भारत में इंटरनेट यूजर्स की वर्तमान संख्या 8,10,00,000 (आठ करोड़ दस लाख) है, यह मैं नहीं कहता बल्कि इंटरनेटवर्ल्डस्टैट्स कहता है। यकीन न हो तो इस लिंक को क्लिक कर के देख लें। तो इन आठ करोड़ दस लाख लोगों में से हिन्दी बोलने, समझने तथा पढ़ने वाले भी तो करोड़ों लोग होंगे ही। किन्तु खेद की बात तो यह है कि हिन्दी ब्लोग्स को पढ़ने के लिए इन लोगों में से कुछ सौ लोग भी शायद ही आते होंगे। ब्लोगवाणी में आज अधिक पढ़े गये की संख्या प्रायः 100 से 200 तक रहती है। यह संख्या शायद ही कभी 200 से ऊपर गई हो और कई बार तो यह 100 से भी कम ही रहती है। चिट्ठाजगत तथा अन्य एग्रीगेटर्स से भी शायद इतने ही पाठक आते हों। कहने का तात्पर्य यह है कि हिन्दी ब्लोग्स की संख्या तो पाँच अंकों को पार कर गई है किन्तु पाठकों की संख्या ने शायद ही कभी तीन अंकों को पार किया हो।
हिन्दी ब्लोगिंग के शुरुवात के बाद से एक लंबा समय व्यतीत हो जाने के बाद भी हम ब्लोगर्स ही एक दूसरे को पढ़ते हैं। किसी कवि गोष्ठी, जहाँ सिर्फ कवि लोग एकत्रित होकर एक दूसरे को अपनी कविताएँ सुनाते हैं, के जैसे ही हमने ब्लोग गोष्ठी बना लिया है। हमें किसी विराट कवि सम्मेलन, जहाँ पर कि श्रोताओं की विशाल संख्या आती है, के जैसे ब्लोग सम्मेलन करना है जहाँ कि पाठकों की विशाल संख्या हो। और फिर हम ब्लोगर्स भी अन्य सभी ब्लोगर्स को न पढ़ कर सिर्फ उन थोड़े से ब्लोगर्स को पढ़ते हैं जिनका लेख हमें पसंद आता है। अब जब हम एक नया ब्लोगर बनाने की बात कहते हैं तो इसका मतलब यह होता है कि हम अपने ब्लोग गोष्ठी के सदस्यों की संख्या में ही इजाफा कर रहे हैं जबकि हमें पाठकों की संख्या बढ़ाना है।
ब्लोगर बनने के लिए, थोड़ी ही सही, लेखन प्रतिभा की आवश्यकता होती है किन्तु पाठक बनने के लिए इस प्रतिभा का होना अनिवार्य नहीं है। तो क्यों न हम नये नये ब्लोगर्स बनाने के बदले नये नये पाठक बनाने का प्रयास करें? हिन्दी ब्लोगिंग को सफल और व्यावसायिक बनाने के लिए हमें पाठकों की संख्या बढ़ानी ही होगी।
अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर, करोड़ों की संख्या में हिन्दीभाषी लोगों ने नेट प्रयोगकर्ता होने बावजूद भी, हमारे ब्लोग्स के लिए पाठक क्यों नहीं मिलते? यदि हम इस प्रश्न का उत्तर खोज लें तो शायद नये पाठक बनाने में हमें आसानी हो। मेरी सूझ के अनुसार हिन्दी पाठकों की संख्या कम होने के निम्न कारण हो सकते हैं:
नेट में आने वाले अधिकतम लोगों को आज भी नहीं पता है कि हिन्दी ब्लोगिंग जैसी किसी चीज का अस्तित्व भी है। हमें लोगों को इस विषय में जानकारी देनी होगी। तो उन्हें कैसे जानकारी दी जाए? उन्हें जानकारी देने के लिए सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि आखिर नेट में आने वाले ये हिन्दीभाषी लोग जाते कहाँ हैं? उनका ठिकाना मिलने पर ही तो उनसे सम्पर्क करके हम उन्हें हिन्दी ब्लोगिंग के बारे में बता सकेंगे। मैं समझता हूँ कि इन लोगों की एक बड़ी संख्या आर्कुट, याहू चैट और याहू समूहों में मिल जाएगी। हमारे बहुत से युवा ब्लोगर मित्र भी आर्कुट, याहू चैट और याहू समूहों में जाते होंगे। यदि वे उन्हें मित्र बना कर निजी संदेश, निजी मेल आदि के द्वारा हिन्दी ब्लोगिंग और हिन्दी ब्लोग एग्रीगेटर्स के विषय में जानकारी देना आरम्भ करें तो अवश्य ही हिन्दी ब्लोग्स के पाठकों की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी।
अच्छी गुणवत्ता वाली पाठ्य सामग्री की कमी भी पाठक न मिलने का एक कारण है। कुछ पाठक यदि हमारे ब्लोग्स में आ भी जाते हैं तो उन्हें या तो अपनी रुचि की पाठ्य सामग्री नहीं मिल पाती या फिर सामग्री की गुणवत्ता में कमी दिखाई पड़ता है। परिणामस्वरूप वे फिर से पलट कर नहीं आते। अब यदि हमारे ब्लोग में वह सामग्री हो जिससे कि पाठक टी.व्ही., प्रिंट मीडिया या नेट के न्यूज साइट्स के द्वारा पहले ही वाकिफ हो चुका हो तो वह हमारे ब्लोग में क्यों रुकेगा?
ऐसे ही और भी कई कारण आप लोगों को भी सूझ सकते हैं।
तो आइये हम सभी मिल कर अधिक से अधिक लोगों को हिन्दी ब्लोग्स के विषय में जानकरी देने और अपने ब्लोग्स के पाठकों की संख्या को बढ़ाने का संकल्प लें।
25 comments:
मुझे लगता है कि कई लोग तो ब्लाग पढ़ लेते हैं लेकिन वे टिप्पणी करने से इसलिए बचते हैं कि उन्हे हिंदी टाईपिंग नहीं आती। ऐसे लोगों को रोमन हिंदी में टिप्पणी करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, और फिर रुचि बढ़ने पर वे हिंदी भी सीख सकते हैं। यूं देखा जाए तो अपनी भाषा में बात कहने का या टिपियाने का मजा ही कुछ और है, हम अंग्रेजी में ये काम कर तो लेते हैं लेकिन वो भाव नहीं ला पाते। दूसरी बात ये भी है कि हिंदी में एक समान फोंट का प्रचलन जबतक आम नहीं होगा तबतक लोगों को समस्याएं आएगी। वैसे अब यूनीकोड ने ये समस्या काफी दूर कर दी है लेकिन सवाल है कि आम हिंदी प्रदेश की जनता जो पब्लिक स्कूलों में पढ़ा है और जो खालिस सिनेमा/टीवी की हिंदी बोलता है वो जबतक हिंदी टाईपिंग नहीं सीखेगा तब तक एक बड़ा वर्ग इससे दूर ही रहेगा। अभी जो हालात है उसमें ये कहा जा सकता है कि हिंदी टाईपिंग करने वाले ज्यादातर लोग सरकारी स्कूलों में पढ़े हुए श्रमजीवी- बुद्धिजीवी हैं जो बड़ी मेहनत से कुछ मुकाम बना पाए हैं। हलांकि नेट का फैलाव भी इसी वर्ग में होना बाकी है लेकिन जो खाता-पीता-अघाया हुआ हिंदी का प्रदेश के पाश में रहने वाला युवा वर्ग है वो मोबाईल पर भले ही हिंदी में बात करे-टाईपिंग हिंदी में नहीं करता। इसके लिए एक सास्कृतिक जातीय आन्दोलन की जरुरत है और हिंदी में अभिव्यक्ति को आत्मगौरव के साथ जोड़ने की जरुरत है जैसा गैर-हिंदी प्रदेशों में स्वभाविकत: पाया जाता है।
Awadhiya ji......... saadar .......... namaskar............
is lekh mein aapne bil kul sahi kaha hai....... hamein aur bhi logon ko hindi blogging ke baare mein batana hoga,....... aur main aaj hi se aapke kahne ke anusaar hi karunga........
aur yahan yeh kah ke aapne ek sandesh diya hai.....ब्लोगर बनने के लिए, थोड़ी ही सही, लेखन प्रतिभा की आवश्यकता होती है किन्तु पाठक बनने के लिए इस प्रतिभा का होना अनिवार्य नहीं है। तो क्यों न हम नये नये ब्लोगर्स बनाने के बदले नये नये पाठक बनाने का प्रयास करें? हिन्दी ब्लोगिंग को सफल और व्यावसायिक बनाने के लिए हमें पाठकों की संख्या बढ़ानी ही होगी।........ jisko logon ko aapka yeh sandesh maanna hi chahiye...........
नेट में आने वाले अधिकतम लोगों को आज भी नहीं पता है कि हिन्दी ब्लोगिंग जैसी किसी चीज का अस्तित्व भी है। हमें लोगों को इस विषय में जानकारी देनी होगी। तो उन्हें कैसे जानकारी दी जाए? उन्हें जानकारी देने के लिए सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि आखिर नेट में आने वाले ये हिन्दीभाषी लोग जाते कहाँ हैं? उनका ठिकाना मिलने पर ही तो उनसे सम्पर्क करके हम उन्हें हिन्दी ब्लोगिंग के बारे में बता सकेंगे। मैं समझता हूँ कि इन लोगों की एक बड़ी संख्या आर्कुट, याहू चैट और याहू समूहों में मिल जाएगी। हमारे बहुत से युवा ब्लोगर मित्र भी आर्कुट, याहू चैट और याहू समूहों में जाते होंगे। यदि वे उन्हें मित्र बना कर निजी संदेश, निजी मेल आदि के द्वारा हिन्दी ब्लोगिंग और हिन्दी ब्लोग एग्रीगेटर्स के विषय में जानकारी देना आरम्भ करें तो अवश्य ही हिन्दी ब्लोग्स के पाठकों की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी।
aur isse to main poori tarah sahmat hoon......
अच्छी गुणवत्ता वाली पाठ्य सामग्री की कमी भी पाठक न मिलने का एक कारण है। कुछ पाठक यदि हमारे ब्लोग्स में आ भी जाते हैं तो उन्हें या तो अपनी रुचि की पाठ्य सामग्री नहीं मिल पाती या फिर सामग्री की गुणवत्ता में कमी दिखाई पड़ता है। परिणामस्वरूप वे फिर से पलट कर नहीं आते। अब यदि हमारे ब्लोग में वह सामग्री हो जिससे कि पाठक टी.व्ही., प्रिंट मीडिया या नेट के न्यूज साइट्स के द्वारा पहले ही वाकिफ हो चुका हो तो वह हमारे ब्लोग में क्यों रुकेगा?
is pe main ek baat kahna chahoonga.... ki hamein blog pe aisa bhi likhna hoga..... ki log usse juden...... hamein aam logon ki hi bhaasha mein likhna hoga...... paathak na milne ka ek kaaran aur hai...... ki kai baar ham aisa bhi likhte hain......ki log sochte hain ki ab to dictionary leke baithna padega.....
main aapke is mission mein poori tarah aapke saath hoon.....
Apka.........
Saadar,
Mahfooz...
अवधिया जी, एक सामयिक लेख, महफूज अली जी की बात से पूर्णतया सहमत !
महफूज अली साहब की बात से सहमत और हां आपकी प्रयास को सादर प्रणाम
आपके विचारो से शतप्रतिशत सहमत हूँ . बहुत ही सटीक बात कही है . आभार.
sahi kaha aapne
मैं कम से कम 15-20 ऐसे लोगों को जानता हूं जो मेरा ब्लौग हमेशा पढ़ते हैं मगर कभी कमेंट नहीं किये हैं और ना ही हिंदी ब्लौगिंग में आने के इच्छुक हैं.. ना जाने और कितने होंगें, जिन्हें मैं जानता नहीं हूं.. ऐसा ही मिजाज पाया है ब्लौगिंग ने.. चाहे वह हिंदी ब्लौगिंग हो या अंग्रेजी..
आपने बहुत ही पते की बात की है...वास्तव में ब्लागर की अपेक्षा पाठकवर्ग ही हिन्दी ब्लागिंग के भविष्य को सुरक्षित रख सकता है। ओर जब तक एक सामान्य पाठक इससे नहीं जुडेगा तब तक तो सिर्फ आपसी झूठी/सच्ची हौसलाफजाई ही चलती रहेगी...मेरे विचार से इसके लिए तो एक ही उपाय है कि अन्तरजाल पर हिन्दी का अधिकाधिक विस्तार किया जाए। अब जैसे जैसे हिन्दी अपना प्रभुत्व स्थापित करती जाएगी,वैसे ही पाठकवर्ग भी स्वयं ही तैयार होता चला जाएगा......
bilkul सही कहा ब्लॉगर ही एक दूसरे को padhte हैं .पर sahab अगर हिंदी के अधिकांश ब्लॉगर भी पढ़ा करें तब भी संख्या हजारों में होगी . सच तो ये है कि सब बस लिखना जानते हैं अगदम-बगड़म लिखकर जबरदस्ती लिंक दे दे कर पढ़वाना जानते हैं खुद नहीं पढ़ते . और बिना पढ़े टिप्पणी करने वालों की चर्चा तो अक्सर होती ही है . क्या करें ? आपकी सलाह पर सभी को अमल करना चाहिए और अच्छा लगा आप बेकार की बातों से अस्वच्छ लोगों के चक्कर से मुक्त हो गये हैं . आपके पोस्ट की तलाश रहती थी .
bilkul सही कहा ब्लॉगर ही एक दूसरे को padhte हैं .पर sahab अगर हिंदी के अधिकांश ब्लॉगर भी पढ़ा करें तब भी संख्या हजारों में होगी . सच तो ये है कि सब बस लिखना जानते हैं अगदम-बगड़म लिखकर जबरदस्ती लिंक दे दे कर पढ़वाना जानते हैं खुद नहीं पढ़ते . और बिना पढ़े टिप्पणी करने वालों की चर्चा तो अक्सर होती ही है . क्या करें ? आपकी सलाह पर सभी को अमल करना चाहिए और अच्छा लगा आप बेकार की बातों से अस्वच्छ लोगों के चक्कर से मुक्त हो गये हैं . आपके पोस्ट की तलाश रहती थी .
सही चिंता है।
ब्लोग्स पर पाठकों का न आना , इसी बात को सांकेतिक करता है की आजकल हिंदी पढने वाले, बोलने वाले और लिखने वाले सुशिक्षित लोग कितने कम रह गए हैं. जो जितना पढ़ा लिखा होता है, वो उतना ही हिंदी से दूर हो जाता है.
इसीलिए आवश्यकता है हिंदी को प्रोत्साहन देने की. सरकार ने सभी विभागों में हिंदी समिति बनाने की सिफारिस की है. अगर सब मिलकर इसमें अपना योगदान दें तो हिंदी का विकास हो सकता है.
अवधिया जी आपका लेख बहुत सामयिक है
लेकिन मेरा मानना है कि हिंदी ब्लोग्स पर पाठक सिर्फ ब्लॉग एग्रीगेटर से ही नहीं आते , एग्रीगेटर से तो पाठक उसी दिन आते है जिस दिन पोस्ट लिखी जाती है ,बाकि दिन गूगल हमारे ब्लोग्स पर सबसे ज्यादा पाठक भेजता है हाँ यह जरुर है कि गूगल से आने वाला पाठक टिप्पणी नहीं करता वह अपने काम की विषय वस्तु पढता है और चलता बनता है | एक बात और जो ब्लोगर हमारे ब्लॉग पर आते है वे हमारी पोस्ट का शीर्षक देख कर आते है और ज्यादातर वही पोस्ट पढ़कर या फिर एक टिप्पणी देकर चलते बनते है जबकि गूगल से आने वाला पाठक चूँकि पहली बार आपके ब्लॉग पर आया है इस लिए वह आपके ब्लॉग को खंगाल कर आपकी कई सारी पोस्ट पढेगा |
मेरे विचार से हमें गूगल पर हिंदी सर्च को ज्यादा बढ़ावा देना चाहिए ताकि हिंदी ब्लोग्स पर ट्रेफिक बढे | साथ ही हम अपने ब्लोग्स पर विभिन्न विषयों पर ज्यादा से ज्यादा लिखे ताकि हमारा ब्लॉग गूगल सर्च में हर बार आये |
पं.डी.के.शर्मा"वत्स जी ने सही कहा है
" जब तक एक सामान्य पाठक इससे नहीं जुडेगा तब तक तो सिर्फ आपसी झूठी/सच्ची हौसलाफजाई ही चलती रहेगी...मेरे विचार से इसके लिए तो एक ही उपाय है कि अन्तरजाल पर हिन्दी का अधिकाधिक विस्तार किया जाए। अब जैसे जैसे हिन्दी अपना प्रभुत्व स्थापित करती जाएगी,वैसे ही पाठकवर्ग भी स्वयं ही तैयार होता चला जाएगा.
आज मेने अपने ब्लॉग ज्ञान दर्पण पर कोई लेख नहीं लिखा फिर भी इस वक्त तक आज ज्ञान दर्पण के 375 पन्ने पढ़े गए है और 140 पाठक अभी तक आ चुके ये सिर्फ अंतरजाल पर हिंदी सर्च का ही कमाल है |
सुशांत जी की बात सत्य है । मैंने भी धीरे धीरे सीखा है । पहले टाइप करना नही़ आता था । कैफे हिन्दी टूल से बहुत मदद मिली । फिर धीरे धीरे लोगों के ब्लाग पढ़ना शुरु किया । कमेंट नही करता था । अब ब्लागिन्ग भी कर रहा हूँ और कमेंट्स भी ।
लेकिन सन्तोष है लोग जुड़ रहे हैं । पाठक भी बढेगें ।
इसका एक प्रमुख कारण यह है कि अभी लोग कम्प्यूटर पर अधिक नहीं आ रहे हैं। जो लोग कंप्यूटर की जानकारी रखते हैं, वे निश्चय ही हिंदी ब्लागिंग से परिचित होंगे ही। अभी हिंदी का कार्य इतना विषद नहीं हुआ है कि लोग गूगल पर हिंदी में विषय ढूंढ़ने निकले।
मेरा ब्लांग यहां बहुत से भारतीय पढते है, लेकिन टिपण्णी के व्जाय फ़ोन कर देते है... अब उन्हे कोन समझाये जो मजा टिपण्णी मै है वो फ़ोन मै कहां....
वेसे लोगो को अभी ब्लांग के बारे इतना पता नही, कुछ लोग इसे इसे निजी समझते है, लेकिन वक्त लगेगा... धोर्य रखे...
अवधिया जी आपका प्रयास सराहनीय है | मैंने पिछले २-३ महीनों मैं ही ये देखा है की कई ब्लोग्गेर्स हर १-२ दिन मैं कुछ ना कुछ ढेल देते हैं जिससे ज्यादातर मामलों मैं गुणवत्ता आ नहीं पाती है | पाठकों को पढने के लिए भी थोडा समय चाहिए, वो समय तो कई बार हम देते ही नहीं |
एक और प्रमुख परेशानी है जी हजूरी की | कुछ ब्लॉगर बंधू कह रहे हैं की पहले लोग अपना विरोध टिप्पणी ना देकर करते थे अब टिप्पणी दे रहे हैं, इसके लिए उन्हें बुरा लग गया | ब्लॉग्गिंग की यही खासियत है की आपना विरोध या विचार बेधड़क हो प्रकट कीजिये | पर ऐसे ब्लोग्गरों को कौन समझाए की वो जैसा सोच रहे हैं उससे तो लगता है की उनको पाठक नहीं बलकी जी हजूरी वाले लोग ही चाहिए |
जहाँ कहीं गंभीर और सार्थक विवेचन चलता है वहां वीरानी छाई रहती है | एक्का-दुक्का टिप्पणी ही होती है | लगता है सभी कवी, कहानीकार बन गए हैं |
आपके विचारों से हम भी सहमत हैं और कुछ हद तक इसके लिए प्रयास भी कर रहे हैं. इतर ब्लागर आरकुटिया प्रयोक्ताओं के लिए किए गए हमारे प्रयासों का असर भी हुआ है और लोग हिन्दी ब्लाग एग्रीगेटरों में जाने लगे हैं, यहां यदि आप अपने ब्लाग में पाठक बुलाने के बजाए इन एग्रीगेटरों में पाठक बुलायें तो वे लम्बे समय तक पाठक बन सकते हैं क्योंकि इसमें उन्हें पाठ्य सामाग्री की विविधता प्राप्त होती है पर कुछ ऐसे परिपक्व लोग भी हैं जो इंटरनेट को सिर्फ और सिर्फ चैटिंग एवं आरकुटिंग का साधन मानते हैं (इनकी संख्या ही सर्वाधिक है)वे आरकुट में कवितायें पढना पढवाना चाहते हैं पर ब्लाग में नहीं आते ऐसे लोगों को ब्लाग का महत्व एवं इसकी उपादेयता समझाना होगा.
वाह वाह के अलावा जब ब्लॉग पर काम की चीज मिलेगी तो ज्यादा लोग पढ़ने आएंगे....मैं रूसी ब्लॉग तक छान मारता हूँ सामग्री के लिए.
हां ...बिल्कुल ठीक कह रहे हैं आप....हिंदी ब्लोग्गिंग को अब इतना समय तो हो ही गया है कि...भविष्य के लिये हमें इन बातों पर सोचना और विचार करना होगा....सार्थक विषय उठाया आपने...आभार...
अवधिया जी आपसे सहमत हूं।शत-प्रतिशत्।
सही है जी। ठेलक ज्यादा हैं, पाठक कम! और जो ठेली सामगी है, उसे देख लगता है कि लोग अपना ठेला भी नहीं पढ़ते! :(
waise main bhi shushant jah ji ki baat se sehmat hoon ki kai baar kuch log blogs padhte to hain par tipyate nahi...
ya tipya nahi sakte....
aur ye wo pathak hote hain jo 'google search' ke through hum tak pahunchte hain...
aur kai baar wo purani post tak pahinchte hain isliye wo hits 'blogvani', 'chittajagat' aadi main pradarshit nahi hote...
kyunki itna to nishchit hai ki jitni jaankari hindi blogs main uplabdh hai utni hindi websites main nahi....
haan par fir bhi hindi ke pathak blog jagat main bahut kum hain
ya yun kahein ki agar tulan ki jaiye to kisi blog ke pathakon main aise pathak zayada honge jinka khud ka blog hai...
bajay unke ki jo kewal blog padhte hain.
kai aur bhi cheezein hai jinke baare main kabhi vistaaar se baat ho to accha hai...
par aapki post ne is baat ko vichar ka mudda banaya to isliye aap badhai ke patr hain...
.ये सच है अधिक लोगो को हिंदी ब्लोगिंग का ज्ञान नहीं है ...या उन तक पहुचने का माध्यम भी नहीं ....अखबारों में भी अग्रीगेटर का कम निजी ब्लोगों का जिक्र ज्यादा होता है ...धीरे धीरे .लोगो को हिंदी टूल्स की जानकारी हो रही है .
हाँ आपकी इस बात से पूर्ण सहमत हूँ की हिन्दी ब्लोगों की गुणवत्ता अभी उतनी नहीं है ...हजारो ब्लोगों में से कम ही इस कसौटी पे खरे उतर रहे है ...मौलिकता की कमी है .....अमूमन ज्यादातर इसे भी सोशल नेट्वर्किंग साइट्स की तरह इस्तेमाल कर रहे है ....@pd .....प्रशांत का कहना सही है की पाठको की कमी नहीं है ये मै कह सकता हूँ .क्यूंकि बीसियों मेरे ऐसे डॉ मित्र है जो मेरा ब्लॉग पढ़ते है पर कभी टिपण्णी नहीं करते ......
एक चीज ओर है लम्बे समय ब्लोगिंग में रहकर आप जान जाते है आपको किन लोगो को पढना है ...हां मेरी राय में एग्रेगेटर का प्रसार करने की ज्यादा जरुरत है
डॉ. अनुराग जी से मैं सहमत हूँ
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