पिछले वर्ष वेलेंटाइन डे के दिन तुमने मुझे यह लाल गुलाब दिया था तभी से आँखें बंद करती हूँ तो तुम सामने नजर आते हो। आँखें खोलती हूँ तब भी तुम मेरे सामने रहते हो। तुम्हारा मुखड़ा, तुम्हारी आँखें, तुम्हारी मुस्कुराहट मैं एक पल भी नहीं भूल पाती। रात में सब सो जाते हैं लेकिन मुझे नींद नहीं आती। छटपटाते रहती हूँ। तकिये में मुँह छुपा लेती हूँ। मुझे लगता है तकिया ही तुम्हारा विशाल सीना है जहाँ मैं सदैव के लिये समा गई हूँ।
आज हमारे मिलन को एक वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। इस दौरान हम दोनों कितने ही बार मुँह में रूमाल बाँध कर लांग ड्राइव्ह में गये हैं और किसी ने भी हमें पहचाना तक नहीं। किन्तु पिछले कई दिनों से तुमने मुझे मेरे मोबाइल पर कॉल भी नहीं किया है। आज फिर से वेलेंटाइन डे आ गया है और मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूँ किन्तु तुम्हारा कहीं भी पता नहीं लग रहा है। मुझे भय लग रहा है कहीं आज तुम किसी और को लाल गुलाब देने के लिये तो नहीं चले गये हो। कहीं तुमने महाभारत कालीन दुष्यन्त की तरह से मुझ शकुन्तला को भुला दिया तो मेरे गर्भ में पलते भरत का क्या होगा। क्या मेरी माता मेनका मुझे कश्यप ऋषि के पास आज भी छोड़ेगी?
जल्दी ही आ जाओ। आने के पहले मोबाइल कर देना ताकि मैं अपने मुँह पर रूमाल बाँधकर तुम्हारे साथ हमेशा हमेशा के लिये चले जाने के लिये तैयार रहूँ।
कहीं ऐसा न हो जाये किः
नजर को जगंल नही अब मकान मिलते हैं
अब हवा मे यहां बि्जली के तार हिलते हैं
प्यार मे पागल यहां आ गयी है शकुंतला
सड़क पर चलते हुए उसके पाँव छिलते हैं
(उपरोक्त पंक्तियाँ ललित शर्मा के सौजन्य से)
सिर्फ तुम्हारी
शकुन्तला
_____________________________
"संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" में आज पढ़ें
15 comments:
गज़ब लिखा अवधिया जी।इसी को आजकल फ़्यूज़न कहते हैं शायद्।
बहुत बढ़िया. शकुन्तला का संदर्भ लेकर अच्छा कटाक्ष किया है.
गज़ब लिखा अवधिया जी।इसी को आजकल कनफ़्यूज़न कहते हैं शायद्।
जोहार ले
Vartman ko udghatik karti Bahut prastuti....
आजकल तो यही हो रहा है।
वैलेंटाइन यानि गारमेंट्स , पुराना हो गया तो बदल डालो।
बदलाव ही जीवन है
आजकल की बातें
बी एस पाबला
कलयुग की शकुन्तला या दुष्यंत, लेकिन हो यही रह है, मुंह पर रुमाल रख के
बेहतरीन। लाजवाब।
ghazab ki chitthi hai...
laailaaz..ha ha ha
अच्छा व्यंग्य
- विजय
sachmuch aaj ki shakuntla yahi likhegee.. khoob likha
वाह लाल गुलाब के फूल का परिणाम फूल सा लाल। क्य कहने, जय वेलेन्टाइन संत।
बहुत ही चुटीला व्यंग है ...आजकल की स्थितियों पर..
अवधिया जी आप की बात से सहमत हुं
Post a Comment