Saturday, July 3, 2010

ऐसे सीखा बूढ़े तोते ने राम राम कहना!

बूढ़ा तोता राम राम कहना नहीं सीख सकता"। अब हम भी तो बूढ़े हो गये हैं याने कि अब हम भी कुछ सीख नहीं सकते। पर कोशिश करने में क्या हर्ज है; आखिर कम्प्यूटर चलाना, वर्ड, एक्सेल, पॉवरपाइंट, पेजमेकर आदि हमने सन् 1996 में खुद का कम्प्यूटर खरीदने के बाद ही, याने कि छियालीस साल की उम्र के बाद ही, तो सीखा है, और वह सब भी खुद ही कोशिश करके। बस फोटोशॉप ही तो सीख नहीं पाये क्योंकि उसे सीखने की कभी प्रबल इच्छा ही नहीं हुई हमारी। और अब जब इसे सीखने की इच्छा हो रही है तो लगता है कि कहीं "सिर तो नहीं फिर गया है" हमारा। पर हमने भी ठान लिया कि सीखेंगे और जरूर सीखेंगे। आखिर जब ललित शर्मा जी हमारा हेडर बना सकते हैं तो हम खुद क्यों नहीं?

बस फिर क्या था। तत्काल मोबाइल किया राजकुमार सोनी जी को अजय सक्सेना जी का नंबर लेने के लिये, क्योंकि वे ग्राफिक्स के विशेषज्ञ हैं और फोटोशॉप के के टूल्स के बारे में जानकारी उन्हीं से मिल सकती थी। उन्हें फोन करके थोड़ी सी जानकारी ली और बैठ गये कम्प्यूटर के सामने फोटोशॉप खोलकर।

अब हम सोचने लगे कि किसी प्राकृतिक दृश्य में कुछ हेर फेर किया जाये। झट से नेट से खोजकर ये वाला चित्र ले आयेः


कहा जाता है कि "नेचर इज गॉड" याने कि "प्रकृति ही परमेश्वर है", तो हम अब प्रकृति और परमेश्वर को चित्र द्वारा दर्शाने की कोशिश करने के लिये परमेश्वर अर्थात् ॐ का भी ये चित्र ले आयेः


और इन दोनों चित्रों को छेड़ते-छाड़ते यह नया चित्र बना डालाः


इसके बाद हमारे दिमाग में फिर खुराफात सूझी। सोचने लगे कि ताजमहल को आगरे से समुद्र में लाया जाये। तो नेट से समुद्र और ताजमहल के निम्न चित्र खोज लायेः


और हमारे खुराफात का परिणाम यह निकलाः



और आखिर में अपने इस ब्लोग "धान के देश में" के लिये ये हेडर बना डालाः


तो इस बूढ़े तोते ने आखिर राम राम कहना सीख ही लिया!

12 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।

अइसने बूता करे ले सिल पर परत निसान ॥

जोहार ले

निर्मला कपिला said...

हम भी रट रहे हैं । बधाई आपको।

राजकुमार सोनी said...

बताओ साला.. अजय मेरे साथ काम करता है लेकिन उसने आज तक मुझे नहीं बताया कि यह सब बनाते कैसे है।
आजकल आपकी और अजय की काफी पट रही है.. यह जांच और शोध का विषय है।
जहां चार यार मिल जाए वहां रात हो गुलजार वाला गाना तो सुना था लेकिन यह पहली बार देख रहा हूं कि अब दो बेचारे बिना सहारे ही अपना काम चला ले रहे हैं।
अरे भाई मैं और ललित दाल-भात में मूसलचंद नहीं बनेंगे.. मैं तो वैसे भी सादा भोजन ही करता हूं. ये रोज-रोज अजय के साथ पार्टी ठीक नहीं है। ललित भाई को सूचना देते हूं. हमको भी खाना खिलाओ नहीं तो मैं इसी तरह की टिप्पणी लिखता रहूंगा.


हा... हा... हा..
लेकिन अच्छा हुआ कि आपने यह सब सीख लिया। अब मैं आपसे सीख लूंगा।
काम का क्या हुआ कुछ आगे बढ़ा या नहीं।

अन्तर सोहिल said...

हेडर बहुत प्यारा लगा

प्रणाम

सूर्यकान्त गुप्ता said...

यत्न प्रयत्न और गुरु कृपा आवे जीवन मे काम परिणाम यहां पर देख रहे, आदरणीय अवधिया जी को कोटि कोटि परनाम। अब महूं अपन घुटना (दिमाग) ला ठीक करके कुछ नवा करेके उदिम करहूं। बने लागिस आपके कोशिश के रिजल्ट हा। गुरूजी तो अन्तर्धान हो गे हे।

शिवम् मिश्रा said...

बहुत बहुत बधाइयाँ, अवधिया जी |

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर जी,लेकिन आगरे वाले परेशान है जी जल्दी से ताज महल वापिस लोटा दो, वरना चोरी का केस बन जयेगा, ओर कल से शंहशाह सलीम की आत्मा भी भटक रही है ताज को वहा ना देख कर

डॉ टी एस दराल said...

अरे वाह , अवधिया जी आपने तो कमाल कर दिया । कौन कह सकता है आप बूढ़े हो गए ।

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे ०४7.0७.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/

Udan Tashtari said...

सीखने की ललक उम्र की मोहताज नहीं.

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर उदाहरण, अनुकरणीय ।

विवेक रस्तोगी said...

ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो नहीं आती हैं पर सीखने की लगन हो तो सब कुछ सीख सकते हैं, उम्र बंधन नहीं होती है।

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