत मुमकिन है ये उन लेखकगण की खुद की ही करामात हो कि पोस्ट लिख कर अलग अलग आईडी के जरिये अपनी पोस्ट को स्वयं ही पसंद कर ले.
भावेश जी की बात से सहमति
अब अपनी ही पोस्ट को कोई व्यू क्यों करेगा
आपने बिल्कुल सही कारण बतायें हैं जी नापसन्दगी के
प्रणाम
जय हो गुरुदेव
रफ़ीकों से रकीब अच्छे हैं,जो जलके नाम लेते हैं।
गुलों से खार बेहतर हैं,जो दामन थाम लेते हैं ॥
हमारी पोस्ट का शुभारंभ ही नापसंद से होता है।
हम तो चाहते हैं कि इतनी नापसंद हो कि नापसंदी
का रिकार्ड बने, लेकिन यह भी तो नहीं बनने देते।
अमरीश पुरी का एक डायलाग याद आ रहा है--
"हमारे इतनी ताकत तो जुटा लोगे पर कमीनापन
कहां से लाओगे"--अस्तु
क्षमा करे अवधिया साहब, आपके ब्लॉग पर एक (1)पसंद का चटका था मैंने परखने के लिए नापसंद पर चटका लगाया :) तो वो जीरो (0)दिखाने लग गया , कुछ समझ में नहीं आया ? :) :)
ab hataa diyaa maine to (5) dikhane lagaa :)
आपका धन्यवाद भईया...की आपने मेरी टिपण्णी को इतना सम्मान दिया...
नापसंद का चटका अब पोस्ट की सार्थकता पर नहीं है बल्कि किसकी पोस्ट है उस पर है...अब आज मैंने एक पोस्ट लिखी.... अपने बच्चे के चोट लगने पर..भला इसमें ऐसी नापसंदगी वाली क्या बात थी...मैंने अपने बच्चे की और अपनी पीड़ा ही तो बांटनी चाही थी अपने ब्लॉग मित्रों के साथ....लेकिन उसपर भी नापसंद का चटका.....!!! :)
खैर इससे न तो तो मेरे पाठकों को कोई फर्क पड़ेगा न ही मुझे....लेकिन कुछ कलुषित मनवाले लोग हैं ...जिनके भी बच्चे होंगे...मैं उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं रख रही हूँ लेकिन ...सोच रही हूँ, क्या ब्लोगिंग किसी का मानसिक स्तर इतना गिरा सकता है....??
अगर ऐसा है तो मुझे उस व्यक्ति के प्रति बहुत सहानुभूति है....जो स्वयं अपने चरित्र का हनन मेरी हर पोस्ट के साथ कर रहा है...और अपनी ही नज़र में हर दिन गिर रहा है....बेचारा...!!
अवधिया जी
पसन्द-नापंसन्द का खेल तो अपनी समझ में नहीं आता। हम तो यही लगता है कि जिसको पढ़ना होगा वह पढ़ेगा और जिसको नहीं पढ़ना होगा वह नहीं पढ़ेगा। वैसे भी अपसंस्कृति के इस बुरे दौर में लोग पढ़ते कम देखते ज्यादा है। मैं आपको क्या समझाऊंगा और सलाह दूंगा आप ब्लाग की दुनिया में मुझसे सीनियर है। ऐसे कई तमाशे आपने देखे होंगे। खैर.. मै संजीत त्रिपाठी से बोलता हूं कि वह आपको कुछ सलाह दे। आजकल वे खूब अच्छी सलाह देते हैं। मैं उनसे सलाह नहीं भी मांगता हूं तब भी वे सलाह देकर ही दम लेते हैं। एक बार टाटा और बिड़ला को भी उन्होंने सलाह दी थी। उनकी सलाह के बाद ही उनका धंधा चार गुना फैल गया है। भेजता हूं सलाह देने वाले बाबा को।
यहाँ सब चलता है, बाबूजी !
अजी बच्चों का खेल है, खुराफात है. बस.
पसन्द नापसन्द की अवधारणा ही उचित नहीं है. पोस्ट के पसन्द या नापसन्द को टिप्पणियों में जाहिर किया जा सकता है. फिर यह खुन्नस निकालने का हथियार ही क्यों?
आपने बिलकुल सही कहा अवधिया जी। मैने भी अपने ब्लाग ‘प्रेम रस’ में एक एक्सिडेंट में बुरी तरह घायल व्यक्ति के बारे में लिखा था। हालांकि उस व्यक्ति को हमदर्दी और मदद की बहुत आवश्यकता है, परंतु उसमें भी लोगो ने नापसंद का चटका लगा दिया। मुझे समझ में नहीं आया कि इसमें नापसंद वाली क्या बात हो सकती है?
बदनाम हुए तो क्या हुआ ! नाम तो फिर भी हुआ
अगर आप से लोग जलने लगें.... आपकी अनुपस्थिति में आपकी चर्चा करने लगें तो समझ लीजिए कहीं कहीं आप तरक्की कर रहे हैं ...
नापसंन्दी को भी पसंद करिये ... ये तो दुनिया है
होता है......... चलता है ..........
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मै वर्ड प्रेस पर लिखता हूँ लेकिन इस टिप्पणी बॉक्स में गूगल के अलावा कहीं से टिप्पणी करने की सुविधा नहीं है ... कृपया सारे विकल्प खोलें
bhavesh jee ki baat se sahmat.
@ rajkumar soni jee, kya dhansu baat kahi hai aapne ;) jis din avadhia jee bhi din me 3 bar phone karenge blog jagat ke bare me to unhe bhi salaah de dunga ;)
कुछ तो राज़ है ही,इन नापसंद के चटकों की....पर इस से कौन सा संतोष मिलता है,नापसंद का चटका लगाने वालों को...पढने वाले फिर भी पढ़ते ही हैं और जिन्हें नहीं पढना ..वो तो नहीं ही पढेंगे...चाहे १० पसंद के चटके लग जाएँ
सर किसी भी नए प्रयोग और सुविधा के साथ उसके उपयोग और दुरूपयोग की आशंका भी बन ही जाती है , होने दें जो रहा है , सबसे अहम बात है लेखन ही सर्वोपरि है और वही शाश्वत भी है । पाठक भी जब हम आप ही हैं तो कुछ भी छुपा हुआ नहीं है इसलिए जो हो रहा है होने दीजीए , वैसे इस पसंद नापसंद के मनोविज्ञान को सही ढंग से उतार दिया आपने
अवधिया जी ,बात आप माकूल कर रहे हैं ,अब देखिये न आज मेरे पोस्ट ॐ शांति शांति शांति पर ही दो नापसंद लग गये हैं और मुझे ये मालूम है की कौन कर रहे /रही हैं!
मैं एक बार अनुरोध कर भी चुका हूँ की इस स्वाध्हेंता का लोग आपसी खुन्नस निकालने में सदुपयोग कर रहे हैं !
आज तो बड़ा आनंद का दिन लग रहा है।
हमारी पोस्ट पर 3 नापसंद के चटके लग चुके हैं।
जहां एक कोई पसंद करता है तो वहीं एक नापसंद भी दर्ज हो जाती है। वैसे यह काम प्रतिदिन का ही है। लेकिन आज कुछ ज्यादा कृपा हो रही है।
कल से पसंद दर्ज करना बंद किजिए।
हम भी देखते हैं की नापसंद करने वाले कहाँ तक जा सकते हैं।
अब इनकी पहचान करने का समय आ ही गया है।
पसन्द नापसन्द पसन्द नापसन्द लेकिन कोई बताये तो सही कि यह चटका लगाना केसे ओर कहां है, इस मुर्ख को तो यही नही पता की यह चटखा कहा लगता है, कोन सी जगह पर, एक बार बता दो फ़िर अपना काम सुबह से शाम तक बस चट्खा लगाने का ही होगा, जाहिर है पसंद का तो होगा नही....:)
अवधिया जी,
मैंने तो ब्लॉगर साथियों के जनमदिन और वैवाहिक वर्षगांठ वाली पोस्टों पर भी नापसंद लगते देखा है
लगता है कोई ऊपर वाले से भी खुश नहीं है :-)
... लगता है इन "नापसंदी लाल" लोगों को भी देखना पडेगा ... ब्लागजगत में कचडा बहुत हो गया है !!!
पाब्ला जी सही कह रहे है.
माफ़ कीजिये
पसंद ,नापसंद ,हिटलिस्ट में आना या ना आना-ये सब किसी बात का परिचायक है क्या?क्या यंहा कोई प्रतियोगिता हो रही है?
आप सही कह रहे हैं, पिछली दो पोस्टों पर मेरे भी नापसन्द का छोंक लग रहा है जबकि उन पोस्टों में ऐसा कुछ भी नहीं था। अभी चार दिन पहले पोस्ट लिखी थी उसमे ब्लागवाणी ने फोटो ही हटा दिया तो पोस्ट पढ़ी ही नहीं गयी और जब हॉट लिस्ट में आयी ही नहीं तो नापसन्द का चटका भी नहीं लगा। अभी एक पोस्ट डाली है, अमेरिका जा रही हूँ तो राम-राम करने को, देखना है कि उसमें भी फोटो चिपकता है या नहीं और नापसन्द कितने आते हैं?
ये नापसंद का चटका तो कई बार अपनी भी पोस्ट को मिल जाता है
क्या जी, आप भी ना.. पता नहीं काहे उदास हो रहे हैं.. हम तो बहुत खुश हैं.. मेरी पिछली पोस्ट पर पहली बार किसी ने नापसंद का बटन दबाया था.. आखिर मेरा भी खाता खुल गया.. :)
अनिल पुसड़कर भैया ...सही कह रहे हैं..... :)
आजकल तो इन लोगों की हम पर भी बहुत भारी कृ्पादृ्ष्टि बनी हुई है....हर पोस्ट पर कम से कम 1-2 नापसंद तो दर्ज हो ही जाती है......
नापसंद तो आपकी लोकप्रियता का पैमाना है...
जितने ज़्यादा नापसंदगी के चटके, मतलब उतने ही ज़्यादा आपसे जलने वाले...
जय हिंद...
यह चटका हटा देना चाहिये ।
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