Tuesday, May 11, 2010

आपस की लड़ाई का निश्चित परिणाम विनाश ही होता है

इतिहास गवाह है कि जब भी भाई भाई आपस में लड़ते हैं तो उसका निश्चित परिणाम विनाश ही होता है। हजार से भी अधिक सालों की हमारी गुलामी सिर्फ हमारे देश के नरेशों का आपस में लड़ने का ही परिणाम था। कौरव-पाण्डव आपस में लड़े तो अठारह अक्षौहिणी सेना लड़-कट कर मर गई। श्री कृष्ण के वंश अर्थात् यदुवंश का नाश का कारण भी आपस की लड़ाई ही थी।

किन्तु दुःख की बात है कि हम अपने इतिहास को भूल जाते हैं और उससे कुछ भी शिक्षा नहीं ले पाते।


चलते-चलते


यदुवंश के नाश की बात चली है तो उस रोचक कथा को भी जान लीजिये

यदुवंश का नाश

महाभारत के युद्ध से विदुर जी को, जो कि तीर्थयात्रा से लौटे थे, अत्यन्त सन्ताप हुआ और वे पुनः तीर्थयात्रा के लिये निकल पड़े। यमुना के तट पर उनकी भेंट भगवान श्री कृष्णचन्द्र के परम भक्त और सखा उद्धव जी से हुई और विदुर जी ने उनसे भगवान श्री कृष्णचन्द्र का हाल पूछा।

रुँधे कंठ से उद्धव ने बताया - "हे विदुर जी! महाभारत के युद्ध के पश्चात् सान्तवना देने के उद्देश्य से भगवान श्री कृष्णचन्द्र जी गांधारी के पास गये। गांधारी अपने सौ पुत्रों के मृत्यु के शोक में अत्यंत व्याकुल थी। भगवान श्री कृष्णचन्द्र को देखते ही गांधारी ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दे दिया कि तुम्हारे कारण से जिस प्रकार से मेरे सौ पुत्रों का आपस में लड़ कर के नाश हुआ है उसी प्रकार तुम्हारे यदुवंश का भी आपस में एक दूसरे को मारने के कारण नाश हो जायेगा।

भगवान श्री कृष्णचन्द्र ने माता गांधारी के उस श्राप को पूर्ण करने के लिये यादवों की मति को फेर दिया। एक दिन अहंकार के वश में आकर कुछ यदुवंशी बालकों ने दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। इस पर दुर्वासा ऋषि ने शाप दे दिया कि यादव वंश का नाश हो जाये। उनके शाप के प्रभाव से यदुवंशी पर्व के दिन प्रभास क्षेत्र में आये। पर्व के हर्ष में उन्होंने अति नशीली मदिरा पी ली और मतवाले हो कर एक दूसरे को मारने लगे। इस तरह से भगवान श्री कृष्णचन्द्र को छोड़ कर एक भी यादव जीवित न बचा। इस घटना के बाद भगवान श्री कृष्णचन्द्र महाप्रयाण कर के स्वधाम चले जाने के विचार से सोमनाथ के पास वन में एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ कर ध्यानस्थ हो गये। जरा नामक एक बहेलिये ने भूलवश उन्हें हिरण समझ कर विषयुक्त बाण चला दिया जो के उनके पैर के तलुवे में जाकर लगा और भगवान श्री कृष्णचन्द्र स्वधाम को पधार गये।

13 comments:

ढपो्रशंख said...

आप सही कहते हैं.

आज हिंदी ब्लागिंग का काला दिन है। ज्ञानदत्त पांडे ने आज एक एक पोस्ट लगाई है जिसमे उन्होने राजा भोज और गंगू तेली की तुलना की है यानि लोगों को लडवाओ और नाम कमाओ.

लगता है ज्ञानदत्त पांडे स्वयम चुक गये हैं इस तरह की ओछी और आपसी वैमनस्य बढाने वाली पोस्ट लगाते हैं. इस चार की पोस्ट की क्या तुक है? क्या खुद का जनाधार खोता जानकर यह प्रसिद्ध होने की कोशीश नही है?

सभी जानते हैं कि ज्ञानदत्त पांडे के खुद के पास लिखने को कभी कुछ नही रहा. कभी गंगा जी की फ़ोटो तो कभी कुत्ते के पिल्लों की फ़ोटूये लगा कर ब्लागरी करते रहे. अब जब वो भी खत्म होगये तो इन हरकतों पर उतर आये.

आप स्वयं फ़ैसला करें. आपसे निवेदन है कि ब्लाग जगत मे ऐसी कुत्सित कोशीशो का पुरजोर विरोध करें.

जानदत्त पांडे की यह ओछी हरकत है. मैं इसका विरोध करता हूं आप भी करें.

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बहुत सही कहे गुरुदेव
आज आपका प्रवचन वैसे भी प्रासंगिक है।
मुर्ख का भ्रम कब तक रहेगा कि वह विद्वान है।
जब युद्ध में हार होती है तो भ्रम टूट जाता है।
बैठा रहता है धृतराष्ट्र आंख मुंदे।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सार्थक पोस्ट...पर इतिहास से भी कहाँ कोई सीख लेता है.

अन्तर सोहिल said...

गांधारी का श्राप और दुर्वासा का शाप दोनों विफल हुए।
यादव तो अभी भी हैं जी :-)

शिक्षाप्रद कहानी के लिये धन्यवाद
प्रणाम स्वीकार करें

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥ ...........पूऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊ
ooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooo

honesty project democracy said...

आज सवाल है सत्ता में बैठे भ्रष्ट और गद्दार लोगों द्वारा अपनी सुरक्षा के मकसद से आम जनता को आपस में लड़ा कर ,आम जनता के किसी भी सार्थक और निर्णायक मुहीम को ,देश व्यापी स्तर पर कामयाब नहीं होने देना / हम सब को इस बारे में गंभीरता से सोचते हुए एकजुटता की ताकत को अपने-अपने निजी मतभेद को भुलाकर एक नेक उद्देश्य के लिए लगाना होगा और इसमें आने वाले हर बाधा का डटकर मुकाबला करना होगा / रही बात ज्ञानदत्त जी की तो दो ब्लोगरों की तुलनात्मक विवेचना ब्लॉग पर करना निश्चय ही ज्ञानदत्त जी जैसे समझदार ब्लोगर को शोभा नहीं देता है ,लेकिन अगर उन्होंने कर ही दिया है तो हम लोग उनका विरोध न कर इस मुद्दे पर अपनी-अपनी राय रखें तो ब्लॉग की मर्यादा बनी रहेगी /क्योंकि ज्ञानदत्त जी भी अच्छे ब्लोगर हैं /

योगेन्द्र मौदगिल said...

ललित भाई नै म्हारी बात कै दी...........

कैसे हैं अवधिया दादा.... भूल गये लगता है..

राजकुमार सोनी said...

अवधिया जी आपको बधाई। एक ब्लाग ने आपको सम्मानित किया है। आप इसके हकदार भी है।

Dev said...

बहुत बढ़िया पोस्ट .....

Udan Tashtari said...

रोचक कथा.

संवाद सम्मान हेतु बधाई.

राम त्यागी said...

बात तो सही है, लड़ना छोड़ो और जुड़ना सीखो
ब्लोग्गेर्स भाई लोगो कुछ तो सीखो :)

राम त्यागी
http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर बात कही आप ने, सहमत है जी आप से

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

शिक्षाप्रद पोस्ट्!!
संवाद सम्मान हेतु बधाई!!