Friday, August 6, 2010

ठुकराना मत मेरी विनती (गीत)

(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)

मद भरे नयन की प्याली से,
छलकाती हो मदहोशी;
अधरों पर मुसकान खेलती,
पर चुभती है खामोशी।

गोल सुडौल भुजाएँ तेरी,
चंचल मन को करती हैं,
अंगों की थिरकन रह रह कर,
तड़पन मन में भरती हैं।

तेरी सुन्दरता में सजनी,
बेसुध-सा खो जाता हूँ;
तेरे एक इशारे से ही,
नव-जीवन पा जाता हूँ।

तेरी बाहों का आलिंगन,
एक यही बस साध प्रिये;
साथ रहें अन्तिम श्वासों तक,
हाथों में हम हाथ लिये।

उफनाते सागर की लहरें,
मेरे मन की साध बनीं;
व्याकुल मन के अंधियारे में,
किरणें बन आओ सजनी।

काले घुंघराले बालों में,
कितना मादक आकर्षण;
ठुकराना मत मेरी विनती,
करने देना नित दर्शन।

(रचना तिथिः शनिवार 14-09-1984)

6 comments:

अपनीवाणी said...

अब आपके बीच आ चूका है ब्लॉग जगत का नया अवतार www.apnivani.com
आप अपना अकाउंट बना कर अपने ब्लॉग, फोटो, विडियो, ऑडियो, टिप्पड़ी लोगो के बीच शेयर कर सकते हैं !
इसके साथ ही www.apnivani.com पहली हिंदी कम्युनिटी वेबसाइट है| जन्हा आपको प्रोफाइल बनाने की साड़ी सुविधाएँ मिलेंगी!

धनयवाद ...
आप की अपनी www.apnivani.com टीम

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

एक अच्छी कवि्ता पढवाने के लिए आभार

राज भाटिय़ा said...

इस सुम्दर कविता के लिये आप का धन्यवाद

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर रचना.

रामराम

प्रवीण पाण्डेय said...

उत्कृष्ट प्रेम कविता।

Rohit Singh said...

कितनी खूबसूरत रचना। जरा सी साध.. बस साथ रहना तुम प्रिय