नींद नहि आवै पिया बिना नींद नहि आवै।
मोहे रहि रहि मदन सतावै पिया बिना नींद नहि आवै॥
सखि लागत मास असाढ़ा, मोरे प्रान परे अति गाढ़ा,
अरे वो तो बादर गरज सुनावै, परदेसी पिया नहि आवै।
पिया बिना नींद नहि आवै॥
सखि सावन मास सुहाना, सब सखियाँ हिंडोला ताना,
अरे तुम झूलव संगी सहेली, मैं तो पिया बिना फिरत अकेली।
पिया बिना नींद नहि आवै॥
सखि भादों गहन गम्भीरा, मोरे नैन बहे जल-नीरा,
अरे मैं तो डूबत हौं मँझधारे, मोहे पिया बिना कौन उबारे।
पिया बिना नींद नहि आवै॥
सखि क्वार मदन तन दूना, मोरे पिया बिना मन्दिर सूना,
अरे मैं तो का से कहौं दुख रोई, मैं तो पिया बिना सेज ना सोई।
पिया बिना नींद नहि आवै॥
सखि कातिक मास देवारी, सब सखिया अटारी बारी,
अरे तुम पहिरौ कुसुम रंग सारी, मैं तो पिया बिना फिरत उघारी।
पिया बिना नींद नहि आवै॥
सखि अगहन अगम अंदेसू, मैं तो लिख-लिख भेजौं संदेसू,
अरे मैं तो नित उठ सुरुज मनावौं, परदेसी बलम को बुलावौं।
पिया बिना नींद नहि आवै॥
सखि पूस जाड़ अधिकाई, मोहे पिया बिना सेज ना भाई,
अरे मोरे तन-मन-जोबन छीना, परदेसी गवन नहि कीना।
पिया बिना नींद नहि आवै॥
सखि माघ आम बौराये, चहुँ ओर बसंत बिखराये,
अरे वो तो कोयल कूक सुनावै, मोरे पापी पिया नहि आवै।
पिया बिना नींद नहि आवै॥
सखि फागुन मस्त महीना, सब सखियन मंगल कीन्हा,
अरे तुम खेलव रंग गुलालै, मोहे पिया बिना कौन दुलारै।
पिया बिना नींद नहि आवै॥
आप इसे मेरी स्वरचित रचना मत समझ लीजियेगा क्योंकि यह किसी अन्य की रचना है जिनका नाम तक मुझे पता नहीं है। वास्तव में यह ताल धमाल के साथ गाया जाने वाला फागगीत है जिसे बारहमासी फाग के नाम से जाना जाता है।
चलते-चलते
जमुना गहरी कइसे भरौं जमुना गहरी
ठाढ़े भरौं राजा राम देखत हैं
निहुरे भरौं भीजै चुनरी
जमुना गहरी ...
धीरे चलौं घर बालक रोवत है
जल्दी चलौं छलकै गगरी
जमुना गहरी ...
5 comments:
मै हां ता दु दिन ले उसनिंदा हंव,
ता मोर हालत खराब हे,
अउ ये दे हां ता सदा उसनिंदा हे
एखर काय होही कोन जानि।:)
सुंदर फ़ाग गीत लाए अवधिया जी
चोला गद होगे।
बधई
आशाड से फ़ागुन तलक नायिका के विरह का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है आपने ...अपने आप मे अनोखी बहुत अच्छी रचना के लिये आभार!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
विरह की अनुपम अभिव्यक्ति
लाजवाब
अद्भुत!
बहुत सुंदर ओर मन भावन रचना जी
धन्यवाद
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