टिप्पणियों के मोह से आज कोई भी हिन्दी ब्लोगर अछूता नहीं है। टिप्पणियों का मोह कोई अस्वाभाविक बात नहीं है किन्तु जिस प्रकार से हिन्दी ब्लोगजगत में टिप्पणियाँ पा लेने का मोह है उससे तो लगता है कि टिप्पणियाँ ही किसी पोस्ट की गुणवत्ता का मापदंड है। याने कि जिस पोस्ट में जितनी अधिक टिप्पणियाँ वह उतना ही अच्छा पोस्ट! इस लिहाज से तो विवादास्पद पोस्ट ही सबसे अच्छे हैं जहाँ पर बहुत सारी टिप्पणियाँ मिलती हैं, भले ही उन टिप्पणियों में गाली-गलौज तक शामिल हो।
टिप्पणी आखिर है क्या? एक प्रतिक्रिया मात्र तो है यह। यह मानव स्वभाव है कि जब कभी भी वह किसी के विचार को पढ़ता या सुनता है तो उसके अंदर भी प्रतिक्रिया स्वरूप कुछ न कुछ विचार अवश्य उठते हैं। जब लोग अपने भीतर उठने वाले इन विचारों को व्यक्त कर देते हैं तो वह टिप्पणी की संज्ञा प्राप्त कर लेती है। प्रतिक्रियात्मक विचार तो सभी पाठकों के भीतर उठते हैं किन्तु यह जरूरी नहीं है कि वे सभी अपने विचारों को व्यक्त ही करें। विचारों की अभिव्यक्ति के लिये लेखन क्षमता भी चाहिये।
मैं तो समझता हूँ कि किसी पोस्ट की गुणवत्ता तय करने वाले वास्तव में उसके पाठकगण हैं न कि टिप्पणियाँ। नेट में आम पाठकों में एक बड़ा वर्ग ऐसे पाठकों का भी होता है जिनमें लेखन क्षमता नहीं होती और इसी लिये वे पोस्ट पढ़ कर भी टिप्पणी नहीं करते। ऐसे पोस्टों की कमी नहीं है जिनमें टिप्पणियाँ तो नहीं के बराबर हैं किन्तु पढ़े बहुत अधिक लोगों के द्वारा गये हैं और बहुत अधिक पसंद भी किये गये हैं। डिग.कॉम में जाकर देखें तो सैकड़ों की संख्या में डिग (पसंद) प्राप्त करने वाले पोस्टों में टिप्पणी ही नहीं है या है भी तो नहीं के बराबर।
ऐसा लगता है कि हिन्दी ब्लोगजगत में पाठक के ब्लोगर भी होने के कारण उसमें लेखन क्षमता भी होती ही है और वे अच्छी प्रकार से टिप्पणी कर लेते हैं इसीलिये यह भ्रान्ति बन गई है कि टिप्पणियाँ ही पोस्ट का मापदंड है। शायद इसीलिये यहाँ पर टिप्पणी मोह भी अधिक है।
जब हिन्दी ब्लोगों को आम पाठक मिलने शुरू हो जायेंगे तो टिप्पणी मोह अपने आप कम हो जायेगा और लोग अधिक से अधिक पाठक तैयार करने में ही अपनी सफलता मानना शुरू कर देंगे।
33 comments:
आप सही हैं .
किसी पोस्ट की गुणवत्ता तय करने वाले वास्तव में उसके पाठकगण हैं न कि टिप्पणियाँ।
बने केहे हस अवधिया जी,
आज तबियत से तेहां टिप्पणी पाबे।:)
आदरणीय अवधिया जी...
आपकी बात से १००% सहमत हूँ...
सादर
महफूज़.
महफ़ूज़ जी से सहमत
बी एस पाबला
nice
गूढ प्रश्न... सत्य वचन..
हमें सांत्वना मिली आपकी पोस्ट पढ कर... टिप्पणी नहीं तो कोई बात नहीं.. लिखते रहेंगे..
हा हा.
सच कहा कि टिप्पणी लिखने के लिये भी तो विचारों की अभिव्यक्ति आवश्यक है जिसकी हर किसी से आपेक्षा व्यर्थ है.
लिखते रहिये
मोहिन्दर कुमार
http://dilkadarpan.blogspot.com
b s paabla ji ki sahmati se sahmat
और किसी ने अगर "खूब" अथवा 'nice" लिख मारा तो रचनाकार भी चक्कर में पड़ जाता है ! लेकिन एक बात जरूर कहूंगा कि अगर टिप्पणिया मिल जाए तो लेखक को यह तसाली तो होती है कि किसी ने देखा तो सही पढ़ा भले ना हो !
बिलकुल सही कह रहे हैं
yakinan aapki baat sachi hai
जिस प्रकार समीक्षा से पुस्तक की लोकप्रियता का पता चलता है उसी प्रकार टिप्पणियों से पोस्ट की सार्थकता का अन्दाजा लग जाता है।
लेकिन आपकी बात में दम है।
अपवाद तो सभी जगह होते हैं जी!
मैं भी यही कहूँगी ..सही कहा आपने ..
टिप्पणियां गुणवत्ता की कत्तई मापदण्ड नहीं हैं।
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लखनऊ बना मंसूरी, क्या हैं दो पैग जरूरी?
2009 के ब्लागर्स सम्मान हेतु ऑनलाइन नामांकन चालू है।
अन्य गुणीजनों की सहमति से हम भी सहमत हैं....
बाकी टिप्पणी से लेखक को थोडी तसल्ली जरूर हो जाती है कि किसी ने देखा तो सही।
जब मैं काम की जानकारी जुटाने के लिए कुछ अच्छे अंग्रेजी या अन्य भाषा के ब्लॉग देखता हूँ, वे काफी मेहनत से लिखे होते हैं मगर टिप्पणी होती ही नहीं. या एक दो कहीं कहीं दिख जाती है. वह भी केवल नाइस या थेंक्यू में. और उनके पाठक हजारों में होते हैं.
सही कहा फिर भी एक निवेदन:
’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
100% sehmat
बच्चा, अवधिया, कल्याण हो ! बच्चा, बुरा नहीं मानना, अंगूर खट्टे है न कहो, दरअसल टिप्पणिया ब्लागरों के
लिए टॉनिक का काम करती हैं, ज्यादा टिप्पणियां ज्यादा उत्साह देती हैं, जो इससे इनकार करे समझो झूठ बोल
रहा है, रचना अच्छी होंगी तो टिप्पणियां भी अच्छी मिलेगी !
मैंने कई अच्छे ब्लोग्स पढ़े हैं जिनमे टिप्पणियों की संख्या बहुत कम रहती है लेकिन उनका अपना एक पाठक वर्ग है! कई बार समयाभाव के कारण भी हर ब्लोंग पर टिपण्णी कर पाना संभव नहीं हो पता है लेकिन पढ़ तो लेते ही हैं! ब्लोंग की गुणवत्ता लेखन से है न की टिपण्णी से ! हाँ...लोकप्रियता का पैमाना ज़रूर टिपण्णी ही होती हैं!
पल्लवी जी, आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद!
किन्तु मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ कि लोकप्रियता का पैमाना टिप्पणी है। आप ब्लोगवाणी में ही ऐसे कई पोस्ट मिल जायेंगे जिन्हें पन्द्रह से बीस टिप्पणियां मिली हैं और पढ़े गये मात्र अट्ठाइस तीस ही। दूसरी ओर ऐसे भी पोस्ट मिलेंगे जिसमे पढ़े गये तो पचास से भी ऊपर होता है किन्तु टिप्पणी मात्र एक या दो ही मिली होती हैं और कभी कभी तो एक भी नहीं। तो क्या अधिक टिप्पणी वाली पोस्ट अधिक लोकप्रिय हुई?
एक बड़े पाठकवर्ग का बनना ही तो लोकप्रियता है।
आज आपने फ़िर से एक ऐसा प्रश्न उठा दिया जो धर्मसंकट में डाल रहा है । इसलिए नहीं कि कोई दुविधा है बल्कि आपकी बातों से सौ प्रतिशत तक सहमत हूं । मगर सोच ये रहा हूं कि पोस्ट पढने पहले पाठक आते हैं , फ़िर उन्हीं में से हमें टीपने वाले पाठक बनते हैं हालांकि मुझे तो लगता है कि दोनों ही जरूरी हैं । अब देखिए न यदि मैं अपनी किसी पोस्ट पर देखूं कि उसे पढने वाले तो सत्तर पाठक रहे मगर टिप्पणी वाले सिर्फ़ सात तो सोच में पड जाता हूं कि तो आखिर बांकी लोगों ने पढ के कुछ भी क्यों नहीं कहा । जबकि इसी तरह कई बार कोई शीर्षक पढ कर हुलस कर जाता हूं फ़िर निराश हो कर लौट जाता हूं कभी कभी बिना टीपे ही , मगर लेखक तो यही सोचेंगे न कि पाठक तो आए । अभी तो मुझे लगता है कि आपकी आखिरी पंक्तियां ही सबसे महत्वपूर्ण हैं क्योंकि मैं बहुत से उन ब्लोग्गर्स को जानता हूं जो लगातार एक माह तक लिखने के बाद जब टिप्पणी नहीं मिली तो निराश होके इसलिए ब्लोग्गिंग से हट गए क्योंकि उन्हें लगा कोई प्रतिक्रिया तो आई नहीं । क्या कहूं दोनों ही बातें अपनी अपनी जगह ठीक लगती हैं । मगर अंतिम सच तो यही है कि लेखन ही सब कुछ तय कर देता है पाठक भी और टीपक भी
कहते हैं, प्यार करिए तो दिखाइये भी।
पढ़ा सौ ने और टिपण्णी एक भी नहीं, तो कैसा लगेगा ?
वैसे यह बात अवश्य है की टिप्पणियों के ज्यादा नंबर से उनकी गुणवत्ता होना ज्यादा बेहतर है।
मेरे इस ब्लॉग अदालत को ही देख लें। रोज़ाना सैकड़ों पाठकों द्वारा देखे-पढ़े जाने के बावज़ूद शायद ही कोई टिप्पणी आती हो इस पर।
अब इसे क्या कहेंगे?
संतोष यही है कि पाठक लाभान्वित हो रहा
हम भी इन शांत पाठकों (Sailent Readers) से परेशान हैं जो बिना टिपाये निकल जाते हैं, ब्लॉग तो कई बार पड़ा जा चुका होता है परंतु टिप्पणी, अब क्या बताये> :(
भईया,
यह सच है की टिपण्णी किसी भी रचना की श्रेष्ठता का द्योतक नहीं ..परन्तु इस बात का मानक तो होता ही है ...कोई है जिसने इसे पढ़ा है...
साथ ही टिपण्णी अपनत्व बढ़ाती है....
हमको आपकी टिपण्णी का बहुत इंतज़ार रहता है..ये अलग बात है की हम एक नंबर के कोढिया हैं पढ़ते हैं आपको और... बिना कुछ बोले चले जाते हैं...लेकिन आप ऐसा मत कीजियेगा....
आप आते हैं...या जितने भी पठाकगन आते हैं...तो पोस्ट का मान बढ़ता है....अब झूठ मूठ कोई कहे की ऐसी बात नहीं है तो का हम मान लेंगे...हरगिज नहीं..:)!!
गुणवत्ता की परख भले ही न हुई हो पर किसी न किसी रूप में लालच तो बढ़ा ही है.......
क्या टिप्पणियाँ ही किसी पोस्ट की गुणवत्ता का मापदंड हैं? बिल्कुल नही.
सार्थक विमर्श किया अवधिया जी आपने.
जी.के. अवधिया जी आप की बात से सहमत हुं
जब हिन्दी ब्लोगों को आम पाठक मिलने शुरू हो जायेंगे तो टिप्पणी मोह अपने आप कम हो जायेगा और लोग अधिक से अधिक पाठक तैयार करने में ही अपनी सफलता मानना शुरू कर देंगे।
इन चंद लाइनों में आपने वो सब कुछ कह दिया अवधिया साहब, जिसे वास्तविकता कहते हैं।
यही होना चाहिए, इसी की तैयारी है और यही होगा।
अवधिया जी
आज कल इससे आगे कोई सोच भी नहीं रहा है
Avdiya ji... apne jo prashn uthaya ha wakayi jayaz ha...par iske bhi do pehlu h..
tippaniya milne se ye pata chalta ha ki kitne log hame pad rahe ha...tippaniya dekhke apni kami aur khoobi ka bhi pta chalta ha... aur mansik santushti bhi milti ha jiski har ek lekhak ko zarurat hoti ha...usise vo aage likhne ko bhi prerit hota ha...
dusra pehlu zara pareshan karne wala ha kam se kam mere liye toh.... kuch log bas aise tippani kar dete ha jiase ki aupcharikta... KYA KHOOB LIKHA HA...BOHOT ACHA LIKHA HA...NICE....ya keval WAH.... are bhaiyya ye bhi to bataye ki khoob laga to kya laga taki use kayam rakha jaye... chaliye jo bhi ho...kuch kami ha to hum bloggers ko hi to sudhar karna hoga isliye jiski shuruaat mene khud se hi ki ha...ummed karti hu baaaki log bhi karenge....
apki ye post sarthak lagi....
dhanyawad
किसी पोस्ट की गुणवत्ता तय करने वाले वास्तव में उसके पाठकगण हैं न कि टिप्पणियाँ।
लाख टके की बात कर दी आपने...जो टिप्पणियों के लिए लिखता है समझिये उसके लेखन का पतन शुरू हो गया...
नीरज
हिन्दी ब्लॉग्स को फिलहाल पाठकों की ज़रूरत है और उसके लिये स्तरीय लेखन की । लेकिन आम पाठकों की सोच यही है कि जिसके पास ज़्यादा टिप्पणियाँ उसके पाठक अधिक ..इस भ्रम से बाहर निकलना ज़रूरी है ।
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