कविता करनी आती नहीं मुझे, फिर भी प्रयास कर के चार लाइन लिख ही लियाः
आकांक्षा का दुर्ग ढह गया,
भग्नावशेष ही शेष रह गया;
आशा का आकाश गिर गया,
जीवन में बस क्लेश रह गया।
लगा कि मैं भी, कविता ना सही, तुकबंदी तो शायद कर ही सकता हूँ। कुछ और प्रयास किया तो यह भी लिख गयाः
एक दिन हमारी साली ने,
हमें सिद्धांत की ये बात समझाई
कि कुछ बनने के लिए,
कुछ पाने के लिए,
परिश्रम करना ही पड़ता है भाई।
हमने कहा साली जी,
बिल्कुल गलत कहती हैं आप,
मौसी बनने के लिये भला आपको,
क्या मेहनत करनी पड़ी जनाब?
अपने सिद्धांत की बात
आप अपने पास ही रहने दीजिये,
और हमें अब आप
सिर्फ कड़ुआ सच ही कहने दीजिये।
लाठी जिसके हाथ में हो, भैंस उसी की होती है,
हमेशा अनाज उसका नहीं होता, जिसने खेत जोती है।
सदियों से इस संसार में, बस यही होता चला आता है,
मजा गिरधारी करते हैं और धक्का बेचारा पुजारी खाता है।
कहते हैं कि प्रेम का प्रसिद्ध स्मारक.
ताज महल,
शाहजहाँ ने बनाया था,
पर क्या उसे बनाने के लिये
उसने एक ईंट भी उठाया था?
उल्टे
उसे बनाने वालों के हाथ भी
उसने कटवाया था।
निष्कर्ष यह कि गुणवान शिल्पियों का हाथ कटता है,
और निर्माता के रूप में,
अपना झूठा नाम जोड़ देने वाले का,
जमाना नाम रटता है।
देश की आजादी के लिये,
कितने ही क्रांतिकारियों ने,
क्रांति की,
लहू बहाया,
जानें गवाँई।
पर हमें पढ़ाया जाता है कि
आजादी अहिंसा से आई।
इस देश में क्रान्तिकारी वीर हिंसक कहलाते हैं,
और मार खाकर भी जिनका स्वाभिमान न जागे,
ऐसे लोग,
देशभक्त बन जाते हैं।
निष्कर्ष यह कि क्रान्तिकारी (हिंसक) बन कर मत मरो,
अहिंसक होने का स्वांग भरो,
सुख भोगो और राज करो।
कपड़े के मिल में काम करने वाला मजदूर
लाखों थान कपड़े बनाता है,
पर स्वयं तथा अपने परिवार के तन ढँकने लायक
कपड़ा भी कभी पाता है?
मजदूर भूखा मरता है
और मालिक हलुवा उड़ाता है,
क्योंकि मिल में वह अपना परिश्रम नहीं,
अपनी पूँजी लगाता है।
निष्कर्ष यह कि परिश्रम का फल कड़ुआ होता है।
12 comments:
हैट्स ऑफ
बहुत अच्छी लगी यह कविता
वैसे एक बात तो बताईये कि साली जी से आप क्या पाना चाहते थे जो उन्होंनें यह नसीहत दी और भाई कहकर:)
प्रणाम स्वीकार करें
शानदार लगी
एक बार दोबारा पढी
इसलिये दोबारा टिप्पणी
पहली टिप्पणी में joking के लिये क्षमा तो कर देंगें ना मुझे
सदियों से इस संसार में, बस यही होता चला आता है,
मजा गिरधारी करते हैं और धक्का बेचारा पुजारी खाता है।
आपने बात की बात में हकीकत कह डाली. बहुत लाजवाब.
रामराम
सराहनीय व सार्थक प्रस्तुती ...शानदार ब्लोगिंग ..*****
बहुत गहरी बात कह दी आपने बातों बातों में !
इस देश में क्रान्तिकारी वीर हिंसक कहलाते हैं,
और मार खाकर भी जिनका स्वाभिमान न जागे,
ऐसे लोग,
देशभक्त बन जाते हैं।
वाह जी बहुत सुंदर
सत्य वचन है जी.
धन्यवाद
shabda sanyojan ati sundar........dil ko choo gayi aapki post
बने लिख डारेस गूरुदेव,
डोकरी के परभाव जल्दी पर गे।
एक्के दिन मा कवि हो गेस।
दवई के असर हे।
जय हो।
सदियों से इस संसार में, बस यही होता चला आता है,
मजा गिरधारी करते हैं और धक्का बेचारा पुजारी खाता है
--करते कराते निष्कर्ष एकदम सही निकाले:
परिश्रम का फल कड़ुआ होता है।
और लिखिये कविता.
सुन्दर सपाट बातें।
अवधिया जी अपने बर्थ डे के दिन आप मुझसे गले मिले थे ना ...देखा इनफेक्शन हो गया ना ..हाहाहा
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आप को बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं
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