ब्रह्मा जी ने प्राणियों का निर्माण करना आरम्भ किया। सबसे पहले उन्होंने गधा बनाया और उससे कहा, "तुम गधे हो। तुम घास खाओगे और सुबह से शाम तक बिना थके अपने पीठ पर बोझ लादने का काम करोगे। बुद्धि से तुम्हारा कुछ भी लेना-देना नहीं रहेगा। तुम्हारी आयु 50 वर्ष होगी।"
गधे ने कहा, "देव! 50 वर्ष तो बहुत अधिक होते हैं, कृपा करके मुझे 20 वर्ष की ही आयु दीजिये।"
ब्रह्मा जी ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।
फिर उन्होंने कुत्ता बनाया और उससे कहा, "तुम कुत्ते हो। तुम मनुष्यों के वफादार रहोगे, उनकी चौकीदारी करोगे और उनके दिये गये टुकड़े खाकर जीवनयापन करोगे। तुम्हारी आयु 30 वर्ष होगी।"
कुत्ते ने कहा, "स्वामी! 30 वर्ष तो बहुत अधिक होते हैं, कृपा करके मुझे 15 वर्ष की ही आयु दीजिये।"
ब्रह्मा जी ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।
फिर उन्होंने बन्दर बनाया और उससे कहा, "तुम बन्दर हो। अपनी उदर-पूर्ति के लिये तुम जीवन भर इस शाखा से उस शाखा पर कूदते फिरोगे। तुम्हारी आयु 20 वर्ष होगी।"
बन्दर ने कहा, "भगवन्! 20 वर्ष तो बहुत अधिक होते हैं, कृपा करके मुझे 10 वर्ष की ही आयु दीजिये।"
अन्त में उन्होंने मनुष्य बनाया और उससे कहा, "तुम मनुष्य हो। तुम पृथ्वी के एकमात्र बुद्धिमान प्राणी होओगे। अपनी बुद्धिमत्ता के कारण तुम अन्य समस्त प्राणियों के मालिक बनोगे और समस्त संसार के ऊपर तुम्हारा ही वर्चस्व होगा। तुम्हारी आयु 20 वर्ष होगी।"
मनुष्य ने कहा, "प्रभु! 20 वर्ष तो बहुत कम होते हैं। कृपा करके मेरी आयु में गधे, कुत्ते और बन्दर के द्वारा छोड़े गये 30, 15 और 10 वर्षों को भी जोड़ दीजिये।"
ब्रह्मा जी ने उसकी भी प्रार्थना स्वीकार कर ली।
तभी से मनुष्य अपनी आयु के प्रथम 20 वर्षों को मनुष्य के रूप में जीता है, फिर गृहस्थी के जंजाल में फँस कर आगे के 30 वर्षों तक बिना थके बोझ ढोते रहता है और जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो 15 वर्षों तक उनकी चौकीदारी करता है और फिर अपनी आयु के अन्तिम १० वर्षों में में क्षुधा-निवारण के लिये कभी इस बच्चे के घर तो कभी उस बच्चे के घर जाकर रहने लगता है।
टीपः यह मेरी मौलिक रचना नहीं है। कभी इसे कहीं पर अंग्रेजी में पढ़ा था और आज याद आ जाने से इसका हिन्दी रूपान्तरण कर मैंने आपके समक्ष प्रस्तुत कर दिया है। आशा है कि आपको पसन्द आई होगी।
16 comments:
और कुत्ते के हिस्से की आयु काटने के लिये खटिया पर पडे-पडे चौकीदारी भी करता है।
प्रणाम
अन्तर सोहिल
धन्यवाद अमित जी! कुत्ते वाला प्रसंग छूट गया था, आपने याद दिला दिया। अभी जोड़ देता हूँ।
बहुत ही अच्छा प्रेरक प्रसंग को उठाया है आपने अवधिया जी ,इसके लिए आपका धन्यवाद / लेकिन इस दिशा में आपके कुछ और सोचकर लिखने का इंतजार है ,जैसे इन्सान ,हैवान,देश और समाज !!!!!
महान पोस्ट
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें और मुझे कृतार्थ करें
इस्लाम का नजारा देखें
बहुत बढ़िया प्रसंग !!
बने लिखे हस गुरुदेव
मजा आगे,कुकुर बिना बूता नई चलय्।
बढ़िया बात कही..........
बिल्कुल खरी बात्!!
बिल्कुल सत्य कहा आपने.
रामराम.
यानि अभी हम गधे वाली उम्र से गुजर रहे है, बहुत सुंदर
सुनी हुई कथा है, फिरभी पढना अच्छा लगा।
ओह तो ये बात है
मैं भी सोचता था कि क्यों मनुष्य की आदतें गधा, कुत्ता, बन्दर से मिलती जुलती है
कहीं भी पढा हो चीज़ अच्छी हो तो उसे बांटना चाहिए। मुझे तो बहुत ही अच्छा लगा पढकर। अभी गधों वाली ज़िन्दगी जो जी रहा हूं।
अवधिया जी,
आप सांप की आयु बताना भूल गए...
जय हिंद...
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 08.05.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
बहुत बढ़िया....पहले भी पढ़ी हुई है....
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