विभाजन पूर्व भारत
(चित्र नेशनल ज्योग्रफिक से साभार)
विभाजन पश्चात् भारत
महात्मा गांधी ने विभाजन के पूर्व हिन्दुओं से अनुरोध किया था कि वे अपना घर बार छोड़ कर कहीं न जाएँ क्योंकि देश का विभाजन नहीं होगा। भरी सभा में उनका कथन था - "यदि पाकिस्तान बनेगा तो मेरी लाश पर बनेगा"।
विभाजन के दौरान हुए दंगों में मारे गये लोगों की लाशों का ढेर
(चित्र स्रोतः http://news.bbc.co.uk/2/shared/spl/hi/pop_ups/06/south_asia_india0s_partition/html/7.stm)
दंगों में मारे गये लोगों का सामूहिक अग्नि संस्कार
(चित्र स्रोतः http://news.bbc.co.uk/2/shared/spl/hi/pop_ups/06/south_asia_india0s_partition/html/9.stm)
पाकिस्तान से भारत आने वाली रेलगाड़ी
दिल्ली से पाकिस्तान जाने वाली रेलगाड़ी
शरणार्थी शिविर
(चित्र स्रोत http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00routesdata/1900_1999/partition/camps/camps.html)
एक और शरणार्थी शिविर
(चित्र स्रोत http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00routesdata/1900_1999/partition/camps/camps.html)
पंजाब उच्च न्यायालय के एक न्यायमूर्ति श्री जी.डी. खोसला की पुस्तक ‘‘The stern Reckoning’’ पुस्तक से कुछ उद्धरण:
गाड़ियाँ भर-भरकर निर्वासितों के दल हिन्दुस्तान आने लगे। उसका ब्यौरा भी हृदय विदीर्ण करने वाला है। वह भयाक्रान्त मानवता का बड़ा प्रवाह बह रहा था। डिब्बों में साँस लेने जितना भी स्थान न था। डिब्बों की छत पर बैठकर भी लोग आते थे। पश्चिमी पंजाब के मुसलमानों का आग्रह था कि लोगों का स्थानान्तरण होना चाहिए, परन्तु वह इतने सीधे, बिना किसी छल के हो, यह उन्हें नहीं भाता था। इन हिन्दुओं के जाते समय भयानकता, क्रूरता, पशुता अमानुषता, अवहेलना आदि भावों का अनुभव मिलना ही चाहिए, ऐसी उनकी सोच थी। उसी के अनुसार उनका व्यवहार था।
(छेदक 12 ए 9)
किसी स्टेशन पर गाड़ी घण्टों ठहरती थी। उस विलम्ब का कोई कारण न था। पानी के नल तोड़ दिए गए थे। अन्न अप्राप्य किया जाता था। छोटे बच्चे भूख और प्यास से छटपटा कर मरते थे। यह तो सदा का अनुभव बना था। एक अधिकृत सूचना के अनुसार माता-पिताओं ने अपने बच्चों को पानी के स्थान पर अपना मूत्र दिया, किन्तु यह भी उनके पास होता तो ! निर्वासितों पर हमले हुआ करते थे। उनको ले जाने वाले ट्रक और लारियाँ रास्ते में रोकी जाती थीं। लड़कियाँ भगायी जाती थीं। जो युवावस्था में थीं, ऐसी लड़कियों पर बलात्कार हुआ करते थे। वे भगायी भी जाती थीं और दूसरे लोगों की हत्या की जाती थी। यदि कोई पुरुष बच जाए, उसे अपने प्राण बच गए, यह मानकर ही संतुष्ट रहना पड़ता था।
(छेदक 12 ए 10)
निर्वासितों का काफिला झुण्ड की भाँति चल रहा था। वृद्ध पुरुषों तथा स्त्रियों का चलते-चलते दम घुट जाता था। वे मार्ग के किनारे मरने के लिए ही छोड़े जाते थे। काफिला आगे बढ़ जाता था। उनकी देखभाल करने का किसी के पास समय न होता था। रास्ते शवों से भरे थे। शव गल जाते थे। उनसे दुर्गन्ध फैलती थी। कुत्ते और गिद्ध उन्हें अपना भोजन बनाते थे। ऐसे समूह मानो मनुष्य की पराभूत चित्त की, शोक विह्वल और अगनित मन की अन्त्ययात्रा ही थी।
(छेदक 12 ए 11)
अल्पसंख्यकों का बरबस निष्कासन करना, यही मुस्लिम लीग और पाकिस्तान की रचना को प्रोत्साहित करने वालों का मन्तव्य था। अतएव उन लोगों से सद्व्यवहार, सहानुभूति अथवा सुविधाओं की अपेक्षा करना अर्थहीन था। उनके सैनिक और आरक्षीगण (पुलिस) उनके यात्रारक्षी दल प्रायः मुसलमान थे। उनसे निर्वासितों को रक्षण मिलना असंभव ही था। निर्वासितों को भी उन पर विश्वास न था। क्योंकि उन्हें रक्षण देने की अपेक्षा, अपने धर्मबन्धुओं द्वारा चलाए लूटपाट के अभियान में हाथ बंटाने का उन्हें अधिक मोह हुआ करता था।
(छेदक 12 ए 12)
पश्चिमी पंजाब से आई निर्वासितों की गाड़ियों पर कई हमले हुआ करते थे, किन्तु 14 अगस्त, 1947 के पश्चात् जो हमले हुए, वे अत्यधिक क्रूरतापूर्वक थे। सितम्बर में झेलम जिले के पिंडदादनखान गाँव से चल पड़ी गाड़ियों पर तीन स्थानों पर आक्रमण हुए। दो सौ स्त्रियों को या तो मारा गया या भगाया गया था। वहाँ से निकली गाड़ी पर वजीराबाद के पास हमला हुआ। वह गाड़ी सीधे रास्ते से लाहौर जाने के बजाय टेढ़े रास्ते सियालकोट की ओर घुमायी गयी। यह सितम्बर में हुआ। अक्टूबर में सियालकोट से आने वाली एक गाड़ी पर ऐसा ही अत्याचारी प्रयोग किया गया, किन्तु जनवरी, 1948 में बन्नू से निकली गाड़ी पर गुजरात स्थानक पर विशेष रूप से क्रूर हमला हुआ। हिन्दुओं का घोर संहार हुआ। उसी गाड़ी पर खुशाब स्थानक पर भी हमला हुआ। सरगोधा और लायलपुर के रास्ते वह गाड़ी सीधी लाहौर लाई जाने के बजाय खुशाब, मालकवाल, लालामोसा गुजरात और वजीराबाद जैसे दूर के मार्ग से लाहौर लाई गई। बिहार का सैनिकदल यात्रारक्षा के लिए नियुक्त किया गया था, उन पर भी शस्त्रधारी पठानों ने हमला किया था, गोलियाँ बरसायी थीं। यात्रारक्षी दल ने प्रत्युत्तर में गोली चलायी, किन्तु शीघ्र ही उनका गोला बारुद समाप्त हो गया। जैसे ही पठानों को यह भान हुआ, तीन सहस्त्र पठानों ने गाड़ी पर हमला कर दिया। पाँच सौ लोगों को कत्ल कर दिया। यात्री अधिकतर बन्नू की ओर के थे और उनमें से कुछ धनवान थे। उनको लूट लिया गया। यह सब जनवरी, 1948 में हुआ।
(छेदक 12 ए 13)
(कोटेड सामग्री http://pustak.org/bs/home.php?bookid=4418 से साभार)
देश का विभाजन एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। विभाजन एक ऐसा घाव है जो हमेशा हमेशा के लिए नासूर बन कर रह गया है।
15 comments:
भारत का विभाजन एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी, विभाजन की त्रासदी को झेलना दुखदाई था। हमारे इतिहास का यह एक काला अध्याय तत्कालीन नेतृत्वकर्ताओं की पद लोलुपता के कारण लिखा गया।
लम्हों ने खता की और सदियों ने सजा पाई, विभाजन का दंश सहस्त्राब्दियों तक हमें सालता रहेगा।
इस भयानक त्रासदी के विवरण से ही रोंगेटे खड़े हो जाते हैं,मन क्षोभ से भर उठता है।
स्वतन्त्रता दिवस या शोक दिवस क्या कहें?
आज के दिन एक बेहतरीन परन्तु मार्मिक पोस्ट
इससे बडी श्रद्धांजली क्या होगी?
आज के दिन इस पोस्ट के बाद कुछ पढने का मन नहीं है, इसके आगे कोई भी पोस्ट क्या होगी?
प्रणाम स्वीकार करें
इतना सबकुछ होने के बाद भी हम हिंदुस्तानी नहीं चेतते !!
लम्हों ने खता की और सदियों ने सजा पाई!
अवधिया जी, वह दर्द कोई नहीं भूल सकता। पर माफी चाहूँगा, यहाँ पर सिर्फ एक पक्ष नजर आ रहा है। क्या आपने खुशवंत सिंह की 'ए ट्रेन टू पाकिस्तान' नहीं पढ़ी। यदि उसके भी कुछ अंश होते, तो शायद पोस्ट पूर्ण हो जाती।
………….
सपनों का भी मतलब होता है?
साहित्यिक चोरी का निर्लज्ज कारनामा.....
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
ज़ाकिर जी, वास्तव में मैंने खुशवंत सिंह की 'ए ट्रेन टू पाकिस्तान' नहीं पढ़ी है, जिसके लिए मुझे खेद है।
इस पोस्ट के माध्यम से मैंने सिर्फ उस समय के नेतृत्व की गलती के विषय में बताने का प्रयास किया है जिसके कारण राष्ट्र का विभाजन हुआ। यदि आपको इस पोस्ट में सिर्फ एक पक्ष नजर आ रहा है तो शायद मैंने अपनी बात को ठीक से बता नहीं पाया है।
आपको पोस्ट अपूर्ण लग रहा है तो कृपया आप पोस्ट लिखकर वे अंश प्रस्तुत कर दें जो आपके हिसाब से छूट गए हैं।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
और हाँ, इस पोस्ट में जो कुछ भी प्रस्तुत किया गया है वह भारत के एक सम्माननीय न्यायाधीश की पुस्तक से लिया गया है, मेरा लिखा नहीं। यदि यह एक पक्षीय है तो इसका जिम्मेदार मैं नहीं हूँ।
आपने जख्म हरा कर दिया !
विभाजन की त्रासदी झेलती आज की संतानें ...जो उस वक्त हुआ सो हुआ पर आज तक उन घटनाओं से नहीं उबार पाए हैं ...परिस्थिति भयंकर होती जा रही है ...छिप कर वार होते हैं ...कहीं कोई सुरक्षा नहीं है ...
बहुत अच्छी पोस्ट है..पढ़ कर और चित्रों को देख कर रोंगटे खड़े हो गए हैं ...मेरी नानी बताती थीं कि विभाजन के वक्त शहर के नालों में पानी नहीं खून बहा करता था ....
दिल दहलाने वाली....घटना था पार्टीशन ......... बहुत अच्छी पोस्ट....
अवधिया जी भारत का विभाजन अफसोसजनक था और उसके बाद की घटनाएँ तो और भी ज्यादा बुरी थी. काश वो वहशीपन वो क्रूरता सिर्फ यादों में ही कायम रह पाती और वर्तमान का हिस्सा ना बनती.
हम हिटलर को खाम्खां मै बदनाम करते है.......हमारे पडोस मै हिटलर से गंदे लोग बसते थे, बसते है, ओर बसते रहेगे.....
वेसे अच्छा हुआ विभाजन हो गया गंदगी एक तरफ़ हो गई
इतिहास का भयावह रूप। इस उपद्रव का भान जिन नेताओं को न हो, उनकी मूर्खता स्तुत्य है।
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई.वन्दे मातरम् !
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