नीर अर्थात् सलिल, नीरद, नीरज, जल या पानी! यह नीर कभी नयन से बरसता है तो कभी मेघ से बरसता है। नयन से नीर जहाँ गम में बरसता है वहीं खुशी में भी बरसता है। प्रियतम के विरह में प्रियतमा कहने लगती हैः
प्रियतम तो परदेस बसे हैं, नयन नीर बरसाये रे
तो दूसरी ओर तुलसीदास जी कहते हैं:
नयन नीर पुलकित अति गाता
यह नीर जिस किसी के संसर्ग में आता है उसे निर्मल कर देता है। इसीलिये कबीर कहते हैं:
कबिरा मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर
रहीम कहते हैं कि इस नीर याने कि पानी के बिना उबरना मुश्किल हैः
पानी गये न ऊबरे मोती मानुस चून
विचित्र है पानी की महिमा! कभी पानी पिलाना पुण्य का काम होता था पर आज पानी बेचना कमाई का काम है। आज के जमाने में आगे बढ़ना है तो दूसरों का पानी उतारते रहिये।
6 comments:
आज के जमाने में आगे बढ़ना है तो दूसरों का पानी उतारते रहिये।
कडुवा सच
प्रणाम
वक्त-वक्त की बात है अवधिया साहब , आपके पानी वाली बात पढ़कर अपने सन ८५-८६ की बात याद आ गई ! दिल्ली में अकेला था ( बेचुलर ) !सुबह अक्सर जब टोइलेट में होता, तभी कम्वक्त फोन बजता ! मैं सोचता कि काश मेरे पास भी आर्मी और पुलिस वालो की तरह वाईर्लेस सेट होता तो टोइलेट से ही बात कर लेता ! और आज देखिये , मोबाइल ने वह सपना सच कर दिखाया ! :)
आगे बढ़ना है तो दूसरों का पानी उतारते रहिये।.
bahut achhi baat kahi hai aapne.
krantidut.blogspot.com
पहले पानी का माल ज्यादा चढता है।
दुसरे पानी मे कुछ पातर हो जाता है।
तीसरे पानी मे पुरा ही ढोल ढोली है
अवधिया जी बुरा न मानो होली है।:)
अवधिया जी जब हम छोटे थे तो गर्मियो मै जगह जगह लोग पुन्य कमाने के लिये प्याउ लगते थे,पानी के बडे बडे घडे भर कर छाया मै रखते थे.... ओर आज उसी पानी को बेच कर पाप कमा रहे है, दुसरो को पानी पानी करते बिलकुल नही शरमाते, बहुत सुंदर लिखा आप ने धन्यवाद
कभी पानी पिलाना पुण्य का काम होता था पर आज पानी बेचना कमाई का काम है.....
सब कलयुग की माया है अबधिया जी! आगे पता नहीं अभी ओर क्या देखना बाकी है......
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