Sunday, August 8, 2010

ब्लोग तो हर कोई बना सकता है ना! ब्लोग बनाना भला क्या मुश्किल काम है?

"नमस्कार लिख्खाड़ानन्द जी!"

"नमस्काऽऽर! आइये आइये टिप्पण्यानन्द जी!"

"आज हम आपके पास अपनी कुछ शंकाओं के समाधान के लिए आए हैं लिख्खाड़ानन्द जी!"

"हम अवश्य ही आपकी शंकाओं का निवारण करेंगे टिप्पण्यानन्द जी! बताइये आपकी क्या शंकाएँ हैं?"

"तो यह बताइये लिख्खाड़ानन्द जी, जब किसी फिल्म को देखकर दर्शक कहें कि बहुत ही बेकार फिल्म है तो फिल्म बनाने वाला इसके जवाब में दर्शक से यह नहीं कहता कि तुम्ही कोई अच्छी सी फिल्म बना कर दिखाओ, जब किसी कवि सम्मेलन में श्रोता किसी कवि की कविता को हूट करते हैं तो कवि श्रोताओं से यह नहीं कहता कि तुम्ही कोई अच्छी सी कविता लिख कर दिखाओ तो फिर जब कोई पाठक किसी ब्लोग पोस्ट को पढ़ कर उसकी निरर्थकता के बारे में कुछ कहता है तो उससे कुछ सार्थक करके दिशा बदलने के लिए क्यों कहा जाता है? उन्हें पनठेलिये, मजमा लगाने वाले और खुद कुछ भी नहीं करने वाले क्यों कहा जाता है?"

"बहुत ही सीधी और सरल सी बात है टिप्पण्यानन्द जी! फिल्म हर कोई नहीं बना सकता, कविता भी हर कोई नहीं कर सकता पर ब्लोग तो हर कोई बना सकता है ना! ब्लोग बनाना भला क्या मुश्किल काम है? और आपको हम बता दें कि ब्लोग बना लेने को ही सार्थक कर के दिशा बदलना कहा जाता है! यदि हम पनठेलियों और मजमा लगाने वालों को प्रोत्साहित कर के ब्लोगर बना दें तो फिर वे भी सार्थक करने वालों की श्रेणी में आ जायेंगे। ब्लोगर बनाना तो देश और समाज के लिए बहुत ही कल्याणकारी काम है! और फिर किसी को ब्लोगर बनाने का सबसे बड़ा फायदा तो खुद को ही मिलता है ना! जिस किसी को भी आप ब्लोगर बनाते हैं वह आपका पक्का मुरीद हो जाता है और आपके प्रत्येक पोस्ट में टिप्पणी करना नहीं भूलता। यदि कभी कोई आपकी आलोचना करे तो वह आपके गुट का सदस्य बनकर आपके पक्ष में जी-जान लड़ा देने के लिए हमेशा तैयार रहता है!"

"लगता है कि खुदा-ए-शाह 'खुदगर्ज' को आपने आपने ही ब्लोगर बनाया है! तभी तो वे आपकी किसी भी आलोचना-समालोचना का सामना करने के लिए हमेशा सामने आ जाते हैं।"

"हें हें हें हें, आप तो बड़ी दूर की कौड़ी ले आया करते हैं!"

"लिख्खाड़ानन्द जी! हमने तो हिन्दी में सिर्फ 'लघु', 'लघुतर' और 'लघुतम' ही पढ़ा है किन्तु आजकल कथा-कहानियों के साथ 'लघुत्तम' विशेषण का प्रयोग देखने में आ रहा है।"

"टिप्पण्यानन्द जी! आपने कभी लघुत्तम समापवर्तक नहीं पढ़ा है क्या?"

"पढ़ा तो है लिख्खाड़ानन्द जी! किन्तु वह तो गणित से सम्बन्धित शब्द है, कथा-कहानियों के साथ लघुत्तम विशेषण का प्रयोग क्या व्याकरण की दृष्टि से अनुचित नहीं है?"

"आप भी अजीब सिड़ी आदमी हैं! आज हिन्दी के व्याकरण का ज्ञान कितने लोगों को है? आप ही बताइए कि सही हिन्दी का प्रयोग कितने लोग लोग करते हैं आज के जमाने में? कितने ही ट्रकों और बसों के पीछे 'हार्न दिजीये' लिखा होता है, पेट्रोल पंप में 'यहाँ पेट्रोल मीलता है' लिखा होता है। शासकीय कार्यालयों में जाकर देखें कि कैसी हिन्दी का चलन है वहाँ पर। आज तक किसी ने कभी कोई ऐतराज किया है क्या? फिर लघुत्तम कथा पर आपको ऐतराज करने का क्या अधिकार है? हम तो कहेंगे कि लघुतम के स्थान पर लघुत्तम का प्रयोग तो और भी अधिक प्रभावशाली है। हम तो यह भी कहेंगे कि लघुत्तम लघु और उत्तम शब्दों की संधि से बना हुआ शब्द है याने कि लघुत्तम कथा का अर्थ है लघुकथाओं में उत्तम लघुकथा!"

"संधि और समास तो हमने भी पढ़ा है पर जिस प्रकार से आप संधि-विच्छेद कर रहे हैं वैसा तो कभी नहीं पढ़ा भई!"

"आप हमारे पास शंका-समाधान के लिए आए हैं या हम से शास्त्रार्थ करने के लिए? भूल जाइये आप अपने जमाने में पढ़ी हुई हिन्दी को। वह पुराने जमाने की हिन्दी हो गई। हिन्दी तो जमाने के साथ-साथ बदलती ही रही है! एक जमाने में गाँधी जी ने 'साहब राम' और 'बेगम सीता' वाली हिन्दुस्तानी हिन्दी चलाई थी। और आज के जमाने में वही हिन्दी चलती है जिसे आज के महान साहित्यकार, पत्रकार, प्रकाशक और हम जैसे महान ब्लोगर लिखते और पढ़वाते हैं। आज हिन्दी की कोई भी नामी पत्र-पत्रिका या अखबार को पढ़ कर देख लीजिए आपको चन्द्रबिन्दु का प्रयोग कहीं नहीं मिलेगा, आज की हिन्दी में 'बच्चा हँस रहा है' कोई नहीं लिखता, 'बच्चा हंस रहा है' ही लिखा जाता है। आज के पाठक 'हंस' और 'हँस' के चक्कर में नहीं पड़ा करते। आज के जमाने में तो पढ़ने वालों को बस समझ में आना चाहिए कि आप क्या कहना चाहते हैं, हिन्दी में हिज्जे और व्याकरण की गलतियों को कोई नहीं देखता। जो लोग आज भी शुद्ध हिन्दी की बात करते हैं वे लोग लकीर के फकीर हैं। ऐसे बेवकूफों की बात कोई सुनने वाला भी नहीं है। इन मूर्खों को तो यह भी नहीं पता है कि यदि हम लोग नहीं लिखते तो हिन्दी कब की रसातल में चली गई होती!"

"धन्यवाद लिख्खाड़ानन्द जी! आपसे हमेशा ज्ञान की बातें ही सीखने को मिलती हैं। अब मैं चलता हूँ, नमस्कार!"

"नमस्कार!"

10 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

गुरुदेव,
लिक्खाड़ानंद जी तो परले दर्जे के विद्वान निकले।
ज्ञान का कोष ही खोल कर धर दिया। आज कल चँद्र बिंदु लगाने का अवकाश किसे है।
ज्ञानरंजन के लिए आभार

शिवम् मिश्रा said...

बहुत खूब .....क्या कहने !

राज भाटिय़ा said...

बहुत खुब, सही कहा जी

ताऊ रामपुरिया said...

बिल्कुल सटीक जी.

रामराम.

Rahul Singh said...

श्री अवधिया जी, जब भी आपके पेज पर अता हूं, आपके परिचय में इस अंश 'आप लोगों की सेवा करना ही मेरी उत्कृष्ट अभिलाषा है।' का उत्‍कृष्‍ट शब्‍द वस्‍तुतः 'उत्‍कट' है या मेरी समझ का फेर.

प्रवीण said...

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@ Rahul Singh,

बहुत हिम्मत है आपमें मित्र... ;)


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Gyan Darpan said...

बिल्कुल सटीक

प्रवीण पाण्डेय said...

हमें भी बहुत कुछ सीखने को मिल गया।

अन्तर सोहिल said...

कई दिनों के बाद लिक्खडानन्द जी से सीखने को मिला।
"धन्यवाद लिख्खाड़ानन्द जी! आपसे हमेशा ज्ञान की बातें ही सीखने को मिलती हैं। अब मैं चलता हूँ, नमस्कार!"

प्रणाम

समयचक्र said...

बहुत सटीक ... अब मनन कर सीखने की कोशिःश कर रहा हूँ .... आभार