Wednesday, January 12, 2011

ताजमहल किंवदन्ती पर एक पुरातात्विक दृष्टि

प्रोफेसर मार्विन एच. मिल्स (Professor Marvin H. Mills) के लेख "AN ARCHITECT LOOKS AT THE TAJ MAHAL LEGEND" (ताजमहल किंवदन्ती पर एक पुरातात्विक दृष्टि) के संक्षिप्तीकरण के साथ हिन्दी भावानुवाद

लेखकः प्रोफेसर मार्विन एच. मिल्स (Professor Marvin H. Mills), प्रैट इंस्टीट्यूट, न्यूयार्क (Pratt Institute, New York)


(मूल अंग्रेजी लेख यहाँ पढ़ें।)

अपनी पुस्तक TAJ MAHAL-THE ILLUMINED TOMB (ताजमहल - एक दिव्य मकबरा) में वेन एडीसन बेग्ले और जियाउद्दीन अहमद देसाई (Wayne Edison Begley and Ziyaud-Din Ahmad Desai) ने समकालीन स्रोतों से प्राप्त और कई चित्रों, ऐतिहासिक विवरणों, शाही पत्रों आदि से संवर्धित की गई सराहनीय जानकारी दिया है। विद्वानों तथा ताजमहल के उद्गम, विकास तथा उसके आसपास के हालात के विषय में उत्सुकता रखने वाले जनसाधारण के लिए यह उनकी बहुमूल्य सेवा है।

किन्तु उनका यह सकारात्मक योगदान विश्लेषण और व्याख्या की एक ऐसी रूपरेखा के अन्तर्गत है जो ज्ञानोदय के सम्भाव्य स्रोत को विकृत करता है और ऐसी गलत सूचना एवं कपोल कल्पना को प्रोत्साहित करता है जो इस विषय में सैकड़ों वर्षों में प्राप्त पाण्डित्यपूर्ण जानकारी को हानि पहुँचाता है, अतः उनके द्वारा प्रदत्त सूचना ताजमहल के मूल स्रोत की सत्यता को दुरूह बनाती है। कालांकित शिलालेखों को विशुद्ध मानना और शाही इतिहास लेखन को वास्तविक इतिहासकारों का कथन समझना उनके द्वारा की गई दो प्रक्रियात्मक त्रुटियाँ हैं।

एक वास्तुविद के रूप में मेरा लेखकों से मुख्य तर्क है कि उन्होंने अत्यन्त संक्षिप्त समय-सीमा को सहजता से स्वीकार लिया है, वे मानते हैं कि मुमताज़ के पहले उर्स (वर्षगाँठ) तक ताजमहल का ढाँचा अस्तित्व में आ चुका था और उसके मुख्य भवन का निर्माण हो चुका था। निर्माण प्रक्रिया, जिसमें कि पर्याप्त समय लगता है, को कुछ ही महीनों में समेट दिया गया है। वे उपलब्ध तथ्यों पर निर्भर होने को न्यायसंगत समझते हैं, किन्तु निर्माण की वस्तुनिष्ठ आवश्यकताओं पर गौर करने में असफल रह जाते हैं। वे कहते हैं कि ताज के निर्माण से सम्बन्धित सभी पहलुओं पर लाखों शाही अभिलेख तथा दस्तावेज प्रतिवर्ष अवश्य बने होंगे, जिनके प्राप्त न हो पाने पर उन्हें अफसोस है। वे यह नहीं मानते कि उन अभिलेखों, दस्तावेजों आदि की अनुपल्बधता इसलिए है क्योंकि उन्हें बनाया ही नहीं गया था। न ही वे यह विचार करते हैं कि ताजमहल को किसी और ने कभी और बनवाया था तथा शाहजहां ने इस विषय में कपट किया था। बावजूद इन बातों के वे तो यही दर्शाते हैं कि शाहजहां शाही अभिलेखों पर सावधानीपूर्क निगरानी रखता था।

"ऐतिहासिक सच्चाई को तोड़ने-मरोड़ने के लिए शायद शाहजहां खुद ही जिम्मेदार था। सच्चाई शाहजहां को अयोग्य करार दे सकती थी और यह बात शाहजहां को सहन नहीं थी। इसी कारण से इतिहास में ऐसा कोई भी बयान नजर नहीं आता जो बादशाह या उसकी नीतियों की आलोचना करे, यहाँ तक कि उसकी सेना की हार को भी युक्तिसंगत बना दिया गया ताकि बादशाह पर किसी प्रकार का दोषारोपण न हो सके। ... बादशाह की असंयत प्रशंसा की ऐसी पराकाष्ठा की गई है कि प्रतीत होने लगता है वह सामान्य मनुष्य होने की अपेक्षा देवता था।" (p. xxvi)

शाही इतिहासकारों द्वारा सावधानीपूर्वक इतिहास के संपादन और दस्तावेजों के महान कमी के बाद भी सौभाग्य से हमें बादशाह के द्वारा उसके आसपास के क्षेत्र में स्थित अम्बेर के शासक राजा जय सिंह, जिससे कि बादशाह ने ताज की सम्पत्ति का अधिग्रहण किया था, को जारी किए गए चार फर्मान मिल जाते हैं। इन फर्मानों, शाही इतिहासकारों और एक यूरोपीय यात्री के सैर पर आने के आधार पर हमें ज्ञात होता है किः (i) 17 जून 1631 को मुमताज़ की मृत्यु हुई और उसे बुरहानपुर में अस्थाई रूप से दफनाया गया; (ii) उसके शव को खोदकर निकाला गया तथा 11 दिसम्बर 1631 को आगरा ले जाया गया; (iii) 8 जनवरी 1632 को उसे ताज के मैदान में कहीं पर पुनः दफनाया गया; और (iv) यूरोपीय यात्री पीटर मुंडी (Peter Mundy) के द्वारा 11 जून 1632 को शाहजहां के अपने काफिले के साथ आगरा वापसी को देखा गया।

पहला फरमान 20 सितंबर 1632 को जारी किया गया जिसमें बादशाह ने राजा जयसिंह पर दबाव डाला था कि वह कब्रगाह अर्थात् ताज के मुख्य भवन की आन्तरिक दीवारों के पलस्तर के लिए संगमरमर का लदान जल्दी करे। स्वाभाविक है कि वहाँ पर एक भवन पहले से ही था जिसे कि परिष्कृत किया जाना था। आखिर इसमें कितना समय लगना था?

प्रत्येक सफल भवन निर्माण को एक "सूक्ष्म मार्ग" से गुजरना पड़ता है। निर्माण की प्रक्रिया आरम्भ करने के पहले के सामान्य सोपान होते हैं जिनके लिए न्यूनतम समय की आवश्यकता होती है। चूँकि मुमताज़ (जो कि पिछले तेरह बच्चों को जन्म देते समय हर बार बच गई थी) की मृत्यु अपेक्षाकृत युवावस्था में हो गई थी हम मान सकते हैं कि शाहजहां उसके आकस्मिक निधन के लिए तैयार नहीं था। इस आघात के दौरान उसे मुमताज़ को समर्पित करने के लिए उसे एक विश्व स्तर कब्रगाह बनाने का निश्चय करना पड़ा होगा, एक वास्तुकार (जिसके होने या न होने पर अभी भी सन्देह है) चयनित करना पड़ा होगा, वास्तुकार के साथ मिलकर भवन के बनावट का निश्चय करना पड़ा होगा, नक्शानवीसों को तैयार करना पड़ा होगा, भवन की यांत्रिक संरचना के लिए इंजीनियर खोजना पड़ा होगा, नक्शों की जाँच करनी पड़ी होगी, हजारों मजदूरों और ठेकेदारों को खोजने की व्यवस्था करनी पड़ी होगी, एक जटिल कार्यक्रम बनाना पड़ा होगा। यह रहस्यमय है कि इतने विस्तृत प्रक्रिया से सम्बन्धित कोई भी दस्तावेज बच ही नहीं पाया, सिवा चार फर्मानों के।

हम नहीं मान सकते कि ताज परिसर को इमारतों तथा भूनिर्माणों के बाद अतिरिक्त रूप से बनवाया गया था, क्योंकि परिसर एक आवश्यकता थी। उसे एकीकृत रूप से ही डिजाइन किया गया था। यह बात बेग्ले और देसाई के ग्रिड प्रणाली के इस विश्लेषण से, कि क्षैतिज तथा ऊर्ध्व रूप से त्रिआयामी बनाने हेतु पूरे काम्प्लेक्स को एक डिजाइनर के द्वारा नियोजित किया गया था, स्पष्ट है। यदि किसी को यह पता न हो कि ताज मात्र एक औपचारिक कब्रगाह है तो वह यही विश्वास करेगा कि ताज को एक ऐसे महल के रूप में डिजाइन किया गया था जिसमें आनन्ददायक हवा आने और रमणीय जलमार्गों तथा मनमोहक वाटिका का प्रावधान हो। हो सकता है कि ताज राजा जय सिंह का ही महल हो, जिसे कभी भी नष्ट नहीं किया गया, और शाही आदेश से उसमे मुगल कब्र बना दिया गया। क्या यह नहीं हो सकता?

यह मानते हुए कि शाहजहाँ अपनी दिवंगत प्रियतमा का ध्यान रखते हुए परियोजना के आरम्भ के लिए तत्पर कार्यवाही करने के लिए उत्तेजित था, आसानी के साथ अनुमान लगाया जा सकता है कि उसके अवधारणा से लेकर अवधारणा को कार्यरूप में परिणिति तक कम से कम एक साल के समय की जरूरत तो थी ही। क्योंकि मुमताज़ की मृत्यु जून 1631 में हुई थी, कार्य का आरम्भ जून 1632 में होना था। किन्तु बताया जाता है कि निर्माण कार्य जनवरी 1632 में आरम्भ हो गया था।

खुदाई एक अत्यन्त दुर्जेय अथवा साहस तोड़ने वाला कार्य सिद्ध हुआ होगा। पहले राजा जय सिंह के महल को तोड़कर गिराना आवश्यक था। मिर्जा गज़िनी (Mirza Qazini) और अब्द-अल-हमीद लाहोरी (Abd al-Hamid Lahori) के इतिहास से हमें पता है कि उस सम्पत्ति के अन्तर्गत वहाँ पर एक महल का अस्तित्व था। लाहोरी लिखते हैं:

"वृहत नगर के दक्षिण दिशा में प्रतिष्ठायुक्त तथा सुखदाई मैदानी क्षेत्र था जिस पर राजा मान सिंह की हवेली थी तथा उस हवेली पर अब उनके पोते जय सिंह का अधिकार है। उसी स्थान का चयन जन्नतनशीन [मुमताज] की अन्त्येष्टि के लिए किया गया था।" (पृष्ठ 43)

मुख्य तथा सहायक भवनों की खुदाई के दौरान खुदाई का यमुना नदी से उत्तर दिशा की ओर दूरी के नाप-जोख के विषय में भी ध्यान रखा गया होगा ताकि खुदाई यमुना में बाढ़ आने पर बह ना जाएँ। अगले चरण रहे होंगे - बड़े पैमाने पर नींव बांधना, आधार रखना, ताज और उसके पूरब तथा पश्चिम के भवनों के लिए चबूतरे, दीवारें, मंच इत्यादि बनाना साथ ही कुएँ वाली इमारत, चारों किनारों की मीनारों, तहखानों के कमरों के लिए नींव बनाना। यदि यह मानें कि ताज परिसर में स्थित सारी इमारतें एक साथ एक ही समय में बनीं, तो सारे परिसर में खुदाई से निकली मिट्टी पत्थरों और भवन निर्माण सामग्री बिखरा पड़ा रहा होगा। इस आकलन के अनुसार भवन निर्माण आरम्भ होने के लिए कम से कम एक और वर्ष की आवश्यकता थी अर्थात इमारतें बनना जनवरी 1634 में शुरू होना था।

और यहीं पर समस्या उत्पन्न हो जाती है। मुमताज़ की मृत्यु के सालगिरह पर शाहजहां प्रतिवर्ष ताज में उर्स का आयोजन करता था। पहले उर्स का आयोजन 22 जून 1632 को हुआ। यद्यपि निर्माण कार्य कथित रूप से सिर्फ छः माह पहले ही आरम्भ हुआ था, 374 गज लंबा, 140 गज चौड़ा और 14 गज ऊँचा लाल पत्थर के चबूतरा बन कर तैयार हो चुका था! यहाँ तक कि इस बात पर बेग्ले और देसाई भी किंचित विस्मित हैं।

गिराए गई हवेली का मलबा, निर्माण सामग्री, संगमरमर की शिलाएँ, ईंटों के ढेर, हजारों मजदूरों के अस्थाई निवास व्यवस्था, सामान ढोने वाले असंख्य जानवर कहाँ थे?

किन्तु जून 1632 तक भौतिक रूप से यह किसी भी प्रकार से सम्भव ही नहीं था कि खुदाई, आधार, नींव बनाने के कार्य पूर्ण हो जाएँ, समस्त भवन निर्माण सामग्री हटा कर मलबा तक साफ कर दिया जाए और उर्स के भव्य आयोजन की तैयारी भी हो जाए। भवन निर्माण प्रक्रिया के परिसाक्ष्य के लिए बेग्ले और देसाई की दृष्टि में यूरोपियन यात्री का शाहजहां के दरबार में होना कम उपयोगी है। किन्तु ताज के स्रोत के लिए उनकी दृष्टि में पीटर मुंडी, जो कि ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनियों का एक एजेंट था, का अत्यन्त महत्व है क्योंकि वह पहले उर्स में उपस्थित था और एक साल बाद दूसरे उर्स में भी उपस्थित हो गया था।

यह पीटर मुंडी ही था जिसने 26 मई 1633 को दूसरे उर्स के दौरान कहा था कि उसने मुमताज़ के कब्र के चारों ओर स्वर्णजटित रेलिंग के अधिष्ठापन को देखा था। लेकिन ऐसा कोई तरीका नहीं था कि जनवरी 1632 से मई 1633 के बीच इतनी तेजी के साथ निर्माण कार्य हो जाए कि सम्पूर्ण निर्माण होकर रेलिं लगाया जा सके। रेलिंग हवा में तो खड़ी नहीं हो सकती थी। इसका अर्थ है कि ताज की इमारत पहले से ही वहाँ थी। और निश्चय ही वह भवन अत्यन्त मूल्यवान थी क्योंकि ताज परिसर का मूल्य पचास लाख रुपए बताया गया था जबकि सोने की रेलिंग की कीमत छः लाख रुपए थी। 6 फरवरी 1643 को शाहजहां के द्वारा सोने की रेलिंग को हटा दिया गया और उसके स्थान पर संगमरमर की जाली लगा दिया गया जो कि आज भी देखी जा सकती है।

जहाँ तक शाहजहां के द्वारा ताज के अंदरूनी अलंकरण का सवाल है, उसे कौन से परिवर्तन करने पड़े होंगे? परिवर्तन के लिए कुछ आवश्यक कार्यों में से एक कार्य भवन के अभिलेखों, शिलालेखों को बदलना अवश्य ही रहा होगा। भवन के सजावट में सांकेतिक रूप से स्थित जो हिन्दुत्व के सन्दर्भ रहे होंगे उन्हें भी उसे हटाना पड़ा होगा।

पुस्तक में दर्शाए गए उदाहरणों दर्शाते हैं कि प्रायः अभिलेख आयताकार फ्रेम में हैं जिन्हें कि, भवन के उन हिस्सों को जिनमें वे लगे हुए हैं बगैर किसी प्रकार के नुकसान पहुँचाए, आसानी के साथ निकाला परिवर्ति किया तथा पुनः लगाया जा सकता है। मेरे विवेक के अनुसार सफेद संगमरमर की पृष्ठभूमि के बीच मटमैले संगमरमर के घेरे में काली लिखावट भवन के सौन्दर्य के लिए अनुपयुक्त हैं। परिवर्तित अभिलेखों को जोड़कर यह सिद्ध करने का प्रयास किया होगा कि पवित्र कब्रगाह के रूप में वह इमारत, हिन्दू भवन होने के स्थान पर, उसका अपना निर्माण है। आने वाला समय निस्सन्देह सिद्ध कर देगा कि ताज एक हिन्दू भवन है।

कब्र पर दिखाई देने वाले 1638-39 दिनांकित नवीन शिलालेखों के आधार पर लेखकगण छः वर्षों के निर्माण की अवधि का अनुमान अनुमान लगाते हैं। मेरे विवेक के अनुसार छः वर्ष का समय अपर्याप्त है। ताज परिसर के उचित निर्माण अवधि के विषय में टैवेर्नियर (Tavernier) के द्वारा अनुमानित बाइस वर्ष के समय को सही माना जा सकता है। यद्यपि वह आगरा में 1640 में आया था और उसने ताज के कुछ मरम्मत कार्य को देखा था। स्थानीय लोगों ने सुन रखा हुआ होगा कि वास्तव में शताब्दियों पहले उस भवन का निर्माण बाइस वर्षों में हुआ था और उसे भी यह बात स्थानीय लोगों से मालूम हुई होगी।

औरंगजेब के द्वारा अपने पिता शाहजहां को 9 दिसम्बर 1652 को लिखे गए पत्र में ताज के मरम्मत के विषय को भी लेखकों ने स्वीकारा है। औरंगजेब ने लिखा था कि पिछली बारिश के दौरान इमारत के उत्तरी भवन और सहायक कक्षों में छेद हो गए हैं तथा चार धनुषाकार दरवाजे, चार छोटे गुम्बद और उत्तरी दिशा की चार ड्यौढ़ियाँ बरबाद हो गई हैं। लेखक यह प्रश्न नहीं उठातेः निर्माण के मात्र तेरह वर्षों बाद ही क्या ताज क्षीण हो सकता है? क्या यह विश्वास करना सुसंगत नहीं होगा कि 1652 तक ताज ने सैकड़ों वर्षों की उम्र पूरी कर ली थी इसीलिए उसमें सामान्य टूट-फूट के लक्षण दिखाई पड़ने लगे थे।

शाही इतिहासकार बादशाह को वास्तु सम्बन्धी परियोजनाओं में निजी रूप से भाग लेने वाला बताने में और उसके उत्कृष्ट चरित्र की महिमा का गान करने में किंचित मात्र भी कमी नहीं की है। लेकिन यूरोपीय यात्रियों का कहना है कि बादशाह औरतों के प्रति वासना को छोड़कर लंबे समय तक कुछ अन्य कार्य कर पाने के लिए असमर्थ था। न ही उसे कोमल हृदय, करुणामय या महान प्रेमी समझा जाना चाहिए। ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों ही "प्रेमी" क्रूर, स्वयं-केन्द्रित और अनैतिक थे।

जहाँ बेग्ले और देसाई ताजमहल के प्रेम के प्रति समर्पित भवन मानने में भ्रमित हैं वहीं वे भवन के मुगल मूल होने के प्रति भी दृढ़ नहीं हैं। वे प्रमुख समस्याओं को अनदेखा करते हुए पारम्परिक दृष्टिकोण का ही समर्थन करते हैं:


1. जरा ताज मुख्य भवन के दोनों ओर की एक समान दो इमारतों की विशेषता पर गौर करें। यदि उन्हें दो अलग अलग कार्यों - एक मस्जिद हेतु और दूसरा अतिथिगृह हेतु - बनाए गए थे तो उन कार्यों के अनुरूप उनकी डिजाइन भी भिन्न भिन्न होनी थी।

2. मुगल आक्रमण के समय विकसित तोपखानों का चलन होने के बावजूद भी परिसर की परिधि दीवारों में मध्यकाल के पूर्व वाले तोपखाने क्यों है?  [एक महल के लिए सुरक्षा व्यवस्था तो समझ में आने वाली बात है किन्तु एक कब्रगाह की सुरक्षा की क्या आवश्यकता है?]


3. उत्तर दिशा की ओर यमुना किनारे वाले चबूतरे के नीचे कोई बीस कमरे क्यों बनाए गए हैं? एक कब्रगाह में इन कमरों की क्या जरूरत है? हाँ एक महल में अवश्य ही इन कमरों का सदुपयोग हो सकता है। लेखकों ने तो इन कमरों के अस्तित्व का ही कहीं पर भी जिक्र नहीं किया है।

4. इन आपस में सटे हुए बीस कमरों के विपरीत गलियारे वाले दक्षिण दिशा के सील किए गए कमरों में क्या है? क्या बीस सटे कमरे विपरीत लंबे गलियारे के दक्षिण की ओर बंद हुआ कमरे में है? उनके दरवाजों को किसने चिनाई करके बंद कर दिया है? उनके भीतर की वस्तुओं तथा सजावट का अध्ययन करने के लिए विद्वानों को क्यों अनुमति नहीं है?

5. "मस्जिद" का रुख मक्का की ओर होने के बजाय पश्चिम दिशा की ओर क्यों है?

6. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) ने कार्बन-14 या thermo-luminiscnece के माध्यम से ताज के काल निर्धारण को क्यों अवरुद्ध कर रखा है? ताज किस शताब्दी में बना है जैसे किसी भी विवाद को आसानी के साथ हल किया जा सकता है। [ताज के एक दरवाजे से गुप्त रूप से ले जाए गए लकड़ी के एक टुकड़े का रेडियोकार्बन (radiocarbon) विधि से कालनिर्धारण करने पर उसके 13वीं सदी के होने की सम्भावना पाई गई है। किन्तु और अधिक डेटा की आवश्यकता है।]

यदि शाहजहां ने मुजताज़ के प्रति अपने प्रेम के लिए ताज को नहीं बनवाया था तो वह उसे प्राप्त क्यों करना चाहता था? जाहिर है कि मुमताज़ के लिए उसका प्यार एक आसानी के साथ किया गया छल था। वास्तव में वह पहले से बने भवन को स्वयं के लिए प्राप्त करना चाहता था। उस भवन के बदले में अन्य सम्पत्ति देने के शाहजहां के प्रस्ताव को राजा जय सिंह मना नहीं कर सका और इस प्रकार शाहजहां ने उसे हड़प लिया। सोने के मूल्यवान रेलिंग के साथ ही साथ उस भवन के अन्य मूल्यवान वस्तुओं को भी शाहजहां ने प्राप्त कर लिया। परिसर को एक मुस्लिम कब्रगाह बनाकर उसने बीमा कर लिया कि हिन्दू अब उस भवन को कभी भी वापस नहीं चाहेंगे। मुख्य भवन के पश्चिम दिशा के निवासगृह को शाहजहां ने साधारण अंदरूनी संशोधन करके और मेहराब बनाकर मस्जिद में परिवर्तित कर दिया। यह सिद्ध करने के लिए कि ताज आरम्भ से ही इस्लामिक इमारत है, उसने अनेक प्रवेशस्थलों तथा दरवाजों के चारों ओर इस्लामी शिलालेख जड़ दिया। निस्सन्देह, विद्वानों को आरम्भ से ही या तो चुप करा दिया गया है या धोखा दिया गया है।

फिर भी, हम बेग्ले और देसाई को इतने अधिक इतने अधिक मात्रा में उपयोगी डेटा एकत्रित करने तथा समकालीन लेखन तथा शिलालेखों के अनुवाद करने के लिए धन्यवाद देंगे। वे ताज के विषय में एक संदिग्ध किंवदन्ती को स्वीकार करने के बजाय निरपेक्ष तथ्य देने में अवश्य ही असफल हैं। उनकी व्याख्याएँ और विश्लेषण पूर्वाग्रह के साँचे में ढले हैं। किन्तु उनके कार्य का लाभ ताजमहल के प्रति उत्सुकता रखने वाले विद्वानों तथा जनसाधारण अवश्य ही उठा सकते हैं और यह जानने में सफल हो सकते हैं कि ताजमहल को किसने और कब बनवाया था, यदि वे पुस्तक को खुले दिमाग से पढ़ें।

10 comments:

निशाचर said...

ताज के यमुना की और खुलने वाले लकड़ी के दरवाजे की छीलन का नमूना जिसके आधार पर उसे १३वीं शताब्दी का सिद्ध किया गया था अनाधिकारिक रूप से ले जाया गया था. जब अधिकारिक रूप से नमूने की मांग की गयी तो वह दरवाजा ही गायब हो गया और उस द्वार को ईंटों से चिनाई कर बंद कर दिया गया. हाल ही में इस सम्बन्ध में खबर मय फोटो दैनिक जागरण में प्रकाशित हुई है.

प्रवीण पाण्डेय said...

इस क्षेत्र में बुद्धिहीनता की स्थिति से ऊपर उठें हमारे इतिहासकार और बुद्धिजीवी।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

आप भी कहां कहां से खोज के लाते है। गजब की जानकारी।

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सांपों को दुध पिलाना पुण्‍य का काम है?

कमल शर्मा said...

लाजवाब, महत्वपूर्ण और विचारणीय पोस्ट के लिए धन्यवाद
कमल शर्मा
http://aghorupanishad.blogspot.com

Rahul Singh said...

''रेडियोकार्बन (radiocarbon) विधि से कालनिर्धारण करने पर उसका 13वीं सदी का होना सिद्ध हो चुका है।'' वाक्‍य पर ध्‍यान दीजिए, यह गंभीर तथ्‍यात्‍मक भूल है.

राज भाटिय़ा said...

पता नही इतिहास के पन्नो मे किस्म किस सचाई को दफ़न कर रखा हे, इस ताज महल को महल कहना भी गलत हे अगर यह कब्रिस्थान हे तो,
धन्यवाद इस जानकारी के लिये

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

पता नहीं सत्य क्या है... जो भी हो एक बार विदेशी वैज्ञानिक ही छानबीन कर सही तथ्य बता सकते हैं.

Unknown said...

@ Rahul Singh

अनुवाद में त्रुटि बताने के लिए धन्यवाद राहुल जी!

मूल लेख में हैः

[Radiocarbon dating of a piece of wood surreptiously taken from one of the doors gave 13th century as a possible date. But more data is needed.]

अपने अनुवाद में मैं यह सुधार कर रहा हूँ

ताज के एक दरवाजे से गुप्त रूप से जाए गए लकड़ी के एक टुकड़े का रेडियोकार्बन (radiocarbon) विधि से कालनिर्धारण करने पर उसके 13वीं सदी के होने की सम्भावना पाई गई है।

SANDEEP PANWAR said...

एक अच्छा लेख, जिससे ताज के बारे में जाना,
प्रो० ओक ने तो सालों पहले इसकी सच्चाई कि यह शिवलिग है बता दिया था,

Unknown said...

पुनः सच्चाई जानने की कोशीश होनीचहिये