Sunday, February 7, 2010

ब्लोगिंग की समस्यायें

तीन चार रोज पहले पाबला जी ने मुझे फोन करके बताया कि वे मेरे ब्लोग पर टिप्पणी नहीं कर पा रहे हैं। मैंने समझा कि शायद ब्लोगर में कोई अस्थाई समस्या होने के कारण ऐसा हुआ हो अतः उनसे अनुरोध किया कि कुछ समय बाद नये ब्राउजर में मेरा पोस्ट खोल कर टिप्पणी करने का प्रयास करें। बात आई गई हो गई। और लोगों की टिप्पणियाँ आती रहीं मेरे ब्लोग में। पाबला जी के फोन आने के एक दो दिन बाद डॉ. महेश सिन्हा जी ने मुझे मेल करके बताया कि वे भी मेरे ब्लोग में टिप्पणी नहीं दे पा रहे हैं। कुछ और भी मेरे पाठकों से भी मुझे पता चला कि उनके साथ भी यही समस्या आ रही है। यह मेरे लिये बड़ी अजीब बात थी क्योंकि कुछ लोगों की टिप्पणियाँ आ रही थीं और कुछ लोग टिप्पणी कर ही नहीं पा रहे थे। मैंने सोचा कि शायद यह समस्या टेम्पलेट के कारण है इसलिये टेम्पलेट बदल दिया।

कल फिर पाबला जी ने मुझे फोन करके बताया कि मेरे ब्लोग में वे अभी भी टिप्पणी नहीं कर पा रहे हैं। मैंने बहुत प्रकार समस्या का समाधान करने का असफल प्रयास किया और अन्ततः फिर से एक नया टेमप्लेट लाकर अपलोड कर दिया। इससे टिप्पणी वाली समस्या सुलझ गई किन्तु आज राजकुमार ग्वालानी जी ने फोन करके बताया कि मेरा ब्लोग इंटरनेट एक्सप्लोरर में नहीं खुल पा रहा है। याने कि समस्या अभी तक पूरी तरह से अभी भी नहीं सुलझ पाई है।

खैर, इस समस्या को भी सुलझायेंगे ही हम किन्तु फिलहाल इस पोस्ट को इसलिये प्रकाशित कर रहे हैं ताकि आप लोगों को भी पता चले कि कैसी कैसी समस्यायें आती रहती हैं ब्लोगिंग में।

Saturday, February 6, 2010

हम पोस्ट लिखते हैं नामी बनकर ... वे चुटकियों में उड़ा देते हैं बेनामी बनकर

Anonymous said...

याने कि बेनामी ने कहा ...

अरे भाई कुछ कहना है तो सामने आकर कहो! बुरका ओढ़ कर क्यों कहते हो। प्रशंसा करो, आलोचना करो, जो चाहे सो करो पर अपना परिचय देकर तो करो। जैसे हमने नामी बनकर पोस्ट लिखा है वैसे ही आप भी नामी बनकर टिप्पणी करो।

हमने पोस्ट लिखा "ये इन्द्रधनुष होगा नाम तुम्हारे........." बाकायदा अपना नाम देकर। अब किन्हीं सज्जन को हमारी यह पोस्ट बचकानी लगी। लगी तो लगी। हम रोक थोड़े ही सकते हैं बचकानी लगने से। तो पोस्ट के बचकानी लगने को उन्होंने व्यक्त किया अपनी टिप्पणी में कुछ इस तरह सेः

Anonymous said...

i think aap logon ko blog kaa naam change kar lena chaahiye.
science blogger association ki jagah " children kahani assosiation" theek rahega. haa haa haa haa......
याने कि उन्हें पोस्ट इतनी बचकानी लगी कि उन्होंने ब्लॉग का नाम ही बदल देने का सुझाव दे दिया। शायद वे विज्ञान के महारथी होंगे और उनके विचार से विज्ञान से सम्बन्धित भारी भरकम शब्दों में लिखी गई विशिष्ट जानकारी ही आनी चाहिये। शायद उनकी नजर में विज्ञान की अत्याधुनिक क्लिष्ट बाते हीं विज्ञान हैं। हम उनके विचार का सम्मान करते हैं किन्तु अपनी मन्दबुद्धि का क्या करें जो यह सोचती है कि चर्खी (Wheel), घिर्री (Pulley), धुरी (Axle) , लिव्हर (Lever), कोणीय तल (Inclined Plane), पेंच (Screw) आदि सामान्य यन्त्र भी विज्ञान के अन्तर्गत ही आते हैं और इनके विषय में भी बताया जाना चाहिये। भले ही हमारे ये पोस्ट अति विद्वान वैज्ञानिक मित्रों को बचकानी लगे किन्तु हम तो यही सोचते हैं कि बहुत से लोगों को यह पसंद ही आयेगा क्योंकि ब्लोग पढ़ने वाले सभी व्यक्ति विज्ञान के महारथी नहीं हैं, बहुत से लोग ऐसे भी हैं जिनका विषय कभी विज्ञान रहा ही नहीं है।

हम तो यही बताना चाहेंगे कि हम तो पोस्ट लिखते ही रहेंगे नामी बनकर भले ही कोई उन्हें चुटकियों में उड़ाता रहे बेनामी बनकर।

Friday, February 5, 2010

कहाँ है आज वसन्त की मादकता?

वसन्त ऋतु है अभी! किन्तु मुझे तो मादकता का किंचितमात्र भी अनुभव नहीं हो रहा है। टेसू और सेमल के रक्तवर्ण पुष्प, जो कि वसन्त के श्रृंगार माने जाते हैं, तो कहीं दृष्टिगत हो ही नहीं रहे हैं। कहाँ हैं आम के बौर? कहाँ गई कोयल की कूक? यह वसन्त का लोप बड़े नगरों की देन है। छोटे गाँवों और वनों में शायद हो वसन्त पर मेरे रायपुर में तो नहीं है।

रीतिकालीन कवि 'सेनापति' ने लिखा थाः

बरन बरन तरु फूले उपवन वन,
सोई चतुरंग संग दल लहियतु है।
बंदी जिमि बोलत विरद वीर कोकिल है,
गुंजत मधुप गान गुन गहियतु है॥
आवे आस-पास पुहुपन की सुवास सोई
सोने के सुगंध माझ सने रहियतु है।
सोभा को समाज सेनापति सुख साज आजु,
आवत बसंत रितुराज कहियतु है॥

यदि आज वे होत तो क्या ऐसी रचना कर पाते?

Thursday, February 4, 2010

"कुकुर के मुँह में लउड़ी हुड़सना" ... याने कि किसी को जबरन छेड़ना

मानव मस्तिष्क भी विचित्र वस्तु है। कभी-कभी यह किसी को जबरन छेड़ कर मौज लेता है। इसे ही छत्तीसगढ़ी हाना (लोकोक्ति) में "कुकुर के मुँह में लउड़ी हुड़सना" कहा जाता है। मनोविज्ञान के अनुसार यह एक मानसिक खेल है जो अक्सर महज मौज-मजा लेने के लिये किया जाता है और संसार का शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसने कभी भी ऐसा न किया हो। एक सीमा तक ही यह खेल जारी रहे तो कुछ अधिक नुकसानदायक नहीं है यह किन्तु प्रायः यह खेल अपनी सीमा पार कर जाती है और साधारण चुहलबाजी एक विवाद का रूप धारण कर लेती है। बेहतरी इसी में है कि हम इस मानसिक खेल से बच कर ही रहें।

लोकोक्ति की बात चली है तो आपको हम यह बता दें कि जब जीवन का यथार्थ ज्ञान नपे-तुले शब्दों में मुखरित होता है तो वह लोकोक्ति बन जाता है याने कि लोकोक्ति एक प्रकार से "गागर में सागर" होता है। छत्तीसगढ़ी में लोकोक्ति को "हाना" के नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ी भाषा में बहुत से सुन्दर हाना हैं जिन्हें उनके हिन्दी अर्थसहित जानकर आपको बहुत आनन्द आयेगा। यहाँ पर हम कुछ ऐसे ही रोचक छत्तीसगढ़ी हाना उनके हिन्दी अर्थ सहित प्रस्तुत कर रहे हैं:
  • "अपन पूछी ला कुकुर सहरावै" अर्थात् अपनी तारीफ स्वयं करना याने कि अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना।
  • "चलनी में दूध दुहय अउ करम ला दोष दै" अर्थात् खुद गलत काम करना और किस्मत को दोषी ठहराना।
  • "घर के जोगी जोगड़ा आन गाँव के सिद्ध" अर्थात् घर के ज्ञानी को नहीं पूछना और दूसरे गाँव के ज्ञानी को सिद्ध बताना याने कि आप कितने ही ज्ञानी क्यों न हों घर में आपको ज्ञानी नहीं माना जाता।
  • "अपन मरे बिन सरग नइ दिखय" अर्थात् स्वयं किये बिना कोई कार्य नहीं होता।
  • "आज के बासी काल के साग अपन घर में काके लाज!" अर्थात् अपने घर में रूखी-सूखी खाने में काहे की शर्म।
  • "अजान बैद परान घातिया" अर्थात् नीम-हकीम खतरा-ए-जान।
  • "कउवा के रटे ले बइला नइ मरय" अर्थात् कौवा के रटने से बैल मर नहीं जाता याने कि किसी के कहने से किसी की मृत्यु नहीं होती।
  • "उप्पर में राम-राम तरी में कसाई" अर्थात् मुँह में राम बगल में छुरी।
  • "करनी दिखय मरनी के बेर" अर्थात् किये गये अच्छे या बुरे कर्मों की परीक्षा मृत्यु के समय होती है।
  • "खेलाय-कुदाय के नाव नइ गिराय पराय के नाव" अर्थात् प्रशंसा कम मिलती है और अपयश अधिक।

Wednesday, February 3, 2010

क्या हिन्दी का कम से कम एक ब्लॉग ऐसा नहीं बन सकता जो पूरी दुनिया में धूम मचा दे?

अंग्रेजी के ऐसे अनेक ब्लॉग्स हैं जिनमें संसार भर से प्रतिदिन हजारों से लेकर लाखों की संख्या में लोग आते हैं। किसी एग्रीगेटर से नहीं बल्कि सर्च इंजिन से खोज कर। ऐसे ब्लॉग्स को बुकमार्क करके रखा है लोगों ने ताकि रोज उनमें सिर्फ एक क्लिक से पहुँच सकें।

चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' जी ने हिन्दी में एक कहानी "उसने कहा था" ऐसी लिखी कि संसार भर में वह लोकप्रिय हो गया। संसार के सभी प्रमुख भाषाओं में उसका अनुवाद पाया जाता है। इससे सिद्ध हो जाता है कि हिन्दी भाषा में संसार भर में धूम मचाने की भरपूर शक्ति है। फिर क्यों आज हिन्दी का एक भी ब्लॉग ऐसा नहीं है जो कि संसार भर में धूम मचा सके? पाठकगण खोज कर उस ब्लॉग में आयें। क्यों नहीं है हिन्दी में ऐसा एक भी ब्लॉग? क्या हिन्दी में भी हम ऐसा नहीं कर सकते?

मित्रों! यह मेरी निराशा नहीं है बल्कि मैं यह पोस्ट आप सभी को प्रोत्साहित करने के लिये लिख रहा हूँ कि आप हिन्दी में कुछ ऐसा लिखें जिसे पढ़ने के लिये पाठक टूट पड़ें। कब तक हम आपस में एक दूसरे को पढ़ते रहेंगे? क्या एक अखबार को सिर्फ दूसरा अखबार वाला ही पढ़ता है? एक पत्रिका को दूसरी पत्रिका वाला ही पढ़ता है? फिर क्यों एक ब्लॉग को दूसरा ब्लॉगर ही पढ़े? जिस प्रकार से अखबार, पत्रिका आदि का महत्व पाठक के बिना नहीं है उसी प्रकार से ब्लोग भी पाठक के बिना महत्वहीन है। मैं जानता हूँ कि आप सभी अपने अपने विषय में माहिर हैं और मुझे विश्वास है कि आप अवश्य ही पाठकों को खींच कर लाने वाली सामग्री प्रस्तुत करेंगे।

Tuesday, February 2, 2010

ब्लोगिंग तो मौज लेने के लिये होती है ... ब्लोगिंग फॉर्मूले

"नमस्कार लिख्खाड़ानन्द जी!"

"नमस्काऽऽर! आइये आइये टिप्पण्यानन्द जी!"

"लिख्खाड़ानन्द जी, हम तो आपके लेखन के कायल हैं! लाज़वाब लिखते हैं आप! लोग आपको उस्ताद जी कहते और मानते हैं। क्या बात है आपकी! आज हम जानना चाहते हैं कि आखिर इतना अच्छा लिख कैसे लेते हैं जिसे पढ़ने और टिपियाने के लिये लोग दौड़े चले आते हैं? भई मानना पड़ेगा कि इधर आपकी पोस्ट आई नहीं कि टिप्पणियाँ आनी शुरू हो जाती है, लगता है कि लोग इंतजार करते रहते हैं कि कब आपका पोस्ट आये और कब वे टिप्पणी करें। हमें भी बताइये ना कि आप इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं? आखिर आपकी सफलता का रहस्य क्या है?"

"अरे टिप्पण्यानन्द जी, भला ऐसे रहस्य कभी किसी को बताये जाते हैं क्या? हमसे हमारा रहस्य जानकर कल को खुद हमारी जगह लेना चाहते हैं क्या आप?"

"हे हे हे हे! हम भला क्या खा के आपकी जगह लें पायेंगे? हमें लिखना आता ही कहाँ है? बस कुछ ऐसा वैसा घसीट दिया करते हैं। हमें तो बताना ही पड़ेगा आपको अपना रहस्य।"

"ठीक है हम आपको बताते हैं अपना रहस्य पर आप किसी और को मत बताना। देखिये टिप्पण्यानन्द जी! हिन्दी ब्लोग्स को प्रायः हिन्दी ब्लोगर्स ही पढ़ते हैं। इसलिये सबसे पहले तो यह ध्यान रखना आवश्यक है कि जो भी पोस्ट लिखा जाये वह सामान्य पाठकों को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि दूसरे ब्लोगरों को ध्यान में रखकर लिखी जाये। सामान्य पाठक तो किसी विषय पर अच्छी से अच्छी जानकारी वाली अच्छी सामग्री (कंटेंट्स) पढ़ना पसंद करते हैं। अब हमारे पोस्टों को तो पढ़ने वाले हमारे साथी ब्लोगर्स ही हैं जिनके पास पहले से ही बहुत सारी जानकारी है इसलिये यदि आप कोई जानकारी वाली पोस्ट लिखोगे तो वह फ्लॉप ही होने वाला है। अब देखिये ना ललित शर्मा जी ने पोस्ट लिखा "सफलता कैसे मिले?" तो उस पोस्ट ने कितने लोगों को आकर्षित किया? अरे भाई जो लोग पहले से ही सफल हैं उन्हें अपने पोस्ट में सफलता सिखाओगे तो भला वे क्यों उस पोस्ट को पढ़ने के लिये आयेंगे? जो पहले से ही सफल हैं उन्हें सफलता सिखाना, जिनके पास पहले से ही जानकारी है उन्हें जानकारी देना, जिनका पेट पहले से ही भरा हुआ है उन्हें खाना देना भला कहाँ की बुद्धिमत्ता है?"

"पर पोस्ट में अच्छी सामग्री नहीं होगी तो नेट में हिन्दी आगे कैसे बढ़ेगी?"

"अच्छी सामग्री? अरे कैसी बात कर रहे हैं आप? नेट में क्या हिन्दी आगे बढ़ रही है? अरे नेट में तो हिन्दी ब्लोगर्स ही बढ़ते जा रहे हैं जो आपस में एक दूसरे को पढ़ें या ना पढ़ें पर टिप्पणी जरूर करते हैं। यदि नेट में हिन्दी आगे बढ़ रही होती तो ब्लोग्स को पढ़ने के लिये ब्लोगर्स के साथ ही साथ आज जो करोड़ों हिन्दीभाषी नेट यूजर्स हैं वे भी क्या नहीं आते? आपने अभी ही हमारे लेखन को लाजवाब बताया है क्योंकि आप एक ब्लोगर हैं। पर हम जानते हैं कि हम अपने पोस्टों को किसी अच्छी पत्रिका में प्रकाशित करने के लिये भेज दें तो वह प्रकाशित होने के बदले कूड़ेदान में ही जायेगा। संपादक को चाहिये ऐसी रचनाएँ जिन्हें पाठक पसंद करे। हमारे पास ऐसी रचना तो है ही नहीं। हम तो सिर्फ वो लिखते हैं जिन पर दूसरे ब्लोगर अपनी टिप्पणी दें। हमारी ब्लोगिंग तो मौज लेने के लिये होती है, टिप्पणी पाने के लिये होती है, गुट बनाने के लिये होती है, नये ब्लोगर बनाने के लिये होती है नये नये पाठक लाने के लिये थोड़े ही होती है। हम कौन सा यहाँ हिन्दी को आगे बढ़ाने के लिये आये हैं? हमें तो खुद को आगे बढ़ाना है भाई! हम आगे बढ़ेंगे तो हिन्दी भी अपने आप ही आगे बढ़ जायेगी। फालतू बातें करके टोकते रहते हैं आप। जो हम बता रहे हैं उसे सुनना है तो सुनिये नहीं तो अपना रास्ता लीजिये।"

"अरे आप तो नाराज ही हो गये। चलिये अब बीच में कुछ भी नहीं बोलेंगे हम, आप जारी रखिये।"

"तो मैं बता रहा था कि पोस्ट लिखते समय जानकारी आदि को ताक में रखकर इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि हमारे ब्लोगर मित्र क्या पसंद करते हैं। यदि आपने उनकी पसंद को जान लिया तो समझ लीजिये कि आप सफल भी हो गये।"

"तो यही बताइये कि क्या पसंद करते हैं हमारे ब्लोगर मित्र?"

"उनकी सबसे पहली पसंद है कि लोग उनके पोस्टों में टिप्पणी करें। अंग्रेजी और दूसरी भाषाओं की ब्लोगिंग में अच्छे पोस्ट का मापदंड पाठकों की संख्या और डिग, टेक्नोराटी जैसे सोशल बुकमार्किंग साइट में बुकमार्क्स की संख्या होती है पर हिन्दी ब्लोगिंग में अच्छे पोस्ट का मापदंड पोस्ट में मिली टिप्पणियों की संख्या होती है। इसलिये सबसे पहले तो आप दूसरे ब्लोगर्स के पोस्टों में जाकर टिप्पणी कीजिये। इससे फायदा यह होगा कि जब आपका पोस्ट प्रकाशित होगा तो वे लोग भी आपके पोस्ट में टिप्पणी करने जरूर आयेंगे। हो सकता है कुछ सिरफिरे टाइप के लोग न भी आयें पर यकीन मानिये कि बहुत से लोग आयेंगे और जो लोग नये नये ब्लोगर बने हैं वे लोग तो गारंटीड आयेंगे।"

"यहाँ तक तो हम आपकी बात समझ गये जी, पर टिप्पणी करने के लिये सारे पोस्टों को पढ़ना तो पड़ेगा। इतना समय हम कैसे निकालें?

"अरे टिप्पण्यानन्द जी! रहे आप भी पोंगू के पोंगू ही। टिप्पणी करने के लिये भला पोस्टों को पढ़ने की क्या जरूरत है? ये रही टिप्पणियों की लिस्टः

  • शुभकामनाएँ
  • बधाई
  • बधाई स्वीकारे
  • बहुत-बहुत बधाईयाँ
  • शुक्रिया!
  • अच्छा आलेख
  • अनोखी पोस्ट
  • अच्छी रचना
  • बहुत ही सटीक रचना
  • इस रचना के लिये आभार
  • सही लिखा है
  • बढिया लिखा है आपने
  • मजा आ गया पढ़ कर।
  • बहुत सुंदर
  • सत्य वचन!
  • nice
  • आपके विचारो से सहमत हूँ
  • फलाने (जिसे आप अच्छा टिप्पणीकर्ता समझते हैं) से सहमत
  • आपकी लेखनी तो कमाल करती ही है
  • आपकी लेखनी के बारे में कुछ भी कहना सूरज को दिया दिखाना है
बस आप इनमें से किसी एक को चेंप दीजिये।"

"अच्छा अब यह बताइये कि पोस्ट में क्या लिखा जाये जो पढ़ने वालों को पसंद आये?"

"सीधी सी बात है कि जब भी किसी प्रकार का विवाद होता है तो सभी को मजा आता है। इसलिये ऐसे पोस्ट लिखिये जिससे विवाद की स्थिति पैदा हो। आप चाहो तो किसी बहाने से दो लोगों को आपस में लड़वा दो और उसी पर पोस्ट लिख डालो।"

"भाई ये लोगों को लड़वाना, झगड़वाना और विवादास्पद पोस्ट लिखना तो अपने बस की बात नहीं है। कोई और तरीका बताइये।"

"तो फॉर्मूलों का प्रयोग कीजिये, जिस प्रकार से हिन्दी फिल्मों को हिट कराने के फॉर्मूले होते हैं उसी प्रकार से पोस्ट को भी हिट कराने के फॉर्मूले होते हैं।"

"हमें भी कुछ फॉर्मूले बताइये ना।"

"ठीक है हम आपको फॉर्मूलों की लिस्ट दे रहे हैं पर इन फॉर्मूलों के आधार को पहले समझ लीजिये। यह तो आप जानते ही हैं कि मॉडर्न आर्ट को कोई समझ नहीं पाता पर तारीफ उसकी खूब करता है। ऐसे ही जो पोस्ट ऊपर ही ऊपर से गुजर जाये वह पोस्ट खूब पसंद की जाती है और उसे खूब टिप्पणियाँ मिलती हैं। तो यह है फॉर्मूलों की लिस्टः
  • पोस्ट किसी एक विषय से शुरू कीजिये और उसका अन्त किसी और विषय से करिये
  • ऑफिस में सहकर्मियों के साथ की गई बातचीत ऑफिस में किये गये काम आदि को लिख कर उसे हिन्दी ब्लोगिंग से जोड़ दीजिये
  • रात को नींद पूरी क्यों नहीं हुई, खाना हजम क्यों नहीं हुआ आदि बातें बताते हुए पोस्ट लिख मारिये
  • आप कहाँ गये, क्या किये इन बातों को लिख कर उन्हें दर्शन शास्त्र से जोड़ दीजिये
  • कुत्ते के पिल्ले, बिल्ली के बच्चे, बकरी के मेमने इत्यादि पर चित्र सहित पोस्ट लिखिये और उन्हें मानवीयता के साथ जोड़ दीजिये
  • भिगमंगे, बावले आदि पर पोस्ट लिखकर दया, करुणा आदि मानवीय भावनाओं के साथ जोड़ दीजिये
  • शुद्ध हिन्दी में कभी पोस्ट मत लिखिये बल्कि पोस्ट के बीच बीच में ऐसे अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग अवश्य कीजिये जिसका जो जैसा भी चाहे अर्थ निकाल सके, आप तो जानते ही हैं कि एक ही अंग्रेजी शब्द के कई हिन्दी अर्थ होते हैं, अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग से पोस्ट प्रभावशाली बनता है
  • पोस्टों में हिन्दी भाषा तथा शब्दों के साथ खूब खिलवाड़ याने कि प्रयोग कीजिये ताकि हिन्दी भाषा और अधिक निखरे और सँवरे
  • पोस्ट के बीच-बीच में अंग्रेजी और हिन्दी दोनों के कुछ क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग करिये जिनका अर्थ या तो समझ में ही ना आये या फिर समझने के लिये डिक्शनरी देखना पड़े
  • यात्रा के दौरान कहाँ कहाँ क्या क्या हुआ और क्या तकलीफ हुई बताते हुए पोस्ट लिख मारिये और तकलीफ के लिये सरकारी विभाग को दोषी ठहरा दीजिये
  • यदि कुछ विशेष जानकारी दे रहे हैं तो आधी अधूरी दीजिये और जहाँ से जानकारी मिली उस अंग्रेजी साइट का लिंक दे दीजिये
"तो टिप्पण्यानन्द जी, अभी इतने ही फॉर्मूलों से काम चलाइये, बाद में और भी फॉर्मूले देंगे हम आपको।"

"धन्यवाद लिख्खाड़ानन्द जी! अब मैं चलता हूँ, नमस्कार!"

"नमस्काऽर!"

Monday, February 1, 2010

लोग आगे बढ़ते हैं पर मैं पीछे जाता हूँ

जमाना तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है। होड़ लगी हुई है आज तेजी से आगे बढ़ने के लिये! ऐसा कोई भी नजर नहीं आता जो पीछे जाना तो क्या पीछे झाँक कर देखना भी चाहे। आगे बढ़ना है याने आगे बढ़ना है, चाहे इसके लिये दूसरे को पीछे धकेलना ही क्यों ना पड़े। पर मैं हूँ कि पीछे ही पीछे चला जाता हूँ। अपने मोबाइल में जब एमपी3 गाने सुनता हूँ तो मुझे वो पुराना ग्रामोफोन और लाख का तवा याद आता है जिस पर डायफ्रॉम में लगी सुई खिसकते रहती थी और भोंपू से कुन्दनलाल सहगल जी की मधुर आवाज निकल कर मुग्ध किया करती थी।

बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय ....

जब मैं स्कूल में पढ़ता था तो मेरे घर में एक ग्रामोफोन हुआ करता था। हम बच्चों को बड़ी मुश्किल से इजाजत मिला करती थी ग्रामोफोन सुनने के लिये। जमाना उन दिनों में भी आगे बढ़ रहा था पर आज की तरह से तेज गति से नहीं बल्कि चींटी की गति से। जमाना थोड़ा आगे बढ़ा तो ग्रामोफोन की जगह ले लिये रेकॉर्ड प्लेयर ने। हमारे यहाँ भी एक रेकॉर्ड प्लेयर खरीद कर ले आया गया जिस पर एसपी और एलपी रेकॉर्ड बजते थे। ग्रामोफोन और उसके लाख के तवे घर के कचराखाने में ऐसे गये कि बाद में फिर कभी दिखे ही नहीं। कुछ सालों के बाद रेकॉर्ड प्लेयर भी उसी कचरेखाने में चला गया क्योंकि एसपी और एलपी रेकॉर्ड्स की जगह कैसेटों ने लिया और रेकॉर्ड प्लेयर की जगह कैसेट प्लेयर ने। कैसेट प्लेयर की उम्र तो रेकॉर्ड प्लेयर से भी कम निकली क्योंकि सीडी प्लेयर ने उस पर विजय पा लिया। सीडी प्लेयर को भी जल्दी ही विदा लेना पड़ा क्योंकि डीव्हीडी प्लेयर का जमाना आ गया। और अब आज एमपी3 प्लेयर का जमाना है। हम अपने मोबाइल पर कभी भी और कहीं भी गाने सुन रहे हैं और व्हीडियो देख रहे हैं। पर मैं हूँ कि मोबाइल में जब एमपी3 गाने सुनते सुनते ग्रामोफोन तक पहुँच गया। किसी ने शायद मुझ जैसों के लिये ही लिखा हैः

जीने की तमन्ना में मरे जा रहे हैं लोग
मरने की आरज़ू में जिये जा रहा हूँ मैं