नवप्रयोगानन्द जी साहित्य की समस्त विधाओं में निपुण हैं। वैसे तो वे निबन्ध, कथा-लघुकथा, उपन्यास, कविता आदि सभी विधाओं में लिखते हैं, पर स्वयं को कवि कहलाना अधिक पसन्द करते हैं।
कल जब उनसे हमारी मुलाकात हुई तो अभिवादन के आदान-प्रदान के पश्चात् उन्होंने हमसे कहा, "यह बताइये अवधिया जी कि जब लोटे को पानी में डुबाते हैं तो लोटा पानी में जाता है या पानी लोटे में?"
उनका प्रश्न सुनकर हम अकचका कर उनका मुख देखने लग गए। कुछ देर तक हमारी अकचकाहट का आनन्द लेने के बाद वे मुस्कुरा कर बोले, "चलिए अब यह बताइये कि माला फूलों से बनती है कि फूल माला में होते हैं?"
हमें कुछ सूझा नहीं तो हमने कहा, "आप यह सब पूछ क्यों रहे हैं?"
"हम पूछ नहीं रहे हैं बल्कि आपको बताना चाहते हैं कि हम अपने लेखन में कुछ नए प्रयोग करने जा रहे हैं जिनके अन्तर्गत ऐसी बातें होंगी जो हमें भ्रमित करती हैं।"
"वाह-वाह नवप्रयोगानन्द जी! ऐसे प्रयोगों से तो आप बिल्कुल ही नई क्रान्ति ला देंगे साहित्य-जगत में! अच्छा कोई नई कविता लिखी कि नहीं अभी?"
"अभी तो नहीं लिखी है पर कुछ पंक्तियाँ सूझ रही हैं हमें।"
"तो सुनाइए ना हमें उन पंक्तियों को।"
उन्होंने कहा,
"भूख आदमी को कवि बना देता है
भूखा होने पर चाँद भी उसे रोटी सा नजर आता है।"
हमने कहा, "वाह! वाह!! चाँद की उपमा रोटी से! इन पंक्तियों में तो उपमालंकार स्पष्ट झलक रहा है!"
वे भौंचक-से होकर हम हमसे पूछने लगे, "ये उपमालंकार क्या होता है?"
"भई, काव्य के अंगों में से एक अलंकार भी होता है, जिस प्रकार से गहनों से नारी की सुन्दरता बढ़ जाती है उसी प्रकार से अलंकारों से काव्य के सौन्दर्य में वृद्धि होती है। अलंकार के प्रकारों में एक उपमालंकार भी होता है। जब दो वस्तुओं में अन्तर रहते हुए भी आकृति एवं गुण की समता दिखाई जाय, तो उसे उपमालंकार कहते है। जैसे 'राधा वदन चन्द्र सों सुन्दर' में राधा के मुख और चन्द्रमा में समानता बताई गई है। आप भी तो चांद और रोटी में समानता बता रहे हैं अपनी पंक्तियों में। तो यह उपमालंकार का उदाहरण हुआ।"
हमने कहना जारी रखा, "आप अब मुक्त कविताएँ लिखना छोड़कर छंदबद्ध कविताएँ लिखना शुरू कर के उनमें गणों का प्रयोग शुरू कर दीजिए। आपसे प्रेरणा पाकर और भी कवि छंदबद्ध रचना करने लगेंगे।"
"अब ये गण क्या होता है?" उन्होंने हमसे पूछा।
"वर्णिक छंदों में तीन वर्णों के समूह को एक गण कहा जाता है। गण 8 प्रकार के होते हैं - यगण (।ऽऽ), मगण (ऽऽऽ), तगण (ऽऽ।), रगण (ऽ।ऽ), जगण (।ऽ।), भगण (ऽ।।), नगण (।।।) और सगण (।।ऽ)। इन्हें आसानी से याद करने के लिए एक सूत्र बना लिया गया है- यमाताराजभानसलगा। सूत्र के पहले आठ वर्णों में आठ गणों के नाम हैं। जिस गण की मात्राओं का स्वरूप जानना हो उसके आगे के दो अक्षरों को इस सूत्र से ले लें जैसे ‘भगण’ का स्वरूप जानने के लिए ‘भा’ तथा उसके आगे के दो अक्षर- ‘न स’ = भानस (ऽ।।)। इस भगण में ही तो रसखान ने लिखा हैः
धूरि भरे अति शोभित श्याम जू तैसि बनी सिर सुंदर चोटी।
खेलत खात फिरै अंगना पग पैजनियाँ कटि पीरि कछौटी॥
वा छवि को रसखान बिलोकत वारत काम कलानिधि कोटी।
काग के भाग कहा सजनी हरि हाथ से ले गयो माखन रोटी॥"
अपनी बात पूरी करके हमने उनकी ओर देखा तो वे जोर की जमुहाई ले रहे थे।
जमुहाई लेकर उन्होंने कहा, "अविधिया जी, आखिर रहोगे आप पुरातनपंथी ही। आजकल के जमाने में इन चीजों को पूछता ही कौन है? हम तो कविता लिखते हैं अभिव्यक्ति के लिए... रस-छंद-अलंकार से भला हमें क्या लेना-देना है?"
इतना कह कर वे उठकर चलते बने।
13 comments:
अच्छा लेख है .............आभार
एक बार इसे भी पढ़े , शायद पसंद आये --
(क्या इंसान सिर्फ भविष्य के लिए जी रहा है ?????)
http://oshotheone.blogspot.com
अवधिया जी, आप तो बात बात में ही बहुत बढिया ज्ञान दे गए...
आभार्!
अवधिया जी,बहुत अच्छी बात कह गये आप. धन्यवाद
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (30/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
सच कह रहे हैं। भावों की गंगा बिना किनारों के बह रही है।
ज्ञानवर्धन का आभार कहें..उम्दा आलेख..
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
धन्यवाद !
अवधिया जी
आपकी जय हो, सदा विजय हो
आपके विशाल नभ में
सुख-सूर्य का उदय हो
बताइए...
इसमें कौन सा अलंकार है
अच्छी पोस्ट लिखी है आपने
राजकुमार सोनी जी, आपने तो "दिनान्त था थे दिननाथ डूबते सधेनु आते गृह ग्वालबाल थे" जैसा अनुप्रास अलंकार का उदाहरण प्रस्तुत किया है!
ग़ज़ब ......................... बहुत ही ग़ज़ब की पोस्ट....
जानकारीपूर्ण आलेख! बहुत-बहुत धन्यवाद!
बहुत सरलता से छंदों का ज्ञान दे दिया ...
और आज के कवियों पर थोड़ी चोट भी कर दी
अच्छा लेख ...
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
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