Thursday, September 24, 2009

क्या सोचकर टिप्पणी की थी ... सुरेश चिपलूनकर खुश होगा ... शबासी देगा ...

भइ सुरेश चिपलूनकर जी के लेख क्या "नेस्ले" कम्पनी, भारत के बच्चों को "गिनीपिग" समझती है? Nestle Foods GM Content and Consumer Protection ने तो कमाल ही कर दिया! कट्टर विरोधियों ने भी ऐसी टिप्पणियाँ कि जैसे कि शक्कर की चाशनी टपक रही हो!! सिर्फ टिप्पणियाँ ही नहीं कीं चटका भी लगाया!!!


स्वच्छ(?) हजरत तो जो हैं सो हैं, तीन हफ्ते में किसी को पागल कर देने वाले औंधे घड़े खुद तीन मिनट में पागल हो गए और कसीदे पढ़ने लगे।

अब आप बोलोगे कि अवधिया जी (सठियाये बुड्ढे) आप भी तो बस मौका खोजते रहते हो लट्ठ ले कर पीछे पड़ने की। आखिर क्या बुरा किया उन्होंने? तो जवाब में हम भी आपसे पूछ लेते हैं कि आपने पढ़ा है उन टिप्पणियों को? उन्हें पढ़ कर एक बच्चा भी समझ सकता है कि उनमें सुरेश जी की प्रशंसा से कहीं अधिक आत्म प्रशंसा है। उनमें दर्शाया गया है कि वे अगर चटका लगाकर सुरेश जी पर एहसान नहीं करते तो सुरेश जी के लेख को कोई पूछने वाला नहीं था। वो अगर सुरेश जी के लेख को हिन्दी के एग्रीगेटर्स में अगर आगे लाते तो पढ़ना तो दूर कोई देखता तक नहीं। ये बताया गया है कि सुरेश जी अकेले राष्ट्र के हित में सोचने वाले व्यक्ति नहीं हैं बल्कि टिप्पणी करने वाले उनसे भी अधिक राष्ट-हितू हैं।

हम तो सिर्फ यह कहते हैं कि किसी की प्रशंसा करनी है तो दिल से करो, सदाशयता के साथ करो। जिसकी प्रशंसा कर रहे हो उस पर एहसान जताने के लिए और उसकी प्रशंसा के बहाने आत्म प्रशंसा करने के लिए मत करो। या फिर प्रसंशा करो ही मत

8 comments:

Mishra Pankaj said...

अब क्या सोचकर यहाँ टिप्पणी करू सरदार :)अवधिया जी मेरा काम ? निवेदन है !

Unknown said...

अवधिया जी, मुझे "गब्बर" बनाने हेतु आभार। लेकिन कहीं कुछ गड़बड़ है, मैंने आज तक गाली-गलौज के अलावा कोई टिप्पणी डिलीट नहीं की, चाहे किसी ने कितनी ही आलोचना की हो… या तारीफ़ की हो… बहरहाल हमें मुद्दे से नहीं भटकना चाहिये, यदि कट्टर विरोधी भी साथ आते हैं तो स्वागत है…। लेकिन आपने जिस तरफ़ इशारा किया उसे सुधी पाठक समझ ही गये होंगे…

Unknown said...

सुरेश जी,

इस शीर्षक को बनाते समय ही मुझे आशा ही नहीं वरन विश्वास था कि आप बुरा नहीं मानेंगे। गब्बर यद्यपि खलनायक था किन्तु अपने संवाद बोलने के कारण नायक से भी आगे बढ़ गया और मैंने आपको खलनायक गब्बर नहीं डायलॉग डिलिव्हरी में नायक वाला गब्बर मान कर यह शीर्षक लिखा था।

मैं भी चाहता हूँ कि कट्टर विरोधी साथ आयें। मैं भी उनका स्वागत करना चाहता हूँ। मैं भी चाहता हूँ कि वे समझें कि "धर्म हो या भाषा, सभी महान होते हैं किन्तु स्वाभिमानी व्यक्ति स्वधर्म और निजभाषा को सर्वाधिक सम्मान और सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए बाकी सभी का भी सम्मान करता है, और अपमान तो कभी भी नहीं करता"। मैं चाहता हूँ कि हम सब हिलमिल कर हिन्दी की और हिन्दी ब्लोग जगत की सेवा करें।

और फिर मेरी सलीम जी या कैरानवी जी से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी थोड़े ही है। मेरा विरोध है तो सिर्फ उनकी जिद से। वे भी अच्छे इन्सान हैं यदि अपनी कुछ खामियों को दूर कर लें तो मुझसे अधिक प्रसन्नता शायद ही किसी को होगी।

संजय बेंगाणी said...

पहले तो मैं महान, फिर मेरा धर्म महान, मेरी टिप्पणी महान और इस काम के लिए एहसान मानने की जगह....


दुसरों का सम्मान करने वाले "धर्म नहीं बदलवाते". क्योंकि उनके लिए तो सभी बराबर है. जिन्हे "कंवर्ट" करवाना होता है वे अपने अन्दर झाँक कर देखे....

प्रवीण said...

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"woh al bal sal,,aur,,,woh mard jo aurton ka naam rakh ke aapke sath hote hen,,,,,, agar woh kal tak yahan apna samarthan dene yahan nahin aaye to kal men jaoonga unke blogs men unhen yaad dilane.... chetawni
ab men computer se uth raha hoon ke ab yeh post 35 comments se chitthajagat aur 16 vote se blogvani par top par aagayi he, mujhe kiya kiya karna pada yeh to men janoon ya khuda jane."



"----केवल दो लाइन कम कमेंटस लिखने तक ही समर्थन नहीं करता है, मैंने दिल से इस पोस्ट को समर्थन किया है,
पहला दिन देख लिया कल टाप पर इसको छोडा था आज की मेरे पास बहुत सी प्‍लानिंग हैं, तुम तो किया अच्‍छे काम में मेरे आगे सारा ब्लागजगत भी आजाये तो भी...."



"चिपलूनकर साहब, ब्लागवाणी पर परवीन साहब के चित्र वाले ब्लाग पर आपका लेख आ रहा है उसे चटका लगा दें उसका ट्रेफिक इधर ही आयेगा,
http://veer-sawarkar.blogspot.com/2009/09/sureshchiplunkarblogspotcom.html
जो भी करो दिल से करो सफलता तम्‍हारे कदम चूमेगी"
(उपरोक्त तीनों टिप्पणियां सुरेश जी की पोस्ट पर हैं)


"भैया तुमने तो दोंनों तरफ से दुत्‍कार ही मिलनी है,वीर सावरकर नाम के ब्लाग ले आये तस्‍वीर तो बदल लेते,उधर चिपलूनकर साहब की नई पोस्‍ट पर पर मुखालफत करते हो इधर सपोर्ट में नया ब्‍लाग ले आये भाई तुम्‍हें तो दुत्‍कार ही दुत्‍कार मिलनी है, देख लो जा के और करो जरूर कुछ करो, कुछ ना करो तो कमसे कम मेरे से पंगा लेते रहा करो
http://veer-sawarkar.blogspot.com/2009/09/sureshchiplunkarblogspotcom.html
डायरेक्‍ट लिंक
September 23, 2009 5:30 PM "
(यह टिप्पणी हुई मेरे ब्लॉग पर)

अवधिया जी,
धन्यवाद आपका कि आपने इस खेल को समझा,
पकड़ा और उजागर किया...

मैंने निम्न टिप्पणी की थी सुरेश जी के लिये:-
"ab men computer se uth raha hoon ke ab yeh post 35 comments se chitthajagat aur 16 vote se blogvani par top par aagayi he, mujhe kiya kiya karna pada yeh to men janoon ya khuda jane
22 September, 2009 11:49 PM"
आदरणीय सुरेश जी,
मैं जानता हूं कि पोस्ट लिख देने के बाद आप हम जैसे नाचीजों की टिप्पणियों या सवालों का जवाब नहीं देते पर ऊपर जो ---- भाई का लिखा quote किया है उस पर आपके चुप रहने से गलत संदेश जायेगा।
23 September, 2009 8:51 AM

परंतु दुर्भाग्य वश या तो सुरेश जी मेरा मंतव्य नहीं समझे या उन्होंने कुछ कहना उचित नहीं समझा पोस्ट को टॉप पर लाने के इस दावे के बारे में..

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

अवधिया जी अच्छा किया आपने इस ओर हम सबका ध्यान आक्रिस्ट करवाया | आपसे १००% सहमत हूँ |

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

विरोध या समर्थन करना भी इन लोगों के लिए सिर्फ स्व प्रचार का एक जरिया है......
बाकी संजय जी के कथन से भी पूर्णत: सहमति है!!

Randhir Singh Suman said...

sab thik hai kya?