(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)
मद भरे नयन की प्याली से,
छलकाती हो मदहोशी;
अधरों पर मुसकान खेलती,
पर चुभती है खामोशी।
गोल सुडौल भुजाएँ तेरी,
चंचल मन को करती हैं,
अंगों की थिरकन रह रह कर,
तड़पन मन में भरती हैं।
तेरी सुन्दरता में सजनी,
बेसुध-सा खो जाता हूँ;
तेरे एक इशारे से ही,
नव-जीवन पा जाता हूँ।
तेरी बाहों का आलिंगन,
एक यही बस साध प्रिये;
साथ रहें अन्तिम श्वासों तक,
हाथों में हम हाथ लिये।
उफनाते सागर की लहरें,
मेरे मन की साध बनीं;
व्याकुल मन के अंधियारे में,
किरणें बन आओ सजनी।
काले घुंघराले बालों में,
कितना मादक आकर्षण;
ठुकराना मत मेरी विनती,
करने देना नित दर्शन।
(रचना तिथिः शनिवार 14-09-1984)
6 comments:
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एक अच्छी कवि्ता पढवाने के लिए आभार
इस सुम्दर कविता के लिये आप का धन्यवाद
बहुत सुंदर रचना.
रामराम
उत्कृष्ट प्रेम कविता।
कितनी खूबसूरत रचना। जरा सी साध.. बस साथ रहना तुम प्रिय
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