हिन्दी में सबसे पहला निजी चैनल जीटीवी आया और आते ही उसने हिन्दी में अंग्रेजी को घुसेड़ कर खिचड़ी प्रसारण शुरू कर दिया। चूँकि वह हिन्दी का पहला चैनल था इसलिये उसे लोकप्रिय तो होना ही था उसे किन्तु शायद बाद में आने वाले निजी चैनलों ने उसके खिचड़ी भाषा को ही उसकी लोकप्रियता का कारण समझ लिया और उसी ढर्रे पर चल कर हिन्दी की और भी चिन्दी करने लगे। यह हिन्दी की समृद्धि है या हिन्दी की ऐसी तैसी?
अब अन्तरजाल में ब्लोग्स का साम्राज्य है। हिन्दी ब्लोग्स की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है और उसी अनुपात में हिज्जों तथा व्याकरण की गलतियाँ भी अधिक से अधिक देखने को मिल रही हैं। यद्यपि यह क्षम्य नहीं है किन्तु, यह सोचकर कि अनेक अहिन्दीभाषी भी हिन्दी ब्लोग लिख रहे हैं और उनसे ऐसा होना स्वाभाविक है, एक बार इसे अनदेखा किया भी जा सकता है। पर हिन्दी ब्लोग्स में भी जबरन अंग्रेजी घुसेड़ा जाना और ऐसे शब्दों का प्रयोग करना जिसका अर्थ न तो नलंदा विशाल शब्दसागर जैसे हिन्दी से हिन्दी शब्दकोश में खोजने पर नहीं मिलता और यह मानकर कि शायद यह अंग्रेजी शब्द हो आक्फोर्ड, भार्गव आदि अंग्रेजी से हिन्दी शब्दकोशों में खोजने से भी नहीं मिलता क्या है? यह हिन्दी की समृद्धि है या हिन्दी की ऐसी तैसी?
10 comments:
mudda sahi hai apka vicharniy
अवधिया जी , यदि कुछ उदाहरण भी दे देते तो और भी अच्छा होता।
आजकल लोगों को हिंगलिश की आदत सी पड़ गई है।
दराल जी,
हिन्दी ब्लोग्स को तो हम सभी पढ़ते हैं तो फिर उदाहरण देने की क्या जरूरत है? गौर करेंगे तो अपने आप सैकड़ों उदाहरण मिल जायेंगे।
साबित हो गया कि मेरे जैसे कम पढे-लिखे और लोग भी ब्लागिंग में हैं
प्रणाम स्वीकार करें
बच्चा समझ कर क्षमा कर दीजियेगा जी
कृप्या नलंदा और आक्फोर्ड पर गौर करें
प्रणाम
अन्तर सोहिल जी,
यहाँ पर प्रश्न कम या अधिक पढ़े लिखे लोगो का नहीं बल्कि यह है कि क्या हिन्दी के साथ कुछ भी प्रयोग करते रहना उचित है?
यदि आप समझ रहे हैं कि मैंने "नालंदा" भूलवश "नलंदा" टाइप किया है तो यह आपकी भूल है, मैंने जिस शब्दकोश का जिक्र किया है उसका नाम ही "नलंदा विशाल शब्दसागर" है और मेरी जानकारी में यह हिन्दी के सबसे अधिक शब्दों को समाहित करने वाला शब्दकोश है। रही बात "आक्सफोर्ड" की तो यह एक अंग्रेजी शब्द है जिसे हिन्दी में "आकस्फोर्ड" या "ऑकस्फोर्ड" दोनों ही तरह से लिखा जाता है। अंग्रेजी ही नहीं हिन्दी के भी कई शब्दों को एक से अधिक तरह से लिखा जाता है जैसे कि "अन्तर" और "अंतर" "पाञ्चजन्य" और "पांचजन्य"।
लोग हिन्दी लिखते हैं यह बड़ी बात है।
महोदय, मेरे विचार से यदि हिन्दी के लेखों में अंग्रेजी तथा अन्य इतर भाषाओं के शब्द स्वाभाविक रूप से आते हैं, तो वे क्षम्य हैं. किन्तु यदि उन्हें बलपूर्वक प्रविष्ट कराया जाता है, तो वे अस्वाभाविक लगते हैं और लेख की बोधगम्यता पर भी प्रभाव डालते हैं. पर इन सब बातों से पहले ये देखना चाहिये कि लेख का विषय क्या है? निश्चित ही साहित्यिक-सांस्कृतिक विषयों पर लिखे गये लेख और निबंधों की भाषा शुद्ध हिन्दी ही होनी चाहिये, किन्तु आत्मपरक निबन्ध, व्यंग्य, व्यक्तिगत अनुभव और कोई ऐसा समसामयिक लेख, जिसके विषय में लिखते हुये अंग्रेजी का प्रयोग अपेक्षित हो, आदि में शुद्ध हिन्दी का अधिक आग्रह ठीक नहीं. इसके अतिरिक्त कुछ शब्द ऐसे हैं, जिनको आधुनिक संस्कृत-साहित्य में भी यथावत् ले लिया गया है. जैसे-रेलयानम्, मोटरयानम्, चायम् आदि. तो इन्हें हिन्दी में प्रयुक्त न करने में आपत्ति क्यों ?
आपने सही फ़रमाया. जरूरत भर के शब्द अंग्रेजी से लिये जाना तक तो ठीक है परंतु जबरन अंग्रेजी घुसेड़कर हिन्दी को हिंग्लिश बना देना ठीक नही.
यहां तो नवभारत टाइम्स जैसे अखबार भी हिन्दी को डुबोने में लगे हैं. कई बार अंग्रेजी का महिमा मंडन करते हुए लेख ये प्रकाशित करते रहते हैं. और अंग्रेजी को हिन्दी में जमकर घुसेड़कर अपने अखबार में प्रयोग करते हैं.
जाकर उनका विचार मंच वाला कालम देख लीजिए.
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