विरोध प्रदर्शन के लिये शहर, प्रदेश या देश बंद करवाना कहाँ तक उचित है?
भारत बन्द!
छत्तीसगढ़ बन्द!
रायपुर बन्द!
विरोध प्रदर्शित करने के लिये ये बन्द करवाना कहाँ तक उचित है? इस प्रकार से बन्द करवाने से क्या कुछ फायदा होता है? जी नहीं कुछ भी फायदा नहीं होता बल्कि नुकसान ही अधिक होते हैं। एक दिन का काम बंद होने से अहित ही होता है शहर, प्रदेश और देश का।
और फिर ऐसा कौन है जो अपनी इच्छा से अपना कारोबार बन्द कर देना चाहे? राजनीतिबाज स्वार्थी तत्वों के द्वारा जोर-जबरदस्ती करके बन्द करवाया जाता है। लोग डर कर बन्द करते हैं अपना कारोबार।
एक हवाला धंधा करने वाले की दिन दहाड़े हत्या हो जाने के विरोध में कल रायपुर बंद करवा दिया गया। पहले तो बंद करवाने के लिये लोग दस बजे के बाद निकला करते थे किन्तु कल सुबह सात बजे ही उन दुकानों को बंद करवा दिया गया जो खुली थीं। उन दुकानों का खुलना ही सिद्ध करता है कि अपनी दुकान बंद करने की उन दुकानदारों की इच्छा नहीं थी, उनके साथ जबरदस्ती की गई। चाय-नाश्ते की दुकान चलाने वाले ये वो लोग हैं जो रोज कमाते और रोज खाते हैं। एक दिन दुकान न खुलने से भले ही मुनाफाखोर तथाकथित बड़े व्यापारियों को कुछ भी फर्क न पड़ता हो किन्तु इन छोटे दुकानदारों को तो बहुत फर्क पड़ता है।
रायपुर में प्रतिदिन एक लाख से भी अधिक लोग बाहर से आते हैं। ऐसे ही अनेक लोग हैं जो चाय नाश्ता और भोजने के लिये जलपानगृह और भोजनालयों पर ही निर्भर रहते हैं। रायपुर बंद हो जाने से इन सभी लोगों को भूखे रह जाना पड़ता है।
पेट्रोल, डीजल आदि न मिल पाने के कारण कई आवश्यक कार्य नहीं हो पाते यहाँ तक कि अस्पताल तक नहीं पहुँच पाने के कारण मरीजों के जान जाने की सम्भावना हो सकती है।
वास्तव में ये बन्द विरोध प्रदर्शन कम बल्कि शक्ति प्रदर्शन अधिक होता है राजनीतिबाजों का।
आप ही सोचिये क्या औचित्य है ऐसे बंद का?
12 comments:
सही कहा आपने ये सब नाटक जनता को गुमराह करने और असली मुद्दों से दूर रखने के लिये ही होता है। धन्यवाद
कोई फायदा नहीं है इससे , बल्कि इससे हमारा ही नुकसान होना है ।
नि:संदेह यह हास्यास्पद ही नहीं अपराधिक भी है
anuchit hai
anuchit hai
बन्द को अपराध घोषित किया जाना चाहिए.
कभी ब्लॉग बंद भी हो जाए तो मजा आये?
अगर इन्हें फायदे नुक्सान की चिंता होती तो बंध ही क्यों करते।
गैर इंसानियत काम है।
बंद खाए-पिए लोगों का चोंचला होता है...आजकल व्यापार संघों में जितनी राजनीति होती है कहीं नहीं होती...इन्हें छोटे व्यापारियों की दिहाड़ी से कोई मतलब नहीं, सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने और अपने आकाओं को खुश करने का मौका चाहिए होता है...सुप्रीम कोर्ट बंद के ख़िलाफ़ जितने मर्ज़ी आदेश दे दे लेकिन व्यावहारिक तौर पर उन पर अमल दूर की कौड़ी ही बना हुआ है...
जय हिंद...
भारतीय जनता को विरोध या मांगें मंगवाने के दो ही तरीके आते हैं
1> चक्का जाम और रेल रोको (तोडो-फोडो)
2> बाजार बंद
क्या कहें
प्रणाम स्वीकार करें
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