Monday, August 30, 2010

चोर और बेईमान कहलाने से तो अच्छा है कि हम किसी पोस्ट को पढ़ें ही मत

एक बहुत बड़ा बोझ-सा लद गया है हमारे हृदय में। हमें लग रहा है कि हम बहुत बड़े चोर और बेईमान हैं। रोज अनेक पोस्टों को पढ़ते हैं पर टिप्पणी किसी-किसी में ही करते हैं और ऐसा करने को अब चोरी और बेईमानी की संज्ञा मिल गई है। पोस्टों को पढ़ने और टिप्पणी ना करने के अलावा एक उससे भी बड़ा अपराध हम करते रहे हैं वह यह कि हमारे कुछ मित्र, जो न तो ब्लोगर ही हैं और ना ही इंटरनेट यूजर, जब हमसे मिलने आते हैं तो हम उन्हें भी हमारी पसंद की पोस्टों को पढ़वा देते हैं और हमें बहुत खुशी होती है यह देखकर कि उन पोस्टों को पढ़कर उन्हें भी आनन्द मिलता है। पर इस प्रकार से तो हमने अपने उन बेचारे मित्रों को भी चोर और बेईमान बना दिया क्योंकि उन्हें तो यह भी पता नहीं होता कि टिप्पणी क्या चीज होती है।

हमारे द्वारा टिप्पणी ना किए जाने के भी कई कारण हैं। कई बार तो पोस्टों को पढ़कर हमें लगने लगता है कि हम भैंस हैं और हमारे सामने बीन बजा दी गई है। अब पुरानी कहावत है कि "भैंस के आगे बीन बजे और भैंस लगे पगुराय", सो पगुराने के सिवा हम कुछ कर ही नहीं पाते। विद्वान ब्लोगर महोदय या महोदया ने तो ज्ञान की बहुत अच्छी वर्षा की होती है अपने पोस्ट में पर हमारा बर्तन ही बहुत छोटा होता है जिसमें ज्ञानरूपी वर्षा का पानी भर सके। कई बार टिप्पणी करने की इच्छा होने के बावजूद भी जीवन-यापन के लिए जरूरी मगर टिप्पणी करने की तुलना में तुच्छ कामों में जुट जाते हैं। ऐसे ही और भी बहुत से कारण हैं।

अब तो हमें यह भी लगने लग रहा है कि यदि प्रिंट मीडिया में भी हम कुछ पढ़ें तो लेखक या प्रकाशक का मोबाइल नंबर खोजकर उन्हें अपनी प्रतिक्रिया से अवगत करावें और संपर्क नंबर ना मिलने पर चिट्ठी लिखकर टिप्पणी करें।

सचमुच यह ब्लोगरों के साथ बहुत बड़ा अन्याय हो रहा है कि पाठक उनके पोस्ट पर टिप्पणी नहीं करते। ब्लोगर तो पोस्ट लिख कर अपने पाठकों पर कितना बड़ा उपकार करते हैं और पाठक इतने बेवकूफ होते हैं कि एक छोटी सी टिप्पणी भी नहीं करते। बहुत बेइंसाफी है ये।

भौतिक शास्त्र में कार्य की परिभाषा के अनुसार कार्य तब होता है किसी वस्तु पर बल लगाने से उस वस्तु का स्थान परिवर्तन हो, किसी दीवार पर ताकत लगाने को कार्य नहीं कहा जा सकता क्योंकि कार्य का कुछ परिणाम ही नहीं निकला। इसी प्रकार से पोस्ट लिखने के बाद पाठक आ जाने को कार्य नहीं माना जा सकता, वह कार्य तो भी कहलाएगा जब उस पोस्ट में टिप्पणियाँ आ जावें।

अस्तु, अब तक तो हमसे अनजाने में चोरी हो गई पर अब जानबूझ कर ऐसा नहीं करेंगे। चोर और बेईमान बनने से अच्छा तो यही होगा कि हम पोस्टों को पढ़ना ही छोड़ दें।

15 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

आपकी बातों से सहमत हूँ भईया ...
चोरी का इल्ज़ाम लगने से बेहतर है नहीं पढ़ना ...
कौन इतनी मगज मारी करे...?

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

चोरी का इल्ज़ाम लगने से बेहतर है नहीं पढ़ना ...
कौन इतनी मगज मारी करे...?

Shah Nawaz said...

आपने बिलकुल ठीक कहा.... टिपण्णी करें ना करें, लेकिन पढना ना छोड़ें....

Bhavesh (भावेश ) said...

सही फीडबैक लेखक को न केवल प्रोत्साहित करता है, वरन उसके लेखन में त्रुटियों को सुधार कर उसे बेहतर लेखक बनाने में भी सहायक होता है.
हर बार फॉरवर्ड मेल मिलने पर, मेल भेजने वाले को उस मेल की प्राप्ति की सुचना नहीं दी जाती, वैसे ही हर पोस्ट को पढ़ने वाला उस पर टिपण्णी करे यह संभव नहीं है.
श्री अवधिया जी ने स्पष्ट कर दिया है "कि जीवन-यापन के लिए जरूरी मगर टिप्पणी करने की तुलना में तुच्छ कामों में जुट जाने से" भी कई बार टिपण्णी करनी रह जाती है.
इसलिए पोस्ट पर टिपण्णी की चिंता किये बगैर लिखने और पढ़ने का कार्य अनवरत चलता रहना चाहिए.

मनोज कुमार said...

विचारोत्तेजक!

ओशो रजनीश said...

अच्छी पोस्ट लिखी है आपने .......... आभार
कुछ लिखा है, शायद आपको पसंद आये --
(क्या आप को पता है की आपका अगला जन्म कहा होगा ?)
http://oshotheone.blogspot.com

प्रवीण पाण्डेय said...

ज्ञान तो बाटने की वस्तु है, न कि चोरी होने देने की।

कौशल तिवारी 'मयूख' said...

हर फिक्र को धुंए में...

विवेक रस्तोगी said...

कुछ हो गया, क्या हो गया.....

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

ठीक है जी हम तो चोर ही भले :)

आपका अख्तर खान अकेला said...

jnaab khaavt he ke krm kiye jaa fl degaa bhgvvaan likhe jaao aek din aapki tipppni ka vrksh itna bdhaa ho jaayega jiski chaavon en sbhi saahitykaar bethe honge bs khudaa se yhi duaa he. akhtar khan akela kota rajsthan

Udan Tashtari said...

अपने तो चोरी बस की नहीं, पाकेट मारी से ही काम चल जा रहा है. :)

Arvind Mishra said...

अरे यहाँ तो चोरी छिनारा सब हो गया !

ब्लॉ.ललित शर्मा said...


वाह-वाह,बहुत बढिया-
सही कहा आपने-ऐसे चोर बनने से तो
न पढना ही ठीक है। गुरुदेव आपसे 100% सहमत।
उम्दा पोस्ट के लिए आभार

खोली नम्बर 36......!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

एक बहुत बड़ा बोझ-सा लद गया है हमारे हृदय में। हमें लग रहा है कि हम बहुत बड़े चोर और बेईमान हैं।
अरे अरे अरेऽऽऽ …
जी.के. अवधिया साहब!
ऐसे नाराज़ नहीं हुआ करते ।
दो पांच को छोड़ कर ब्लॉग जगत में आपके तो हम सब बच्चे समान हैं ।
किसी नादान बच्चे ने धृष्टतावश कुछ अंट शंट बक बका दिया है तो क्षमा करदें ।
अब एक की गलती पर सब पर गुस्सियाना तो ठीक नहिं न !
बेशक , आप डांट डपट के मामला निपटा दें , पर पोस्ट देखना न छोड़ें … चाहे कमेंटवा न दें तो न दें ।
आशा है कि नेट भ्रमण पर निकलने की तैयारी पूरी हो गई होगी अब तक …
रस्ते में हमरा भी ब्लॉगवा है । न ऽऽ ना ना नाऽऽऽ … कमेंट की कौनो बात नहीं
… चरण धूलि से पवित्तरता तो फैलाते जाइयो …


शुभकामनाओं सहित …

- राजेन्द्र स्वर्णकार