Thursday, December 10, 2009

मुझे भारत पर गर्व है ... क्योंकि मार्क ट्वेन भी कहते हैं

भारत मानव वंश का उद्‍गम, अनेक भाषाओं तथा बोलियों की जन्म-स्थली, इतिहास की माता, पौराणिक एवं अपूर्व कथाओं की मातामह (दादी) और अनेक परम्पराओं की प्रमातामह (परदादी) है। मानव इतिहास की अत्यंत बहुमूल्य उपलब्धियाँ भारत के खजाने की ही देन हैं!

- मार्क ट्वेन

(India is the cradle of the human race, the birthplace of human speech, the mother of history, the grandmother of legend, and the great grand mother of tradition। Our most valuable and most astrictive materials in the history of man are treasured up in India only!

- Mark Twain)

वहीं अल्बर्ट आइंस्टीन का कथन हैः

"हम भारतीयों के ऋणी हैं जिन्होंने हमें गिनती सिखाया है जिसके बिना कोई सार्थक वैज्ञानिक खोज किया ही नहीं जा सकता था!"

- अल्बर्ट आइंस्टीन


("We owe a lot to the Indians, who taught us how to count, without which no worthwhile scientific discovery could have been made!"

- Albert Einstein)

सही बात तो यह है कि भारतीय संस्कृति के ढाँचे में अलग-अलग युगों में समय, काल और परिस्थितियों के अनुसार तथा उन युगों की परंपरा, रीति-रिवाज और लोगों के विचारों एवं मान्यताओं के अनुसार अनेकों बार परिवर्तन हुआ है। इसी कारण से आज भी भारतवर्ष के अलग-अलग क्षेत्रों में अनेक प्रकार की संस्कृतियाँ, भाषायें, परंपराएँ, रीति रिवाज और मान्यताएँ पाई जाती हैं।

भारत में हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख जैसे अनेक धर्मों और संप्रदायों का आविर्भाव हुआ जिनका प्रभाव न केवल भारत के वरन विश्‍व के अनेकों देशों के निवासियों पर आज भी देखने को मिलता है। दसवीं शताब्दी के बाद से भारत में पारसी, तुर्क, मुस्लिम आदि विदेशी संस्कृतियों का प्रभाव पड़ना आरम्भ हो गया जिसके कारण यहाँ की संस्कृति में विभिन्नता और अधिक बढ़ गई।

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित भारतीय संस्कृति को अनेक भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है। भारत पर विश्‍व के अनेकों धर्मों तथा संप्रदायों का भी प्रभाव रहा है जिसके परिणामस्वरूप यहाँ पर विभिन्न धार्मिक-सांप्रदायिक भावनाओं के मिश्रण से परिपूर्ण संस्कृतियों का भी प्रादुर्भाव भी हुआ। जहाँ भारत के ग्रामीण तथा कस्बाई क्षेत्रो में आज भी प्राचीन संस्कृतियों का प्रभाव बना हुआ है वहीं देश के बड़े नगरों में इन संस्कृतियों का विलोप होता जा रहा है और वैश्‍वीकरण का प्रभाव बढ़ता जा रहा है।

संक्षेप में कहा जाये तो भारतीय संस्कृति अनेकता में एकता का सबसे बड़ा उदाहरण है। चलते-चलते
एक उत्तर-भारतीय परिवार के पड़ोस में दक्षिण-भारतीय परिवार रहने के लिये आ गया। उत्तर-भारतीय परिवार ने उन्हें भोजन के लिये निमन्त्रित किया। खाना खाते समय दक्षिण-भारतीय गृहस्वामिनी कुछ संकोच कर रही थी इसलिये उत्तर-भारतीय गृहस्वामिनी ने कहा, "खाइये, खाइये, शरमाइये नहीं!"

कुछ दिन बाद दक्षिण-भारतीय परिवार ने उत्तर-भारतीय परिवार को खाने के लिये बुला लिया। खाना परसते वक्त दक्षिण-भारतीय गृहस्वामिनी को याद आया कि खाना खाते वक्त उससे कुछ कहा गया था। उसे हिन्दी ठीक से नहीं आती थी पर उस कथन को याद करके उसने उत्तर-भारतीय गृहस्वामिनी से कहा, "खाओ, खाओ, शरम तो है नहीं!"

9 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

सच भारत देश संस्‍कृति और ज्ञान के क्षेत्र में प्राचीन काल से ही विकसित रहा है। तभी तो यहाँ इतने प्रकार की भाषा, नृत्‍य, परम्‍परा, वेशभूषा आदि-आदि हैं। आपको भी अच्‍छी पोस्‍ट लिखते समय शरम तो नहीं है ना? बधाई।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

भारतीय संस्कृति अनेकता में एकता का सबसे बड़ा उदाहरण है। बहुत जोरदार लि्खे हस अवधिया जी, बधाई हो, अभी जल्दी मा हंव फ़ेर बने टिपिया हुँ

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

कोस-कोस पर बदले पानी
चार कोस पर बानी
यही हमारी विविधता है, और ऐसी विविधता में अर्थ का अनर्थ कैसे हो जाता है वो अपने साउथ इंडियन फैमली ने मिशाल पेश कर दी :)

निर्मला कपिला said...

हमे भी अपने देश पर नाज़ है। इसकी संस्कृति पर नाज़ है। और आपकी इस अच्छी पोस्ट पर भी नाज़ है बधाई और जय हिन्द्

ghughutibasuti said...

बहुत प्रदेशों में रही हूँ और ऐसी स्थितियाँ बहुत बार आईं हैं। परन्तु यही विविधता ही जीवन को सुन्दर बनाती है।
घुघूती बासूती

Chandan Kumar Jha said...

हमें अपने देश पर गर्व है !!!!!!!

Anonymous said...

बस यही कमी है हम भारतवासियों में. कोई गोरा बुद्धिजीवी हमारे देश या संस्कृति की औपचारिकता के नाते ज़रा सी तारीफ भी कर दे, या किसी बड़ी कम्पनी में पचास साठ भारतीय इन्जियर काम करने लगें तो भारतीय मेधा ने परचम लहरा दिया हम बाग़ बाग़ हो जाते हैं. अरे किसी गोरे के मुंह से निकली तारीफ अब हमें बतएगी की हमारी संस्कृति कितनी महान है?

मुझे भारत माता पर गर्व है, फिर चाहे कोई गोरा या विदेशी इसकी तारीफ करे या न करे मेरी बला से.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

खाओ, खाओ, शरम तो है नहीं!"
---हा.. हा.. हा...
एक बार मैं भी बचपन में अपने पिता जी के साथ कलकत्ता गया था उनके बंगाली मित्र के घर
मेरे पिता जी को देखते ही मित्र महोदय अपनी श्रीमती जी से बोले-
शांकरी, जल्दी से घर में आग लगाओ... खाना खिलाओ, बनारस से आया है।
विभिन्न संस्कृतियों के मेल मिलाप से जो रस निकलता है उसी का नाम भारत है।

Unknown said...

@ab inconvenienti

अपने अपने सोचने का ढंग है, आपने इंसान की चमड़ी ध्यान में रख कर अपनी टिप्पणी की है पर मैंने जो लिखा है वह उनकी बुद्धिमत्ता को ध्यान में रख कर। यह तो मानना ही पड़ेगा कि मार्क ट्वेन विद्वान थे और अल्बर्ट आइंस्टीन महान वैज्ञानिक।