Wednesday, November 11, 2009

क्या वो भूत था या महज एक भ्रम? (अन्तिम भाग)

मेरे किस्से को सुनकर सुब्रमणियम साहब ने कहा, "अवधिया! आई हैव नॉट टोल्ड यू मॉय एक्पीरियंस, आय हैव गॉन थ्रू सम पीक्युलियर फीलिंग्स इन दिस गेस्ट हाउस। मैं सोचा कि तुम डर जायेगा इसलिये नहीं बताया पर अब बताता है। द व्हेरी फर्स्ट डे एट दिस गेस्ट हाउस ........ बैंक से आने के बाद तुम घूमने चला गया और मैं अपना पैग बनाने लगा। पैग डालते समय मुझे ऐसा लगा कि किसी ने दरवाजे को धक्का दिया है। मैं दरवाजे को देखा तो वो हल्का सा हिल भी रहा था। मैं सोचा कि कोई चोर तो नहीं आया इसलिये पैग छोड़कर मैं गलियारे में आया। वहाँ कोई नहीं था। जल्दी से जाकर मैं सीढ़ी को देखा। उधर भी कोई नहीं था (गोलाकार होने के कारण पूरी सीढ़ी ऊपर से नीचे तक दिखती थी)। फिर मैं बाथरूम को भी देखा वहाँ भी कोई नहीं था।

"मैं सोचा मेरा कनफ्युजन था। वापस आकर मैं फिर पैग बनाया और पीने लगा। थोड़ी देर में फिर किसी ने दरवाजे को हल्का धक्का दिया। इस बार भी मैं पूरा चेक किया। उस दिन के बाद ऐसा मेरे साथ कई बार हुआ। मैं साफ फील किया कि किसी ने दरवाजे को पुश किया है। एक दिन मैं कनफ्युज हो सकता था पर रोज रोज नहीं हो सकता।"

इतना बताकर वे मुझसे बोले, "देखो अवधिया, मेरा एज फिफ्टी टू इयर्स हो रहा है बट मैं कभी भूत नहीं देखा। अगर यहाँ कोई भूत है तो मैं देखना चाहता हूँ। वो इसलिये कि यहाँ जो भी है वो हार्मफुल नहीं है। वो हार्मफुल होता तो अब तक हमको बहुत हरास किया होता। उसने ऐसा नहीं किया। अब तुम बोलेगा कि आप यहाँ रह कर देखो साहब तो मैं ऐसा नहीं कर सकता। तुम साथ देगा तो मैं तुम्हारे हिम्मत से और तुम मेरे हिम्मत से दोनों रह सकता है। बोलो यहाँ रहना है या कही और शिफ्ट करना है?"

मैंने सोचा जब ये बावन साल का होकर यहाँ रहने की हिम्मत कर सकते हैं तो मैं तीस साल का होने पर भी क्यों नहीं कर सकता? मैंने वहाँ रहने के लिये अपनी मंजूरी दे दी।

मेरी मंजूरी पाकर उन्होंने कहा, "पर तुम इस बात को इधर के किसी भी स्टाफ को बिल्कुल मत बताना, नहीं तो वो लोग जबरन हमें यहाँ से शिफ्ट कर देंगे। हम लोगों को यहाँ तीन हफ्ते रहना है जिसमें से पाँच दिन हो चुके हैं। वो लोग जान गये तो हमें यहाँ नहीं रहने देंगे।"

मैंने उनकी यह शर्त भी मान ली।

हम दोनों वहीं रहने लगे। वह कमरा हॉलनुमा था और हम दोनों के पलंग के बाद भी कमरे बहुत बड़ा हिस्सा खाली था। सुब्रमणियम साहब मस्त जीव थे। पीने खाने के बाद उन्हें तत्काल नींद आ जाती थी और वे खर्राटे भरने लगते थे। मैं पुस्तक पढ़ते रहता था रात में। पर लाइट बंद करने के बाद महसूस होता था कि कोई कमरे के खाली हिस्से में परेशान सा इधर से उधर और उधर से इधर चहलकदमी कर रहा है। कदमों की बिल्कुल स्पष्ट आवाज सुनाई देता था मुझे। सुबह चार बजे ही सुब्रमणियम साहब की नींद खुल जाती थी पर लाइट गोल रहने के कारण कमरे में वही घुप्प अंधेरा रहता था और सुब्रमणियम साहब मुझे बताते थे कि वे भी उस चहलकदमी को सुबह का उजाला होने तक स्पष्ट अनुभव करते थे।

नियत समय में काम पूर्ण करने के लिये मैंने बैंक के एक टाइपिंग मशीन को भी वहीं मँगवा लिया और खिड़की के साथ लगी टेबल पर उसे लगवा दिया। कई बार टाइप करते करते खिड़की के पास से किसी के निकलने की सरसराहट भी महसूस किया था मैंने। दरवाजे को धक्का लगा भी मैंने कई बार महसूस किया।

एक दो दिन ही हमें कुछ भय लगा फिर हम अभ्यस्त से हो गये। मैं और सुब्रमणियम साहब अपने वार्तालाप में उस प्राणी को, यदि वहाँ कोई रहा हो तो, अपने मित्र के रूप में सम्बोधित करते थे। इस प्रकार से वहाँ रहने का अन्तिम दिन आ गया। आखरी दिन कुछ डिस्कस करने, और कर्ट्‌सी के नाते भी, शाखा प्रबंधक शर्मा जी भी हमारे गेस्ट हाउस में आ गये। सुब्रमणियम साहब ने उन्हें ड्रिंक आफर किया और वे भी तैयार हो गये। सुब्रमणियम साहब ने उन्हें अपनी कुर्सी दे दी बैठने के लिये और खुद बिस्तर पर बैठकर दोनों के लिये पैग बनाने लगे कि अचानक शर्मा साहब की नजरें दरवाजे के तरफ उठ गईं।

तपाक से सुब्रमणियम साहब बोल उठे, "मिस्टर शर्मा! व्हाट फॉर यू आर लुकिंग एट द डोर?"

शर्मा जी बोले, "सर, आय थिंक समबडी हैज पुश्ड द डोर।"

सुब्रमणियम साहब ने कहा, "आय जस्ट वान्टेड टू लिसन दिस फ्रॉम यू।"

इतना कह कर, क्योंकि अगले रोज हमें जलपाईगुड़ी से विदा लेना था, उन्होंने शर्मा साहब को पूरा किस्सा बता दिया। सुनकर शर्मा साहब आश्चर्यचकित रह गये। वे बोले, "सर, हमारे यहाँ बंगाल में भूतों के बहुत से किस्से सुने जाते हैं पर इस गेस्ट हाउस के विषय में कोई ऐसी वैसी बात मैंने कभी नहीं सुनी। वैसे पिछले तीन सालों से यहाँ कोई नहीं ठहरा है। शायद इसी बीच यहाँ किसी आत्मा का वास हो गया हो। आप लोगों ने इतने दिनों तक मुझे कुछ भी नहीं बताया। बताया होता तो मैं आप लोगों को यहाँ किसी भी हालत में रहने नहीं देता। आप लोग आज मेरे घर चल कर रहें।"

उन्होंने बहुत जोर दिया पर हम नहीं माने। हम लोगों ने उन्हें सन्तुष्ट कर दिया कि आज तो रात भर हमें काम करना है और गैस बत्ती का भी प्रबन्ध कर लिया है। गैसबत्ती तो रात भर जलेगी। वैसे भी इतने दिनों तक हमारा कुछ भी अहित नहीं हुआ तो अब क्या होगा! चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं है।

दूसरे दिन हमने जलपाईगुड़ी छोड़ दिया और हमारा वह प्यारा दोस्त वहाँ अकेले रह गया।

आज भी मैं सोचता हूँ कि वो कोई भूत था या महज वहम था? और यदि वहम था तो तीन तीन व्यक्तियों, याने कि मैं, सुब्रमणियम साहब और शर्मा जी, को कैसे हुआ?


चलते-चलते

ट्रेन के उस कूपे में उसके साथ एक और व्यक्ति व्यक्ति बैठा था।

उसने अपने उस अपरिचित साथी से पूछ लिया, "क्या आप भूत के होने पर विश्वास करते हैं?"

उसने उत्तर दिया, "हाँ!"

और उत्तर देते ही वह गायब हो गया।

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"संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" का अगला पोस्टः

जटायु वध - अरण्यकाण्ड (13)

17 comments:

Khushdeep Sehgal said...

अवधिया जी,
क्या राम गोपाल वर्मा से हॉरर सीरीज़ की अगली फिल्म की कथा-पटकथा लिखने का बयाना ले लिए हैं...या ब्लॉगर्स बच्चों को डराने की कसम खा ली है...ठंड में भी रौंगटे खड़े कर दिए...

जय हिंद...

संगीता पुरी said...

अभी तक मैने भूत के जितने भी किस्‍से सुने थे .. अधिकांश किस्‍से भय के भ्रम होने से ही संबंधित थे .. एकाध किस्‍से जरूर भूत से संबंधि सत्‍य को उजागर करते थे .. पर बतानेवाले का व्‍यक्तित्‍व इतना प्रभावशाली नहीं था .. कि उसपर विश्‍वास किया जा सकता था .. पिछले साल मेरे बेटे ने दिल्‍ली के अपने होस्‍टल में इस तरह के भ्रम होने के कई किस्‍से सुनाए .. होस्‍टल में रहनेवाले सभी बच्‍चों को वहां भूत के होने का अहसास हो गया था .. पर अपने बेटे पर भी मैं विश्‍वास न कर सकी .. मुझे लगा कि पहली बार घर से निकले बच्‍चे के मन में इस तरह का भय बनना स्‍वाभाविक है .. पर आपकी इन दोनो कडियों ने तो सचमुच सोंचने को मजबूर कर दिया है .. पर एक हिम्‍मत भी मिली .. भूत व्‍यक्ति के साथ कुछ बुरा ही कर देते हैं .. इसकी पुष्टि न आपसे हुई न ही अपने बेटे से .. भूत से भयभीत न होने के लिए इतना भी कम नहीं !!

संजय बेंगाणी said...

अगर आप भयभीत न होंगे तो भूत नुकसान नहीं पहूँचाएगा. जिनको भूत परेशान करते है उन्हे कोई न कोई मानसिक बिमारी होती है.


फिर भी भूत के साथ इतने दिनों तक रह लेना कम बहादुरी का काम नहीं था.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

Aadarniya Awadhiya ji....

mujhe yaqeen hai wo bhoot hi tha.... par achcha bhoot tha..... insaan raha hoga....

waise mujhe bahut dar lagta hai bhooton se..... agar zara sa darwaaza bhi choooon kar ke bolta hai to mera dil halak mein aa kar atak jata hai....

abhi teen chaar din pehle ki baat hai....internet par hi ek bhoot ki foto dekh li thi..... raat ke 1 baje...... phir dar ke maare poori raat nahi soya.....


chalte-chalte bada mazedaar raha....

L.Goswami said...

कृपया हम दोनों के बीच हुए संवाद का का कुछ अंश जो इस पोस्ट से संबधित है यहाँ दे दीजिए ..अगर आपको कोई समस्या न हो तब ..इसे अनुरोध समझें ..
सादर
लवली

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अवधिया साहब रोचक वर्णन, अभी कुछ महीने पहले इसी संबंद में मैंने एक अग्रेजी ब्लॉग जी न्यूज़ की वेब साईट पर पढा था, वह भी बड़ा रोचक था ...Ghosts.....Are they ? यहाँ लिंक दे रहा हूँ कोई पढने का इच्छुक हो तो http://www.zeenews.com/blog/12/blog181.html

Unknown said...

कल के मेरे पोस्ट के सन्दर्भ में लवली कुमारी जी तथा मेरे बीच मेल के द्वारा कुछ संवाद हुआ था। लवली जी के आग्रह के अनुसार मैं उस संवाद को इस टिप्पणी में प्रकाशित कर रहा हूँ:

आपने कभी जुंग (कार्ल गुस्ताव जुग- स्विस मनोवैज्ञानिक )को पढ़ा है (पिछली पोस्ट के सन्दर्भ में)?

-मैंने जुंग महोदय को नहीं पढ़ा है।

-मानव मन और धर्म(पौराणिक साहित्य भी कह सकते हैं )से इसके संबंध की गुथ्थियाँ समझने के लिए सबसे सटीक हैं वे ..कभी पढिएगा ..अगर इसमें दिलचस्पी हो .किताब का नाम है - Man And His Symbols by Carl Gustav Jung,

-धन्यवाद लवली जी! अवश्य प्रयास करूँगा पढ़ने की। आज के पोस्ट का दूसरा और अन्तिम भाग अभी ही लिखकर समाप्त किया हूँ। पोस्ट तो कल करूँगा पर आपके पढ़ने के लिये इस मेल के साथ अटैच कर रहा हूँ। पढ़कर कृपया अपने विचार बताइयेगा।

- पढ़ लिया है .. हो सकता है कोई मनुष्य रहा हो..कई बार खालीजगहों में विक्षिप्त लोग आकर बसेरा बना लेते हैं ..कई बार हमें गलतफहमिया हो जाती है.कई बार इन सब के पीछे षडयंत्र होते हैं ..कई बातें हैं.

-लवली जी, आप कहती हैं तो मैं मान लेता हूँ। किन्तु तीन हफ्ते तक वहाँ रह कर हमें उस व्यक्ति का पता न चले यह तो हो ही नहीं सकता। मैं और सुब्रमणियम साहब दोनों ही ने हर प्रकार से तहकीकात की थी। मैं अन्धविश्वासी नहीं हूँ किन्तु मेरे जीवन में दो-तीन घटनाएँ ऐसी हुई हैं जो मुझे विवश करती हैं कि कई बातें ऐसी हैं जिन्हें हम आज तक समझ नहीं पाये हैं।

आप मनोविज्ञान में रुचि रखती हैं यह मैं जानता हूँ पर परामनोविज्ञान में आपकी रुचि है या नहीं, नहीं जानता। कई साल पहले मैंने राजस्थान के किसी विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाने वाली परामनोविज्ञान की पुस्तक, लेखक शायद कोई यादव जी थे, पढ़ी थी जिसमें ऐसी बातों का बहुत अच्छा विश्लेषण उदाहरण के साथ किया गया था।

लगभग डेढ़ साल पहले मैंने प्लेंचेट पर एक पोस्ट लिखी थी "आत्माओं से बातचीत"। उस पोस्ट में भी आपने अपनी टिप्पणी में की थी। आपको विश्वास नहीं हुआ था उसकी सच्चाई पर शायद आपने मेरा मान रखने के लिये सिर्फ आश्चर्य व्यक्त किया था। किन्तु विश्वास मानिये वह मेरा अपना सच्चा अनुभव था और यह पोस्ट भी मेरा सच्चा अनुभव है।

अस्तु, मैं इसे बहस बनाकर किसी को जबरन विश्वास नहीं दिलाना चाहता क्योंकि ऐसा करने में किसी का भी कोई फायदा नहीं है।

-मैं भी जबरन किसी को यकीन दिलाने में विश्वाश नही रखती ..मैंने हर -बार इन चीजों को मानसिक जटिलता से सम्बंधित ही पाया है ..कई जगह ..कई आयामों में ..खैर आपसे बात करके अच्छा लगा मैं वहां नही थी इसलिए कुछ नही कहूँगी पर कभी आपसे मिलना हुआ ..मैं चाहूंगी आप ऐसे प्रयोग कर के मुझे दिखाएँ, अगर दिखा सकते हैं.
मैंने कई मास हिस्टीरिया से ग्रसित लोगों के रोग का इलाज भी किया है( तांत्रिक बनकर ) ....ब्राह्मण परिवार से हूँ ..इसलिए इन चीजों को समझने का बहुत मौका मिला ..खैर आगे भी देखा जाएगा
-संवाद का धन्यवाद ..कभी मिलना हुआ तो प्लेंचेट का प्रयोग करके दिखाने का प्रयास अवश्य करूँगा। ऐसे प्रयोग करना मैंने कई सालों से छोड़ दिया है इसलिये फिर से करने में आनन्द आयेगा।
- ध्यान रखूंगी ..कभी मौका मिला तब उधर (आपके राज्य की ओर )आने का .

-स्वागत है आपका! मुझे आपसे मिलकर बहुत खुशी होगी।

L.Goswami said...

संवाद प्रकाशित करने का बहुत धन्यवाद अवधिया जी.

लवली

निर्मला कपिला said...

खुश्दीप जी सही कह रहे हैं । ये सत्य भी हो सकता है मगर फिल्म बन गयी तो चलेगी जरूर भेjजिये अपनी कहानी किसी प्रोडिइसर को । वैसे होते जरूर हैं भूत कुछ तो है सच इसमे। शुभकामनाये<

शरद कोकास said...

अवधिया जी वैसे मैने यह पोस्ट पढ ली थी लेकिन इसमे ऐसा कुछ टिप्पणी करने लायक मुझे लगा नही इसलिये अगे बढ गया था । दर असल अन्द्धश्रद्धा निर्मूलन का काम बहुत बढ चुका है और एक एक व्यक्ति को समझाना बहुत मुश्किल है । जब तक हम अपने आप से reasoning नही करेंगे तब तक खुद ही इन सब से नही निकल पायेंगे । इस पोस्ट मे प्रस्तुत हर सम्भावना का उत्तर है ..लेकिन यहाँ बहस सम्भव नही है । मै ब्लॉग "ना जादू ना टोना " पर कुछ समय बाद कुछ सम्वाद शुरू करूंगा । प्लेंचिट का मुख्य कारण उंगलियो से चलने वाला रक्त प्रवाह है। आप नाखून की ओर से कटोरी या जो कुछ भी करते है उसे टच कीजिये कोई प्रतिक्रिया नही होगी । मैने बरसो यह किया है । फिर कभी लिखूंगा इस पर ।

रंजू भाटिया said...

भ्रम था या नहीं पर कुछ तो जरुर रहा होगा ..किस्सा रोचक लिखा है आपने ...

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

अवधिया जी मेरा मन्तव्य है कि "भुत" वह है जो बीत चुका है फ़िर वह वापस आता नही। कभी-कभी भ्रम की स्थिति पैदा होने के कारण हमे लगता है कि कुछ अदृश्य घट रहा है। उस समय हम क्या सोच रहे हैं-हमारी मन: स्थिति क्या है यह इस पर निर्भर करता है। मेरे साथ ये हो चुका है। कभी किसी पोस्ट मे उस पर चर्चा अवश्य करुंगा, ऐसे बदनाम स्थानो को मैने नोट कर रखा है जहां मुझे जाना है, और रात भर रुक कर देखना है, अगर आप भी चलेंगे तो मुझे फ़ोन करना दोनो साथ मे ही रहेंगे अपने 36 गढ मे ही है।

राज भाटिय़ा said...

जी.के. अवधिया जी बहुत सुंदर लिखा आप ने, मै नही मानता ओर ना ही इन्कार करता हुं ऎसी बातो से, लेकिन एक बार मेरे ओर मेरी मां ने जो देखा वो क्या था?
पढिये मुझे शिकायत है पर

प्रकाश गोविंद said...

वाह जी
सुब्रमणियम साहब खर्राटे लें तो आपको कोई समस्या नहीं और अगर भूत खर्राटे ले तो आप इस कदर परेशान ? :)

मैंने सोचा था कि आप पोस्ट के नीचे यह अवश्य लिखेंगे : इस घटना के सभी पात्र काल्पनिक हैं ... वगैरह...वगैरह

ज्यादा कुछ कहना उचित नहीं ...... बहुत ज्यादा इस विषय पर बोल चूका हूँ !
आत्म मंथन करिए और सत्यान्वेषी बनिए !
हर तीसरे आदमी के पास यहाँ कोई न कोई भूत-प्रेत, तंत्र-मन्त्र वगैरह के दो-चार का किस्से हैं !

बस बहुत ही छोटी से बात :
अगर भूत-प्रेत ... आत्माओं में एक माचिस की तीली जलाने भर की शक्ति होती तो दुनिया कब की ख़त्म हो जाती !

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

अवधिया जी, सच तो यह है कि अपने इस छोटे से मस्तिष्क के बूते पर हम लोग अपने आपको सर्वज्ञानी मानने की भूल करने लगते हैं...जब कि हमारी बुद्धि से परे इस प्रकार के अनन्त रहस्यों को प्रकृ्ति अपने गर्भ में समाए हुए है कि जिन्हे समझने के लिए शायद हमें युगों प्रतीक्षा करनी पडे ।

प्रकाश गोविंद said...

प्रिय वत्स जी
युगों तक का समय ही कहाँ है हमारे पास ?

सिर्फ दिसम्बर 2012 तक का ही समय है :)

Paise Ka Gyan said...

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