Sunday, May 9, 2010

जब दिवस मना कर एक दिन में माँ को प्रसन्न किया जा सकता है तो क्या जरूरत है जन्म भर मातृ-भक्ति की?

किसी प्रकार का दिवस मनाने का अर्थ होता है किसी घटना, वस्तु, व्यक्ति आदि को याद कर लेना। किसी का जन्मदिवस मना कर हम याद करते हैं कि फलाँ दिन उसका जन्म हुआ था, स्वतन्त्रता दिवस मना कर हम याद कर लेते हैं है कि पन्द्रह अगस्त के दिन हमें परतन्त्रता से मुक्ति मिली थी आदि। किसी के जन्म या अपनी स्वतन्त्रता का महत्व पूरे साल में हो या न हो उसके दिवस के दिन अवश्य ही बहुत अधिक हो जाता है।

आजकल 'मदर्स डे' मनाने का रिवाज चल पड़ा है। 'मदर्स डे' मना कर अब साल में एक दिन माँ को भी याद कर लेते है। साल भर माँ का महत्व हो या न हो मदर्स डे के दिन अवश्य ही माता का महत्व बहुत अधिक होता है।

हमारे आदि पुरुष मनु ने माता-पिता की सेवा को ही सबसे बड़ा धर्म कहा है। "मनुस्मृति" में कहा गया है कि उपाध्याओं से दस गुना श्रेष्ठ आचार्य, आचार्य से सौ गुना श्रेष्ठ पिता और पिता से सहस्त्र गुना श्रेष्ठ माता का गौरव होता है। माता की कृतज्ञता से संतान सौ वर्षो में भी मुक्त नहीं हो सकती। किन्तु आज इस कथन का क्या महत्व है? आज तो महत्व है मदर्स डे का। अब जब साल में एक दिन मदर्स डे मना कर माँ को खुशी प्रदान की जा सकती है तो भला जीवन-पर्यन्त मातृ-भक्ति करने के कार्य को महज मूर्खता के सिवाय और क्या कहा जा सकता है?

आज हम वात्सल्य, स्नेह, प्रेम की अमृत धाराएँ प्रदान करने वाली माता के मातृ-ऋण को भले ही भूल जायें, पर हम इतने कृतघ्न भी नहीं है कि साल में एक दिन मदर्स डे मनाकर अपनी माँ को खुश भी ना कर सकें। 'मदर्स डे' के दिन माता के चरणस्पर्श करके एक अच्छा सा उपहार उसे दे दो, बस माता खुश!

20 comments:

समय चक्र said...

सुन्दर प्रस्तुति
मातृ दिवस पर आप को हार्दिक शुभकामनायें और मेरी ओर से देश की सभी माताओं को सादर प्रणाम...

honesty project democracy said...

लोगों का जमीर मर चूका है वह सच और ईमानदारी को भूल चूका है ,जो किसी भी उपकार को सम्मान देने के लिए सबसे जरूरी शब्द है / आज तो लोग मतलब के लिए सबसे नाता जोड़ते है और कर्तव्य और परोपकार कहीं खो गया है / इसी को हम लोगों को एकजुट होकर वापस लाने का प्रयास करना है /

सूर्यकान्त गुप्ता said...

माँ तुझे प्रणाम! तेरे आशीष का साथ है हर पल। इस जनम मे साथ तेरा न मिला पर विश्वास है, तेरा साया है मेरे सन्ग हर पल!

Unknown said...

ये मैकाले का असर है जनाब इन बौद्धिक गुलाम हिन्दूओं पर

tension point said...

आपने तो शीर्षक में ही "बेचारे मदर्स-चाईल्डस" को झंड कर दिया जो साल भर माँ को भूले रहते हैं | बहुत अच्छा लगा |

डॉ महेश सिन्हा said...

सही बात

राज भाटिय़ा said...

भईया हम तो भारतिया हे रोजाना ही मां को प्रणाम करते है, लेकिन कुछ लोग इंडियन है जो पुरा साल तो मां को ध्क्के देते है आश्रम मै छोड आते है, ओर एक दिन जा कर हाय वाय कर आते है... इसे कहते है "मदर डे"

vandana gupta said...

बेहद सुन्दर व्यंग्य……………आपकी पोस्ट कल के चर्चा मंच पर होगी।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सटीक.

रामराम.

डॉ टी एस दराल said...

सही लिखा है , अवधिया जी ।
अब ये एक दिन का उत्सव बढ़ता ही जा रहा है ।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बिल्कुल खरी बात अवधिया जी!
इस "डे" संस्कृ्ति के चक्कर में लोग खुद की परम्पराओं से ही दूर होते जा रहे हैं...

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

जो साल भर उत्सव नहीं मना पाए
चलो एक दिन तो माँ को याद करके मना रहे हैं
आप भी छिद्रान्वेषण का मौका ढुंढते रहते हो।

कभी-कभी किसी की थोड़ी खुशी में भी
शामिल हो जाए करो।:)

Ra said...

अच्छा लिखा है ...इसे पढ़कर मैं यही कहूँगा की दुनिया की हर माँ को सलाम ......और माँ के उपकार को सदा याद रखना चाहिए ,,,,maa se mahan koi nahi hai .....maa shabd ko mera shat-shat naman ....

Khushdeep Sehgal said...

अवधिया जी,
ये सब पश्चिम से आए बाज़ारवाद के चोंचले हैं...वहां किसी के पास वक्त नहीं होता...इसलिए वहां साल में एक दिन माता, पिता, दादा, दादी, टीचर के साथ कुत्ते-बिल्लियों (पेट्स डे) को भी याद कर लिया जाता है...ग्रीटिंग्स कार्ड, गिफ्ट, फ्लावर्स, एसएमएस सब को मिला दें तो करोड़ों का बिज़नेस निकलता है अपने इसी देश से, जहां सत्तर फीसदी से अधिक का गुज़ारा मात्र बीस रुपये रोज़ पर होता है...

जय हिंद...

Khushdeep Sehgal said...

अवधिया जी,
ये सब पश्चिम से आए बाज़ारवाद के चोंचले हैं...वहां किसी के पास वक्त नहीं होता...इसलिए वहां साल में एक दिन माता, पिता, दादा, दादी, टीचर के साथ कुत्ते-बिल्लियों (पेट्स डे) को भी याद कर लिया जाता है...ग्रीटिंग्स कार्ड, गिफ्ट, फ्लावर्स, एसएमएस सब को मिला दें तो करोड़ों का बिज़नेस निकलता है अपने इसी देश से, जहां सत्तर फीसदी से अधिक का गुज़ारा मात्र बीस रुपये रोज़ पर होता है...

जय हिंद...

Anil Pusadkar said...

बहुत सही लिखा अवधिया जी।

Awadhesh Pandey said...

जीवन में माँ के क़र्ज़ को, मैं कभी उतार जो पाऊं,
प्रतिदिन हरक्षण प्रिय सखे, मैं मातृ दिवस मनाऊं.

http://pandeyak.blogspot.com/2010/05/blog-post_09.html

शिवम् मिश्रा said...

मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

वन्दे मातरम !!

ghughutibasuti said...

सारे डे ही एक दिन के होते हैं। शायद बस याद दिलाने को कि ये सब लोग भी महत्वपूर्ण हैं। कुछ वैसे ही जैसे स्वतंत्रता दिवस एक दिन का होता है किन्तु हम स्वतंत्र पल पल जीना चाहते हैं।
घुघूती बासूती

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

आधुनिकता का एक पैमाना ये भी चल पडा है - माँ - बाप को वृद्धाश्रम भेज कर साल में एक दिन mothers day, fathers day मना लो | नक़ल और भोड़ेपन की एक सीमा होती है पर हम भारतवासी वो सीमा कब की पार कर चुके हैं |

एक बात सर्तिया कह सकता हूँ की अमेरिका या पश्चिमी देशों से कहीं ज्यादा mothers day, fathers डे SMS greetings भारत ... नहीं नहीं India के शहरों में भेजी जाने लगी है ...