कल चौक में मुहल्ले के कुछ युवा आपस में बतिया रहे थे। हमें पता है कि इन लोगों का अधिकतर समय आर्कुट और फेसबुक में विचरण करते हुए ही व्यतीत होता है। हमने सोचा कि ये लोग रोज नेट में सर्फिंग करते ही हैं तो क्यों ना इन्हें हिन्दी ब्लोग्स के प्रति आकर्षित किया जाये? यही सोचकर हम भी उनकी मण्डली में पहुँच गये। उम्र में बड़े होने के कारण वे सब हमें भैया सम्बोधित करते हैं। उन्होंने सम्मानपूर्वक हमें आसन दे दिया।
हमने पूछा, "तुम लोग सारा दिन नेट पर बैठते हो तो हिन्दी ब्लोग्स में क्यों नहीं आते?"
"दो-चार बार गये तो हैं भैया हिन्दी ब्लोग्स में, पर हमें कुछ जँचा नहीं।" महेन्द्र ने हमारे प्रश्न का उत्तर दिया।
हमने फिर पूछा, "क्या नहीं जँचा?"
इस पर कृष्ण कुमार ने कहा, "अब आप ही बताइये भैया क्या करने जायें हम हिन्दी ब्लोग्स में? यह जानने के लिये कि कहाँ पर बस और ट्रक की भिड़ंत हो गई है और कितने लोग मर गये हैं या घायल हो गये हैं? या यह जानने के लिये कि कहाँ पर खिलाड़ियों का कोटा कितना हो गया है? जिन बातों को हम दिन में पच्चीस बार टीव्ही में देख चुके होते हैं उन्हों को हिन्दी ब्लोग्स में फिर से पढ़ने आयें क्या?"
कृष्ण कुमार की बात पूरी होते ना होते पिंटू बोल उठा, "या यह पढ़ने के लिये कि कोई ब्लोगर यात्रा कर रहा था तो उसके कपड़े चोरी हो गये? कब और कहाँ पर कितने ब्लोगर आपस में मिले? ब्लोगर मीट में नाश्ते में परोसे गये समोसे कुरकुरे और स्वादिष्ट थे? गाय-भैंस, कुत्ते- बिल्ली के पिल्लों आदि के चित्र देखने आयें क्या?"
महेन्द्र ने बताया, "एक ब्लोग में मैं गया था तो उसमें इतनी जोरदार फिलॉसफी थी कि सिर से ऊपर ही ऊपर से गुजर गई। एक दो पैरा पढ़ने के बाद आगे पढ़ना दुश्वार हो गया।"
किसी ने कहा, "हमें क्या पड़ी है कि किसका जन्मदिन कब है जानने की? और किसने अपना जन्मदिन कैसे मनाया इससे भी हमें क्या मतलब है?"
एक और ने कहा, "भैया, मैं प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा हूँ और ये किशन फलाँ विषय में शोधकार्य कर रहा है। आप बताइये कि क्या हेल्प मिल सकता है हमें हिन्दी ब्लोग्स से?"
एक दक्षिण भारतीय युवक भी था वहाँ पर। उसने कहा, "भैया, मैं कामचलाऊ हिन्दी बोल जरूर लेता हूँ पर मुझे ठीक से हिन्दी नहीं आती। मैं हिन्दी सीखना चाहता हूँ। आप मुझे ऐसा ब्लोग बतायें जहाँ जाकर मैं हिन्दी सीख सकूँ!"
अब हम क्या कह सकते थे? वहाँ से खिसक लेने में ही हमने अपनी भलाई समझी और चुपचाप खिसक आये।
22 comments:
गलत सवाल पूछ लिया.. उनको ब्लॉग लिखने के लिए बुलाना था.. एक पोस्ट लिखते... कमेन्ट के चक्कर में दूसरों की पोस्ट पर वाह वाह करते... फिर हॉट और कोल्ड के चक्कर में पड़ते.. कभी संकलको को गाली देते.. फिर अपना गुट बनाते चर्चा करते.. लिंकस के चक्कर में पड़ते.. सक्रियता के चक्कर में पड़ते... फर्जीवाडा सबको बताते... बेनामी बनाते.. लड़ते झगडते.. दोस्त बनाते.. दुश्मन बनाते.. कोर्ट की धमकी देते... टंकी पर चढ़ते.... कितना कुछ है न करने को..
यहाँ आता अपनी मर्जी है.. और जाने का मन ही नहीं करता.. फसे रहते.. :)
कोशिश तो बढ़िया थी पर ..............वैसे उन लोगो ने भी कुछ गलत नहीं कहा ! गिने चुने ब्लॉग ही तो है जो सार्थक ब्लॉग्गिंग के लिए जाने जाते है !
सटीक व्यंग....विचारणीय पोस्ट
...और यह सपना देखते देखते एलार्म बज गया।
@ प्रवीण पाण्डेय
यह सपना नहीं बल्कि सच है!
गुरुदेव,
जो भी ब्लाग लेखन के लिए आता है वह कहीं से प्रशिक्षण लेकर नहीं आता कि ब्लाग पर क्या लिखना है और क्या नहीं लिखना।उसे बस यह मालुम है कि ब्लाग अमिताभ बच्चन लिखते हैं,तो हम क्यों नहीं लिख सकते?
अब आप जाकर देखिए उनके ब्लाग में क्या है?
उनका ब्लाग व्यक्तिगत डायरी है,उसमें अपने जीवन के नीजि पलों को लोगों के साथ बांट्ते हैं।
यही हर ब्लागर कर रहा है। तो क्या गलत है?
जब आपकी पोस्ट पढकर उसे समझ में आता है कि सार्थक ब्लागिंग प्रारंभ कर देता है।
जैसे हमने आपसे सीख कर,आपकी छड़ी के डर से शुरु कर दी।
अब सभी हमारे जैसे चेले थोड़ी हैं, जो आपके ईशारे को समझ जाएं। कोई काहु में मगन कोई काहु में मगन,मगन मतलब मगन
जय हो।
सही लिखा है आपने.
हिन्दी ब्लॉगर मिथ्या आदर्शवाद की बाते छोड़ काम की बाते लिखे तो लोग अपने आप खिंचे चले आएंगे.
मैं भी बहुत दिनों बाद ब्लॉग देख रहा हूँ. पहले कमी सी खलती थी. अब नहीं.
आपकी बातें पूरी तरह सही नहीं है ब्लोग्स में काफी ऐसी जानकारियाँ है जो आपकी अपनी भाषा में अन्यत्र उपलब्ध नहीं है हाँ इसे खोजने का धैर्य होना चाहिए . मुझे ही ऐसे कई इमेल मिले हैं जिन्हें ब्लॉग को लेकर काफी गलतफहमी थी अब वो ब्लॉग को भी वेबसाइट जैसा ही उपयोगी समझते हैं .
पुरानी बस्ती को ब्लागर वस्ती बना के छोडे़गे लगता है....
अच्छा कटाक्ष हें.
बात तो सही है...
ब्लागिंग की इस कमी को ये लोग अगर दूर करने का प्रयास करें तो---
कडा व्यंग्य हम सभी लिखने वालों पर ..वैसे ब्लॉग तो समुन्दर है --उन लोगों को गोता लगाने कहिये !!
जब यह बालक इतना कुछ जानते हैं तो आकर कुछ सार्थक करके दिशा बदलें. इन पनठेलियों ने ही सरकार ऐसा नहीं कर रही/वैसा नहीं कर रही-कह कह कर मजमा लगा रखा है मगर खुद कुछ नहीं करते.
छोड़िये ऐसे नामुरादों को- जिनको खुद की दिशा नहीं मालूम. यह सिर्फ छिद्रान्वेषण कर सकते हैं- न तो इनमें छिद्र भरने की कूबत है और न ही ऐसा कुछ कर गुजरने की कि छिद्र होना ही बंद हो जायें.
आप भी किनके साथ समय खराब आये. इतनी देर में तो एक पोस्ट और निकल जाती. आप तो लगे रहिये बस!!!
शुभकामनाएँ.
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आदरणीय समीर लाल जी से सहमत...
कुछ महानुभाव सिर्फ छिद्रान्वेषण कर सकते हैं- न तो इनमें छिद्र भरने की कूबत है और न ही ऐसा कुछ कर गुजरने की कि छिद्र होना ही बंद हो जायें... हाँ इसी बहाने एक पोस्ट का जुगाड़ अवश्य कर लेते हैं वे.... ;)
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आपने उनसे यह नहीं पूछा कि फेसबुक और आर्कुट में क्या करते हो जो सारा दिन लगे रहते हो? आज की युवापीढी केवल व्यावसायिकता देखती है, यदि यहाँ भी उन्हें अपने व्यावसायिक हित दिखायी दें तो वे चले आएंगे। जितने प्रश्न उन्होंने खड़े किए सारे ही फेसबुक से सम्बन्धित हैं। वहाँ पर ये ही होता है जब कि ब्लाग पर और कुछ भी होता है।
पोस्ट और टिप्पणीओं खास कर समीर जी की
बहुत ही अच्छे विचार प्रस्तूत किये
समीर जी ने अपनी जबरदस्त टिप्पणी से विचार को नया पहलु दिया है.
आप भी समझ जायें और सार्थक लिखना शुरु करें.
पिन्टू, महेन्द्र, कृष्ण सब आपके गढ़े चरित्र हैं अपने मन की बात कहने को, मगर समीर जी को सुन अब आपके पास कहने को शायद कुछ न होगा.
अतः, बंद करें यह सब और सृजनात्मक प्रक्रिया में योगदान दें.
मैं डा. अजित जी से पूर्णत सहमत हूँ. ब्लॉग्गिंग की तरह ऑरकुट और फेसबुक में भी ऐसी कोई ज्ञानवर्धक जानकारी तो नहीं है.
ब्लॉग्गिंग में आप अपने विचार दुनिया के समक्ष रख सकते है. हा ये अवश्य है कि कुछ लोग गुटबाजी करके या खुद अपनी पोस्ट पर अनाप शनाप कमेन्ट करके कई अन्य विचार परख पोस्ट को लोगो तक नहीं पहुँचने देते लेकिन अगर आपकी शैली सही है और विचार में दम है तो एक न एक दिन आप को लोग अवश्य पढेंगे. इस तरह वे युवा खुद को रचनात्मक कार्य में व्यस्त रख सकते है.
अवधिया जी, आपको उस मंडली से कहना था...
क्वान्टिटी न देखो, क्वालिटी देखो...जहां चाह, वहां राह...अच्छा ढूंढोगे तो मोती मिल ही जाएंगे...कूड़े पर चोंच मारते रहोगे तो गंद ही मिलेगा...
वैसे यहां अवधिया जी का प्रयास शुरू से यही रहा है कि हिंदी ब्लॉगिंग में ऐसा सार्थक लिखा जाए जिससे ज़्यादा से ज़्यादा पाठक जुटें...और ये पाठक सिर्फ ब्लॉगर ही न हों, दूसरे फील्ड से भी विषय विशेष को सर्च करते हुए आएं...
फिक्र नहीं, वो सुबह कभी तो आएगी...
जय हिंद...
आदरणीय समीर लाल जी से सहमत. बढ़िया मैटर उठाया आपने।
आप की रचना 30 जुलाई, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
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