Tuesday, September 22, 2009

पाकिस्तान बना - पर किसकी लाश पर?

महात्मा गांधी ने विभाजन के पूर्व हिन्दुओं से अनुरोध किया था कि वे अपना घर बार छोड़ कर कहीं न जाएँ क्योंकि देश का विभाजन नहीं होगा। भरी सभा में उनका कथन था - "यदि पाकिस्तान बनेगा तो मेरी लाश पर बनेगा"

(चित्र स्रोतः http://www.hindu.com/th125/gallery/thim001.htm)

किन्तु पाकिस्तान बना

विभाजन के पहले:


(
चित्र स्रोतः http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00maplinks/modern/maps1947/beforemax.gif)

विभाजन के बाद:

(चित्र स्रोतः http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00maplinks/modern/maps1947/aftermax.gif)

हाँ तो पाकिस्तान बना ...

पर
किसकी लाश पर? महात्मा गांधी की लाश पर? या 25 लाख हिन्दू सिखों की लाशों पर?

महात्मा जी का कथन कोरा झूठ साबित हुआ।

दंगों में मारे गये लोगों की लाशों का ढेर

(चित्र स्रोतः http://news.bbc.co.uk/2/shared/spl/hi/pop_ups/06/south_asia_india0s_partition/html/7.stm)

दंगों में मारे गये लोगों का सामूहिक अग्नि संस्कार

(चित्र स्रोतः http://news.bbc.co.uk/2/shared/spl/hi/pop_ups/06/south_asia_india0s_partition/html/9.stm)

असंख्य माताओं और बहनों का शीलहरण हुआ। अनगिनत लोगों को अपना घर बार, जमीन जायजाद, व्यवसाय व्यापार छोड़ कर दरिद्र बनना पड़ा और शरणार्थी जीवन व्यतीत करने के लिए विवश होना पड़ा।

पाकिस्तान से भारत आने वाली रेलगाड़ी

(चित्र स्रोतः http://www.hindu.com/th125/gallery/thim004.htm)

दिल्ली से पाकिस्तान जाने वाली रेलगाड़ी

(चित्र स्रोतः http://en.wikipedia.org/wiki/File:Train-to-pakistan-delhi1947.jpg)

शरणार्थी शिविर

(चित्र स्रोत http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00routesdata/1900_1999/partition/camps/camps.html)

एक और शरणार्थी शिविर

(चित्र स्रोत http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00routesdata/1900_1999/partition/camps/camps.html)

पंजाब उच्च न्यायालय के एक न्यायमूर्ति श्री जी.डी. खोसला की पुस्तक ‘‘The stern Reckoning’’ पुस्तक में हिन्दुस्तान का विभाजन, विभाजन तक हुई घटनाएँ और विभाजन के भयानक परिणामों से सम्बन्धित अध्यायों के अनुसारः

गाड़ियाँ भर-भरकर निर्वासितों के दल हिन्दुस्तान आने लगे। उसका ब्यौरा भी हृदय विदीर्ण करने वाला है। वह भयाक्रान्त मानवता का बड़ा प्रवाह बह रहा था। डिब्बों में साँस लेने जितना भी स्थान न था। डिब्बों की छत पर बैठकर भी लोग आते थे। पश्चिमी पंजाब के मुसलमानों का आग्रह था कि लोगों का स्थानान्तरण होना चाहिए, परन्तु वह इतने सीधे, बिना किसी छह के हो, यह उन्हें नहीं भाता था। इन हिन्दुओं के जाते समय भयानकता, क्रूरता, पशुता अमानुषता, अवहेलना आदि भावों का अनुभव मिलना ही चाहिए, ऐसी उनकी सोच थी। उसी के अनुसार उनका व्यवहार था।

(छेदक 12 ए 9)

किसी स्टेशन पर गाड़ी घण्टों ठहरती थी। उस विलम्ब का कोई कारण न था। पानी के नल तोड़ दिए गए थे। अन्य अप्राप्य किया जाता था। छोटे बच्चे भूख और प्यास से छटपटा कर मरते थे। यह तो सदा का अनुभव बना था। एक अधिकृत सूचना के अनुसार माता-पिताओं ने अपने बच्चों को पानी के स्थान पर अपना मूत्र दिया, किन्तु यह भी उनके पास होता तो ! निर्वासितों पर हमले हुआ करते थे। उनको ले जाने वाले ट्रक और लारियाँ रास्ते में रोकी जाती थीं। लड़कियाँ भगायी जाती थीं। जो युवावस्था में थीं, ऐसी लड़कियों पर बलात्कार हुआ करते थे। वे भगायी भी जाती थीं और दूसरे लोगों की हत्या की जाती थी। यदि कोई पुरुष बच जाए, उसे अपने प्राण बच गए, यह मानकर ही संतुष्ट रहना पड़ता था।

(छेदक 12 ए 10)

निर्वासितों का काफिला झुण्ड की भाँति चल रहा था। वृद्ध पुरुषों तथा स्त्रियों का चलते-चलते दम घुट जाता था। वे मार्ग के किनारे मरने के लिए ही छोड़े जाते थे। काफिला आगे बढ़ जाता था। उनकी देखभाल करने का किसी के पास समय न होता था। रास्तों शवों से भरे थे। शव गल जाते थे। उनसे दुर्गन्ध फैलती थी। कुत्ते और गिद्ध उन्हें अपना भोजन बनाते थे। ऐसे समूह मानो मनुष्य की पराभूत चित्त की, शोक विह्वल और अगनित मन की अन्त्ययात्रा ही थी।

(छेदक 12 ए 11)

अल्पसंख्यकों का बरबस निष्कासन करना, यही मुस्लिम लीग और पाकिस्तान की रचना को प्रोत्साहित करने वालों का मन्तव्य था। अतएव उन लोगों से सद्व्यवहार, सहानुभूति अथवा सुविधाओं की अपेक्षा करना अर्थहीन था। उनके सैनिक और आरक्षीगण (पुलिस) उनके यात्रारक्षी दल प्रायः मुसलमान थे। उनसे निर्वासितों को रक्षण मिलना असंभव ही था। निर्वासितों को भी उन पर विश्वास न था। क्योंकि उन्हें रक्षण देने की अपेक्षा, अपने धर्मबन्धुओं द्वारा चलाए लूटपाट के अभियान में हाथ बंटाने का उन्हें अधिक मोह हुआ करता था।

(छेदक 12 ए 12)

पश्चिमी पंजाब से आई निर्वासितों की गाड़ियों पर कई हमले हुआ करते थे, किन्तु 14 अगस्त, 1947 के पश्चात् जो हमले हुए, वे अत्यधिक क्रूरतापूर्वक थे। सितम्बर में झेलम जिले के पिंडदादनखान गाँव से चल पड़ी गाड़ियों पर तीन स्थानों पर आक्रमण हुए। दो सौ स्त्रियों को या तो मारा गया या भगाया गया था। वहाँ से निकली गाड़ी पर वजीराबाद के पास हमला हुआ। वह गाड़ी सीधे रास्ते से लाहौर जाने के बजाय टेढ़े रास्ते सियालकोट की ओर घुमायी गयी। यह सितम्बर में हुआ। अक्टूबर में सियालकोट से आने वाली एक गाड़ी पर ऐसा ही अत्याचारी प्रयोग किया गया, किन्तु जनवरी, 1948 में बन्नू से निकली गाड़ी पर गुजरात स्थानक पर विशेष रूप से क्रूर हमला हुआ। हिन्दुओं का घोर संहार हुआ। उसी गाड़ी पर खुशाब स्थानक पर भी हमला हुआ। सरगोधा और लायलपुर के रास्ते वह गाड़ी सीधी लाहौर लाई जाने के बजाय खुशाब, मालकवाल, लालामोसा गुजरात और वजीराबाद जैसे दूर के मार्ग से लाहौर लाई गई। बिहार का सैनिकदल यात्रारक्षा के लिए नियुक्त किया गया था, उन पर भी शस्त्रधारी पठानों ने हमला किया था, गोलियाँ बरसायी थीं। यात्रारक्षी दल ने प्रत्युत्तर में गोली चलायी, किन्तु शीघ्र ही उनका गोला बारुद समाप्त हो गया। जैसे ही पठानों को यह भान हुआ, तीन सहस्त्र पठानों ने गाड़ी पर हमला कर दिया। पाँच सौ लोगों को कत्ल कर दिया। यात्री अधिकतर बन्नू की ओर के थे और उनमें से कुछ धनवान थे। उनको लूट लिया गया। यह सब जनवरी, 1948 में हुआ।

(छेदक 12 ए 13)

(कोटेड सामग्री http://pustak.org/bs/home.php?bookid=4418 से साभार)

देश का विभाजन एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। विभाजन एक ऐसा घाव है जो हमेशा हमेशा के लिए नासूर बन कर रह गया है।

20 comments:

Mishra Pankaj said...

ऐसी तस्वीरे दिखाने के लिए धन्यवाद

नरेन्द्र सिंह said...

झकझोर दिया इस लेख ने !

Unknown said...

दुखद है........
पीडा देने वाला है...........
लेकिन सच है.........
__सत्यालेख के लिए बधाई.........
चित्रों के लिए अभिनन्दन !

निशाचर said...

अपनी बौद्धिक विलासिता में मगन हमारे नेताओं ने देश की जनता के साथ घोर अमानवीय छल किया. विभाजन को रोक पाने में अक्षम होने के बावजूद वे देश की जनता को बहलाते रहे और इसका फल निर्वासित जन ने भोगा. उनका यह प्रमाद अक्षम्य है.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

मुसीबत यह है अवधिया जी कि ये क.. हिन्दू लोग तब भी तो नहीं सुधरे !वो तो आज भी जो इक्का-दुक्का बचे भी है, उन्हें भी भगाने में लगे है ! हमारे तथाकथित विद्वान लोग कहते है कि मुसलमान इस लिए भारत में पैर ज़माने में कामयाव रहे क्योंकि उन्होंने हमारे रीतिरिवाजों को अपना लिया, जबकि अंग्रेज ऐसा न कर सके और जल्दी उखड गए ! लेकिन मैं कहता हूँ कि अंग्रेजो के रीतिरिवाज रहन सहन हमारे से उच्च कोटि का था, अथ वे क्यों हमारे रिवाजो का अनुसरन करते, रही मात मुस्लिम आक्रमंकारियो की तो उनका अपना रहन सहन बहुत ही घटिया दर्जे का था, अतः यहाँ जो कुछ मिला सब अपना लिया ! जो विद्वान यह तर्क देते फिरते है कि पहले हिन्दुवों की महिलाए भी पर्दों में रहती थी तो उन्हें भी मेरा सीधा सा जबाब है कि अगर गौर से इसका अध्यन करे तो हिन्दू महिलाए उन जगहों पर अधिक पर्दा सिस्टम अपनाती थी जहा पर मुसलमान आकर्मंकरियो का और बाद में अंग्रेजो का ख़तरा बना रहता था, क्योंकि उन कमीने आकर्मंकारियो का कोई ईमान नहीं था !

संजय बेंगाणी said...

शरणार्थी शिविरों में लोगो की सहायता कौन कर रहा था? समाजवादी? गाँधीवादी? कॉंग्रेसी?

नहीं.


वे साम्प्रदायिक, हाफ पेंटिये आरएसएस के लोग थे.

स्वतंत्रता के समय जो मारे गए थे, जिन्होंने दर्द को भोगा था, उनके लिए यह पोस्ट लिखी थी कभी:

http://www.tarakash.com/joglikhi/?p=143

Ghost Buster said...

हिला देने वाला नग्न सत्य है ये.

हर लिहाज से एक बेहतरीन पोस्ट.

राज भाटिय़ा said...

जी.के. अवधिया आप ने तो हिला कर रख दिया, ऎसा मंजर मेरे मां बाप ने देखा है, हम पंजाब से है, लेकिन जो गाडियां पाकिस्तान से आती थी उन के साथ यही हाल होता था, लगता है इन लोगो के दिलो मै दया भाव बिलकुल नही,बाते बडी बडी करते है, विभाजन के बाद पाकिस्तान मै २५% हिन्दू बचे थे आज १% भी नही, भारत मै १२% बचे थे मुसलमान आज यह २५% हो गये है.
संजय बेंगाणी जी की टिपण्णी से सॊ प्रतिशत सहमत हुं

Gyan Dutt Pandey said...

ये घाव कुरदने से क्या लाभ? बस एक और विभाजन न हो!

Unknown said...

ज्ञानदत्त जी,

क्षमा चाहूँगा, मैं कोई घाव नहीं कुरेद रहा हूँ बल्कि उन जानकारियों को सामने लाने का प्रयास कर रहा हूँ जिन्हें तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों ने जानबूझ कर छुपा कर रखना चाहा। यह घाव कुरेदना नहीं बल्कि सच्चा इतिहास है।

एक विभाजन ही हमेशा के लिए नासूर बन चुका है, दूसरा विभाजन कौन होने देगा?

ab inconvenienti said...

किसी को बुरा लगे तो लगे, पर यह सब पढ़ने और देखने के बाद जो मान मे आ रहा है उसे ईमानदारी से लिख रहा हूँ.

विभाजन के समय हिंदुओं के साथ जो कुछ हुआ वह आज पाकिस्तान, भारत, और बांग्लादेश मे बसे पाकिस्तान समर्थकों के साथ किया जाना चाहिए. ये भारत मे रहकर भी पहली निष्ठा इस्लाम, पाकिस्तान, काफिरों के खिलाफ जेहाद और आतंकवाद के प्रति रखते हैं. ये कश्मीर की "आज़ादी" का खुलेआम समर्थन करते हैं. आज के संपूर्ण ज्ञान को नकार कर मध्यायुग मे लिखी किसी लड़ाके बद्दू सरदार की अतर्किक किताब को ही अंतिम सत्य मानते हैं.

इस्रएल इन जन्मजात पागलों अच्छा इलाज कर रहा है. अब तो इन आतंकियो के हाथ परमाणु हथियार भी लग चुके हैं आजकल इसी के दम पर ब्लेकमेल करते रहते हैं

संजय बेंगाणी said...

"दूसरा विभाजन कौन होने देगा?"

मैं पूछता हूँ कौन रोक लेगा?

डायरेक्ट एक्शन के आगे घुटने हमने ही टेके थे. जैसे को ऐसा जवाब दिया जाता है तब वह "भारत के लिए कंलक" हो जाता है. हिन्दु शांति शांति का ही पाठ कर सकते है. शांति के लिए लड़ नहीं सकते. क्या फर्क पड़ता है.....


उदाहरण देखें. पूरे भारत को इस्लामी बना देने का सपना देखते है पाकिस्तान के कुछ लोग. इतने सारे लोगो को मुस्लिम बना देने का जुनुन...और एक भारतीय को देखो, जो कहते है, शांति होती हो तो कश्मीर दे दो....यही अंतर है. शांति और अहिंसा का पाठ हजार साल से डीएनए में घुस गया है.

देश धर्म की रक्षा के लिए मरना मारना नहीं आएगा...सीमाएं सिकुड़ती जाएगी....

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

इतने वीभत्स,दर्दनाक और ह्रदय को झकझोर देने वाले मंजर की तो हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी... बडे-बुजुर्गों से ये तो सुनते आए थे कि बँटवारे के समय हालात बेहद दुखद एवं भयंकर थे किन्तु स्थितियाँ इतनी ह्रदयविदारक रही होंगी..ऎसी कल्पना नहीं कर पाए थे....लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए ये भय जरूर मन में जन्म लेने लगा है कि कहीं भविष्य में ऎसे ही हालातों का सामना आने वाली पीढी को न करना पड जाए!!!

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

अवधिया जी सच से रु-बा-रु करवाने का आपका प्रयास सराहनीय है | ऐसी कई बातें हैं जिसे आपने पोस्ट मैं लिखा है, जो हम जानते ही नहीं | सच को अभी तक छुपाया जा रहा है | वैसे चित्र भी बहुत कुछ बयां कर रही है |

अब एक नए विभाजन या एक नए कश्मीर (North East) के लिए हमें मानशिक रूप से तैयार हो जाना चाहिए | वैसे हम कुछ कर तो नहीं पायेंगे पर पहले से ही खबर के लिए तैयार रहने से पीडा थोडी कम तो हो जायेगी |

Sudhir (सुधीर) said...

राष्ट्र की स्वतंत्रता के साथ जुड़े इस दुखद अध्याय को कभी भी भुलाया तो न जा सकेगा.... किन्तु हम क्या कर रहें हैं....राष्ट्र देवी को समर्पित 'संतान' धर्म का पुनुर्थान होना चाहिए....धर्म, भाषा और प्रांतीय मतभेदों को भुलाकर कर समवेत स्वरों में वन्देमातरम का उद्घोष करना होगा

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

इतिहास तो इतिहास है वर्तमान में ही भारत के भीतर बहुतेरे पाकिस्तान हैं। हिन्दू नागरिकों की दुर्दशा देखनी हो तो यहाँ जाएँ:

http://kashmiris-in-exile.blogspot.com/

आँख पर पट्टी बाँधे और कान में तेल डाले हम सभी बैठे हैं कि शिकारी आए और हमें शिकार बनाए। ये चित्र तो मैंने पहले भी देखे थे - इन्हें फिर दिखाने के लिए आभार। लोगों की यादों को जीवित रखना चाहिए।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

padh ke aisa lag raha tha.......ki yeh manzar poora abhi bhi saamne hi ho raha hai................main itihaas bahut padhta hoon........ bipin chandra se lekar DN jha tak..irfan habib se lekar....... Mamoria tak........ aur bhi meri kai research hain............

aur sach kahoon to meri yeh research aapke is lekh se mail khhaatin hain..........

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Aapne mera hausla badhaya....... main aapka bahut shukrguzaar hoon..........
aise hi apna ashirwaad banaye rakhiye.........

dhanyawaad.........

Chandan Kumar Jha said...

सबकुछ दुःखद है ।

Randhir Singh Suman said...

nice

Suresh Kumar Shukla said...

नमस्ते,

मैंनें १९७९ में जन्म लिया है। यह सब मेरे लिए इतिहास है। अपने बड़ों से उनके दुःखद अनुभव सुन चुका हूँ। आपका सचित्र लेख उनके विवरण से पूर्णतया मेल खाता है।

मैंने आउटलुक पत्रिका में (पिछले एक वर्ष में कभी) किसी पाठक की टिप्पणी में जाना कि १९८८ के बाद से एनसीआरटी की इतिहास की पुस्तकों मे से यह सब हटा दिया गया। अब यह सिर्फ बड़ों के मुँह से सुनने को मिलता है।
यह भी दुःखद है क्योंकि इतिहास को नकारा या छुपाना तो गलत है। इससे क्या समाधान निकलेगा ?

आपका प्रयास और मेहनत सराहनीय है।
धन्यवाद,
सुरेश शुक्ल