पता नहीं किस झोंक में आईने के सामने खड़ा हो गया। आईने के सामने खड़ा हुआ ही था कि आवाज आई 'शर्म नहीं आती? सठियाने वाली उम्र में ब्लोगिंग करता है, क्या ऐसा करके समझता है कि तू बड़ा तुर्रमखां बन जाएगा'।
सुन कर आश्चर्य हुआ।, घर में उस दिन मेरे सिवा और कोई नहीं था, मैं अकेला ही था। इधर उधर देखने लगा कि आखिर ये आवाज कहाँ से आई? इतने में फिर से सुनाई पड़ा 'इधर उधर क्या देख रहा है? सामने देख, मैं तुझसे ही कह रहा हूँ'।
अरे, ये तो मेरी ही आवाज है और ठीक सामने से आ रही है। मैंने आइने को देखा तो मेरा प्रतिबिंब मुझसे कहने लगा, "हाँ हाँ, मैं तुझसे ही कह रहा हूँ कि सठियाने वाली उम्र में ब्लोगिंग कर के तू कौन सा तुर्रमखां बन जाएगा!"
मैं बोला, "भाई मेरे तुझे क्या ऐतराज है मेरे ब्लोगिंग करने पर? पर पहले ये बता कि तू है कौन?"
उसने जवाब दिया, "मैं तेरी 'अन्तरात्मा' हूँ।"
जवाब सुन कर मै भड़क उठा, "अबे क्यों झूठ बोल रहा है? 'अन्तरात्मा' नाम की चिड़िया आज के ज़माने में कहाँ पाई जाती है? वह तो एक ज़माने पहले ही मर चुकी है। फिर तू कहाँ से आ गया?
उसने मेरे भड़कने का बुरा नहीं माना, बोला, "यकीन करो कि मैं तुम्हारी अन्तरात्मा ही हूँ।"
मेरा गुस्सा कम नहीं हुआ, मैंने कहा, "मुझे क्या बेवकूफ़ समझते हो? मैंने कहा न कि 'अन्तरात्मा' नाम की चीज तो एक अरसे पहले ही मर चुकी है। फिल्मों में भी आइने के माध्यम से 'अन्तरात्मा' से हू-ब-हू करवाने की टेक्नीक आजकल खत्म हो गई है क्योंकि अन्तरात्मा नाम की कोई चीज होती ही नहीं है। 40-45 साल पहले अन्तरात्मा शायद मरी न रही हो और इसीलिए उस जमाने में यह टेक्नीक हुआ करती थी। जब अन्तरात्मा होती ही नहीं है तो फिर तू कहाँ से आ गया? क्या तेरा पुनर्जन्म हुआ है?"
उसने कहा, "अरे अब गुस्सा थूक भी दो यार, शान्त हो कर मेरी बात सुनो। वास्तव में मैं मरा नहीं था। सिर्फ 'कोमा' में चला गया था। 40 साल बाद 'कोमा' खत्म हुआ है और नींद टूट गई है।"
मैं बोला, "अच्छा नींद टूट गई है तो सिवा मुझे तंग करने के और कोई और काम नहीं रह गया है क्या तुम्हारे पास? मैंने तुमसे क्या परामर्श माँगा था कि सलाह देने चले आये?"
वो बोला, "नही भाई, मैं तुम्हें भला क्यों तंग करने चला। तुम और मैं तो एक ही हैं, अगर तुम्हें तंग करूंगा तो मैं स्वयं भी तंग हो जाउँगा। मैं तो केवल यह कहने आया था कि ये ब्लोगिंग व्लोगिंग नये जमाने की चीज है। नौजवानों के लिये है, तुम जैसे उम्रदराज लोगों के लिये नहीं। तुम्हीं बताओ कि आज तुम्हारी उम्र वाले कितने ब्लोगर हैं? तुम्हारे और अन्य ब्लॉगरों के बीच बहुत बड़ी खाई है 'जनरेशन गैप' का। तुम्हारे विचार अलग हैं और उनके अलग। वे टिप्पणियों को महत्व देते हैं तो तुम टिप्पणियों को गौण बता कर पाठकों की संख्या को महत्वपूर्ण बताते हो। तुम्हारे चिल्लाने से क्या लोग बदल जाएँगे या फिर जमाना बदल जाएगा? याद रखो तुम्हारी आवाज सिर्फ 'नक्कारखाने में तूती की आवाज' है। तुम कुछ भी नहीं कर सकते। तो तुम क्यों 'सींग कटा कर बछड़ों में शामिल होने' की कोशिश कर रहे हो? सठियाने की उम्र में ब्लोगिंग करके क्यों अपनी छीछालेदर करवाने पर तुले हो। बाज आ जाओ और बन्द कर दो अपनी ब्लोगिंग।"
मैंने कहा, "जब तुम 40 साल से कोमा में थे तो तुम्हें कैसे पता कि मेरी उम्र सठियाने की हो गई है? इन 40 सालों में क्या क्या बदल चुका है तुम जानते हो? क्या तुम जानते हो कि 'इकन्नी', 'दुआन्नी', 'चवन्नी' खत्म हो चुके हैं। 'मन-सेर-छटाक' के स्थान पर 'क्विंटल-किलो-ग्राम' आ गया है। 'तोला-माशा-रत्ती' को अब कोई नहीं जानता। गाँव कस्बे में, कस्बे नगर में और नगर महानगर में बदल चुके हैं। तुम्हारे कोमा में जाने के समय जो थोड़ी-सी ईमानदारी बची थी वह भी पूरी तरह से खत्म हो गई है। उस जमाने में नेता अगर खुद भर पेट खाता था तो जनता को भी थोड़ी सी खाने के लिये देता था, वैसे ही जैसे कि अगर कोई मटन खाता है तो हड्डी कुत्ते को डाल देता है, पर अब तो हड्डी तक को चबा लिया जाता है वो भी बिना डकार लिये। शिक्षा, चिकित्सा आदि सेवा कार्य से व्यसाय बन गये हैं। अब क्या क्या गिनाऊँ, और भी बहुत सारी बातें हैं। क्या जानते हो ये सब कुछ?"
उसने झेंप कर उत्तर दिया, "नहीं, ये सब तो मैं नहीं जानता।"
मैं बोला, "जब तुम ये सब नहीं जानते तो कैसे कह सकते हो कि मेरी सठियाने की उम्र है। दोस्त मेरे, मैं सठियाने की उम्र में नहीं हूँ बल्कि बहुत साल पहले ही से सठिया चुका हूँ। तुम्हें बता दूँ कि पहले आदमी साठ साल में सठियाता था पर अब कभी भी सठिया सकता है। सठियाने के लिये अब उम्र का कोई बन्धन नहीं रह गया है। और मैं ब्लोगिंग इसलिये करता हूँ क्योंकि मैं सठिया गया हूँ। ब्लोगिंग या तो सयाना आदमी कर सकता है या कोई नादान या फिर कोई सठियाया हुआ आदमी। ब्लोगिंग को जन्म दिया था सयाने आदमी ने। 'डॉलर', 'पाउंड', 'यूरो' जमा करने के उद्देश्य से, मतलब कि कमाई करने के लिये, अपनी भरी हुई तिजोरी को और अधिक भरने के लिये। पर ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो सिर्फ अपनी सन्तुष्टि के लिये, कमाई करने के बजाय अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई को खर्च कर के भी, ब्लोगिंग करते हैं। ऐसे लोग नादान होते हैं या फिर सठियाये हुये। अब बताओ मुझे कि मैं ब्लोगिंग कर रहा हूँ तो क्या मैं सठिया नहीं गया हूँ?"
मेरी बात सुन कर उसे ऐसा मानसिक आघात लगा कि वो फिर से 'कोमा' में चला गया।
21 comments:
बढि़या improvisation और articulation. रोचक पठनीयता और वैचारिकता का समानान्तर और संतुलित प्रवाह.
रोचक पठनीयता , इस उम्र में कम से कम कुछ कर लें आने वाली संतानों के लिए
चिन्ता मत करें, आप अकेले नही, हम भी सठियाये हुये ही हैं। जन्म अष्टमी की बहुत बहुत बधाई।
बेहतरीन कटाक्ष।
कृष्ण प्रेम मयी राधा
राधा प्रेममयो हरी
♫ फ़लक पे झूम रही साँवली घटायें हैं
रंग मेरे गोविन्द का चुरा लाई हैं
रश्मियाँ श्याम के कुण्डल से जब निकलती हैं
गोया आकाश मे बिजलियाँ चमकती हैं
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये
बहुत बढ़िया अवधिया जी । आज तो बड़े काम की बात कही है आपने ।
रोचक अंदाज़ में सही बातें लिखी हैं ।
ऐसे ही सठियाए रहिये और लिखते रहिये ।
शुभकामनायें ।
पोस्ट काम की है पर हम डोमेन से बाहर हैं।
हम ये सब नहीं मालूम....हम तो बस इतना चाहते हैं कि अवधिया जी ब्लॉग जगत के दिशा निर्देशक बने रहें...भले ही शिष्यों कि संख्या में कमी क्यूँ न हो.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!!
चलिये सठियाये हुए लोगों की किसी नें तो सुध ली :)
अत्यंत रोचक आलेख, जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
आ रहे हैं पीछे पीछे.. जन्म अष्टमी की बहुत बहुत बधाई
bejaan aayne se zindaa dilon ko khub ltaad pilvaa kr unhen sikh dene kaa nya andaaz nikaala he jnaab bhut bhut bdhaayi ho. akhtar khan akela kota rajsthan
अब पता चलिस हे पक्का
कैसन सठियाए हे कक्का।
जै हो गुरुदेव
बहुत बढ़िया कटाक्ष ...!
ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो सिर्फ अपनी सन्तुष्टि के लिये ब्लोगिंग करते हैं। ऐसे लोग नादान होते हैं या फिर सठियाये हुये।
मैं ब्लोगिंग कर रहा हूँ तो क्या मैं सठिया नहीं गया हूँ?
सर चिंता ना करें मै भी सठियाने वाली उम्र में आपका भरपूर साथ दूंगा ....शपथ लेता हूँ .... हा हा हा
....कुछ इस तरह का जवाब ढूँढने की कौशिश कर रहा हूँ...http://aatm-manthan.com पर...
लिखते न गर ब्लॉग तो क्या कर रहे होते?
टी.वी. के चेनलो पे गुज़र कर रहे होते.
अवधिया बॉस "हम पंछी एक डाल के" याने हम भी अभी ताज़ा ताज़ा सठिया गए हैं...हमारी अंतर आत्मा ने भी हम से ये ही सवाल पूछा जो आपकी अंतर आत्मा ने पूछा है...समझ नहीं आता सठियाये हुए लोगों की अंतर आत्मा को और कोई सवाल क्यूँ नहीं आते...एक जैसा ही सवाल क्यूँ करती हैं...आपकी अंतर आत्मा तो कोमा में चली गयी है हमने अपनी वाली को एक लोहे के संदूक में बंद कर के ताला लगा कर समंदर में फैंक दिया है...कोमा वाली तो क्या पता फिर से होश में आ जाए लेकिन संदूक में बंद तो तब ही बाहर आ सकेगी जा उसने हुड्नी जादूगर की आत्मा से दोस्ती कर रखी हो...
नीरज
ब्लोगिंग को जन्म दिया था सयाने आदमी ने। 'डॉलर', 'पाउंड', 'यूरो' जमा करने के उद्देश्य से, मतलब कि कमाई करने के लिये,
kamaal ki post..........
maza aaya
एक बात जानने की उत्सुकता है -
'वे टिप्पणियों को महत्व देते हैं तो तुम टिप्पणियों को गौण बता कर पाठकों की संख्या को महत्वपूर्ण बताते हो।'
अंतरात्मा जब जागे तो कृपया यह और जानने का प्रयत्न करें कि ,उपरोक्त दोनों में से एक भी न मिले तो सठियाया व्यक्ति ब्लाग-क्षेत्र को प्रणाम कर ले?
- प्रतिभा सक्सेना
सठियाने की भी कोई उम्र होती है !...
सठियाने का क्या है... जब चाहा सठिया लिए :)
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